मौलाना खालिद मुजाहिद की रहस्मय परिस्थिती मौत – और इंसाफ का कत्ल हो ही गया *

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वसीम अकरम त्यागी,Wasim Akram,Wasim Akram tyagi,daeth of justice,{ वसीम अकरम त्यागी ** } उत्तर प्रदेश में 2007 में हुऐ फैजाबाद कचहरी बम विस्फोट के आरोपी मौलाना खालिद मुजाहिद की रहस्मय परिस्थिती मौत बहुत कुछ बयां कर गई। उनकी मौत ने बता दिया कि मुसलमानों के लिये न्याय मिल पाना लोहे के चने चबाने जैसा है। गौरतलब है कि उक्त बम विस्फोट की जांच के लिये बने निमेष आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इन दोनों आरोपियों तारिक कासमी और मरहूम खालिद मुजाहिद को निर्दोष पाया था। मगर प्रेदेश में मुस्लिमों के दम पर राज करने वाली समाजवादी सरकार उस रिपोर्ट को अभी तक लागू नहीं करा पायी। जिसकी कई बार मांग भी की जा चुकी है। लेकिन आज जो हुआ वह तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि पेशी पर गये खालिद की रहस्मय परिस्थिती में हुई मौत ने साबित कर दिया कि अखिलेश की लाल टोपी का रंग अब पूरी तरह भगवा हो चुका है। अब यह पूरी तरह साफ हो चुका है कि सपा मुस्लिमों का जिक्र तो करती है मगर फिक्र नहीं। अगर फिक्र होती तो क्या एक साल के कार्यकाल में 27 दंगे होते ? क्या डीएसपी की हत्या के आरोपी खुले घूमते ? क्या जेलो में बंद बेकसूर मुस्लिम नौजवान रिहा नहीं होते ? क्या पेशी पर ले जाते वक्त एक स्वस्थ नौजवान की रहस्मय परिस्थिती में मौत होती ? सवाल बहुत हैं जिनका जवाब सिर्फ एक है कि “मुस्लिमों का जिक्र है, फिक्र नहीं“ ।

बात मौलाना खालिद मुजाहिद की करते हैं जिन्हें आज पेशी से लाते वक्त शहीद कर दिया गया. अगर वह सव्सथ्य नहीं थे तो उन्हें बजाय पेशी पर लाने के अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया ? रिहाई मंच के बार बार यह कहने पर कि तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद पर कई बार जेल में हमला हो चुका है उनकी जान को खतरा है इस पर सरकार ने और जेल प्रशासन ने गंभीरता से विचार क्यों नहीं किया ? जब निमेष आयोग को अपनी रिपोर्ट पेश किये हुऐ लगभग पांच महीने से भी ज्यादा का समय बीत चुका है तो उसे सार्वजनिक करके उसे अमली जामा क्यों नहीं पहनाया गया ? उन पुलिसकर्मियों पर कोई कार्रावाई क्यों नहीं की गई जिन्होंने इन्हें इस मामले में फंसाया था ? अगर यह कह दिया जाये तो कुछ गलत न होगा कि खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी पर बने आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट को दबाकर दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने का प्रयास किया और जब सरकार पर राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनने लगा कि वह निमेष कमीशन की रिपोर्ट को सार्वजनिक करके निर्दोषों को रिहा करे और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रावाई करे तो खालिद की हत्या करा दी गयी क्योंकि निमेष कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर कई बड़े पुलिस अधिकारियों को जेल जाना पड़ता। ऐसे में रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव द्वारा हस्तक्षेप डॉट कॉम को दिया गया यह बयान भी खालिद जाहिद की मौत को एक कत्ल के रूप में पेश करता है कि पुलिस प्रशासन सबूतों को मिटाने के लिये रात में ही परिजनों और अधिवक्ता की अनुपस्थिति में पोस्टमार्टम कराने पर तुला हुआ है। तारिक खालिद की हत्या में प्रशासन पूरी तरह संलिप्त हैं, क्योंकि बाराबंकी पुलिस अधीक्षक बिना पोस्टमार्टम रिपोर्ट आये ही कह रहे हैं कि तारिक खालिद की हत्या नहीं हुयी है।वसीम अकरम त्यागी,Wasim Akram,Wasim Akram tyagi,daeth of justice,daeth in custudy of muslim

वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी ने अपने फेसबुक आईडी पर लिखा है कि यह सामने आ गया है कि मुलायम सिंह यादव भाजपा से भी ज्‍यादा भयंकर साम्प्रदायिक हो चुके हैं। अखिलेश के राज्‍य में जिस तरह राज्‍य भर में साम्प्रदायिक दंगे हुये, मुलायम सिंह आडवाणी की तारीफ करते दिखे, उसके बाद मुसलमनों को दिखाने के लिए आतंकवाद के आरोप में फँसे मुसलमान युवकों पर से मुकदमा उठाने का झूठा नाटक खेला। उन्होंने कहा कि सपा सरकार ने वरूण गांधी को अल्‍पसंख्‍यकों पर शर्मनाक टिप्‍पणी करने के बावजूद बाइज्‍जत बरी करवा दिया और अब कथित आतंकवादी को रास्‍ते में मुकदमे से लौटते समय मरवा दिया। यह भी सामने आया है कि दिल्‍ली पुलिस द्वारा फर्जी तरीके से आतंकवादी बना कर फँसाये गये लियाकत अली वाले मामले में भी उप्र प्रदेश पुलिस की भूमिका संदिग्‍ध रही है। इससे पहले कल्‍याण सिंह को गले लगा चुके मुलायम सिंह की कैंचुली अब उतर रही है वह साम्प्रदायिक ध्र्रुवीकरण का खेल खेल रहे हैं ताकि उप्र में केवल उन्‍हें या भाजपा को लोकसभा में सीटें मिलें। मुलायम सिंह की लाल टोपी चुपके से भगवा हो चुकी है जरा उतार कर देखों कहीं काली ना बन गयी हो

अब जबकि उत्तर प्रदेश में एक बार फिर इंसाफ का गला घोंटा जा चुका है तो क्या खालिद जाहिद के परिवार को भी वही सुविधाऐं मिलेंगी जो सरबजीत को मिली हैं ? जबकि मामला दोनों का लगभग एक जैसा है अगर फर्क है तो सिर्फ इतना कि मौत अपने मुल्क में हुई और दूसरे कि दुश्मन देश में। मगर मौत तो मौत है फिर एक जैसी सुविधायें देने में क्या बुराई है ? अब तमाम इंसाफपसंदों को चाहिये कि कि शहीद खालिद जाहिद के परिवार को न्याय दिलाने के लिये एक साथ मिलकर इस लड़ाई को लड़ें। ताकि उनके परिवार को न्याय मिल सके वह न्याय जिसकी वे छः साल बांट जोह रह हैं।

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वसीम अकरम त्यागी,Wasim Akram,Wasim Akram tyagi,** वसीम अकरम त्यागी
उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में एक छोटे से गांव अमीनाबाद उर्फ बड़ा गांव में जन्म

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एंव संचार विश्विद्यलय से पत्रकारिता में स्नातक और स्नताकोत्तर

समसामायिक मुद्दों और दलित मुस्लिम मुद्दों पर जमकर लेखन। यूपी में हुऐ जिया उल हक की हत्या के बाद राजा भैय्या के लोगों से मिली जान से मारने की धमकियों के बाद चर्चा में आये ! फिलहाल मुस्लिम टूडे में बतौर दिल्ली एनसीआर संवाददता काम कर रहें हैं

9716428646. 9927972718

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely

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1 COMMENT

  1. Ji nahi Topi ka Colour abhi bhi Lal hi h…….Bt Remmbr Lal bhagwa se bhi khatarnaq h qki Bhagwa to khuleam mukhalfat karta h lekin Lal Rang ko agar Asteen ka sanp kaha jay to bura nahi hoga

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