मोदी लहर में पिछड़े वर्ग के नेता प्रचार से दर किनार *

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M_Id_380365_Narendra_Modi{ गोविन्द शुक्ला ** }
जब से भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र भाई मोदी का नाम आगे किया है, पूरे देश में नरेन्द्र मोदी की लहर चल रही है। क्या नरेन्द्र भाई मोदी के नाम पर भाजपा के पक्ष में जो लहर चल रही है, वह वास्तव में वोट बैंक के रूप में परिणित होगी या 2004 के लोकसभा चुनाव के समय शाइनिंग इण्डिया व फीलगुड की तरह मोदी लहर को ध्वस्त कर देगा? जब तक उत्तर प्रदेश में लोकसभा प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं हुयी थी, भाजपा की जबरदस्त लहर चल रही थी, परन्तु उम्मीदवारों का नाम घोषित होते ही भाजपा का महौल बिगड़ता दिख रहा है। पूर्व में ऐसा अन्दाजा लग रहा था, कि लोकसभा चुनाव 2014 का परिणाम 1997 व 1998 से बेहतर परिणाम देगा। भाजपा अन्दर खाने 40 सीट जीतने का लक्ष्य था, परन्तु सच्चाई यह थी कि यदि भाजपा ने सामाजिक व क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखकर उम्मीदवारों का चयन किया होता तो 60 से अधिक सीटे जीत सकती थी, परन्तु उम्मीदवारों की सूची घोषित होने के बाद जगह-जगह जो आक्रोश उत्पन्न हुआ, गाजीपुर, चन्दौली, घोसी, भदोही, श्रावस्ती, डुमरियागंज, देवरिया, इलाहाबाद, अम्बेडकर नगर, जौनपुर, मछलीशहर, फैजाबाद, बस्ती आदि सहित दर्जनों क्षेत्रों में राष्ट्रीय अध्यक्ष का पुतला फंूक कर विरोध प्रदर्शन किया गया, उससे तो यही अन्दाजा लग रहा है कि नरेन्द्र मोदी की लहर भाजपा को नहीं उबार पायेगी। उत्तर प्रदेश में मोदी लहर के मद में चुनाव प्रचार के कार्य से पिछड़े वर्ग के नेता दरकिनार कर दिये गये।
पार्टी द्वारा इनका उपयोग न किये जाने के कारण ये अपने घरों में बैठे हुये है।
प्रदेश अध्यक्ष डाॅ0 लक्ष्मीकांत बाजपेई, प्रदेश प्रभारी अमित शाह, चुनाव प्रबन्धन की जिम्मेदारी देख रहें सुनील बंसल की दृष्टि में पिछड़े वर्ग के नेताओं की कोई अहमियत नहीं रह गयी है। प्रचार्य कार्य में चुनाव प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष डाॅ0 रमापति राम त्रिपाठी, प्रदेश उपाध्यक्ष शिव प्रताप शुक्ला, हरिद्वार दूबे के साथ केवल स्वतंत्र देव सिंह को लगाया गया है।
सामाजिक न्याय मोर्चा ने सामाजिक न्याय सम्मेलन के माध्यम से पिछड़ों को भाजपा के साथ जोड़ने में खास भूमिका निभाया। राजनाथ सिंह ने अपने करीबी प्रकाश पाल को पिछड़ों को जोड़ने में लगाये, राष्ट्रीय अध्यक्ष की यह रणनीति काफी कारगर साबित हो रही है।
नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा की जो लहर बनी थी वह धीरे-धीरे ठण्डी पड़ती जा रही है और पूर्वांचल में भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक होता नहीं दिख रहा है।
पूर्व में नरेन्द्र मोदी के करीबी व रणनीतिकार तथा आधुनिक चाणक्य कहें जाने वाले भाजपा के प्रदेश प्रभारी नरेन्द्र भाई मोदी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करते रहें कि कार्यकर्ताओं की इच्छा के अनुसार ही उम्मीदवार उतारे जायेंगे। यह भी कहा जाता रहा कि सर्वे एजेन्सियाँ क्षेत्रीय सर्वेक्षण करके जो रिपोर्ट देंगी उसके आधार पर जातिगत व सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखकर उम्मीदवार खड़े किये जायेंगे। परन्तु जब सूची जारी हुयी तो उम्मीद लगाये बैठे लोगों की आशाओं पर पानी फिर गया और ऐसे-ऐसे उम्मीदवार खड़े किये गये जिनका न तो कोई आधार है और न ही किसी सर्वे रिपोर्ट या पैनल में नाम। पूर्वांचल के काशी, गोरखपुर व अवध क्षेत्रान्तर्गत 32 लोकसभा क्षेत्रों में से दो तिहाई से अधिक उम्मीदवार ऐसे उतारे गये है, जिनमें से कई का न तो कोई सामाजिक आधार है
और न कोई क्षेत्रीय प्रभाव। पूर्वांचल में अमित शाह की रणनीति फेल होती दिख  रही है। मोदी लहर भाजपा को कितनी सीटे जिता पायेंगी, वह भविष्य के गर्भ में है फिर भी ऐसा लग रहा है कि 4-5 सीटों से अधिक सीटों पर भाजपा को विजय मिलने असम्भव लग रही है। कयास यह भी लगया जा रहा था कि दर्जन भर से अधिक सीटों पर प्रत्याशियों में परिवर्तन किया जायेगा, परन्तु अभी तक ऐसा नहीं हो पाया।
गुजरात की कुछ सर्वे एजेन्सियों ने दर्जनों सीटों पर उम्मीदवार परिवर्तन की रिपोर्ट दिया है।
उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण को देखा जायें तो पिछड़ों की सर्वाधिक आबादी है। अन्य पिछड़े वर्ग की 54.05 प्रतिशत आबादी में हिन्दु अत्यन्त पिछड़ी जातियों की आबादी लगभग 30 प्रतिशत व मध्यवर्ती कृषक पिछड़ी जातियों की आबादी लगभग 10 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश जातिगत समीकरण में ब्राह्मण-5.50, राजपूत-6.50, सवर्ण वैश्य-2.00, कायस्थ, खत्री, त्यागी, भूमिहार-1.50 प्रतिशत, यादव-8.60 प्रतिशत, कुर्मी-4.50, जाट-1.15, लोधी-3.50, निषाद/ केवट/ मल्लाह/कश्यप -7.50, कश्यप-2.50, बिन्द-0.75,  खागी-0.50, बियार-0.25,
तेली/साहू/भुर्जी-2.75, माली/सैनी  – 1.00, नोनिया/चैहान-1.15, नाई/ सविता-0.75, राजभर-1.10, प्रजापति-1.05, लोहार/विश्वकर्मा- 1.25, पाल/
गड़रिया-2.60, कंडेरा-0.25, बरई/चैरसिया-0.50, मौर्य/कोयरी/ कुशवाहा/ शाक्य- 3.35, गुजर-0.65, जाट-1.05, अल्पसंख्यक-15.30, अनुसूचित जनजाति-0.06, अनुसूचित जाति- 24.94 प्रतिशत हैं।
भाजपा ने अपने जो 78 उम्मीदवार घोषित किये हैं, जातिगत समीकरण को साधने का भरसक प्रयास किया गया है। परन्तु इस सब के बावजूद भी सामाजिक समीकरण दुरस्त नहीं हो पाया है। पूर्वांचल में भारी संख्या में पाये जाने वाले मल्लाह केवट, बिन्द, चैहान जाति का कोई उम्मीदवार न होने से इन जातियों काफी नारजगी पैदा हो गयी है, जो मोदी रथ को आगे बढ़ने से रोक सकता है। उत्तर प्रदेश के घोषित
उम्मीदवारों के संदर्भ में जब भाजपा मछुआरा प्रकोष्ठ से इस्तीफा दे चुके लौटन राम निषाद से पूछा गया तो उन्होंने कहाकि मैं स्वयं के टिकट न मिलने के कारण पद से इस्तीफा नहीं दिया है। बल्कि पूर्वांचल निर्णायक स्थिति में पाये जाने वाले मल्लाह, केवट, बिन्द, चैहान, समाज का कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया गया है। पद के साथ व्यक्ति की जिम्मेदारी व जवाबदेही बढ़ जाती है। जब से भाजपा के मछुआरा प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक पद की जिम्मेदारी मिली थी, रात दिन एक कर मछुआरों व अतिपिछड़ों को जोड़ने का अथक प्रयास किया परन्तु पूर्वांचल में
निर्णायक स्थिति में पाये जाने वाले निषाद, बिन्द, मल्लाह, केवट, नोनिया चैहान, जाति को टिकट वितरण में वंचित किये जाने से जवाब देना कठिन हो गया, जिसके कारण हमें पद त्याग करने को मजबूर होना पड़ा।
यदि उत्तर प्रदेश में भाजपा के 78 घोषित उम्मीदवारों को देखा जायें तो जातिगत आधार पर 16 ब्राह्मण, 15 राजपूत, 4 वैश्य, 1 भूमिहार, 17 अनुसूचित वर्ग के बाद 5-5 लोधी व जाट तीन कुशवाहा/मौर्य/सैनी, 1-1 पाल, राजभर, यादव, 4 कुर्मी, 2 गूजर, 2 निषाद/कश्यप, जाति के उम्मीदवार है। अनुसूचित जाति में 3-3 चमार/जाटव, खटिक, 3 पासी व 1-1 कोरी, धानुक, धोबी,  खरवार, मल्लाह, जाति के प्रत्याशी है।
मोदी के नाम पर पैदा हुयी लहर में भाजपा के लोग जिस फीलगुड का एहसास कर रहें थे, घोषित उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद बैडफील में बदलता हुआ दिख रहा है। ऐसा अन्दाजा लग रहा है कि भाजपा उ0प्र0 में 30 के अन्दर सिमट के रह जायेगी। दागियों व दलबदलुओं से परहेज करने की बात करने वाली भाजपा पार्टी
वफादारों पर विश्वास न कर लगभग 2 दर्जन दागियों व दलबदलुओं पर विश्वास जताते हुये उम्मीदवार बनाया है, जिससे भाजपा का खेल बिगड़ता हुआ दिख रहा है। गुजरात के पैमाने पर भले ही अमित शाह चाणक्य के रूप में जाने जाते हों, परन्तु उ0प्र0 में उनकी नीति व रणनीति फेल होती दिख रही है। भाजपा का उत्तर प्रदेश में जो प्रदर्शन बिगड़ता हुआ दिख रहा है, ऐसे में अमित शाह ही दोषी कहें जायेंगे।
गाजीपुर, भदोही, घोसी, राबर्ट्गंज, बस्ती, अम्बेडकरनगर, जौनपुर, मछलीशहर, इलाहाबाद, बहराइच, चन्दौली आदि क्षेत्रों में जो प्रत्याशी घोषित किये गये है,
उनका प्रदर्शन बहुत ही शर्मनाक दिखाई दे रहा है। जो उम्मीदवार घोषित किये गये हैं उनके विषय में यह चर्चा है कि न जाने कहाँ से और किस आधार पर केन्द्रीय चुनाव समिति व अमित शाह ने इनकी उम्मीदवारी पर विश्वास किया। भाजपा के कई दिग्गजों को अपने टिकट के लिए कड़े संघर्ष से गुजरने के बाद भी सफलता नहीं मिली। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश सिंह अपने पुत्र अनुराग सिंह को टिकट दिलाने में असफल रहें वहीं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व चुनाव प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष डा0 रमापति राम त्रिपाठी को अपने पुत्र शरद त्रिपाठी को टिकट
दिलाने के लिए भावुक होकर रो देना पड़ा। अमित शाह ने कई पूर्व अध्यक्षों व दिग्गजों को किनारे कर दिया। कलराज मिश्रा का नाम कानपुर या श्रावस्ती से उठ रहा था परन्तु इन्हें देवरिया से उम्मीदवार घोषित कर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही को दरकिनार कर दिया गया। मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज को भी वाराणसी के बजाय कानपुर बेदखल होना पड़ा। लालजी टंडन को मनसमोस कर रह जाना
पड़ा, वहीं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व विधानसभा अध्यक्ष केसरी नाथ त्रिपाठी का नाम प्रसारित करने के बाद भी इलाहाबाद से टिकट न देकर पार्टी का सदस्य बने बिना ही पूँजीपति श्यामाप्रसाद गुप्ता को उम्मीदवार बना दिया गया। अब देखना है कि अमित शाह अपने रणनीति में कितना सफल हो पाते है और उ0प्र0 में उनकी चाणक्य नीति भाजपा को कहा तक सफलता रसास्वादन करा पाती है।

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(गोविन्द शुक्ला)
स्वतंत्र पत्रकार व राजनैतिक समीक्षक
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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