मीडिया जगत में ‘किंग गोबरा’ की इन्ट्री

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indian media world{डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी**,,}
आज कल हमारे यहाँ के पत्रकार जगत में एक सर्वथा डैसिंग/डायनामिक परसनैलिटी उभर कर सामने आई है, जिसे देखकर बॉलीवुड की जासूसी/स्टंट फिल्मों की यादें आती हैं। क्या परसनैलिटी है- शार्ट शर्ट, जीन्स पैण्ट कमर में कैमरा शर्ट की जेबों में पेन और स्लिप पैड। देखने से ही लगता है कि यह नवजवान ‘क्राइम रिपोर्टर’ हो सकता है। उम्र कोई 20-22 वर्ष, कद बिग बी के बराबर, छरहरा बदन, रंग साँवला, बोलचाल में सबसे बीस। आँखों का गॉगल सिर माथे पर फिल्मी हीरो की तरह। शिक्षा-दीक्षा-यह पत्रकारिता का मापदण्ड (मानक) नहीं है। पत्रकार होना कठिन है, लेकिन कहलाना बड़ा आसान। किसी छोटे अखबार की दस प्रतियाँ मंगवाने लगो, संस्था का अधिकार-पत्र जारी। उसकी फोटो प्रतियाँ बांट दो- बस पुराने पत्रकारों में पैठ बन गई। लिखने का मौका ही नहीं सुबह से लेकर देर शाम तक लाखैरागर्दी से ही फुर्सत नहीं। यदि फुर्सत भी मिले तो भूसा भरे दिमाग से लेखन जैसा सुकार्य कैसे कर पाएगा कोई? मैं तो उसे पहले ‘गोबर’ कहता था, अब उसके हाव-भाव से ‘किंग गोबरा’ कहने लगा हूँ। क्यों न कहूँ आदमी (स्त्री/पुरूष) अपने परिधान (वेशभूषा) से ही सर्व प्रथम पहचान छोड़ता है। कौआ और कोयल में अन्तर बोलने के बाद पता चलता है। क्या जरूरत है कि बोला जाए। कालीदास की तरह ‘मौनव्रत’ धारण करने में ही भलाई है। व्याख्या करने वालों को खिला-पिलाकर पटाए रखो वह लोग स्वयं इतना प्रचार-प्रसार कर देंगे कि रातों-रात डॉन, किंग, बादशाह, शहंशाह कहलाओगे। अपने ‘किंग गोबरा’ भी कुछ उसी तरह के हैं। अभी उम्र ही क्या है खेलने खाने की उम्र में लाखैरागर्दी नहीं करेंगे तो क्या बाल बच्चेदार होने पर ऐसा सुअवसर मिलेगा? स्कूल-कालेज देखा होगा, अन्दर प्रवेश भी किया होगा, लेकिन दाखिला नहीं लिया सो ‘सरस्वती’ जी का ‘अभाव’ तो सहना ही पड़ेगा। ‘किंग गोबरा’ को दरकार है पैसों की जिससे वह खाना-कपड़ा शौक व्यसन पूरा कर सके। अस्थाई सोच आज तीरघाट तो कल मीरघाट तात्पर्य यह कि एक दम से मानसिक विकलांगता का शिकार।  एक बात तो है ही ‘किंग गोबरा’ को देखने के बाद मुझे स्मार्ट फिल्मी खलनायक/नायकों एवं जासूसों का किरदार निभाने वाले अभिनेताओं की तस्वीरें याद आने लगी हैं। पुरानी फिल्म फर्ज के जितेन्द्र, अंधा कानून के रजनीकान्त, डिस्कोडांसर के मिथुन चक्रवर्ती, डॉन के अमिताभ बच्चन………….आदि की फिल्मी स्टाइल्स की तस्वीरें मेरे जेहन में उभरने लगती हैं। ‘किंग गोबरा’ तमिल स्टंट फिल्मों के नायकों की भूमिका करता हुआ नजर आता है। हाईटेक एरा 21वीं सदी, हाईटेक जर्नलिज्म एवं फिल्मी ग्लैमरयुक्त मीडिया मल्टीकलर अखबार सब कुछ चकाचौंध तब मीडिया में कथित रूप से काम करने वाले क्यों न रहें हाईटेक/मॉडर्न। ‘किंग गोबरा’ ने पुराने कलमकारों को नई नसीहत देना शुरू कर दिया है। यदि ‘किंग गोबरा’ जैसे लोग वेशभूषा, हावभाव से स्वयं को एडवान्स, हाई-प्रोफाइल न प्रदर्शित करें तब कैसे एहसास होगा कि यह वाकई 21वीं सदी चल रही है।  अभीं कुछ दिन पूर्व की बात है- ‘किंग गोबरा’ आ धमका हमारा मीडिया ऑफिस खुला था, बेधड़क घुस आए और फिल्मी स्टाइल में चेयर पर विराजमान हो गए। मैं लिख रहा था, सहकर्मी कंप्यूटर पर कार्य कर रहे थे। ‘किंग गोबरा’ ने रियायत बरता वर्ना जिस स्टाइल और ऐंगिल से मीडिया कक्ष में प्रवेश किया था, उससे तो यही करना चाहिए था कि बूट वाला पैर कुर्सी के हत्थे पर रखकर चश्मा उतारकर हाथ में रिवाल्वर की जगह कलम लहराते हुए अपनी गुडवेटर बेस्ट ‘एन्ट्री’ देते इसे आप और हम बैडएण्ट्री भी कह सकते हैं। ‘किंग गोबरा’ अपनी ऊल-जुलूल बातें शुरू कर दिया था। मैं चुप्पी साधे अपने लेखन कार्य में व्यस्त था। कुछ देर उपरान्त मैंने उसकी तरफ मुखातिब होकर कहा डियर तुम बड़े स्मार्ट लग रहे हो क्या कोई है ‘ब्रेकिंग न्यूज’ इतना सुनना था कि ‘गोबरा’ ने कमर की बेल्ट से बंधा कैमरा निकाला और जेब से एक स्लिप और बोला अस्पताल से खबर लाया हूँ। सर्व प्रथम आप को ही बता रहा हूँ। क्या है के उत्तर में बोला कि एक व्यक्ति की कार से कुचलकर मौत हो गई और डिटेल्स अपने अजीब ढंग से बता डाला। कैमरा भी सामने रख दिया बोला इसमें मृतक की फोटो उतारा है ले लीजिए खबर धांसू बनेगी। खैर! किंग गोबरा की ‘ब्रेकिंग न्यूज’ पर यकीन आसानी से कर पाना मेरे लिए कठिन कार्य है इसलिए पुष्टि कराया तब उसका प्रकाशन करवाया। ‘किंग गोबरा’ है तो स्मार्ट लेकिन घटनाओं की हिस्ट्री लिख पाना उसके लिए एवरेस्ट पर फतह करने जैसा है। वह अपना लिखा खुद ही नहीं पढ़ पाता है। उम्र के बीस बसन्त देख चुका ‘किंग गोबरा’ देश के हर कोने से वाकिफ है, लेकिन जहाँ रहता है उस स्थान के इतिहास-भूगोल की जानकारी उसे नहीं है। बालू में से तेल निकालने वाला मुहावरा वह चरितार्थ करता है। इसी उम्र में वह काफी अनुभवी हो गया है, लोगों की नकारात्मक टिप्पणियों की उसे परवाह नहीं है। किंग गोबरा अपनी ही मस्ती में मस्त है। भूत-भविष्य-वर्तमान की चिन्ता नहीं है। यदि इसे किसी दिन नसीहत दे देता हूँ तो कम से कम एकाध हफ्ता तक दिखाई ही नहीं पड़ता। आजकल भी वह मेरे पास आने से कतरा रहा है। क्यों आए मैं तो उपदेश देकर सुमार्ग पर चलकर सम्मानपूर्वक जीवन जीने की बातें करता हूँ, जिसे वह अपने भेजे में नहीं डालता एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देता है। मैंने सुना है कि आज कल ‘किंग गोबरा’ एक ऐसे ही रैकेट का सदस्य बना है जो ठगी करता है, और उसका मुखिया ठगी के मामले में जेल की हवा खा चुका है। वह गाँजा, चरस, अफीम, ताड़ी, शराब, गुटखा एवं अन्य मादक दवाओं का सेवन भीं करने लगा है। जब कोई उससे पूंछता है कि ऐसा क्यों कर रहे हो तो वह कहता है कि पैसा कमाना और अपने ढंग से जीवन जीना उसकी अपनी समस्या है अगले का सिर क्यों दुःखे। तात्पर्य यह कि ‘किंग गोबरा’ ‘प्रेस’ की आड़ में असामाजिक कृत्य भी करने लगा है। राम जाने की वह क्या-क्या कर रहा है। बहरहाल उसके बारे में सोच-सोच कर मुझे ‘हाइपरटेन्शन’ हो जाता है। ‘किंग गोबरा’ का भगवान ही मालिक है। वह नीचे धरती वालों को अपना कुछ भी नहीं मानता। माँ-बाप, भाई-बहन अन्य रिश्ते उसके लिए बेमानी है। फिलवक्त वह ‘किंग गोबरा’ जैसा बनकर पत्रकार कहला रहा है।

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Bhupendra Singh Gargvanshi*डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
(वरिष्ठ पत्रकार/टिप्पणीकार)
मो.नं. 9454908400
*लेखक स्वतंत्र पत्रकार है
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी  का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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