मोहर्रम में रक्तदान शिविर लगाकर करें सद्भावना का प्रदर्शन *

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Muslims on Moharram{तनवीर जाफरी ** }        विश्व के कई मुस्लिम बाहुल्य देश इस समय हिंसाग्रस्त हैं। कहीं सत्ता संघर्ष के चलते आए दिन बेगुनाह लोग मारे जा रहे हैं तो कहीं विद्रोहियों व स्थानीय सेना के बीच $खंूरेज़ी का खेल चल रहा है। कोई देश जातिवादी हिंसा की चपेट में है तो कहीं आतंकवादी व कट्टरपंथी लोग वैचारिक मतभेद रखने वाले अपने विरोधियों की जान के दुश्मन बने बैठे हैं। कहीं पश्चिम विरोध के नाम पर $खून बहाया जा रहा है तो कहीं इस्लामी जेहाद के नाम का सहारा लेकर बे$कुसूर इंसानों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। कुल मिलाकर इस्लाम धर्म इस समय पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। हालंाकि लगभग प्रत्येक हिंसा प्रभावित मुस्लिम देश में हत्याओं व हिंसा के अलग-अलग कारण ज़रूर हैं परंतु इन कारणों की परिणिती एक-दूसरे का $खून बहाने के रूप में ही होती देखी जा रही है। यही वजह है कि पूरी दुनिया $खंूरेज़ी के इस घिनौने व अमानवीय खेल को इस्लाम धर्म की शिक्षाओं से जोडक़र देखने लगी है। ऐसे में इस्लामी जगत के जि़म्मेदार लोगों $खासतौर पर उदारवादी धर्मगुरुओं की यह जि़म्मेदारी है कि वे इस्लाम पर लगने वाले इस प्रकार के आरोपों का केवल मा$कूल जवाब ही न दें बल्कि अपनी रचनात्मक कारगुज़ारियों से भी यह साबित करने की कोशिश करें कि इस्लाम धर्म किसी इंसान की जान लेना नहीं बल्कि इंसान की जान बचाने की शिक्षा देता है। इस्लाम किसी की हत्या करना नहीं बल्कि $खुद अपनी जान को जोखिम में डालकर दूसरे इंसान की जान बचाने की तालीम देता हैdownload

                        यह प्रमाणित करने का सबसे उचित अवसर निश्चित रूप से मोहर्रम का वह महीना है जिस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग करबला की घटना को याद कर हज़रत मोहम्मद के नवासे हज़रत इमाम हुसैन का सोग मनाते हैं। वैसे तो हज़रत इमाम हुसैन व उनके 72 साथियों की करबला में हुई $कुर्बानी को सभी धर्मों व समुदायों के लोग किसी न किसी रूप में कमोबेश पूरे विश्व में मनाते हैं। पंरतु मुसलमानों में शिया समाज के लोग इस अवसर पर अनेक $िकस्म के आयोजन करते हैं। इनमें मजलिस व नौहा $ख्वानी(जि़क्र-ए-हुसैन)से लेकर तलवार,ज़ंजीर व आग के अंगारों पर चलने वाले मातम तक शामिल हैं। कहना $गलत नहीं होगा कि केवल दसवीं मोहर्रम को एक ही दिन में पूरे विश्व में हज़रत इमाम हुसैन के चाहने वाले उनकी याद में सैकड़ों टन $खून की नदियां सडक़ों पर स्वेच्छा से बहा देते हैं। भारतवर्ष में भी शिया आबादी वाले कई स्थानों पर यह शोकपूर्ण नज़ारा देखा जा सकता है। हज़रत इमाम हुसैन के अनुयायी हज़रत हुसैन की याद में धारदार ज़ंजीरों व तलवारों के मातम के द्वारा अपना $खून बहाकर उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि यदि वे करबला के मैदान में होते तो वे भी हज़रत इमाम हुसैन के साथ खड़े होकर क्रूर यज़ीद  व उसकी सेना से लड़ते हुए अपनी जानें न्यौछावर कर देते।

                        परंतु एक ओर जहां मुस्लिम समुदाय विशेषकर शिया समाज द्वारा गत् 1400 वर्षों से भी अधिक समय से अपना रक्त बहाकर हज़रत हुसैन के वास्तविक इस्लाम को जि़ंदा रखने की कोशिश की जा रही है वहीं दूसरी ओर यज़ीदी विचारधारा का अनुसरण करने वाला एक हिंसक वर्ग बेगुनाह लोगों की जानें लेने पर आमादा है। यह तथाकथित इस्लाम विरोधी वर्ग सडक़ों, भीड़ भरे बाज़ारों के अलावा विभिन्न धर्मस्थलों यहां तक कि शव यात्रा में शामिल भीड़ और नमाज़-ए-जनाज़ा में शिरकत करने वाले नमाजि़यों और अस्पताल में किसी घायल व्यक्ति की तीमारदारी के लिए पहुंची भीड़ के मध्य आत्मघाती धमाके कर बेगुनाहों की हत्याएं करने से बाज़ नहीं आ रहा है। और इन्हीं ज़ालिम तथाकथित मुसलमानों की यही हिंसक गतिविधियां इस्लाम धर्म की शिक्षाओं को संदिग्ध कर रही हैं। इस्लाम धर्म के विरुद्ध अपना पूर्वाग्रह रखने वाले लोग इन हिंसक गतिविधियों को सीधे तौर पर इस्लामी शिक्षाओं यहां तक कि $कुरान शरी$फ की तालीम से जोडक़र देखने लगते हैं। ऐसे में यह बेहद ज़रूरी है कि दुनिया को $खासतौर पर इस्लाम की आलोचना करने वाले पूर्वाग्रही लोगों को अपनी कारगुज़ारियों के द्वारा यह बताया जाए कि इस्लाम वास्तव में त्याग, $कुर्बानी,मानवता तथा दूसरे की जान बचाने की शिक्षा देने वाला धर्म है।                                रक्तदान निश्चित रूप से एक ऐसा महादान है जिससे केवल किसी एक व्यक्ति की जान ही नहीं बचती बल्कि रक्तदान प्राकृतिक रूप से मानवीय सौहाद्र्र की भी एक बेजोड़ मिसाल पेश करता है। $कुदरत का भी क्या अजीब करिश्मा है कि उसने मनुष्य के रक्त में कोई भी अलग पहचान नहीं बनाई जिससे यह साबित हो सके कि यह $खून किसी पश्चिमी सभ्यता से संबंधित व्यक्ति का है या किसी पूर्वी देश के व्यक्ति का। कोई पैमाना ऐसा नहीं है जो यह निर्धारित कर सके कि यह $खून किसी हिंदू का है अथवा मुस्लिम का, सिख का या ईसाई का। दलित का या ब्राह्मण का, किसी स्वर्ण जाति के व्यक्ति का अथवा कथित निम्र जाति के किसी श$ख्स का, किसी स्वामी का अथवा किसी नौकर का। गोया ईश्वर ने मानव को मात्र प्राणी के रूप में ही इस धरती पर पैदा किया। परंतु दुर्भाग्यवश कहें या सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार समय के आगे बढऩे के साथ-साथ मानव के विभाजन की रेखाओं की संख्या भी बढ़ती ही गई। परिणामस्वरूप मानव समाज विभिन्न प्रकार की श्रेणियों,वर्गों तथा रेखाओं में विभाजित होकर रह गया। नि:संदेह रक्तदान एक ऐसा दान है जो बिना किसी धर्म-जाति अथवा संकीर्ण सीमाओं के एक-दूसरे के मध्य सद्भाव पैदा करता है। दो दशक पूर्व अमिताभ बच्चन अपनी एक $िफल्म की शूटिंग के दौरान बुरी तरह घायल हो गए थे। उस समय उन्हें अमजद $खान ने अपना $खून दान किया था। आज अमजद $खान हमारे मध्य नहीं हैं। परंतु उनका रक्त अमिताभ बच्चन के शरीर में प्रवाहित हो रहा है। हिंदू-मुस्लिम एकता व घनिष्ठता  का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है। लिहाज़ा आज केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में और केवल शिया समुदाय को ही नहीं बल्कि पूरे मुस्लिम जगत को और कितना अच्छा हो यदि $गैर मुस्लिम समुदाय के लोग भी मोहर्रम के महीने में जगह-जगह मिलजुल कर रक्तदान शिविर लगाकर पूरी दुनिया को यह संदेश दें कि वास्तविक इस्लाम अपना रक्त देकर दूसरे की जान बचाना है। और इस्लाम के नाम पर दूसरों की जान लेने जैसा कार्य वास्तविक इस्लाम नहीं बल्कि यज़ीदियत की पैरवी करने वाले तथा यज़ीदियत की शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले तथाकथित मुसलमानों के बुरे कारनामे मात्र हैं। और ह$की$कत भी यही है कि करबला के मैदान में सत्ता पर बैठे सीरिया के तत्कालीन बादशाह यज़ीद ने अपनी ता$कत का दुरुपयोग करते हुए पै$गंबर-ए-रसूल हज़रत मोहम्मद के परिवार के सदस्यों के साथ जो ज़ुल्म किया उन्हें तीन दिनों तक भूखा-प्यासा रखकर $कत्ल करने व $कत्ल करने के बाद शहीदों की लाशों पर घोड़े दौड़ाने और लाशों से शहीदों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर बुलंद कर जुलूस में शामिल करने जैसा क्रूरतापूर्ण कार्य इस्लामी इतिहास की सबसे पहली व सबसे बड़ी आतंकवादी घटना थी। आज दुनिया में जहां-जहां आतंकवाद इस्लाम के नाम पर फैलाया जा रहा है वह नि:संदेह यज़ीदी शिक्षाओं से ही प्रेरित है पै$गंबर हज़रत मोहम्मद अथवा $कुरानी शिक्षाओं से नहीं।

                        इस्लाम का अपहरण करने की कोशिश करने वाले इन क्रूर,अत्याचारी तथा बेगुनाह इंसानों पर ज़ुल्म ढाने वाले लोगों को इसका मा$कूल जवाब दिए जाने की ज़रूरत है। और हज़रत इमाम हुसैन की याद में तथा करबला के शहीदों के नाम पर लगने वाले रक्तदान शिविर इस दिशा में एक बड़े और रचनात्मक $कदम साबित हो सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसे रक्तदान शिविर इस्लाम,मुसलमान तथा इस्लामी शिक्षाओं की धूमिल होती जा रही छवि को सा$फ करने में महत्वपूर्ण $कदम साबित होंगे। पूरे देश व दुनिया के उदारवादी मुस्लिम धर्मगरुओं को इस मुहिम में आगे आना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि हज़रत इमाम हुसैन व करबला के शहीदों के नाम पर स्वेच्छा से बहाया जाने वाला श्रद्धालुओं का खून धरती पर व्यर्थ न बहने पाए। यदि हज़रत इमाम हुसैन के किसी अनुयायी के रक्तदान के परिणामस्वरूप किसी दूसरे इंसान की जान बचती हो तो करबला के शहीदों के प्रति इससे बड़ी श्रद्धांजलि आ$िखर और क्या हो सकती है? इस विषय पर हज़रत इमाम हुसैन की याद में अपना $खून बहाने वाले युवाओं से लेकर इन्हें प्रोत्साहित करने वाले धर्मगुरुओं तक सभी को चिंतन-मंथन करना बहुत ज़रूरी है। हज़रत हुसैन के परस्तारों को यह बात ब$खूबी अपने ध्यान में रखनी चाहिए कि जिस प्रकार 1400 वर्ष पूर्व हज़रत इमाम हुसैन ने अपना व अपने पूरे परिवार का रक्त देकर इस्लाम धर्म की छवि को दा$गदार होने से बचाया था वैसी ही जि़म्मेदारी आज हज़रत इमाम हुसैन के अनुयायी समुदाय पर भी आ पड़ी है। लिहाज़ा इस जि़म्मेदारी को भी $कुर्बानी के उसी जज़्बे के साथ निपटने की ज़रूरत है।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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