युवाओं की हौसला अफजाई करती है किताब ‘जिद, जुनून, जिन्दादिली’

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download (1)अंजू अग्निहोत्री,
आई एन वी सी,
लखनऊ,
प्रख्यात साहित्यकार पं. हरि ओम शर्मा ‘हरि’ द्वारा लिखित एवं उर्दू भाषा में प्रकाशित किताब ‘जिद, जुनून, जिन्दादिली’ युवाओं व किशोरों की हौसला अफजाई तो करती ही है, साथ ही हर उम्र के लोगों को मंजिल पर पहुँचने की तालीम भी देती है, साथ ही पाजिटिव सोच के साथ जीवन की बुलन्दियों को छूने का हौसला बखूबी देती है। उर्दू भाषा में प्रकाशित होने के कारण इस किताब का महत्व और अधिक बढ़ जाता है, यह पुस्तक उर्दू पाठकों तक अपनी पहुंच बनाने में सक्षम है और मदरसों आदि में तालीम हासिल करने वाले छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। दरअसल उर्दू भाषा में प्रकाशित यह पुस्तक पं. हरि ओम शर्मा ‘हरि’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘जागो, उठो, चलो’ का उर्दू तर्जुमा है, जिसके मार्फत लेखक ने समाज के सभी वर्गों तक रचनात्मक व जीवन मूल्यों से जुड़े विचारों को पहुचाने का अभिनव प्रयोग किया है। पुस्तक ‘जिद, जुनून, जिन्दादिली’ का विमोचन अभी हाल ही में सम्पन्न हुआ।  ‘जिद, जुनून, जिन्दादिली’ में पारिवारिक व सामाजिक परिवेश का यथार्थ शब्द-चित्रण व आकर्षक साज-सज्जा से जहाँ बरबस ही पाठक के दिल को छू जाती है तो वहीं दूसरी ओर पुस्तक के विभिन्न लेखों में लेखक ने सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि समाज के सभी छोटे-बड़े नागरिकों को सफलता के उच्चतम सोपान पर पहुँचाने हेतु अपना सारा अनुभव उड़ेल दिया है जिसके कुछ नमूने देखने लायक हैं जैसे – ‘अवसर दरवाजे पर है, कहीं आप downloadसो तो नहीं रहे हैं?’, ‘शून्य से शिखर पर पहुँचाती है ‘सकारात्मक सोच’, ‘सपने सच करने हैं, तो जग जाइये’, ‘जिद, जुनून और जिन्दादिली ही पहुँचाती है मुकाम पर’ आदि-आदि। सिर्फ अनुभव ही नहीं अपितु पाठकों में आत्मबल भरने में भी लेखक ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है – ‘हार सह लेना व हार मान लेना – दोनों में जमीन-आसमान का अन्तर है’, ‘धनबल, बाहुबल, कुर्सीबल, तीनों से भी बड़ा है आत्मबल’, ‘सब कुछ संभव है, असंभव कुछ भी नही’ आदि। वैसे तो इस किताब का मुख्य आकर्षण व उद्देश्य बच्चों, किशारों व युवाओं का ‘चरित्र निर्माण’ ही है किन्तु खास बात यह है कि सामाजिक व पारिवारिक जिन्दगी का शायद ही कोई ऐसा पहलू हो जो लेखक की लेखनी से अछूता हो। प्रायः सभी पारिवारिक विषयों पर लेखक ने निर्विवाध रूप से अपनी लेखनी चलाई है। पुस्तक के लेखक पं. हरि लिखते हैं – ‘‘बच्चे मेरे और आपके नहीं हैं। बच्चे तो खुदा की देन हैं उस खुदा ने हमें केवल माता-पिता बनाकर उनकी देखभाल व लालन-पालन की जिम्मेदारी सौंपी है।’’ इसके अलावा किताब में दिये गये उद्धरण, संस्मरण, सद्विचार आदि युवा पीढ़ी में प्रेरणा व आत्मविश्वास का संचार करने में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इन छोटे-छोटे कोटेशनों के माध्यम से लेखक ने कम शब्दों में परन्तु बड़े ही असरदार तरीके से किशारों व युवाओं को राह दिखाई है। कुल जमा यह किताब जीवन के विविध आयामों पर अपनी अमिट छाप छोड़ती है एवं कुछ कर गुजरने व मंजिल पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती हैं। इतना ही नहीं, अभिभावकों एवं समाज व घर के बड़े-बुजर्गो को भी नई राह दिखाती है।  बताते चलें कि उर्दू भाषा में प्रकाशित ‘जिद जुनून, जिन्दादिली’ पं. हरि की पूर्व पुस्तक ‘जागो, उठो, चलो’ का उर्दू तर्जुमा है। पुस्तक ‘जागो, उठो, चलो’ बेहद लोकप्रिय रही है, जिसने किशोरों व युवाओं का खूब मार्गदर्शन किया। इस प्रेरणादायी पुस्तक का लोकार्पण प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने किया था जबकि नेपाल की जनता के लिए इस पुस्तक का लोकार्पण नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पुष्प कमल दहल प्रचण्ड ने काठमाण्डू में आयोजित एक भव्य समारोह में किया था जबकि मारीशस की जनता के लिए इसी पुस्तक का लोकापर्ण मारीशस के राष्ट्रपति महामहिम सर् अनिरुद्ध जगन्नाथ ने किया था। इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपतियों डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एवं डा. प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने भी पं. शर्मा की लेखन शैली को खूब सराहा है। हालांकि किताब की मोटाई थोड़ा ज्यादा जरूर है परन्तु आदि से अन्त तक नीरसता ढूँढे से भी नहीं मिलती। यह लेखक की अद्भुद लेखन शैली ही है जो पाठक को प्रत्येक अध्याय की समाप्ति पर अगले अध्याय को पढ़ने हेतु लगातार प्रेरित करती है। जहाँ तक इसकी कीमत का सवाल है तो यह निम्न मध्य वर्ग के सामान्य ही है। इसके अलावा, पुस्तक का उर्दू अनुवाद इतना सटीक और उत्तम है कि कहीं भी इसका अहसास नहीं होता कि यह अनुवादित है। इसका श्रेय अनुवादक श्री मोहम्मद गुफरान नसीम को जाता है, जिन्होंने बड़े ही मन से व संजीदगी से इसे उर्दू में अनुवादित किया है। वास्तव में श्री गुफरान इसके लिए बधाई के पात्र हैं। जिद, जुनून, जिन्दादिली के बारे में बताते हुए लेखक पं. हरि ओम शर्मा ‘हरि’ कहते हैं कि ‘जागो, उठो, चलो’ का उर्दू तर्जुमा कराने का मुख्य मकसद ही यही है कि उच्च विचारों, जीवन मूल्यों व भारतीय संस्कृति व सभ्यता को उन लोगों तक पहुंचाना है जो जागृत अवस्था में होते हुए भी सुप्तावस्था में हैं, अर्थात तन से जगे होने के बाद भी मन से सोये हुए हैं। आत्मविश्वास से लबालब होने के बावजूद भी निराश हैं, दीन-हीन भावना से ग्रस्त हैं, कर्तव्य से विमुख हैं। ऐसे ही व्यक्तियों के लिए मैंने अपने विचारों को ‘जिद, जुनून, जिन्दादिली’ का नाम देकर किशोरों व युवाओं को जगाने का प्रयास किया है जो जागृत होने के बावजूद सुप्तावस्था में हैं।’’
 कुल मिलाकर जिद, जुनून, जिन्दादिली जीवन मूल्यों, संस्कारों, अधिकारों व कर्तव्यों की ज्योति जगाकर आत्मविश्वास से लबालब करती है, साथ ही सामाजिक सरोकारों पर भी पैनी नजर रखती है और बहुत ही रचनात्मक विधि से सामाजिक विकास का ताना-बाना बुनती है। ‘जिद, जुनून, जिन्दादिली’ एक ऐसी किताब है जो निश्चित ही उर्दृ पाठकों के दिलों पर राज करेगी।

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