मस्जिद हटाने का निर्णय अशांति का सूचक

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{संजय कुमार आजाद**}
विश्व भर में इस्लाम को मानने वालो की जनसँख्या लगभग एक करोड़ साठ अरव बताई जाती है इनमे से दो तिहाई लोग एशिया में रहते हैं .उनमे भी भारत में इस मत के लोगो की तादाद काफी है .भले ही अपने थोक भाव में वोट डालने के कारण भारत में इस मत को राजनीतिज्ञों के तुष्टिकरण के कारण इसे अल्पसंख्यक का विशेष दर्ज़ा हासिल है .इस देश में अल्पसंख्यको के कल्याण के लिए भारत सरकार का पिटारा हमेशा खुला रहता है जो खासकर इस्लाम के लिए ही बरसता रहा है . जिस तरह से जम्मू और कश्मीर की सियासत में मुट्ठी भर कश्मीर घाटी के लोगो का कव्जा रहता और सारे संसाधन घाटी के लोगो में बाँट दिया जाता है उसी तरह से इस देश में सरकारों द्वरा अल्पसंख्यको को दिए जाने वाली सुविधा और इस देश का अल्पसंख्यक आयोग सिर्फ इस्लाम के लोगो के लिए ही कार्य करता और जो शेष अल्पसंख्यक है उनकी कोई नहीं सुनता क्योंकि वो अपने मतों का सौदा करना नहीं जानते , इस देश का बहुसंख्यक समुदाय तो हाशिये पर है और वो इस लोकतंत्र में दोमय जीवन जीने को मजबूर हैं.

आंकड़ो के अनुसार जनवरी २०११ से मार्च २०१३ तक इस देश में कुल ४०७० शैक्षिक संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता मिली ?यह देश की मूल भावना और एकता के खिलाफ है सिर्फ वोट बैंक की दूषित राजनीति ने इस तरह की प्रवृति को जन्म दिया. ईद का नमाज़ हो या जुम्मे का ये सड़कों पर अदा करते है,कभी बहुसंख्यको ने नहीं रोका है ,किन्तु हिन्दुओ का कोई पूजा हो उसमे ये खलल नही डालें ऐसा हो नहीं सकता?

इस्लाम में कब्रों की इवादत हराम है फिर इस देश की सेकुलर सरकार चादरें लेकर अजमेर शरीफ से लेकर अनेक कब्रों पर चादरपोशी करती है .क्या ए इस्लाम की तौहीन नहीं है ? इस देश के इस्लाम के अनुआइ को सऊदी अरब से सबक लेना चाहिए .इस्लाम के पवित्र स्थानों में मक्का और मदीना को मन गया है जहां इस मत के प्रवर्तक का प्रादुर्भाव हुआ था . उर्दू के साप्ताहिक पत्र नै दुनिया के २४ जून २०१३ के अंक में एक रिपोर्ट छापा गया है . उस पत्र के अनुसार- “मस्जिद-ए-नबवी के विस्तार में सऊदी अरब की सल्फी सरकार इस्लाम के प्रवर्तक मुहम्मद साहेब की कब्र को ध्वस्त करने की साजिश कर रही है”.इस पत्र के अनुसार इस साजिश का पर्दाफाश राशियन टेलीविज़न ने ०३ अक्तूबर २०१२ को किया था .पश्चमी मिडिया के रिपोर्ट के अनुसार मस्जिद-ए-नबवी के विस्तार में पैगम्बर-ए-इस्लाम का मज़ार-ए-मुबारक भी आ रहा है जिसे ध्वस्त किया जाएगा ,इसके साठ ही पहले खलीफा अबू बकर सादिक दुसरे खलीफा उमर फारुक के कब्रों और कई एतिहासिक मस्जिदों को भी जमिन्दोज़ क्या जाएगा .चूँकि सऊदी अरब की शासन कब्रों को बुत मानती है और उसका सम्मान करना सर्क (इस्लाम के विरुद्ध) है.

ध्यान रहे की मदीना मुनव्वरा की जियारत के समय मस्जिद-ए-नबवी का कसद करना दीनी काम है जिस पर अल्लाह के नवी सल्लाल्हू अलैहि व् सल्लम का यह फरमान है की तीन मस्जिदों के अलावा किसी अन्य स्थान के लिए यात्रा न की जाय मेरी यह मस्जिद (मस्जिद-ए-नबवी),मस्जिद-ए हाराम और मस्जिद-ए-अक्सा, इतना ही मदीना के कई ऐतिहासिक मस्जिदो को जिनमे मस्जिद-ए-सलमान फारसी,मस्जिद-ए-रजत अल समस को ज़मींदोज किया जा चूका है और वह मस्जिद जिसमे मुहम्मद साहेब ने पहली ईद की नमाज पढ़ी वह मस्जिद-ए-ज़मामा भी ध्वस्त होने वाली है .

गल्फ इंस्टिट्यूट का मानना है की गत २५ वर्षों में लगभग ३०० से अधिक ऐतिहासिक मस्जिदों को और कब्रों को नेस्तानावुद किया गया है जिनमे पैगम्बर की वीवियो और उनके अन्य परीज़नो की थी, वहाँ पांच सितारा और सात सितारा होटल शापिंग माल एवं बाज़ार सहित पार्किग स्थल बन रहे हैं. इस्लाम की धरती पर ही ऐतिहासिक मस्जिदों और पवित्र कब्रों को हटाया गया कोई बवाल वहां के ना नागरिको ने क्या न मिडिया और ना ही इस्लामी विद्वानों ने किया. यदि भारत में ये होता तब क्या होता .

इस्लाम में कब्रों की इवाद्त गुनाह है, इस्लाम में माना गया है की इवादत अपने सबब (कारण)के अन्दर शरीयत के अनुकूल हो . कोई भी मुसलमान अल्लाह की उपासना किसी ऐसी इवादत के द्वारा करता है जो किसी ऐसे कारण पर आधारित हो जो शरीयत से प्रमाणित नहीं है अल्लाह उस इबादत को तकसीम नहीं करता ,अल्लाह के नवी सल्लाल्हू अलैहि व् सल्लम के जन्म दिन पर जश्न मनाना भी शरियत के खिलाफ है . अल्लाह के नवी सल्लाल्हू अलैहि व् सल्लम ईद उल फ़ित्र और ईद उल जोहा के अलावे जुम्मे की साप्ताहिक ईद को ही मंज़ूर किया फिर रजब की २७वि रात मेराज या अन्य जलसा-ए-ईद मनाना गलत है .कोई मुसलमान अरफा के दिन मुज़द्लिफा में रुके तो उसका रुकना सही नहीं है क्योंकि यहाँ किया इवादत उसके स्थान में शरियत के अनुसार सही नहीं है ,इसी तरह से कोई मुसलमान अपने घर में ऐतिकाफ तो उसका ऐतिकाफ सही नहीं होगा .

झारखंड में रामगढ़ के कान्केबार स्थान में रोड के किनारे नूरी मस्जिद बना दी गयी थी हालांकि उस मस्जिद को देखकर कोई ए नहीं कह सकता की ए मस्जिद है क्योंकि मस्जिद के सारे लक्ष्ण अभी फूटे नहीं थे , इसी वीच वह रोड फोरलेन में परिवर्तित हो गयी. नेशनल हायवे ३३ के दोनों और के आवाशीय परिसर को खाली करया गया . लोगो को मुआवजा भी मिला चुकी नॅशनल हाइवे ३३ के कान्केवार के पास काली मंदिर स्थापित थी जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने कुछ दिन पूर्व वहां से हटा दिया . कोई हो हल्ला नही हुआ किन्तु जब उस तथाकथित नूरी मस्जिद को हटाने की वारी आई तो मुसलमानों ने प्रशासन को धमकी दिया की यदि इस मस्जिद को छुआ भी गया तो प्रशासन अंजाम भुगतने को तैयार रहे .इस मुद्दे पर सारे उलेमा और मुसलमान एक होकर हिंसक विरोध करने पर उतर आये ,जिस जगह पर यह तथाकथित नूरी मस्जिद है वहाँ मुसलमानों का घर दहाई में भी नहीं है फिर भी सालो से उस पर मिडिया के सहयोग से माहौल इस्लामी उन्मादी बनता गया और अंतत इस देश की सरकार ने उस रोड का नक्शा में बदलाब कर मार्ग बदल दिया . जब इस बात की भनक हिन्दुओ को हुई तो अपने आप को ये ठगा समझने लगे .

मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा होती है जिसे स्थान बदलने की इजाजत नहीं है फिर भी देश के तरक्की के लिए हिन्दुओ ने वहाँ से काली माता की प्रतिमा हटा ली थी , अंतत सरकार और प्रशासन की मुस्लिम भक्ति से तंग आकर आम नागरिको ने उसी स्थान पर पुन; एक मंदिर का निर्माण कर दिया .जब मंदिर का निर्माण हो गया तब तथाकथित सेकुलरो का हाय तोव्वा शुरू हुआ और रामगढ़ का माहौल बिगाड़ने की भरसक प्रयास किया किन्तु उनकी मंशा धरी की धरी रह गयी , अब उन सेकुलर गिरोहों की शह पर ही कुछ ज़मातो ने एलान किया है की विना शर्त उस तथाकथित नूरी मस्जिद को वहाँ से हटा लिया जायेगा ,ना मुआवजा और ना ही जमीन इसके बदले मुसलमान लेगा बल्कि मुस्लिम समुदाय अपनेखर्च से उस मस्जिद को वहाँ से हटा देगा, अब प्रश्न है की प्रशाशन के लाख गिडगिडाने के बाद भी जो कौम कल तक धमकिया देता रहा फलत: सरकार ने मजबूरन मार्ग बदल दिया उसके बाद एकाएक इन मुसलमानों मजलिस इतना उदार वादी कैसे हो गया, इस्लाम में शान्ति की तो बात है किन्तु ऐसी शान्ति की कल्पना असम्भव है इस एलान के बाद रामगढ़ प्रशासन किकर्तव्य विमूढ़ है और जनता इसे इलाके में अशांति का सूचक मानती है .

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sanjay-kumar-azad**संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर रांची 834002
मो- 09431162589

(*लेखक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं)*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं |

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