‘मुंगेरी लाल के सपने’ जैसी है मोदी की प्रधानमंत्री बनने की चाह**

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तनवीर जाफरी**,,

भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्तागण भले ही मीडिया के समक्ष बार-बार यह उद्घोष करने से बाज़ न आ रहे हों कि उनकी पार्टी में नेताओं की कोई कमी नहीं है तथा प्रथम व द्वितीय श्रेणी के नेताओं की भाजपा में लंबी क़तार है। पंरतु 2009 में लाल कृष्ण अडवाणी के प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री होने का शगू$फा जिस प्रकार मुंह के बल गिरा उसके बाद इस समय भाजपा में ही इस बात को लेकर घमासान मचा हुआ है कि आख़िर 2014 में पार्टी द्वारा किसके नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़े जाएं। और पार्टी के एक वर्ग को ले-दे कर गुजरात के मु यमंत्री नरेंद्र मोदी का ही नाम पार्टी नेताओं में सबसे उपयुक्त नज़र आ रहा है। न केवल भाजपा बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी एक तबक़ा ऐसा है जो मोदी को 2014 में लोकसभा चुनाव का भाजपा का प्रमुख चेहरा या पार्टी की ओर से घोषित प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने के पक्ष में है। स्पष्ट है कि जहां भाजपा व संघ परिवार में एक तबक़ा ऐसा है जो मोदी को 2014 के चुनावों में भावी प्रधानमंत्री के उ मीदवार के रूप में देखना चाहता है वहीं इनमें एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिनको नरेंद्र मोदी, उनकी राजनैतिक शैली, उनका अंदाज़, उनका रवैया तथा पार्टी के अपने नेताओं के साथ उनका बर्ताव आदि क़तई नहीं भाता। और ज़ाहिर है कि नरेंद्र मोदी विरोधी यह  तबक़ा उनका देश का प्रधानमंत्री बनना तो क्या गुजरात का मुख्यमंत्री बने रहना भी नहीं पसंद करता।

नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखने वाले संघ के नेताओं का मानना है कि मोदी में पार्टी का जनाधार बढ़ाने की वह क्षमता है जो अटल बिहारी वाजपेयी जैसे पार्टी नेता में थी। यह संघ नेता वर्तमान समय में मंहगाई व भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस के विरुद्ध बन रहे वातावरण को भुनाने के लिए नरेंद्र मोदी को ही भाजपा का अगुवाकार व भावी प्रधानमंत्री प्रस्तावित किए जाने हेतु सबसे उपयुक्त नेता मानते हैं। संघ के मोदी समर्थक नेताओं का यह आंकलन किस आधार पर है यह तो समझ में हरगिज़ नहीं आता, हां इनका अटल बिहारी वाजपेयी व नरेंद्र मोदी की परस्पर तुलना किया जाना हास्यास्पद ज़रूर प्रतीत होता है। उदाहरण के तौर पर 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जी ने ही नरेंद्र मोदी की गुजरात दंगों में संदिग्ध भूमिका पर उंगली उठाते हुए उन्हें राजधर्म निभाए जाने की सार्वजनिक रूप से सलाह दी थी। इतना ही नहीं बल्कि वाजपेयी जी उस समय नरेंद्र मोदी को मु यमंत्री पद से हटाना भी चाह रहे थे परंतु लालकृष्ण अडवाणी ने नरेंद्र मोदी के पक्ष में खड़े होकर उन्हें मु यमंत्री पद से हटाए जाने से रोक लिया। इसके अतिरिक्त वाजपेयी जी में कम से कम धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों को अपनी ओर आकर्षित करने की इतनी क्षमता थी कि उन्होंने इन्हीं धर्मनिरपेक्ष शक्तियों के बल पर तीन बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का गठन किया। जबकि नरेंद्र मोदी को गुजरात में अपनी ही पार्टी की सरकार को चलाने के लिए नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी के नाम पर धर्मनिरपेक्ष शक्तियां उन्हें वाजपेयी की ही तरह समर्थन दे पाएंगी इस विषय पर राष्ट्री परिपेक्ष्य में सोचने के बजाए बिहार के मु यमंत्री नितीश कुमार का नरेंद्र मोदी के प्रति समय-समय पर बरता जाने वाला रवैया की काफ़ी है।

उधर पिछले दिनों मुंबई में हुए भाजपा के कार्यकारिणी सम्मलेन  में नरेंद्र मोदी ने संघ के वरिष्ठ नेता तथा उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रभारी संजय जोशी के प्रति जिस जि़द्दीपन का इज़हार किया वह भी भाजपा तथा संघ नेताओं को अच्छा नहीं लगा। हालांकि उस समय नरेंद्र मोदी को कार्यकारिणी में बुलाने हेतु पार्टी नेताओं ने संजय जोशी को कार्यकारिणी से हटाने हेतु मोदी की जि़द सामयिक रूप से स्वीकार अवश्य कर ली। परंतु पार्टी द्वारा चंद घंटों के भीतर ही नरेंद्र मोदी को यह एहसास भी करा दिया गया था कि उनकी यह जि़द उनके लिए तथा पार्टी के लिए अच्छी नहीं थी। और अपनी इसी नाराज़गी को व्यक्त करने के लिए मुंबई में कार्यकारिणी समाप्त होने पर बुलाई गई जनसभा में नरेंद्र मोदी के साथ कर्नाटक के पूर्व मु यमंत्री येदिउरप्पा जैसे बदनाम व भ्रष्ट नेता तो मंच सांझा करते ज़रूर दिखाई दिए। परंतु लाल कृष्ण अडवाणी व सुषमा स्वराज जैसे पार्टी के गंभीर नेताओं ने नरेंद्र मोदी के साथ उस मंच पर बैठना गवारा नहीं किया और वे सभा स्थल पर पहुंचे ही नहीं। इतना ही नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी को मनाने हेतु पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने जिस संजय जोशी को कार्यकारिणी की सदस्यता से निलंबित किया था, कार्यकारिणी की बैठक समाप्त होते ही गडकरी ने उसी जोशी को पुन: 2014 के लोकसभा चुनाव हेतु उत्तर प्रदेश का प्रभारी घोषित कर दिया था। हालांकि बाद में जोशी ने स्वयं को अपमानित महसूस करते हुए भाजपा से त्यागपत्र देकर पार्टी से अपना नाता ही तोड़ डाला।

अब सवाल यह है 2009 के चुनावों में नरेंद्र मोदी बिहार इसलिए नहीं गए क्योंकि नितीश कुमार उन्हें बिहार में भाजपा का चुनाव प्रचार करते हुए नहीं देखना चाहते थे। और मोदी उत्तर प्रदेश चुनावी दौरे पर इसलिए नहीं गए थे। क्योंकि पार्टी में संजय जोशी जैसे नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी नेता को पार्टी का प्रदेश का प्रभारी बना दिया गया था। यदि वही स्थिति 2014 में भी दोहराइ गई और ऐसे ही कारणों के चलते यदि 2014 में भी नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे देश के दो सबसे बड़े राज्यों में चुनाव प्रचार नहीं कर सके तो ऐसे में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद पर बैठे हुए देखने की तमन्ना रखने वाले लोगों को यह ज़रूर सोचना होगा कि क्या इन दो राज्यों के सहयोग व समर्थन के बिना कोई नेता देश का प्रधानमंत्री बन सकता है? मोदी के बल पर पार्टी का जनाधार बढ़ाए जाने की जुगत भिड़ाने वाले लोग यदि यूपी और बिहार में मोदी के दम पर पार्टी का जनाधार नहीं बढ़ा पाएंगे फिर आख़िर और किन राज्यों के बल पर यह वर्ग मोदी को प्रधानमंत्री बनाना चाह रहा है?

दरअसल मोदी का अपना कटु स्वभाव ही उनके राजनैतिक कैरियर का दुश्मन बना हुआ है। मोदी के क़रीबी लोग यह भलीभांति जानते हैं कि वे निहायत जि़द्दी,अक्खड़, घमंडी, अपने साथी नेताओं व कार्यकर्ताओं की अनसुनी करने वाले तथा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी स मान न देने वाले नेता हैं। जिस प्रकार वे संजय जोशी को कार्यकारिणी से हटाए जाने की शर्त पर मुंबई जाने को राज़ी हुए उनका यह रवैया भी उनकी राजनैतिक शैली का एक अहम हिस्सा है। गोया जब तक वे अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी,विरोधी या ऐसा नेता या व्यक्ति जिसे वे अपने लिए ख़तरा महसूस करते हों जब तक उसे पूरी तरह ठिकाने नहीं लगा देते तब तक वे चैन से नहीं बैठते। हरेन पांडया, केशूभाई पटेल व सुरेश मेहता तथा अब संजय जोशी जैसे नेताओं के उदाहरण सामने हैं। गुजरात राज्य के अधिकारियों के साथ भी उनका ऐसा ही रवैया है। हरेन पांडया के पिता तो आज तक अपने बेटे की हत्या के लिए नरेंद्र मोदी पर ही निशाना साध रहे हैं। गोधरा ट्रेन हादसे के बाद हिंसा के प्रतिउत्तर में मोदी सरकार द्वारा तथाकथित प्रतिक्रिया स्वरूप जानबूझ कर भडक़ाई गई हिंसा, इसके बाद कई वर्षों तक राज्य में समय-समय पर हुई फर्ज़ी मुठभेड़ें, मोदी की हक़ीक़त को उजागर करने वाले कई आईएएस व आईपीएस अधिकारियों का मोदी का कोपभाजन बनना जैसी बातें ही नरेंद्र मोदी के तानाशाहीपूर्ण स्वभाव को दर्शाती हैं।
नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाए जाने के लिए बड़े ही सुनियोजित तरीक़े से झूठे प्रचार का भी सहारा लिया जा रहा है। पिछले दिनों मोदी ने अमेरिका में रह रहे गुजरात के लोगों को वीडियोकांफ्रेंसिंग के ज़रिए संबोधित करते हुए तमाम झूठे आंकड़े पेश कर डाले। यहां तक कि उन्होंने गुजरात के विकास की तुलना चीन में हो रहे विकास से कर डाली। परंतु सच तो यह है कि गुजरात का विकास अभी चीन तो क्या हरियाणा, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के विकास दर से भी पीछे है। परंतु अपनी पीठ थपथपाने में माहिर भाजपा नेता जैसे 2004 में देशवासियों को ‘इंडिया शाईनिंग’ होता हुआ बताने लगे थे उसी प्रकार मोदी सरकार में ‘वाईब्रेंट गुजरात’ का शोर-शराबा कर तथा विदेशी कंपनियों के हाथों में गुजरात के विकास के विज्ञापन का ठेका देकर तथा अमिताभ बच्चन जैसे फ़िल्म अभिनेता को राज्य का ब्रांड अंबेसडर बनाकर मु यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपनी पीठ थपथपाने की भरपूर कोशिश की जा रही है। यहां एक बात यह भी क़ाबिल-ए- जि़क्र है कि नरेंद्र मोदी गुजरात के मु यमंत्री बनने से पूर्व हरियाणा राज्य के भाजपा प्रभारी रह चुके हैं। उनकी संगठनात्मक कार्यशैली का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है उनके राज्य का पर्यवेक्षक रहते भाजपा ने हरियाणा में गंवाया अधिक है और कमाया कम।
बहरहाल, भाजपा व संघ के चंद लोगों द्वारा नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनावों में देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश करना नरेंद्र मोदी व उनके शुभचिंतकों के लिए जितना शुभ साबित होगा, यूपीए के सहयोगियों विशेषकर कांग्रेस पार्टी के लिए भी यह ख़बर उतनी ही शुभ होगी। क्योंकि देश का बड़ा अल्पसं यक वर्ग जोकि पहले ही भाजपा से दूर रहा करता था परंतु अटल बिहारी वाजपेयी जैसे धर्मनिरपेक्ष छवि रखने वाले नेताओं से प्रभावित होकर भाजपा से किसी हद तक जुड़ भी जाया करता था। निश्चित रूप से वह अल्पसं यक वर्ग नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे देखकर भाजपा से कोसों दूर भागेगा। और इसका सीधा लाभ कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय धर्मनिरपेक्ष दलों को ही मिलेगा। और कांग्रेस, अन्य धर्मनिरपेक्ष क्षेत्रीय दल तथा वामपंथी दल कभी भी नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बनते हुए देखना नहीं चाहेंगे। फिर आख़िर  किस गणित के आधार पर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनते हुए उनके प्रशंसक व समर्थक देख रहे हैं यह राजनैतिक समीकरण उन्हीं को पता होगा। फ़िलहाल तो नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनने की चाह मुंगेरी लाल के हसीन सपनों जैसी ही है।

**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

Tanveer Jafri ( columnist),
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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