मोहन नागर की तीन कविताएँ
1.माँ
जरा सी कुनमुनाते ही
जाने-अनजाने पहुँच जाता है हाथ
बच्चे की छाती तक
और गूंजने लगती है थपकियाँ –
थप्प थप्प
थोड़ी ही देर में बच्चा
छाती से चिपटे –
दोबारा सो जाता है
बच्चे के रोने के पहले ही माँ
बच्चे को चुप कर देती है
माँ रोज जागती है –
गौरैया की नींद
पिता –
अक्सर घोड़े बेचकर सोते हैं।
2.लोरी
तानसेन का मल्हार ,
बैजू का दीपक,
डागर का ध्रुपद ,
मियाँ की तोड़ी
सबसे अच्छी
माँ की लोरी .
3.चिड़िया
“ऐसे नही बेटा ….
धीरे -धीरे पंख फैलाओ
खुद को भारमुक्त करो
अब पांव सिकोड़ो ……
थोड़े और …..शाबाश
अब कूद जाओ
डरो नहीं मैं हूँ न
गिरे तो थाम लूंगी। ….”
चिड़िया अपने बच्चे को उड़ना सीखा रही है।
ऐसा करते समय खुश है –
कि उसका बेटा भी
एक दिन दूर
बहुत दूर तक उड़ पायेगा। …….
और दुखी यह सोचकर –
कि पंख उग आने पर यही बेटा
एक दिन उसे छोड़कर
दूर -बहुत दूर उड़ जाएगा।
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प्रस्तुति :
नित्यानन्द गायेन
Assitant Editor
International News and Views Corporation
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मोहन नागर
शिक्षा – पं. जे एन एम चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर से एम बी बी एस,
गांधी चिकित्सा महाविद्यालय भोपाल से निश्चेतना विशेषज्ञ की उपाधि।
पहली कविता १९९४ प्रकाशित। आकाशवाणी , दूरदर्शन में अनेक बार कविता पाठ।
मोहन नागर पेशे से एक डाक्टर हैं। किन्तु इस डाक्टर के भीतर एक कवि का भी निवास है। इनकी अधिकतर कविताओं में माँ , नाना -नानी, घर, चिड़िया आदि का सुंदर एवं भावपूर्ण समावेश मिलता है। इनका एक कविता संग्रह “छूटे गांव की चिरैया ” प्रकाशित हो चूका है। ये कविताएँ उसी संग्रह से हैं।
संपर्क – ग्राम -गढ़ी, पालचौरई, छिंदवाड़ा , मध्य प्रदेश मोबाइल : 9893686175
बहुत ही भाव प्रवण कविताएं………सादर…..अरविन्द.
आप सऍरों और नित्यानंद जी का बहुत बहुत आभार e0
Achchhi kavitain…maarmik aur saral! Badhai Mohan Kumar Nagar ji…Nityanand bhai aabhaar!
ओह्ह सुन्दर ! तीनो कवितायें भावों में बांधती अर्थपूर्ण हैं ….!! और मन मष्तिष्क में प्रभाव डालती है !!
तीनों कविताएँ अपनी कोमलता और सम्वेदना के कारण बेहद प्रभावी हैं। ‘चिड़िया’ कविता पहले से पढ़ी हुई थी।
माँ रोज जागती है – गौरैया की नींद पिता – अक्सर घोड़े बेचकर सोते हैं…मां को याद दिलाती ऐसी बढि़या कविताओं के लिए बधाई के साथ शुभकामनाएं