मंजरनामा बदल तो रहा है ……… मगर ?

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1466143_183150518555348_248602281_n{ वसीम अकरम त्यागी ** }
जब से आजादी मिली है तभी से ही बहसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टियों से लेकर देश के बुद्धिजीवी वर्ग को सिर्फ एक चिंता है और वह है भारतीय मुसलमान की चिंता। उसके पिछड़ेपन की चिंता, उसके दंगों में मारे जाने की चिंता, लेकिन अफसोस कथित रूप से इतने शुभचिंतक होने के बावजूद भी उस की समस्याऐं जस की तस हैं। उसमें कोई सुधार नहीं हो पाया है मुझे अच्छी तरह याद है 2003 में हंस के संपादक स्वर्गीय राजेंद्र यादव ने मुसलमानों की पिछड़ेंपन का जायजा लेने के लिये एक विशेषांक ‘भारतीय मुसलमान अतीत वर्तमान और भविष्य’ के नाम से एक विशेषांक प्रकाशित किया था। जिसमें तमाम बुद्धिजीवियों ने अपने – अपने विचार व्यक्त किये थे। उन्हीं विचारों में एक विचार था कि मुसलमान रूढ़िवादी हैं इसलिये पिछड़ेपन का शिकार हैं, वे अपनी महिलाओं को ऑफिस में काम करने नहीं भेजते, उनसे जॉब वगैरा नहीं कराते, उन्हें स्कूल कॉलेज नहीं भेजते, जिससे उनकी जीडीपी में सुधार नहीं हो पाता, एक पढ़े लिखे
मुस्लिम परिवार को पढ़ी लिखी मुस्लिम बहु नहीं मिल पाती इस लिये वह शिक्षा में पिछड़ जाता है। कहीं न कहीं इसमें सच्चाई भी है। भारतीय मुस्लिम महिलाऐं केवल इसलिये पीछे हैं कि उन्हें परिवार की दकियानूसी मानसिकता के चलते आगे बढ़ने का मौका ही नहीं मिलता अधिकतर बच्चियां इंटरमीडिएट के बाद घर पर बैठ जाती हैं, ऐसा अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में होता है इसमें मुस्लिम समुदाय के साथ साथ दूसरे समुदाय की लड़कियां भी होती हैं जो इस दकियानूसी दंश को झेलती हैं। मगर उनमें अधिकतर मुस्लिम समुदाय की लड़कियां अधिकतर होती हैं। शहरी क्षेत्र में यह अनुपात कुछ कम है, पिछले कुछ समय से ग्रामीण क्षेत्रों में इस मद में सुधार आया है।
ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों ने भी शिक्षा के लिये शहर जाना शुरु कर दिया है, और वहां वे पढ़ भी रही हैं। उसी की एक मिसाल पेश की है महानायक अभिताभ बच्चन की मेजबानी वाले टीवी शो के इस सीजन में एक करोड़ रुपये जीत कर पहली महिला करोड़पति बनीं 22 वर्षीय फातिमा हे जो उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की रहने वाली हैं। बीएससी कर चुकी फातिमा कभी नहीं चाहती थीं कि आर्थिक समस्याओं के चलते उनकी बहन की पढ़ाई रुके। उसकी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई की कुर्बानी दे दी। इसके बाद फातिमा का बस एक ही लक्ष्य था कि वह इस शो में हिस्सा लेकर भारी धनराशि जीतें और उससे अपने महरूम पिता के कर्ज को चुका सकें। उन्होंने केबीसी के लिए खुद को तैयार करने के लिए न्यूज चैनलों और अखबारों का ही सहारा लिया जिससे अपनी जानकारियों और सामान्य ज्ञान को बढ़ाया। फातिमा उस क्षेत्र से जहां पर मुस्लिम समुदाय बहुसंख्या में है जाहिर है उसके इस कारनामे से मुस्लिम समुदाय के साथ साथ दूसरे समुदाय में भी शिक्षा के प्रति लगाव होगा। उसकी कामयाबी हो सकता है न जाने कितनी फातिमा की कामयाबी का सबब बन सकती है।
क्योंकि लड़कियों के प्रति भेदभाव भारतीय संस्कृती का ही हिस्सा है। यही वजह है कि नाजायज संबंधों के लिये हेमराज का मर्डर कर दिया जाता है जबकि आयुष को इसी हरकत को बताया जाता है कि वह बालिग हो गया है। उसे समाज द्वारा वह सजा नहीं दी जाती जो आरुषी को दी गई थी। खैर बात यहां पर मुस्लिम समुदाय की लड़कियों की चल रही थी, फातिमा की इस कामयाबी से थोड़ा ही सा ही लेकिन उस आलौचना पर थोड़ा विराम लगेगा, जो समाचार पत्रों में गाहे बगाहे प्रकाशित होती रहती है। लेकिन जरूरत है इस प्रतिभा को सही से पहचानने की उसे सही मौका सही प्लेटफार्म उपलब्ध कराने की जो भेदभावी समाज में मिलना बहुत मुश्किल है। जो लड़की इन तमाम अवरोध के बावजूद शिखर पर पहुंचती हैं वे यकीनन मुबारकबाद की हकदार हैं, सही अर्थों में तो आयरन लेडी वे ही हैं जो इस दकियानूसी, कूपमंडूक, भेदभावी समाज में अपने लिये पानी की तरह राहें निकालती हैं। उनके हिम्मत और हौसले सराहा जाना चाहिये मगर होता इसके विपरीत है यही समाज उनके चरित्र पर सवालिया निशान लगाता है। बहरहाल फातिमा ने इस बात को साबित किया है कि मंजरनामा बदल रहा है।
मगर उसकी गति बहुत धीमी है, जिसमें रफ्तार की आवश्यकता है, उसने साबित किया है एक हजरत फातिमा रजि. 1400 बरस पहले थीं जिन्होंने हक ओ बातिल की लड़ाई में कांधे से कांधे मिलाया था। एक फातिमा यह है जिसने चारों तरफ से लड़कियों के लिये फब्तियों और तानों से भरे समाज में दुनिया में अपने नाम का परचम लहराया है। जिसका अनुकरण करके आने वाली पीढ़ी हो सकता है अपने
क्षेत्रों में अपना नाम रौशन करें।

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वसीम-अकरम-त्यागी**वसीम अकरम त्यागी
युवा पत्रकार
9927972718, 9716428646
journalistwasimakram@gmail.com

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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