**माया मनमोहन तो जरूर जाएंगे

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** नरेन्द्र सिंह राणा

6 मार्च को उ0प्र0 के चुनावी नतीजे चाहे जैसे आएं मुख्यमन्त्री मायावती व देश  के प्रधानमन्त्री मनमोहन िन्संह का जाना अव’यमभावी है। सवाल यह है कि उ0प्र0 चुनाव में भाजपा, माया और मुलायम तो चुनावी दङ्गल में लड़े हैं परन्तु मनमोहन सिंह को अपना पद किस ख़ता के लिए गवाना पडे़गा यह रोचक एवं रहस्यमयी प्रशन  है।  जगत में नेताओं, अधिकारियों व अति प्रभावशाली धन्ना सेठों की हुकुमत किस पर नहीं चलती यह जानना जरूरी हो गया है जिसके परिणामस्वरूप वो ना चाहते हुए भी विदा होते हैं चाहे यह विदाई पद की हो, प्रति”ठा की हो अथवा शरीर  शांत  होने के रूप में हो। जी हॉं बीमारी और मौसम पर इनकी हुकुमत नहीं चलती। किसी  शायर  ने खूब कहा है कि- गनीमत है कि मौसम व बीमारी पर इनकी हुकुमत नहीं चलती वरना यह सारे बादल अपने खेत में ही बरसा लेते। इन चुनावों में मौसम ने भी लगभग खूब साथ दिया और बिमारी से भी सब दूर रहे। उल्लेखनीय है कि पंजाब, उत्तराखण्ड और गोवा के चुनाव तो तय समय पर हुए परन्तु उ0प्र0 के चुनाव अपै्रल मई की जगह जनवरी, फ़रवरी में क्यों कराए गए \ कहीं जल्दी चुनाव कराया जाना मनमोहन िन्सह की विदाई का कारण तो नहीं है।  सवाल उठता है कि न तो केन्द्र की काङ्ग्रेस सरकार के पक्ष में लहर थी जिसका लाभ वो उ0प्र0 के चुनाव में लेते और न ही उ0प्र0 में उन्हें मणी-माणिक्य जैसी कोई बड़ी उपलब्धि भी रही हो ऐसा भी नहीं है, फिर क्या कारण है कि उ0प्र0 का चुनाव निरन्तर हो रही फजीहतों के बीच में ही तय समय से पूर्व काङ्ग्रेस ने कराया। मुख्यमन्त्री मायावती ने भी विधानसभा भङ्ग कर चुनाव की सिफारि’ा नहीं की थी। अन्य दल भी कमोवे’ा समय से ही चुनाव होगा मानकर चल रहे थे। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उ0प्र0 का चुनाव तो महज बहाना है। इसकी आड़ में बड़ा गुल काङ्ग्रेस को खिलाना है। राहुल गान्धी को चुनाव बाद प्रधानमन्त्री बनाना है। यह काङ्ग्रेस के विदेशी  व देशी  रणनीतिकारों की सोची समझी बाजी है। जिसमें साम्प भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। बिल्ली के भाग्य से छिङ्का भी टूट जाए। चुनाव में कुछ अच्छा हुआ तो राहुल गान्धी का करि’मा वरना राहुल की कड़ी मेहनत के बाद भी केन्द्र सरकार के ख़राब प्रदर्शन के कारण हार का स्वाद चखना पड़ेगा। हार को पचाना काङ्ग्रेस के बूते की बात कभी नहीं रही वो हर हार में दूसरे के सर ठीङ्करा फोड़ने में माहिर हैं अब रस्म अदायगी के लिए हार व जीत की समीक्षा हेतु काङ्ग्रेस कोर ग्रुप की बैठक होगी राहुल के नाम पर खुद प्रधानमन्त्री मोहर लगाएङ्गे, सर्वानुमति बनेगी और राहुल गान्धी अपै्रल मई में भारत के प्रधानमन्त्री बन जाऐङ्गे। काङ्ग्रेस नेतृत्व में न्याय की नाममात्र भी भावना नहीं रह गई स्प”ट है कि वह नैतिकता, मूल्यों और आचार नियमों का बुरी तरह तिरस्कार करती है। सत्ता की दुर्दम्य चाह में काङ्ग्रेस नेतृत्व किसी भी स्तर तक नीचे गिरने और कोई भी साधन अपनाने को तैयार है। यह party सदा से लोकतन्त्र के मुकाबले खानदानी तन्त्र को बढ़ावा देती है। वह लोगों की दुर्द’ाा से मुंह मोड़ने के अलावा कर भी क्या सकती है। जैसा की वह समय-समय पर करती आई है। वैसे भी मनमोहन सिंह जी को हटाने से  देश  में कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं होगी क्योङ्कि उन्होंने कभी भूलकर भी कोई तथाकथित बड़ा काम  देश  के लिए किया होगा तो उसका भी श्रेय उन्होंने श्रीमती सोनिया गान्धी व राहुल गान्धी को ही दिया है। यानि  देश  के लिए कम और खानदान के लिए ज्यादा पद को अब तक संभाला है।
एक बार भारत की आजादी के 10 वार्ता बाद तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने एक कार्यरत मजदूर से पूछा कि क्यों काम कर रहे हो किसके लिए काम कर रहे हो तो मजदूर ने उत्तर दिया पेट के लिए साहब। प्रधानमन्त्री जी सुनकर हैरान यह आजादी के 10 वार्ता बाद भी कहता है काम पेट के लिए  देश  के लिए नहीं। आज कुछ ऐसा ही हाल वर्तमान प्रधानमन्त्री जी के बारे में भी लोग कहते मिलते हैं कि वे  देश  के लिए कम और गान्धी परिवार के लिए अधिक काम करने वाले हैं।
6 मार्च की मतगणना के बाद जो सियासी सूरज उगेगा उसकी तपन बहुतों को महसूस होगी। उस तपन से मायावती व मनमोहन सिंह का जाना तो तय हो गया है। मायावती जी को तो मतगणना के द्वारा अपना फ़रमान भेजकर जनता जनार्दन विदा करेगी। परन्तु मनमोहन िन्संह जी को किसी बीमारी और लाचारी का सामना अपने पद गंवाने की कड़ी में करना ही होगा। वैसे चुनाव से पूर्व काङ्ग्रेस कुछ बेहतर करे इसके लिए उन्होंने आनन-फानन में अजीत सिंह को मन्त्री पद देकर रालोद से समझौता किया। पद पैसे के लिए प्रति”ठा को पूर्व की भान्ति तार-तार किया गया। रालोद लोकसभा चुनाव भाजपा से मिलकर लड़ा लेकिन साथ दिया काङ्ग्रेस का। लोकसभा में गठबन्धन भाजपा से था, विधानसभा में गठबन्धन काङ्ग्रेस से आगे राम जाने क्या हेागा। प्रबल तृ”णाओं (पदे”णा, पुत्रे”णा, वित्ते”णा) का अगर एक उदाहरण दिया जाए तो काङ्ग्रेस-सपा-बसपा और लोकदल है। लोकसभा में मथुरा से बेटे की जीत का छीङ्का भाजपा के भाग्य से टूटा। अब उसे एमएलए का चुनाव लड़वा रहे हैं क्योङ्कि मुख्यमन्त्री का दावा लोकदल से और किसी के खाते में न चला जाए यानि बेटा नेता भी, सान्सद भी और विधायक भी। वाह रे तृ”णा, वह भी उस भारतभूमि में जहां बुद्ध, महावीर, राणा प्रताप ने सत्ता को पद, पैसा और प्रति”ठा को जो उन्हें मॉं के गर्भ से ही प्राप्त हो गई थी रा”ट्र अराधना, रा”ट्र पे्रम व मातृभूमि की रक्षा के कारण न केवल ठोकर मार दी बल्कि अपने जीवन के अन्तिम समय तक उसे पास भी नहीं फटकने दिया। उस  देश  में जहां सभी सन्तोें ने ‘ारीर को सन्स्कार कहा है, वेदों ने भोग की भूमि नहीं योग की भूमि बताया है। उस  देश  में सत्ता के लिए क्या-क्या हो रहा है। राम के इस  देश  में आज के दौऱ में चाम और लगाम बादाम से मंहगे नहीं है बे’ाक अब राजा किसी रानी की कोख से पैदा नहीं होता, लोकतन्त्र में जनता जनार्दन निर्णय करती है कि उसका नेता कैसा हो। परिवार और पद के अहङ्कार में अपने को बड़े से बड़ा ‘ाूरमा समझने वालों को भी जनता चुरमा बना देती है। भारत ने भ्र”टाचार के विरूद्ध अङ्गड़ाई ले ली है उसका उदाहरण बढ़ा हुआ मतदान है, मा0 सर्वाेच्च न्यायालय की भ्र”टाचारियों को जेल भेजने की कार्यवाही हो जिसमें ए0राजा, क़लमाड़ी और अन्य मन्त्री, मुख्यमन्त्री, 121 कम्पनियों के लाइसेन्सों को निरस्त करना आदि जेैसे उल्लेखनीय उदाहरण हैं। ‘ार्म का मर्म जनता तो जानती है लेकिन जनता की सेवा करने वाले अधिकारी व नेताओं ने बेच खाई है और अधिकत्तर लोकतन्त्र को लूटतन्त्र व लोभतन्त्र का नाम देने के गुनाहगार हैं।
राहुल गान्धी का मार्च, अपै्रल में प्रधानमन्त्री बनना और उसके साल भर बाद प्रियङ्का गान्धी का काङ्ग्रेस की अध्यक्ष बनना लगभग 10 माह पूर्व ही तय हो चुका था जब श्रीमती सोनिया गान्धी अपनी बीमारी के इलाज के लिए विदेश  गई, उसके बाद भारत लौटी उसी समय अपने बच्चों को प्रमुख पदों पर बैठाने की योजना बन गई। इसी कारण पिछले साल भर से राहुल गान्धी उ0प्र0 में अकेले काङ्ग्रेस के लिए प्रचार-प्रसार में जुटे रहे और अन्य नेताओं जैसे स्वयं प्रधानमन्त्री काङ्ग्रेस के अति वरि”ठ नेता प्रणव दा, पी0 चिदम्बरम आदि का चुनाव में आना न के बराबर रहा। चुनाव के बहाने राहुल गान्धी को मेहनती, हमदर्द दिखाने की कोशिश अधिक रही। हार जीत का होना आम बात है। जन्मत अपना निर्णय  देशहित में देता है उसे हम सभी को सर माथे पर रखना चाहिए। इस शेर  के साथ इस लेख की बात यही ख़त्म-
हाले गम सुनाते जाइए-लेकिन इतनी हमारी शर्त है मुस्कुराकर जाइए
जन्मत का जो भी निर्णय है, उसे सर झुकाकर जाइए।
*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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