मुख्‍यमंत्री जी लक्ष्‍मी प्रेम में ज्‍यादा अग्रसर – उत्‍तराखण्‍ड में सत्‍तारूढ कांग्रेस सूइसाइड की ओर

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harish rawt,chander shekhr joshi{ देहरादून से आई एन वी सी ब्यूरो चीफ चन्‍द्रशेखर जोशी की की ख़ास पड़ताल   }  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चिदंबरम ने अपने एक बयान में कहा है कि कांग्रेस पार्टी का मनोबल गिरा हुआ है। वही दूसरी ओर उत्‍तराखण्‍ड में सत्‍तारूढ कांग्रेस द्वारा जानेअनजाने में कांग्रेस का मनोबल गिराने वालों को तवज्‍जो देने की नीति अमल में लाई जा रही हैं, कांग्रेस अध्‍यक्षा सोनिया गॉधी से लम्‍बी लडाई लडने वाले बाबारामदेव को कांग्रेस उत्‍तराखण्‍ड में विशेष तवज्‍जो दे रही है, प्रमुख समाचार पत्रों की रिपोर्टके अनुसार उत्तराखंड सरकार ने चारधाम और वर्ष भर चलाई जाने वालीयात्राओं की ब्रांडिंग के लिए रामदेव एंड कंपनी को सरकारी हेलीकॉप्टरों से केदारधाम भेजकर वहां पूजा-पाठ करवाया। यात्रा को ज्यादा से ज्यादा प्रचार मिले, इसकेलिए दिल्ली से न्यूज चैनलों को भी बुलाया गया था। बताया जा रहा है कि बाबा मुख्यमंत्री हरीश रावत के अनुरोध पर केदारनाथ आए थे। मुख्यमंत्री के खासमखासऔद्योगिक सलाहकार रंजीत रावत मोदी के नवरत्नों में शामिल रामदेव और अन्य संतों को हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ से केदारनाथ ले गए। बदली भूमिका केबारे में सवाल दगे तो बाबा बोले-हरीश रावत ने पहल की तो हमने भी हाथ बढ़ा दिया।  बाबा की यात्रा का कार्यक्रम मंगलवार देर रात बना। बाबा ने मुख्यमंत्री केनिमंत्रण को एकाएक स्वीकार कर सभी को चौंका दिया। बुधवार सवेरे बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण दिल्ली से आए मीडिया के साथ केदारनाथ पहुंचे। बाबा नेतीर्थ पुरोहितों से भी वार्ता की। केदारनाथ मंदिर में पूजा-पाठ के बाद मंदिर परिसर स्थित हवन कुंड में यज्ञ किया। करीब दो घंटे केदारनाथ में बिताने के बाद वहहरिद्वार लौट आए। बाबा के साथ हेलीकॉप्टर से जाने वालों में दक्षिण काली पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी, पूर्व पालिका अध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी, बड़ाअखाड़ा उदासीन के महंत मोहन दास तथा शिवानंद भारती थे। रामदेव ने केदारधाम में किए जा रहे विकास कार्यों की प्रशंसा की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेमिलकर पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिए अतिरिक्त धन दिलाने का आश्वासन भी दिया। गौरतलब है कि मात़ सदन के संत स्‍वामी शिवानंद सरस्‍वती जी महाराज से परहेज क्‍यों किया गया, उन्‍हें महज इसलिए दूर कर दिया गया कि वह हरिद्वार में अवैध खनन के सख्‍त विरोधी है जिसे सूबे के मुखिया को यह पसंद नही है,

वही दूसरी ओर यह जनचर्चा है कि उत्तराखंड में सत्‍तारूढ कांग्रेस की सूइसाइड की ओर अग्रसर हैं , मुख्‍यमंत्री जी हाल ही में मौत के मुंह से निकले हैं। इससे उनमें जहां नैतिकता तथा सूबे से प्रेम में बढ़ोत्तरीहोनी चाहिए थी वही वह लक्ष्‍मी प्रेम में ज्‍यादा अग्रसर हो रहे हैं। देखा जाए तो अब समय उनके हाथ से निकल चुका है,  बौद्धिक और नैतिक लोगों को जोडने में असफल रही है हरीश रावत सरकार ।  मुख्‍यमंत्री के रोज आ रहे विपरीत सार्वजनिक बयानों से साफ है कि मुख्‍यमंत्री दुविधा और भ्रम में हैं।

ज्ञात हो कि उत्तराखंड में ऊंची चोटियों पर बर्फबारी के साथ ही प्रदेश के ऊंचे इलाके में कड़ाके की ठंड शुरू हो गई है।  बदरीनाथ धाम के आसपास की चोट‌ियों परबर्फबारी का नजारा है।  बदरीनाथ धाम के ठीक पीछे की पहाड़ियों पर बर्फ पड़ी है। बर्फबारी के साथ धाम में कड़ाके की ठंड पड़नी शुरू हो गई है। मुख्‍यमंत्री पद परआसीन होने के 9 माह बाद भी हरीश रावत केदारनाथ में निर्माण कार्यो में तेजी लाने में असफल साबित हुए है, इसलिए कांग्रेस सुप्रीमों श्रीमती सोनिया गॉधी के धुरविरोधी रहे बाबा रामदेव से राज्‍य सरकार की प्रशंसा कराने की रणनीति उत्‍तराखण्‍ड की कांग्रेस सरकार अमल में लायी है, तभी योग गुरु रामदेव और उनकेसहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने 22 अक्‍टूबर बुधवार को केदारधाम पहुंचकर दीपावली की पूजा अर्चना की और हरीश रावत सरकार की तारीफ कर दी।

वही केदार घाटी में काम कराने में राज्य की हरीश सरकार पूरी तरह से विफल होने के मुददे पर ही उत्‍तराखण्‍ड से कांग्रेस सरकार की विदाई की रणनीति बननी शुरू होगयी है।
इसी रणनीति के तहत उमा भारती ने केदारनाथ क्षेत्र समेत अनेक स्‍थलों का भ्रमण कर वस्‍तु स्‍थिति की जांच की है, उमा भारती विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों केसाथ केदारनाथ के दौरे पर पहुंचीं थीं।  दीपावली के दौरान अपने दो दिन के दौरे में उत्तराखंड पहुंची केंद्रीय जल मंत्री उमा भारती केदारनाथ धाम पहुंची औरपुर्ननिर्माण कार्यों का जायजा लिया।  इसके बाद वह उत्तरकाशी में भाजपा नेताओं से मिली और केदारनाथ के पुर्ननिर्माण पर चर्चा की, वही पूर्व मुख्यमंत्री वनैनीताल सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि केदार घाटी को केंद्र सरकार के हवाले कर देना चाह‌िए। कहा क‌ि एक साल हो गया और केदारधाम में कोई कामनहीं हुआ। कोश्यारी ने साफ साफ आरोप लगाया है कि केदार घाटी में काम कराने में राज्य की हरीश सरकार पूरी तरह से विफल हो गई है। अब राज्य की कांग्रेससरकार को मेरी सलाह है कि अवस्थापना व विकास कार्य करने के लिए इस पूरे केदारधाम को केंद्र को सौंप देना चाहिए। क्योंकि यह काम राज्य सरकार केवश कीबात नहीं है। जो सरकार अभी तक यही तय ना कर सकी हो कि कौन से घर रहने हैं और कौन से गिराए जाने हैं वह क्या विकास करेगी।

वही ज्ञात हो कि रूद्रप्रयाग जनपद में सोनप्रयाग से आगे केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग 16 माह बाद भी भूस्खलन से उबर नहीं पाया है।  वही केदारनाथ में जहां पहलेयात्रियों की संख्या लाखों में होती थी, वहीं इस साल मात्र 40 हजार यात्री ही केदारनाथ के दर्शन करने पहुंचे। चार मई 2014 को केदारनाथ के कपाट खुले थे और 25अक्टूबर को शीतकाल के लिए कपाट बंद हो रहे हैं। पिछले साल आई आपदा का भय इस इस बार भी महसूस किया गया।  उत्‍तराखण्‍ड सरकार द्वारा श्रद्धालुओं कोलुभाने के लिए किये गये प्रयास असफल साबित हुए, श्रद्वालुओं के मन से आपदा का भय नही गया। इसका सबसे बडा कारण कारण यह भी रहा कि सरकार केतमाम प्रयास के बावजूद यात्रा पड़ावों पर यात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाएं नहीं जुटाई जा सकी। इसलिए देश-विदेश से जो यात्री यहां आए भी उनका अन्य यात्रियोंमें इसका गलत संदेश गया। इस बार स्थानीय लोगों की भागीदारी यात्रा में नहीं थी। सरकारी व्यवस्था पर ही सोनप्रयाग से केदारनाथ तक सरकार ने ही यात्रियों केलिए व्यवस्थाएं जुटाई थी। सोनप्रयाग से आगे यात्री सीमित संख्या में ही पहुंचे। यात्रा मार्ग से जुडे़ व्यवसायियों के लिए यह सीजन पूरी तरह से फीका साबित हुआ।विगत पांच वर्षो के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो मौजूदा सीजन की स्थिति काफी खराब रही। यात्रा को शुरू करने के लिए भले प्रदेश सरकार ने यात्रा पड़ावों परअपनी ओर से प्रतिदिन एक हजार यात्रयों के लिए निशुल्क भोजन व रहने की व्यवस्थाएं की थी। इसके बावजूद पूरे सीजन में किसी दिन भी एक हजार यात्री नहींआए। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि जहां आपदा से पूर्व यात्रा सीजन में प्रतिदिन यात्रियों की संख्या पच्चीस हजार तक पहुंच जाती थी, वहीं इस बार एकहजार भी नहीं पहुंच सकी। केदारनाथ आपदा का असर अन्य तीन धामों पर भी साफ देखा गया। इस वर्ष का यात्रा सीजन 25 अक्‍टूबर शनिवार को समाप्त हो रहाहै। इस वर्ष यात्रियों की संख्या अभी तक पचास हजार से ऊपर नहीं पहुंच पाई है, जबकि पिछले वर्ष एक माह चली यात्रा में तीन लाख से ऊपर यात्री बाबा भोले केदर्शन कर चुके थे।  केदारनाथ यात्रा को पूरे छह महीने के सीजन में कई बार रोका गया। मौसम व पैदल मार्ग क्षतिग्रस्त होने के चलते  यात्रा पर रोक लगाई।सोनप्रयाग से आगे यात्रियों को नहीं जाने दिया। पूरे सीजन में छह माह के दौरान खराब मौसम के चलते 174 दिन में 24 दिन यात्रा को प्रशासन ने स्थगित किया।

नहीं बनी सड़क

रुद्रप्रयाग से सोनप्रयाग तक हाइवे का सुधारी एवं डामरीकरण तो किया, लेकिन इस बरसात से कई स्थानों पर पुस्ते फिर से धरासायी हो गए। कई स्थानों पर डेंजरजोन भी सक्रिय हो गए। साथ ही कई स्थानों पर आपदा निर्माण कार्य किया जा रहा है। खास बात यह है कि सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक हाइवे को सुचारु नहीं कियाजा सका। केदारनाथ, लिनचोली, रामबाड़ा में यात्रियों के लिए पर्याप्त सुविधाओं का अभाव भी मुख्य कारण रहा।

कैबिनेट बैठक पूरी तरह नाटक

वही केदारनाथ धाम में राज्य सरकार ने दिखावा करते हुए कैबिनेट बैठक की लेकिन इसको लेकर तीर्थपुरोहित अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। मुख्यमंत्री हरीशरावत ने तीर्थ पुरोहितों के हितों की बात तो की, लेकिन हित कैसे होगा, यह नहीं बताया। बीस अक्टूबर का केदारनाथ में हरीश रावत सरकार की कैबिनेट बैठक हुई। संभावना थी कि नई केदारपुरी बसाने को लेकर अंतिम मसौदा तीर्थपुरोहितों के सम्मुख रखा जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह भी स्पष्ट नहीं हुआ कि केदारनाथके सुरक्षित भवनों को तोड़ा जाएगा या नहीं। केदारनाथ में सरस्वती व मंदाकिनी नदी के बीच किस तरह से प्रभावित परिवारों को बसाया जाएगा, इस पर भी निर्णयनहीं हुआ।  तीर्थपुरोहित श्रीनिवास पोस्ती का कहना है कि बैठक को लेकर तीर्थपुरोहितों में काफी उत्सुकता थी कि कोई महत्वपूर्ण निर्णय उनके पक्ष में होगा,लेकिन नई केदारपुरी कैसे बसेगी इस पर राज्‍य सरकार कोई फैसला ही नही ले पायी है। उन्होंने सर्वदयील बैठक में अपनी बात रखी, लेकिन अधूरी बात कहने केबाद ही उन्हें बैठा दिया गया। तीर्थपुरोहित दिनेश बगवाड़ी ने कहा कि कैबिनेट बैठक पूरी तरह नाटक थी। मात्र दिखावे के लिए यह बैठक आयोजित की गई।


झूला पुल के डिजाइन का सात साल बाद भी अता-पता नहीं

वही रुद्रप्रयाग के सिलगढ और तल्लानागपुर क्षेत्र को आपस में जोड़ने के लिए गंगतल महादेव में बनाया जा रहे झूला पुल के डिजाइन का सात साल बाद भी अता-पता नहीं है। हाल यह है कि पुल का मात्र एक छोर का बेसमेंट ही बन पाया है। पुल न बनने से ग्रामीणों को अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए दस से पंद्रह किमी काअतिरिक्त सफर तय करना पड़ रहा है।  सिलगढ़ व तल्लानागपुर क्षेत्र के रजवाडा, फलाटी, कुमडी, डांगी, गुनाऊ, बैंजी, गंगतल, सौड, कैलढुंग, बुडोली आदि गांवों केलोग बरसों से गंगतल में झूला पुल निर्माण की मांग करते आ रहे थे। इस पुल का निर्माण हो जाता तो ग्रामीणों को 15 किलोमीटर का सफर कम तय करना होता।जनता की इस मांग को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने वर्ष 2006-07 में गौरीकुंड हाईवे स्थित गंगतल महादेव में झूला पुल निर्माण की स्वीकृति देते हुए 1.43लाख रुपये का बजट भी दे दिया। हालांकि सात साल बाद भी पुल का निर्माण कार्य पूर्ण नहीं हो पाया है। पुल पर अभी तक मात्र एक छोर का पिलर ही तैयार कियागया है। जबकि दूसरे छोर पर बेसमेंट के लिए बुनियाद खोद कर उसे ऐसे ही छोड़ दिया गया है। पुल का निर्माण कार्य मात्र डिजाइन पर अटका हुआ है। अभी पुल परकाफी काम होना बाकी है। कार्यदायी संस्था लोनिवि का कहना है कि पुल का डिजाइन अगस्त में मिलना था लेकिन उन्हें वह प्राप्त नहीं हो पाया है। जिस कारण पुलकानिर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है।

यह एक छोटी सी बानगी भर है उत्‍तराखण्‍ड सरकार के कार्य करने के ढंग की परन्‍तु इससे इतना तय है कि उत्‍तराखण्‍ड की कांग्रेस सरकार 2017 में हरियाणा केकांग्रेस सरकार की तर्ज पर आत्‍मघाती लक्ष्‍य की ओर बढ रही है।

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chgandra shekhar joshiचन्‍द्रशेखर जोशी 

 देहरादून से आई एन वी सी ब्यूरो चीफ 

mail; csjoshi_editor@yahoo.in

Mob. 09412932030

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6 COMMENTS

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