मार्गदर्शन – राष्ट्रवाद पर…

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–  तनवीर जाफरी –

सत्ता सुख भोगने के स्वार्थ में हमारे देश में राजनैतिक स्तर इतना नीचे गिरता जा रहा है जिसकी मात्र एक दशक पूर्व तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। राजनीति के क्षेत्र में आज मान-सम्मान,राजनैतिक प्रतिबद्धताएं,राजनैतिक वादे ,जनसरोकार,राष्ट्रहित,राष्ट्रीय एकता व अखंडता, देश का बहुमुखी विकास जैसी सबसे महत्वपूर्ण बातें तो बहुत पीछे चली गई हैं। आज इनके स्थान पर सांप्रदायिकता,धर्म व जाति की राजनीति,असहमति रखने वालों के मुंह पर कालिख पोतने का चलन,अपने वरिष्ठ नेताओं व गुरुओं का तिरस्कार,भ्रष्टाचार यहां तक कि अपने विरोधियों या आलोचकों को सैन्य विरोधी,राष्ट्रविरोधी या राष्ट्रद्रोही का प्रमाण पत्र दे देना जैसी बातें सुनाई दे रही हैं। नए-नए शब्द अपने विरोधियों के लिए गढ़े जा रहे हैं। निठल्ले एवं नाकारा िकस्म के वे राजनीतिज्ञ जो सत्ता में रहते हुए अपने लोकलुभावन वादे पूरे कर पाने में असमर्थ रहे वे लोग अब जनता के मध्य अपनी बेचारगी,अपने धर्म के नाम पर तथा प्राचीन संस्कृति व सभ्यता में वापस ले जाने जैसी गैरज़रूरी बातें कर जनता को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। इसी सिलसिले में अपने विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की बात भी की जाती है, उन्हें सेना विरोधी बता दिया जाता है। कभी जेहादी कभी अरबन नक्सल तो कभी आतंकवाद का सरपरस्त गोया जो भी मुंह में आए वह बोल दिया जाता है।

पिछले दिनों विपक्ष पर लगाए जा रहे इसी प्रकार के बेतुके व तथ्यहीन आरोपों के बीच भारतीय जनता पार्टी के लौहपुरुष समझे जाने वाले वरिष्ठतम पार्टी नेता लाल कृष्ण अडवाणी ने अपनी राजनैकि उपेक्षा के काफी लंबे अरसे के बाद एक ब्लॉग लिख कर अपनी ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया। अपने बहुचर्चित ब्लॉग में अडवाणी ने कहा कि-‘भारतीय लोकतंत्र का सार उसकी विविधिता और अभिव्यक्ति की आज़ादी है। अपने जन्म के बाद से ही बीजेपी ने खुद से राजनैतिक तौर पर असहमति रखने वालों को कभी ‘दुश्मन’ नहीं माना बल्कि उन्हें हमसे अलग विचार वाला माना है। इसी तरह भारतीय राष्ट्रवाद की हमारी अवधारणा में हमने राजनैतिक तौर पर असहमत होने वालों को कभी ‘देश विरोधी’ नहीं माना’। उन्होंने यह भी लिखा कि पार्टी के भीतर और राष्ट्रीय परिपेक्ष्य दोनों में ही लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा बीजेपी की गौरवपूर्ण पहचान रही है। इस ब्लॉग में अडवाणी ने वर्तमान राजनीतिज्ञों को आईना दिखाने वाली और भी कई महतवपूर्ण बातें लिखी हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि-‘अपने जीवन में सैद्धांतिक रूप से उन्होंने हमेशा सबसे पहले देश उसके बाद पार्टी तथा अंत में खुद को माना है’।

अडवाणी के उपरोक्त ब्लॉग से इस समय उन्हीं की अपनी पार्टी के नेताओं खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सीख लेने की ज़रूरत है। भाजपा के वर्तमान शीर्ष नेता अपने ‘मार्गदर्शकों’ के विचारों का कितना आदर ,पालन व सम्मान कर रहे हैं यह इस समय पूरा देश देख रहा है। अडवाणी के ब्लॉग में व्यक्त विचारों के ठीक विपरीत इस समय पहले व्यक्ति को समझा जा रहा है और देश की एकता,अखंडता तथा समृद्धि आदि तीसरे व चौथे नंबर पर चली गई हैं। आज पूरे देश में घूम-घूम कर जनसभाओं में यही बताया जा रहा है कि  विपक्षी दल मोदी का विरोध कर पाकिस्तान के लोगों को खुश कर रहे हैं। यदि कोई बुद्धिजीवी सत्ता से सवाल करता है और उसे पांच वर्ष पूर्व किए गए वादों की याद दिलाता है तो उसे या तो अर्बन नक्सल बता दिया जाता है या पाक परस्त या आतंकवादियों का हमदर्द जैसे किसी भी विशेषण से नवाज़ दिया जाता है। हद तो यह हो गई है कि हमारे देश की सीमाओं की रक्षा करने वाली भारतीय सेना के भी सांप्रदायीकरण व राजनीतिकरण की कोशिश की जा रही है। पिछले दिनों एक अजीब सी घटना घटी जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भारतीय सेना को ‘मोदी की सेना’ कहकर संबोधित किया तो उसी दिन केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री जनरल विक्रम सिंह ने इस पर यह प्रतिक्रिया दी कि ‘इस प्रकार की बातें करने वाले लोग राष्ट्रद्रोही हैं’। गोया एक ही पार्टी में महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर बैठे दो लोगों के परस्पर विरोधी विचार। इस प्रकार की विरोधाभासी व गैरजि़म्मेदाराना बयानबाजि़यों के मध्य इस समय देश की जनता को उलझा कर रख दिया गया है।

विपक्षी नेताओं की तो बातें ही क्या करनी स्वयं भारतीय जनता पार्टी के अपने नेता रहे यशवंत सिन्हा,अरूण शौरी व शत्रुध्र सिन्हा जैसे लोगों ने जब-जब सरकार की नीतियों व योजनाओं पर सवाल उठाया या उसकी आलोचना की तो उनकी आवाज़ भी यही कहकर दबाने की कोशिश की गई कि यह लोग मंत्री न बनाए जाने के कारण ऐसी बातें कर रहे हैं। आिखकार इनमें से एक शत्रुध्र सिन्हा ने तीन दशक के बाद भाजपा को अलविदा कहकर कांग्रेस पार्टी का दामन थाम ही लिया। अडवाणी के करीबी समझे जाने वाले शत्रुध्र सिन्हा ने कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित अपनी प्रेस वार्ता में ‘घर के भेदी’ के रूप में मोदी व शाह के विषय में जो बातें कीं वह पूरे देश का ध्यान आकर्षित करने के लिए काफी हैं। उन्होंने मार्गदर्शक मंडल के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया और कहा कि आिखर यह कैसा मार्गदर्शक मंडल था जिसकी पांच वर्षों में आज तक कोई बैठक ही नहीं बुलाई गई न ही कोई मार्गदर्शन लिया गया? तथाकथित मार्गदर्शक मंडल के संदर्भ में यह बताना भी ज़रूरी है कि यदि अत्यधिक ‘आत्मविश्वास’ से भरपूर मोदी व शाह ने वास्तव में अपने मार्गदर्शकों से गत् पंाच वर्षों में दो-चार भी मार्गदर्शन लिया होता तो शायद पार्टी व इनके नेताओं को राजनीति में इस स्तर तक गिरने की ज़रूरत ही न पड़ती। झूठ,मक्कारी,फरेब का सहारा शायद कुछ कम लेना पड़ता। अपने विरोधियों को पाकिस्तानी,राष्ट्रद्रोही तथा नक्सल व आतंकवाद के समर्थक जैसे प्रमाणपत्र वितरित करने की ज़रूरत न पड़ती। अर्थात् राजनीति को इस कद्र शर्मसान न होना पड़ता।

नरेंद्र मोदी तथा अमित शाह की स्वयं को अजेय समझने वाली जोड़ी द्वारा जिस प्रकार जसवंत सिंह से लेकर लालकृष्ण अडवाणी,मुरली मनोहर जोशी और अब सुमित्रा महाजन जैसे वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करने की कोशिश की गई उससे इन नेताओं के अपने बुज़ुर्ग नेताओं के प्रति रवैये का भी पता लगता है। वैसे भी जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माता नोटबंदी के दौरान किसी बैंक की कतार में खड़ी दिखाई दी थीं उस समय भी नरेंद्र मोदी का जनता की हमदर्दी बटोरने वाला उनका यह दांव उलटा पड़ गया था। उस समय भी आलोचकों द्वारा यही कहा जा रहा था और पिछले दिनों शत्रुध्र सिन्हा ने भी कांग्रेस मुख्यालय में उस दिन को याद करते हुए यह सवाल किया कि आिखर अपनी मां को कतार में खड़ा कर नरेंद्र मोदी क्या साबित करना चाह रहे थे। आलोचकों ने कहा था कि-यह कैसे प्रधानमंत्री हैं जिनकी बुज़ुर्ग मां उनकी गलत नीतियों के चलते बैंक की लंबी कतार में खड़ी होने को मजबूर हुईं। प्रधानमंत्री अक्सर सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपने बड़े व बुज़ुर्गों को सम्मान देते दिखाई देते हैं। उनकी ‘महानता’ व बड़प्पन का कैमरे के समक्ष इससे बड़ा प्रदर्शन आिखर और क्या हो सकता है कि वे इलाहाबाद में कुछ सफाई कर्मचारियों के चरण तक धोते हुए दिखाई दिए। कैमरे के सामने वृद्धों तथा दलितों का मान-सम्मान करना इनसे बेहतर आिखर कौन जानता है। कितना अच्छा होता यदि यह मान-सम्मान सच्चे दिल से अपने उन मार्गदर्शकों को भी दिया गया होता जिनकी बोई हुई फसल काटकर आज कुछ लोग स्वयं को राजनीति का बहुत बड़ा चाणक्य समझने की भूल कर रहे हैं। इन्हें अपने मार्गदर्शकों से ही यह ज्ञान भी लेना चाहिए कि उन्हें राष्ट्रवाद का प्रमाणपत्र बांटने का कोई अधिकार नहीं?

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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