मीनाक्षी शर्मा,,
महान संगीतकार खैय्याम का पूरा नाम मोहम्मद ज़हूर खैय्याम है उन्होंने एक से बढ़ कर फ़िल्मी गीतों को मधुर धुनों से सजाया है, लेकिन एक समय था जब वो फिल्मों में अभिनय करना चाहते थे हीरो बनना चाहते न कि संगीतकार. उस जमाने में हीरो बनने के लिए नायक का संगीत जानना भी बहुत ही जरुरी होता था सो वो पंहुच गये लाहौर, मशहूर संगीतकार बाबा चिश्ती के पास, तो लाहौर जाने से खैय्याम हीरो के बजाय संगीतकार बन गये. १९५३ में उन्होंने फ़िल्म ”फुटपाथ” में संगीत दिया, इस फ़िल्म का गीत ”शामें गम की कसम” जिसे गाया था गायक तलत महमूद ने, यह गीत सुपर हिट हुआ था, तो इस तरह शुरू हुआ एक महान संगीतकार का संगीतमय सफ़र.
पिछले दिनों संगीत कंपनी सारेगामा द्वारा रिलीज़ की गयी ‘‘परिचय‘‘ सीरिज के अवसर पर खैय्याम साहब से मुलाकात हुई और उन्होंने हमें बहुत सारी अपनी पुरानी यादों से परिचित कराया. उन्होंने ”परिचय” शीर्षक से रिलीज़ हुई ८ एम पी ३ सीरिज के बारें में कहा कि,” बहुत ही लाजवाब नाम रखा है सारेगामा ने, सारेगामा के पास तो संगीत का खजाना है. परिचय में शामिल सभी गीत सदा बहार हैं, ये सभी गीत आज भी हिट हैं और हमेशा ही रहेगें.”
खैय्याम साहब के इस एम पी ३ में उनके द्वारा संगीत बद्ध किये गये ४० गीत हैं, जिनमें ”अकेले में वो घबराते तो होंगे”, ”शामे गम की कसम”, ”बहारों मेरा जीवन भी सवारों”, ”जीत ही लेगें बाजी हम तुम”, ”कभी कभी मेरे दिल में”, ” आजा रे ओ मेरे दिलबर आजा”, ” दिल चीज क्या है”,”न जाने क्या हुआ”,”फिर छिड़ी रात”,”ए दिले नादाँन” , ” हज़ार राहें मुड़ कर देखी”, ”प्यार का दर्द” ” यह क्या जगह हैं दोस्तों” आदि अनेको गीत शामिल हैं.
पिछले दिनों खैय्याम साहब को ”फ़िल्म फेयर” की ओर से २०१० का ”लाइफ टाइम अचीवमेंट” अवार्ड मिला है, उन्हें यह अवार्ड गायिका आशा भोसलें के हाथों मिला, इस अवार्ड के बारें में पूछने पर उन्होंने कहा कि, ” बहुत ही अच्छा लगा यह अवार्ड पाकर, जब भी कोई अवार्ड मिलता है तो बहुत ही ख़ुशी होती है, इस अवार्ड के बारें में बहुत लोगो ने कहा कि यह अवार्ड देर से मिला है मुझे, लेकिन मुझे किसी से कोई भी शिकायत नहीं है क्योंकि मेरा मानना है कि हर चीज का अपना वक्त होता है और अब मेरा वक्त आया है.” आशा भोसलें के बारें में उन्होंने कहा कि,” आशा जी बहुत ही गजब का गाती हैं, फ़िल्म ”उमराव जान” की गज़लों को अपनी आवाज में गाकर उन्होंने अमर बना दिया है. मैंने उन्हें फ़िल्म ”फुटपाथ‘ में कैबरे डांसर का गीत गवाया और नायिका मीना कुमारी के लिए भी मैंने ही उनसे गीतों को गवाया.”
८३ साल की आयु में भी उनमे जो गजब का उत्साह व उमंग हैं वो देखते ही बनता है. बातों के बीच – बीच में खैय्याम साहब कभी जोश में आ जाते हैं और गीतों को गुनगुनाना भी शुरू कर देते हैं. उनसे बात करते समय आपको कुछ भी बोलने की जरुरत नहीं होती वो अपने आप ही सब बताते जाते हैं.उन्होंने बताया कि, ”बेगम अख्तर साहिबा ने भी उनके साथ गाने की ख्वाहिश जाहिर की, जब बेगम अख्तर साहिबा ६० साल की थी तब उन्होंने ”मेरे हम सफ़र मेरे हम नवा, मुझे दोस्त बन के दगा न दे” ग़ज़ल की रिकार्डिंग की और कहा कि, ”इस ग़ज़ल को गाकर मुझे आज ऐसा लगा कि जैसे आज मेरी आवाज ६० साल की नहीं बल्कि २४ साल की हो गयी है. आज मेरी आवाज को खैय्याम ने जवान कर दिया है”
लता दीदी के बारें में खैय्याम साहब ने बताया कि, ”वो जादू है, उसकी आवाज एक जादू है, जब मैंने फ़िल्म ”रजिया सुलतान” का गीत ”ऐ दिले नादाँन” बनाया और लता ने उसे गाया, यह गीत उसे बहुत ही अच्छा लगा, उसे जब भी कोई धुन पसंद आती है तो वो कुछ कहती नहीं बल्कि उसके गाल लाल हो जातें हैं वो मुस्कुराती है तब हम समझ जाते है कि उसे धुन बहुत ही अच्छी लगी है.”
खैय्याम साहब ने फिल्मों में तो शानदार संगीत दिया है इसके साथ-साथ उन्होंने कई टी वी धारावाहिकों में भी शानदार संगीत दिया है. उन्होंने ग्रेट मराठा, दर्द, सुनहरे वर्क्स, बिखरी याद बिखरी प्रीत के अलावा धार्मिक धारावाहिक ”जय हनुमान‘‘ में बैक ग्राउंड” संगीत दिया. इसके लिए इन्हें बहुत ही सराहना मिली. १९७७ में फ़िल्म ”कभी कभी” व १९८२ में ”उमराव जान” के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत का उन्हें फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला. उन्होंने बताया कि, ” इस फ़िल्म के लिए एक ओर जहाँ शायराना संगीत दिया “कभी-कभी मेरे दिल में” गीत के लिए, वहीँ दूसरी ओर नौ जवानों के लिए ”तेरे चेहरे से” गीत की भी धुन बनायीं.” बहुत कम लोग जानते हैं कि फ़िल्मी गीतों में ‘‘नज्म” को खैय्याम साहब ने ही लोकप्रिय किया है. फ़िल्म ”कभी कभी” के दो गीत ”मैं पल दो पल का” और ”मेरे घर आयी एक नन्ही परी‘‘ दोनों ही बहुत लोकप्रिय हुए, ये दोनों हो नज्म हैं.
इनकी पत्नी जगजीत कौर जो कि खुद एक लोकप्रिय गायिका हैं, के बारें में उन्होंने बताया कि, जगजीत का बहुत ही बढा हाथ हैं जो मैं आज यहाँ तक पहुंचा हूँ, इनका फ़िल्म ”शगुन‘‘ का गाया गीत ”तुम अपना रंजो गम” बहुत ही लोकप्रिय हुआ. इसी तरह ”देख लो आज हमको जी भर के” व ” काहे को बियाही बिदेस” भी बहुत ही लोकप्रिय हुए हैं, यही नहीं जब भी मैं किसी फ़िल्म का संगीत तैयार करता हूँ तो जगजीत का मुझे ही मदद करती है. जब मैं फ़िल्म ”उमराव जान” का संगीत तैयार कर रहा था तब भी हम आपस में बहुत बहस करते थे तब जाकर कोई धुन बनती थी. ”जिन्दगी तेरी बज्म में” फ़िल्म ”उमराव जान” की ग़ज़ल को वास्तव में जगजीत ने ही बनाया है.”
Thankyou for sharing the information with us.
There are only two ways of telling the complete truth–anonymously and posthumously.
I had been imagining this informative article was going to be unexciting due to the subject! Though the more browse the a lot better this got.
Hello. Great job. I did not expect this this week. This is a great story. Thanks!
Interesting article. Were did you got all the information from… 🙂
Super-Duper site! I am loving it!! Will come back again – taking you feeds also, Thanks.
Here’s all the information that you need.
Simply just wanted to point out I seriously respect your work on this blog and the high quality blogposts you make. These type of blog post are usually precisely what keeps me personally going through the day time. I uncovered this post after a excellent companion of my very own recommended it to me. I perform a little blogging myself and I am always thankful to see others contributing quality information towards online community. I am going to absolutely be following and also have saved your site to my facebook account for others to check out.
When are you going to post again? You really entertain me!
Thanks for sharing this helpful info!
Sounds like a good idea. You will have tons of subscriber if you do that.
too run an online b usiness (providing web services) as well as working full time for an IT consulting company. I get the perks of both worlds 🙂
I don’t usually reply to posts but I will in this case. 🙂