महिला अपराध नियंत्रण के लिए विचार परवर्तन जरूरी?

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bhupinder singh hoodaआई एन वी सी,
हरियाणा,
हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कन्या भू्रण हत्या, घरेलू हिंसा तथा ऑनर किलिंग जैसे संवेदनशील सामाजिक मुद्दों के समाधान के लिए न्यायपालिका से ऐतिहासिक निर्णयों की अपेक्षा की है तथा कहा कि ऐसे मामलों में लोगों की मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है। हुड्डा आज यहां चंडीगढ़ न्यायिक अकादमी में ‘महिलाओं के अधिकार मानवाधिकार है :  बयानबाजी को वास्तविकता में बदलने में न्यायपालिका की भूमिका’ विषय पर आयोजित राष्टï्रीय न्यायिक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। हुड्डा ने कहा कि कुछ ऐसे मुद्दे है, जिनके लिए सरकार कानून बना सकती है लेकिन ये काफी नहीं है। किसी भी सामाजिक समस्या का समाधान बिना लोगों के सहयोग के संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि इसके लिए एक तरफ जहां लोगों की मानसिकता बदलने की आवश्यकता है, वहीं दूसरी तरफ न्यायपालिका को और ऐतिहासिक निर्णय लेने होंगे, जिसकी लोगों की मानसिकता पर अमिट छाप पड़े। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सोच हरियाणा को विकास के सभी क्षेत्रों में पथ प्रदर्शन के रूप में स्थापित करने की है, जिसमें लैंगिक समानता तथा महिला अधिकार भी शामिल हैं। हालांकि इसके लिए वे समाज के सभी वर्गांे विशेष रूप से न्यायपालिका से सहयोग की अपेक्षा रखते हे ताकि उनके सपने को वास्तविक रूप दिया जा सके।  श्री हुड्डा ने महिलाओं की सुरक्षा, सशक्तिकरण तथा सम्मान के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदमों को प्रभावी रूप से लागू करने में न्यायपालिका से सहयोग का आह्वान किया। हुड्डा ने बताया कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को रोकने तथा कार्रवाई को लेकर प्रतिबद्ध है तथा इस दिशा में राज्य सरकार द्वारा अनेक कदम उठाये गये है। महिलाओं, विशेष रूप से अनुसूचित जाति/जनजाति की महिलाओं से संबंधित अपराध के मामलों की मॉनिटरिंग के लिए अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी की नियुक्ति की गई है। प्रत्येक जिले में पुलिस उप अधीक्षक स्तर की महिला अधिकारी को महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की देखरेख के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है। प्रदेश के सभी जिलों के लिए महिला हेल्पलाइन नम्बर-1091 सक्रिय है। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों पर त्वरित कार्रवाई के लिए प्रत्येक जिले में महिला पुलिस कर्मियों वाली पीसीआर वाहन की तैनाती की गई है। राज्य में ऐसे 30 पीसीआर वाहन संचालित है जो यौन उत्पीडऩ रिस्पांस टीम के रूप में कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री ने बताया कि स्कूलों, कालेजों, सिनेमा घरों, कोचिंग सेंटर तथा बाजार में सादी वर्दी में महिला पुलिस कर्मियों की तैनाती की गई है ताकि महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके तथा दोषियों को पकड़ा जा सके। उनहोंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा सोनपीत तथा खानपुर कलां में दो महिला पुलिस स्टेशनों की स्थापना की गई है तथा गुडग़ांव, फरीदाबाद, पंचकूला तथा झज्जर में चार नए महिला पुलिस स्टेशन खोलने का प्रस्ताव है। उन्होंने बताया कि पुलिस स्टेशनों में महिला पुलिस कर्मियों की अगुवाई में महिला एवं बाल डेस्क भी स्थापित किये गये है। हुड्डा ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की जल्द सुनवाई के लिए प्रदेश में 21 फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किये गये है। उन्होंने बताया कि सितम्बर, 2013 के दौरान बलात्कार के 56 मामलों का निपटान किया गया, जिनमें से 24 मामलों में सजा दी गई। उन्होंने न्यायपालिका से आग्रह किया कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामलों को फास्ट ट्रैक के माध्यम से निपटाये ताकि इस संबंध में व्यवस्था को वास्तविकता दी जा सके। इस अवसर पर भारतीय सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री आर एम लोधा ने सम्मेलन के विषय के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद के वाक्यांश का हवाला देते हुए कहा कि जिस प्रकार पक्षी केवल एक पंख से नहीं उड़ सकता, उसी प्रकार ऐसा राष्टï्र भी तरक्की नहीं कर सकता जहां महिलाओं का उत्पीडऩ होता है, उनसे अन्याय होता है तथा सम्मान नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि आज देश में प्रत्येक घंटे में दहेज के कारण एक मौत होती है, बलात्कार की दो, अपहरण की तीन तथा छेड़छाड़ की चार घटनाएं होती है।   महिलाओं के विरुद्ध अपराधों पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के दृष्टिïगत भारत विश्व में चौथा सबसे असुरक्षित देश है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1971 से देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराध, विशेष रूप से बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि हुई है जबकि ऐसे मामलों में सजा की दर गिरी है। वर्ष 2011 में सजा की दर 26.4 थी जो वर्ष 2012 में 24.2 तक पहुंच गई। उन्होंने महिला उत्पीडऩ के लिए सामाजिक ढांचे का भी जिम्मेदार बताया, जहां समाज के पुरूषों की प्रधानता है। उन्होंने देश में ग्रामीण महिलाओं की स्थिति पर भी चिंता जताई। महिला अधिकारों पर बल देते हुए उन्होंने समाज की मानसिक में बदलाव को भी आवश्यक बताया। भारतीय सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ बी एस चौहान ने कहा कि देश में महिलाओं की सुरक्षा एवं सशक्तिकरण के लिए काफी कानून है लेकिन कोई भी कानून तब तक कारगर नहीं हो सकता, जब तक कानून के प्रति समाज में स्वीकार्यता न बने। उन्होंने कहा कि कानून प्रत्येक समस्या का समाधान हो देता है लेकिन इस प्रक्रिया में समय लगता है।  सम्मेलन को भारतीय सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्रीमती रंजना प्रकाश देसाई, वरिष्ठï अधिवक्ता श्री गोपाल सुब्रामण्यम, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति श्री संजय किशन कौल तथा न्यायधीश न्यायमूर्ति श्री जसबीर सिंह ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर न्यायमूर्ति श्री आर एम लोधा ने एक स्मारिका का विमोचन भी किया।

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