महेश चन्द्र पुनेठा की दस कविताएँ

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नित्यानन्द गायेन की टिप्पणी : महेश चन्द्र पुनेठा समकालीन हिंदी कविता के एक जाने –माने नाम हैं . महेश जी चुपचाप निरंतर अपने लेखन में लगे हुए हैं . उनकी कविताओं में पहाड़ का हर रंग मौजूद है , मौजूद है उसकी उदासी . कवि चिंतित है मनुष्यता की अस्तित्व के खतरे को लेकर, यही चिंता ही इस संवेदनशील कवि की पहचान है . कवि एक अध्यापक भी है और लगातर बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए सक्रीय है !

महेश चन्द्र पुनेठा की दस  कविताएँ

 

1. ट्राइबल हेरिटेज म्यूजियम

वहाँ नहीं है कोई
राजा-रानी का रंगमहल
जादुई आईना
रत्न जड़ित राजसिंहासन
पालना
न कोई भारी-भरकम तलवार-ठाल-बरछी
न बंदूक-तोप-बख्तर बंद
न किसी राजा द्वारा जीते युद्धों का वृतांत
न उनकी वंशावली
न भाट-चारणों की बिरुदावली
न कोई फरमान
वहाँ  प्रवेश करते ही
पारम्परिक परिधानों में सजी-धजी
शौका युवतियों की पुतलियां
मुस्कराती हुई करती हैं स्वागत
पास में ही रखा है चरखा
जो आज भी रूका नहीं है
जिसमें ऊन कातकर दिखाते हैं शेर सिंह पांगती
आगे बढ़ते ही मिलता है
घराट चलाते हुए एक शौका अधेड़ का पुतला
दलनी चलाती हुई शौकानी
और हैं वहाँ
मरी बकरी की खाल से बनी धौंकनी
याद दिलाती है जो कबीर के दोहे की
निंगाल से बने-मोष्टे,सूपे,भकार
काठ के बने बर्तन
जिनमें कभी गोरस रखा जाता था सुरक्षित
नक्काशीयुक्त दरवाजे-खिड़कियां
दर्शन कराती कुमाउँ के समृद्ध काष्ठ शिल्प के
 
शांत पड़े हुक्का-चिलम
वहाँ है
हर वह वस्तु
जो जीवन की कठिनतम परिस्थितियों में
आम जन के साथ खड़ी रही
उनके हौंसले की तरह
वहाँ मौजूद हैं-
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाली जड़ी-बूँटियां
यारसा गम्बू भी है जिनमें से एक
जो आज
अशान्ति का कारण बन रहा है इस शांत क्षेत्र में
शेर सिंह पांगती नहीं भूलते दिखाना
वह चकमक पत्थर
और चमड़े के खोल में ढका लोहे का टुकड़ा
ठंडे से ठंडे मौसम में भी
जिनकी टकराहट पैदा करती है आग
पहले भारतीय सर्वेयर किशन सिंह और नैन सिंह
के संघर्ष-गाथा की स्मृतियां जीवंत हो उठती हैं वहाँ
और भी बहुत कुछ……….
वहाँ नहीं हैं हथियार
वहाँ हैं औजार
जो मानव की क्रूरता-बर्बरता नहीं
सभ्यता के विकास और जीवटता की कहानी सुनाते हैं
सबसे अधिक उस आदमी के कर्मठता की
जिसके चलते संभव हुआ है ट्राइबल हैरिटेज म्यूजियम।
(2)
दीवारों पर सजे हैं वहाँ
बहुत पुराने-पुराने फोटोग्राफ्स
पढ़ा जा सकता है जिनमें
तत्कालीन समय
और समय के परिवर्तन की गति व दिशा
जैसे फोटोग्राफ्स में दिखाई दे रहे हैं जहाँ
हरे-भरे जंगल
अब वहाँ उग आए हैं कंक्रीट के जंगल
नदी छल-छल बह रही है जहाँ
बड़े-बड़े बाँध बन रहे हैं वहाँ
एक फोटे दिखाते हुए कहते हैं शेर सिंह पांगती
एक समय का सबसे बड़ा गाँव है यह
आज वहाँ बंद दरवाजे
टूटी भीतें
खिसकती चूलें
झाड़-झंखाड़ से भरे आंगन हैं
यहाँ लगे फोटोग्राफ्स में
बहुत दिखाई देते हैं बाब्यो घास से बने खरक
जो आज भी खड़े हैं जहाँ-तहाँ
मुश्किल से चार-पाँच फुट ऊँचे इन घरों में
अपने जानवरों के साथ
रह रहे हैं चरवाहे
जिनके भीतर रहते-रहते
सीधे खड़े होना भी भूल सा गए हैं वे।

2-डोली

उस दिन
जब सजायी जा रही थी डोली
दुल्हे की आगवानी के लिए
रंग-विरंगे पताकाओं से
चनरका की यादों की परतें
खुलने लगी
चूख के फांको की मानिंद-
सबसे पुरानी डोली है यह
इलाके भर में
बहुत कुछ बदल गया है तब से
नहीं बदली तो यह डोली ।
न जाने कितने बेटियों की
विदाई में छलक आए
आंसुओं  से भीगी है यह डोली ।
न जाने कितने रोगियों की
अस्पताल ले जाते
कराहों से पड़पड़ायी है यह डोली ।
न जाने कितनी प्रसूताओं को
सेंटर ले जाते
अधबिच रस्ते में ही फूटी
नवजातों की
किलकारियों से गॅूजी है यह डोली ।
सर्पीली – रपटीली पगडंडियों में
धार चढ़ते
युवा कंधों की खड़न
और चूते पसीने की सुगंध बसी है इसमें
उनके कंधों में पड़े छाले
देखे हैं इसने ।
गाँव के हर छोटे -बड़े के
सुख-दुःख में साथ रही है यह डोली
हर किसी के
साथ रोयी-हॅसी है यह डोली ।
आज भले जल्दी ही
चिकनी- चिकनी सड़कों में
दौड़ने वाली हो लखटकिया नैनो
हमारे इन उबड़-खाबड़
चढ़ती -उतरती पगडंडियों की
नैनो तो है ,बस यह डोली ।

 

3-ताकि

   एक मीठे अमरूद की तरह हो तुम
   जिसका
   पूरा का पूरा पेड़ उगाना चाहता हॅू
   मैं अपने भीतर
   तुम फैला लो अपनी जड़ें मेरी
   एक-एक नस में
 पत्तियां एक-एक अंग तक
   चमकती रहें जिनमें संवेदना की ओस
   तुम्हारी छाल का
   हल्का गुलाबीपन छा जाए मेरी आँखों  में
   होठों में
   तुम्हारे भीतर की लालिमा
   तुम फूलो-फलो जब
   मैं फैल जाऊॅ
   तुम्हारी खुशबू की तरह
   दुनिया के कोने-कोने तक
    ताकि
   तुम्हारी तरह मीठी हो जाए सारी दुनिया।

4-अस्तित्व और सुंदरता

अनेक पत्थर
कुछ छोटे – कुछ बड़े
लुढ़क कर आए इस नदी में
कुछ धारा के साथ बह गए
न जाने कहाँ चले गए
कुछ धारा से पार न पा सके
किनारों में इधर-उधर बिखर गए
कुछ धारा में डूब कर
अपने में ही खो गए
और कुछ धारा के विरूद्ध
पैर जमा कर खड़े हो गए
वही पत्थर पैदा करते रहे
नदी में हलचल
और  नित नई ताजगी
वही बचा सके  अपना अस्तित्व
और अपनी सुंदरता ।

 5- सिंटोला

बहुत सुरीली गाती है कोयल
बहुत सुंदर दिखती है मोनाल
पर मुझे
बहुत पसंद है-सिंटोला
हां इसी नाम से जानते हैं
मेरे जनपद के लोग
भूरे बदन/काले सिर
पीले चोंच वाली
उस चिड़िया को
दिख जाती है जो
कभी घर-आंगन मे दाना चुगते
कभी सीम में कीड़े मकोड़े ाते
कभी गाय-भैंसों से किन्ने टीपते
तो कभी मरे जानवर का मांस खींचते
या कभी मानव विष्ठा पर
हर शाम भर जाता है
खिन्ने का पेड़ उनसे
मेरे गांव के पश्चिम दिशा का
गधेरा बोलने लगता है
उनकी आवाज में
बहुत भाता है मुझे
चहचहाना उनका एक साथ
दबे पांव
बिल्ली को आते देख
सचेत करना आसन्न खतरे में
अपने पूरे वर्ग को
इकटृठा कर लेना
अपने सभी साथियों को
झपटने का प्रयास करना
बिल्ली पर
न सही अधिक
खिसियाने को तो
कर ही देते विवश वे
अपने प्रयास में
असफल बिल्ली को।

 6- मजदूर चाहिए उनको

एक मजदूर चाहिए
जो सूरज निकलने के साथ
आ जाता है काम पर
और सूरज डूबने के बाद
लौटे काम से
जो सुस्ताता न हो
काम के बीच में
और बैठता न हो
बीड़ी या चाय के लिए ।
जो खाता कम हो
और बचा -खुचा /बासी-तूसी
खाने में
नाक नहीं सिकोड़ता हो
बातूनी न हो
पर हॅसमुख हो
जो मजदूरी लेता हो कम से कम
सिर न खुजलाता हो
मजदूरी के लिए हर शाम ।
एक बात और
वह मालिक की हर इच्छा का
करता हो पूरा सम्मान ।

7-तसल्ली

तसल्ली होती है कुछ
देखता हॅू जब
बस्ते के बोझ से दबे बच्चे
माता -पिता की
लैण्टानाई महत्वाकांक्षाओं के बियावान बिच
निकाल ही लेते हैं खेलने का समय
ढॅूढ लेते हैं एक नया खेल
समय और परिस्थिति के अनुकूल
दिलाते हैं याद
उस चिड़िया की
जो
दाना डालने वाले लोगों के
लुप्तप्रायः होने के बावजूद
अतिवृष्टि -अनावृष्टि के बीच भी
खोज ही लेती हैं दाना।
पतली गली में हो
या छोटे से  कमरे के भीतर
या फिर  कुर्सियों के बीच
चाहे स्थान हो
कितना ही कम
बना ही  लेते हैं वे
अपने लिए खेलने की जगह
जैसे गौंतई
ढॅूढ लेती है एक कोना
अपना घौंसला बनाने को
 तमाम चिकनाई के बावजूद

8-धान की रोपाई

                                   
 आषाढ़  की काली धूप है
घुटने-घुटने तक धँसे हैं सीम में सभी जन
कोई खोद रहा है
 कोई कर रहा खेत समतल
कोई ला रहा है धान के नन्हे-नन्हें पौंधे
बच्चे उछलते-कूदते
गिरते-उठते
उठा रहे हैं झाड़-झंकार
टँाच रहे हैं इचले  पर
दौड़ रहे हैं उस ओर
इचले को तोड़-तोड़कर
छल-छलाते हुए
भाग रहा है पानी जिस ओर
रूक जाता है पानी कुछ देर और
जैसे बच्चों के स्नेह पूर्ण आग्रह पर
रूक जाता है कोई पाहुन
 फिर बहने लगता है छल-छलाकर
इचले के ऊपर से
बच्चों ने खेल बना दिया है काम को
सिंटोले और टिटहरी
बैठे  हैं घात लगाये
ढूँढ ला रहे हैं कीड़े-मकोड़े
पानी भरे खेत से।
तैयार होते ही खेत के
औरतें रोपने लगी हैं
कोमल-कोमल धान की पौंध
खिलखिलाती
बतियाती
गुनगुनाती लोकगीत
हुड़क्याबौल गति दे रहा उनके हाथों को
हुड़के की थाप पर नाचने लगे हैं
रोपाई के खेत
धान के नन्हे-नन्हे पौध
ढूँढ लायेंगे हरापन
कुछ दिनों के पीलेपन के बाद
आषाढ़ की काली धूप में भी
एक दम सीधे खड़े हो जाएंगे
किसान के स्वाभिमान से
धूप के खिलाफ अपनी जड़ों पर
पसीना
मिट्टी और पानी से मिलकर
लहलहा उठेगी धान की फसल
साथ उसके खिलखिलाएंगी
किसानी सपनों की बालियाँ ।

9 -सूखता पानी

सूखते जा रहे हैं
नौले धारे
ताल-पोखर
घट रहा है
भूमिगत जल स्तर
पीछे खिसक रहे हैं
ग्लेशियर
नदी बदल रही है
रेत में ।
चारों ओर
सूखता जा रहा है पानी
खतरनाक है यह स्थिति
मनुष्य मात्र के
अस्तित्व के लिए
प्रकृति के लिए ।
पर
इससे भी खतरनाक है
सूखना
मनुष्य के भीतर का पानी
 और आखों का
बचाया नहीं जा सकता
जिसे
किसी विज्ञापनी संदेश से
या डालरी अभियान से ।

10 -दुःख से निकालते हैं दुःख के आख्यान

दुःख में शरीक होने आ रहे हैं जितने
उतनी बार दुहराई जा रही हैं
दुर्घटना से पहले और बाद की कहानी
क्या हुआ
कब हुआ
कैसे हुआ
बारीकी से बताई जा रही है पूरी कहानी
जैसे दुःख को बारीकी से काटा-छिला जा रहा हो
दुख्यारी को दुःख सुनने वाला चाहिए
बीच में थोड़ी देर एकदम चुप्पी
जैसे सूना आकाश सा उतर आया हो जमीन पर
फिर कोई एक प्रश्न
शून्य से नीचे खींच लाता है भटकते  को
दुःख के आख्यान का सिलसिला
आँसुओं और सिसकियों के साथ-साथ
फिर चल पड़ा है
दुःख जैसे पिघलकर बह रहा हो
बह रहा है उसके साथ जमा अवसाद
सामने बैठा
सहलाने की कोशिश कर रहा है
उसी तरह के इधर-उधर के
अन्य दुःख के आख्यानों को सुनाकर
दुःख पर दुःख का मलहम लगाते हुए
दुःख टहल आता है कुछ देर
मन बहल जाता है
इस तरह मिलने-मिलाने वालों के बीच
अपनी सुनाते
दूसरों की सुनते हुए
अतल में पैठा दुःख
बहलते-टहलते
धीरे-धीरे हल्का होता जाता है
जीवन से दूर जाते हुए लोग
फिर जीवन में लौट आते हैं
कितना अद्भुत तरीका है लौटा लाने का
दुःख में शरीक हो
दुःख के आख्यानों से दुःख को निकालना
काँटे से काँटा निकालना है
बहुत कम लोगों के पास होता है यह हुनर
अफसोस हमारे पास यह भी न हुआ //

 प्रस्तुति
नित्यानन्द गायेन
Assitant Editor
International News and Views Corporation

परिचय –

mahesh chand punetha,mahesh chand punetha ki kavitaenमहेश चन्द्र पुनेठा

जन्म – पिथोरागढ़ के सिरालिखेत गांव में . शिक्षा-दीक्षा भी पिथोरागढ़ से ही . राजनीति शास्त्र से स्नातकोत्तर . राजकीय इंटर कालेज देवलथल में शिक्षक .

भय अतल में ‘ नाम से २०१० में एक कविता संग्रह . विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आलोचनात्मक एवं समीक्षात्मक आलेखों का प्रकाशन . शिक्षा पर छुटपुट लेखन . पिछले तीन वर्षों से शैक्षिक दखल पत्रिका का संपादन .

दीवार पत्रिका ;एक अभियान ‘ नामक ब्लॉग का संचालन जिसका उद्देश्य बच्चों की रचनात्मकता को को मंच प्रदान करना है . इस अभियान को शुरू करने के बाद से लगभग चार दर्जन से अधिक विद्यालयों से दीवार पत्रिका निकलनी प्रारम्भ हो गयी है . सपना है हर स्कूल की दीवार पर बच्चों की एक हस्तलिखित पत्रिका लटकी दिखे . शीघ्र ही इस विषय पर एक किताब भी प्रकाशित होने वाली है .
 

3 COMMENTS

  1. इन कविताओं में एक ताज़गी है । मुझे डोली और सूखता पानी शीर्षक कविताएँ विशेषत: पसन्द आईं । पुनैठा की सफलता की कामना करता हूँ।

  2. धड़कते हुए दिल दे निकली हैं उद्दाम कविताएं……..ले चली मुझओ बहाकर अपने साथ…..सादर……अरविन्द.

  3. अंतिम कविता को तो अभी जी रहा हूँ! अस्तित्व और सुंदरता कविता विशेष पसंद आई, वैसे शीर्षक उस पत्थर से जुड़ने से शायद और अच्छा होता

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