युद्ध अपराधियों का मुंसिफ बन जाना…

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iraq war-तनवीर जाफरी-

2003 में अमेरिका-ब्रिटेन व उसके सहयोगी देशों द्वारा इराक पर अकारण थोपे गए युद्ध का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। वैसे तो विश्व के अनेक देश प्रारंभ से ही इराक पर अमेरिका द्वारा थोपे गए युद्ध के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति तथा तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर को जि़म्मेदार तथा एक संगीन युद्ध अपराधी मान रहे थे। अब तक ऐसी कई रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि बावजूद इसके कि इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन एक क्रूर तानाशाह शासक थे तथा उनके शासनकाल में इराक में ज़ुल्म तथा अत्याचार ढाने की अनेक घटनाएं हुईं। उनके दौर में इराक में कई समुदाय के लोगों को लक्षित हिंसा का शिकार बनाया गया। सद्दाम इराक पर एक तानाशाह शासक के रूप में अपना खानदानी राज कायम रखना चाहते थे। स्वभावत: चूंकि वे स्वयं एक क्रूर व्यक्ति थे इसलिए क्रूरता का दर्शन उनके शासन करने की शैली में भी साफ नज़र आता था। परंतु इन बातों का अर्थ यह तो कतई नहीं कि सद्दाम हुसैन के इस तानाशाही स्वभाव की आड़ में इराक में सामूहिक विनाश के हथियार होने का बहाना बनाकर इराक जैसे खूबसूरत एवं ऐतिहासिक देश को खंडहर में तब्दील कर दिया जाए? परंतु 2003 में ऐसा ही खूनी खेल जार्ज बुश द्वितीय तथा ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की मिलीभगत से खेला गया। और इस घिनौने ‘पॉवर गेमÓ में न केवल अमेरिका व ब्रिटेन सहित अमेरिका के सहयोगी देशों के हज़ारों सैनिक बेवजह मारे गए बल्कि लाखों इराकी नागरिकों को भी मौत का सामना करना पड़ा। और जबरन थोपे गए इस युद्ध में इराक जैसे सुंदर व आकर्षक देश को खंडहर के रूप में परिवर्तित होते हुए भी देखा गया। इतना ही नहीं बल्कि इसी युद्ध के बहाने अमेरिका द्वारा इराक से बड़ी मात्रा में तेल का दोहन भी कर लिया गया।

अब एक बार फिर इसी इराक युद्ध की जांच के संबंध में ब्रिटेन द्वारा गठित एक अधिकारिक जांच आयोग ने आयोग के अध्यक्ष सर जॉन चिलकाट के नेतृत्व में अपनी एक रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट में एक बार फिर इराक युद्ध में ब्रिटेन के भाग लेने के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के फैसले पर तथा इस युद्ध में उनकी भूमिका पर सवाल खड़ा किया गया है। अपनी इस अधिकारिक रिपोर्ट में सर जॉन चिलकाट आयोग ने यह साफतौर पर कहा है कि ‘इराक पर 2003 में किया गया सैन्य हमला अंतिम उपाय नहीं था। युद्ध के अलावा भी दूसरे उपायों पर विचार किया जाना चाहिए था जो नहीं किया गया। चिलकाट आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि युद्ध में जाने से पहले ब्रिटेन ने शांति स्थापना के अनेक उपायों का प्रयोग नहीं किया। रिपोर्ट के अनुसार-‘यह स्पष्ट है कि ब्रिटेन की इराक नीति पूर्णतया कमज़ोर एवं अपुष्ट गुप्त सूचनाओं के आधार पर तैयार की गई। और इस नीति को किसी ने भी चुनौती नहीं दी। जबकि इसका परीक्षण किया जाना ज़रूरी था। इतना ही नहीं बल्कि युद्ध के बाद बनाई गई अनेक योजनाएं भी पूरी तरह अपर्याप्त तथा अनुचित थीं। चिलकाट आयोग की रिपोर्ट आने के बाद अब इस बात की भी ज़रूरत है कि ऐसा ही एक अधिकारिक जांच आयोग अमेरिका द्वारा भी गठित किया जाए जो टोनी ब्लेयर की ही तरह जॉर्ज बुश की भी इराक युद्ध में संदिग्ध भूमिका की जांच कर सके।

यहां यह विषय भी काबिलेगौर है कि 2003 में अमेरिका द्वारा इराक पर जबरन युद्ध थोपने का सबसे अधिक विरोध अमेरिकी नागरिकों द्वारा ही किया जा रहा था। इराक युद्ध को लेकर पूरे अमेरिका में खासतौर पर राष्ट्रपति भवन व्हाईट हाऊस के बाहर जितने अधिक व बड़े विरोध प्रदर्शन किए गए अमेरिकी इतिहास में इतने अधिक प्रदर्शन तथा युद्ध थोपने के अमेरिकी फैसले का ऐसा विरोध पहले कभी नहीं हुआ। अमेरिकी व ब्रिटिश नागरिकों द्वारा इराक में बेगुनाह मारे गए लाखों लोगों के प्रति सबसे अधिक संवेदनाएं व्यक्त की गईं तथा उनके अपने सैनिकों के युद्ध में मारे जाने पर भारी रोष व्यक्त किए गए। विश्व राजनीति पर नज़र रखने वाले विश£ेषकों द्वारा इस युद्ध को महज़ अंतर्राष्ट्रीय तेल मािफयाओं द्वारा खेला गया ‘तेल का खेलÓ बताया गया। परंतु जॉर्ज बुश व टोनी ब्लेयर ने बड़ी चतुराई से अफगानिस्तान के साथ ही इराक पर युद्ध थोप कर इसे वैश्विक आतंकवाद के साथ जोडक़र दुनिया को दो भागों में बांटने की कोशिश की और स्वयं को आतंकवाद विरोधी नायक के रूप में प्रस्तुत करने का कुटिल प्रयास किया। इस बात की पूरी आशा है कि चिलकाट आयोग की यह रिपोर्ट आने के बाद न केवल इराक युद्ध में मारे गए ब्रिटिश सैनिकों के परिजन एक बार फिर टोनी ब्लेयर के विरुद्ध आक्रामक रुख अिख्तयार करेंगे बल्कि उनसे माफी मांगवाने के लिए भी अपनी आवाज़ बुलंद कर सकते हैं।

iraq war 12003 से 2009 के मध्य अमेरिका व ब्रिटेन द्वारा इराक में खेला गया खूनी खेल केवल लाखों बेगुनाहों की मौत या इराक की बरबादी तक ही सीमित नहीं रह गया है। बल्कि इस युद्ध के बाद जहां इराक में जातिगत मतभेद बढ़े हैं और इसी के नाम पर आए दिन बड़ी से बड़ी हिंसक घटनाएं घट रही हैं बल्कि इसी नाजायज़ युद्ध ने आईएसआईएस जैसे विश्व के सबसे खतरनाक बन चुके आतंकवादी संगठन के खड़ा होने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गौरतलब है कि आईएस के नाम पर जो लड़ाके बर्बर आतंकवाद  की इबारत लिख रहे हैं उनमें बड़ी संख्या में वे सैनिक भी शामिल हैं जो 2003 से पहले व उसके बाद सद्दाम हुसैन की सेना के सैनिक हुआ करते थे। जिस समय सद्दाम हुसैन का शासन समाप्त हुआ तथा उनके सैनिकों को इराकी सेना भंग होने पर बेरोज़गारी का सामना करना पड़ा उस समय इन्हीं इराकी सैनिकों ने सीरियाई विद्रोहियों के साथ हाथ मिलाकर आईएसआईएस का गठन कर डाला। अब यहां यह बताने की ज़रूरत ही नहीं कि यही आईएस आज आतंकवाद व बर्बरता के कैसे-कैसे भयानक अध्याय लिख रहा है। क्या दुनिया में अलकायदा से भी खतरनाक बन चुके आईएसआईएस नामक इस संगठन की बुनियाद का पत्थर रखने में जॉर्ज बुश द्वितीय व टोनी ब्लेयर अपनी जि़म्मेदारियों से बच सकते हैं?

बड़े आश्चर्य का विषय है कि पूरी दुनिया को तबाही व आतंकवाद की आग में झोंकने का काम करने वाले देश तथा उनके कुटिल नेता पूरी दुनिया को मार्गदर्शन देने तथा दुनिया में अमन व शांति का पैगाम फैलाने के स्वयंभू ठेकेदार बने बैठे हैं। इस बात में कोई अतिशोक्ति नहीं कि पूरे विश्व के आतंकवादियों द्वारा कुल मिलाकर अब तक इतनी हत्याएं नहीं की गई हैं जितनी कि अमेरिका व ब्रिटेन के शासकों द्वारा कभी सैन्य युद्ध थोपे जाने के बहाने से तो कभी इज़राईल जैसे देश का आतंक फैलाने में सहयोग किए जाने की बदौलत की जा चुकी हैं। और यह भी एक कड़वा सच है कि विभिन्न देशों में फैले आतंकवाद के जहां कई स्थानीय व जातीय कारण हैं वहीं पश्चिमी देशों खासतौर पर अमेरिका व ब्रिटेन के हितों को निशाना बनाया जाना भी इसका एक बड़ा कारण है। परंतु विश्व राजनीति को अपने नियंत्रण में रखने वाले राजनीति के यह महान  खिलाड़ी स्वयं को तो पाक-साफ नेता के रूप में स्थापित कर पाने में तथा युद्ध थोपने जैसी अपनी बेजा कोशिशों को न्यायसंगत बता पाने में कामयाब दिखाई देते हैं जबकि इनके दुष्प्रयासों से फैला आतंकवाद विश्व मीडिया द्वारा एक ‘इस्लामिक आतंकवादÓ के नाम से प्रचारित किया जा चुका है।

आज एक बार फिर इस बात की ज़रूरत महसूस की जा रही है कि सर जॉन चिलकाट आयोग की रिपोर्ट पर विश्व समुदाय अपना ध्यान दे। जो लोग तथा जो देश 2003 से ही सर चिलकाट की इस ताज़ातरीन रिपोर्ट के अनुसार ही अपनी यह धारणा बनाए हुए थे कि इराक पर बेवजह युद्ध थोपा जा रहा है और सामूहिक विनाश के हथियारों की इराक में मौजूदगी केवल एक बहाना है ऐसी विचारधारा रखने वाली सभी शक्तियों को एक बार फिर सामूहिक रूप से अपना स्वर बुलंद करना चाहिए। और विश्व समुदाय को जॉर्ज बुश द्वितीय तथा टोनी ब्लेयर जैसे पूर्वाग्रही एवं व्यवसायिक मानसिकता रखने वाले मानवता के दुश्मन नेताओं को युद्ध अपराधी बनाए जाने की मांग की जानी चाहिए। ऐसे नेताओं को युद्ध अपराधी बनाए जाने से न केवल अमेरिका व ब्रिटेन के इराक युद्ध में मारे गए सैनिकों के परिजनों को न्याय मिल सकेगा बल्कि इराक में इसी कारण से मारे गए तथा अब तक मारे जा रहे लाखों लोगों की आत्मा को भी शांति मिल सकेगी। दूसरी ओर दुर्भाग्यवश जो अपराधी दुनिया के स्व्यंभू मुंसिफ बने बैठे हैं उनके बदनुमा चेहरे भी बेनकाब हो सकेंगे।
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Tanveer JafriAbaut the Auther
Tanveer Jafri
Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Email – : tanveerjafriamb@gmail.com –  phones :  098962-19228 0171-2535628 1622/11, Mahavir Nagar AmbalaCity. 134002 Haryana.

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