मापदंड, मंत्री बनने के?

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– निर्मल रानी –

हमारे देश में संवैधानिक तौर पर प्रधानमंत्री से लेकर किसी प्रदेश के मंत्री तक का पद उस व्यक्ति को दिया जाता है जो लोकसभा,राज्यसभा,विधानसभा अथवा विधान परिषद् का सदस्य हो। हालांकि नैतिकता का तकाज़ा तो यही है कि लोकसभा अथवा विधानसभा के चुनाव में निर्वाचित लोगों को ही मंत्री पद पर सुशोभित किया जाए। परंतु यह देखा जाने लगा है कि चुनाव में पराजित नेताओं को भी उनका ‘मेहरबान’ आलाकमान मंत्रिमंडल में शामिल कर लेता है। कुछ परिस्थितियों में किसी भी व्यक्ति को बिना किसी सदन के सदस्य हुए भी मंत्री बनाया जा सकता है परंतु निर्धारित सीमा के भीतर ऐसे व्यक्ति का भी किसी न किसी सदन का सदस्य बनना ज़रूरी है। ज़ाहिर है संवैधानिक रूप में हो अथवा न हो परंतु नैतिकता के लिहाज़ से मंत्री जैसे पदों पर या मंत्रिपद का दर्जा पाने वाले पदों के लिए किसी भी व्यक्ति में राजनैतिक सूझ-बूझ के साथ-साथ योग्यता का होना अत्यंत आवश्यक है। इस संदर्भ में 1977 की एक घटना का उल्लेख करना ज़रूरी है। डा० राजेंद्र कुमारी वाजपेयी भारतीय राजनीति की कांग्रेस पार्टी से संबंधित एक वरिष्ठ राजनेता रही हैं। वे उत्तर प्रदेश के मंत्री पद से लेकर केंद्रीय मंत्री तथा राज्यपाल जैसे पदों पर भी रह चुकी हैं। 1977 में इलाहाबाद शहर के उत्तरी क्षेत्र से डा० वाजपेयी के विरुद्ध जनता पार्टी के टिकट पर बाबा राम आधार यादव नामक एक लोकप्रिय संत ने विधानसभा चुनाव लड़ा था। उन्होंने डा० वाजपेयी को पराजित किया। जनता पार्टी के नेतृत्व ने बाबा राम आधार यादव को मंत्री पद का प्रस्ताव दिया जिसे उन्होंने यह कहकर अस्वीकार कर दिया था कि वे संत हैं तथा उनमें मंत्रीपद पर बैठने की योग्यता नहीं है। अतः वे इस पद को स्वीकार नहीं कर सकते।

अब ज़रा आज का तथाकथित साधू-संतों का दौर भी देख लीजिीए। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर स्थित प्रसिद्ध गोरखनाथ मठ के मठाधीश योगी आदित्यनाथ जी अपने मठ की ज़ि मेदारियां छोड़कर तथा साधू-संतों की दिनचर्या त्यागकर काफ़ी राजनैतिक संघर्ष करने के बाद प्रदेश के मु यमंत्री पद पर सुशोभित होने में सफल रहे। परंतु मध्यप्रदेश में जिस तरीके से मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पांच साधुओं को मंत्री पद के दर्जे से नवाज़ा है वह अपने-आप में अत्यंत हैरान करने वाली बात है। इन कथित संतों में कई ऐसे भी हैं जिन्होंने मु यमंत्री चौहान पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए उनके विरुद्ध एक बड़ा मोर्चा खोल रखा था। मंत्री बनने से एक दिन पूर्व तक इन संतों ने नर्मदा नदी में हो रहे अवैध रेत खनन को रोकने,पर्यावरण को बचाने,गौमाता के संरक्षण आदि के कथित उद्देश्य को लेकर 45 दिवसीय संत-साधु समाज यात्रा का आयोजन किया था। इस यात्रा को नर्मदा घोटाला रथ यात्रा का नाम दिया गया था। इस सरकार विरोधी यात्रा के जो मु य बिंदु उजागर किए जा रहे थे तथा जिन मांगों को लेकर यह यात्रा बुलाई गई थी उनमें सबसे पहला व बड़ा आरोप यह था कि मु यमंत्री चौहान ने दावा किया है कि नर्मदा नदी के किनारे 6 करोड़ पौधों का रोपण किया गया है। परंतु संतों के अनुसार नर्मदा के किनारे कोई पौधे नहीं लगाए गए और सैकड़ों करोड़ का घोटाला किया गया है। इनकी मांग थी कि इस सबसे बड़े वृक्षारोपण घोटाले की जांच कर दोषियों को सज़ा दी जाए।

ज़ाहिर है इन ‘महान संतों’ को मंत्री बनाए जाने के बाद नर्मदा घोटाला रथ यात्रा का आयोजन खटाई में पड़ गया। और कल तक जो संत मु यमंत्री के विरुद्ध घोटाले के आरोप लगा रहे थे उनके स्वर बदल गए। क्या इस पूरे प्रकरण में कहीं संतों की गरिमा,उनकी मान-मर्यादा,राजनैतिक शुचिता आदि का दर्शन दिखाई देता है? क्या संतों के मंत्री बनते ही कथित नर्मदा घोटाला समाप्त हो गया? इन संतों को मंत्री का दर्जा दिए जाने के विरुद्ध शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती सहित अनेक संतों ने अपने वक्तव्य दिए। कई संतों ने तो इन्हें मंत्री बनाए जाने के विरोध में मु यमंत्री चौहान के निवास का घेराव करने की ाी चेतावनी दी। कई संतों व अखाड़ा प्रमुखों ने मंत्री का दर्जा पाने वाले संतों की गरिमा पर ही सवाल खड़े कर दिए। परंतु न तो इन संतों पर अपनी आलोचना का कोई फ़र्क पड़ा न ही मु यमंत्री चौहान के कान पर जूं रेंगी। कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी की रणनीति का यह एक अहम हिस्सा है कि अपने विरोधियों,अपनी आलोचना करने वालों या अपना पर्दाफ़ाश करने वालों को अपने साथ शामिल कर लिया जाए ताकि किसी भी प्रकार के विरोध या आलोचना के स्वर उठने ही बंद हो जाएं। बेशक नर्मदा घोटाला के आयोजकों को अपने साथ जोड़ना व उन्हें मंत्रीपद का दर्जा दिया जाना इसी रणनीति की एक कड़ी है।

उधर इसी नर्मदा घोटाला को लेकर मध्यप्रदेश के पूर्व मु यमंत्री तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी पिछले दिनों 6 महीने 9 दिन तक चली अपनी 33 सौ किलोमीटर लंबी नर्मदा परिक्रमा पूरी की। दिग्विजय सिंह ने इस यात्रा की समाप्ति के बाद दावा किया कि उन्हें अपनी पूरी परिक्रमा यात्रा के दौरान 18 सौ किलोमीटर के क्षेत्र में केवल तीन पौधे ही जीवित अवस्था में मिले हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि 6 करोड़ पौधों का रोपण करने वाली सरकार ने नर्मदा के किनारे अधिक से अधिक 60 हज़ार से लेकर एक लाख तक पौधे ही लगाए हैं। इसके अतिरिक्त दिग्विजय सिंह ने साधू-संतों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर भी रौशनी डालते हुए कहा कि-नर्मदा नदी से रेत का मनमाना दोहन किया जा रहा है। उनके अनुसार मु यमंत्री की सहमति के बिना इतने बड़े पैमाने पर मशीनों से उत्खनन नहीं किया जा सकता। ऐसे में यह सोचना लाज़िमी है कि नर्मदा घोटाला को लेकर दिग्विजय सिंह तथा मंत्री बनाए गए साधू-संत लगभग एक जैसे ही आरोप लगा रहे थे। परंतु संतों को मंत्री पद का दर्जा देकर चुप करा दिया गया जबकि दिग्विजय सिंह पर चौहान की यह नीति काम नहीं आ सकती। मध्यप्रदेश के ही एक महंत रामगिरी महाराज ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जो संत धर्म नीति से राजनीति में प्रवेश करता है वह विश्व कल्याण करने का काम करता है। परंतु जो संत धर्म के बजाए कूटनीति से राजनीति में प्रवेश पाता है वह केवल जगत का नाश ही कर सकता है।    उत्तरप्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश तक कम से कम यही स्थिति देखने को मिल रही है।

इसके पहले भी सतपाल महाराज,चिन्मयानंद,उमा भारती जैसे और भी कई लोग साधू-संत होने के साथ-साथ मंत्री पदों को सुशोभित कर चुके हैं। परंतु परोक्ष रूप से राजनीति में हिस्सा लेने के कारण तथा चुनावों में विजयी होकर सदन में सदस्य बनने के बाद उन्हें मंत्री बनाए जाने को लेकर कभी कोई विवाद नहीं पैदा हुआ। परंतु नर्मदा घोटाला यात्रा के आयोजकों को मंत्री का दर्जा देकर तथा उनके साथ यात्रा में स्वयं शामिल होने जैसा प्रदर्शन कर चौहान ने अपने विरोधियों का मुंह बंद करने का जो खेल खेला है उसे देखकर पूरा देश स्तब्ध है। शासन चलाने का यह तरीका जहां मु यमंत्री चौहान की शैली पर सवालिया निशान खड़ा करता है वहीं साधू-संतों की गरिमा व उनके मान-स मान को भी कठघरे में खड़ा करता है। जिन लोगों ने संतों की बात मानकर उनके साथ नर्मदा घोटाला यात्रा में शिरकत करने का संकल्प किया था आज वह लोग स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। राजनैतिक हल्क¸ों में यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या मंत्री का दर्ज पाने के लिए या मंत्री पद हासिल करने के लिए किसी पार्टी का राजनैतिक कार्यकर्ता होना ही ज़रूरी है या फिर नर्मदा घोटाला यात्रा की तर्ज़ पर मु यमंत्री को धमका कर या उनपर दबाव डालकर कोई भी व्यक्ति कभी भी मंत्री पद हासिल कर सकता है?

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003
Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

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