भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम पर छाए संकट के बादल

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*निर्मल रानी

अन्ना हज़ारे का नाम वैसे तो राजनैतिक मामलों में दिलचस्पी रखने वाले तथा देश की खबरों पर नज़र रखने वाले लोग गत् 3 दशकों से भलीभांति जानते हैं। परंतु जनलोकपाल विधेयक संसद में लाए जाने की मांग को लेकर, अन्ना हज़ारे के जंतर-मंतर पर अनशन पर बैठने के बाद अन्ना हज़ारे केवल भारत के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध तथा श्सदाचार्य के पक्ष में संघर्ष करने वालों के प्रतीक बन गए। भ्रष्टाचार में भारत की ही तरह आकंठ डूबे पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी भ्रष्टाचार से ग्रस्त जनता,अन्ना को अपने देश में आकर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम छेडऩे का न्यौता देने लगी है। तमाम लोग तो अन्ना की तुलना महात्मा गांधी से करते भी देखे गए। परंतु इन सब बातों के बावजूद अन्ना के इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन,उनके सहयोगियों के अपने आचरण, उनके सहयोगियों के प्रति सरकार के रवैये, इस आंदोलन से निकलने वाले परिणामों व आंदोलन के भविष्य की वस्तुस्थिति क्या है, अन्ना के साथ जुड़ी लाखों अवाम इस विषय पर क्या सोच रही है, आईए लेते हैं इसका संक्षिप्त जायज़ा।

अन्ना हज़ारे का आंदोलन सफल था या नहीं इस विषय पर किसी अन्य कांग्रेस नेता के विरोधाभासी अथवा आलोचनापूर्ण वक्तव्य पर नज़र डालने के बजाए, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ही उस स्वीकारोक्ति पर नज़र रखना बेहतर होगा जिसमें उन्होंने अन्ना हज़ारे के आंदोलन की प्रशंसा की है। 40 वर्षों से लंबित लोकपाल विधेयक संसद का मुंह देखने को तरस रहा था। निश्चित रूप से अन्ना हज़ारे के संघर्षपूर्ण आंदोलन के परिणामस्वरूप ही अब लोकपाल विधेयक शीघ्र संसद में लाए जाने की संभावना है। परंतु यहां एक प्रश्न यह भी है कि यह कोई अन्ना के व्यक्त्वि के किसी करिश्माई आकर्षण की देन नहीं है ना ही देश में अन्ना ने अपना कोई जनाधार किसी राजनैतिक संगठन के माध्यम से स्थापित किया है।

बजाए इसके ह की कत तो यह है कि जिस प्रकार गत् 2-3 वर्षों में एक के बाद एक कर भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित करने वाले मामले देश की जनता के सामने आए तथा मंत्री व मुख्यमंत्री स्तर के लोगों की संलिप्तता उन घपलों व घोटालों में उजागर हुई, इसकी वजह से देश की सहनशील व भ्रष्टाचार की भुक्तभोगी जनता स्वयं को काबू न रख सकी। और इसी बीच जनता को अन्ना हज़ारे भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करते हुए जंतर-मंतर पर बैठे दिखाई दिए। यानी वहां पर यदि उन परिस्थितियों में अन्ना के अतिरिक्त कोई दूसरा व्यक्ति भी होता तो जनता उसपर भी विश्वास कर उसके साथ खड़ी हो जाती।

बहरहाल, अन्ना हज़ारे ने जंतर-मंतर से लेकर रामलीला मैदान तक अनशन पर बैठ कर देश की जनता को भ्रष्टाचार के विरुद्ध संगठित होने के लिए आमादा किया। जनता ने भी न सि र्फ अन्ना हज़ारे बल्कि उनकी पूरी टीम पर विश्वास किया तथा उनके प्रत्येक आह्वान पर उनके साथ खड़ी रही। टीम अन्ना द्वारा सरकार पर दबाव बढ़ाने के बाद फिर शुरु हुआ सरकार का खेल। सरकार तथा अन्ना विरोधियों ने अब टीम अन्ना के सदस्यों में कमियां निकालने की कोशिश शुरु कर दी। उन पर कुछ सही तो कुछ गलत आरोप मढ़े जाने का सिलसिला शुरु कर दिया गया। यह साबित करने की कोशिश की जाने लगी कि टीम अन्ना के सदस्य तो स्वयं भ्रष्ट व कई आर्थिक मामलों में गुनहगार हैं। लिहाज़ा इन्हें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने का कोई अधिकार नहीं। कभी अन्ना हज़ारे के गैरसरकारी सामाजिक संगठन के लेन-देन व खातों को गैरपारदर्शी बताया गया तो कभी शांतिभूषण परिवार पर इलाहाबाद में उनके एक मकान के रजिस्ट्री शुल्क को लेकर सवाल खड़ा किया गया। कभी अरविंद केजरीवाल पर उनकी प्रशासनिक सेवा के दौरान उनपर ब काया राशी का भुगतान किए जाने का फरमान जारी कर दिया गया।

तो कभी किरण बेदी द्वारा उच्च श्रेणी का किराया वसूल करने तथा साधारण श्रेणी में उनके यात्रा करने का मामला उछाल दिया गया। मनीश सिसोदिया पर भी उनके अपने एनजीओ के नाम पर धनराशि खुर्द-बुर्द करने के आरोप लगे। इन सभी आरोपों की सच्चाई क्या है क्या नहीं इस पर तो फैसला देने का अधिकार निश्चित रूप से केवल देश की अदालतों को ही है। परंतु प्रत्यक्ष रूप से इन आरोपों व प्रत्यारोपों के पीछे जो मुख्य संदेश नज़र आता है वह शायद यही है कि सरकार तथा टीम अन्ना के विरोधी देश को यही बताना चाह रहे हैं कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ें उठाने वालों के स्वयं अपने चेहरे चूंकि दा गदार हैं लिहाज़ा इन्हें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने का कोई ह क नहीं। राजनैतिक स्तर पर भारतीय जनता पार्टी व बहुजन समाज पार्टी सहित कई अन्य क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के साथ भी यही होता रहा है। भाजपा जब कांग्रेस को राष्ट्रमंडल खेल, 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले तथा आदर्श सोसायटी घोटाले जैसे गंभीर मामलों को लेकर हमलावर होती है तो कांग्रेस बीजेपी पर येदियुरप्पा व रेड्डी बंधुओं जैसा शस्त्र चला देती है। इसी प्रकार बहुजनसमाज पार्टी पर हमलावर होते हुए कांग्रेस उससे मनरेगा में हुए घोटाले का हिसाब मांगने लगती है।

निश्चित रूप में ऐसे आरोपों व प्रत्यारोपों को सुनकर तथा इनमें संलिप्त कई प्रमुख राजनैतिक दलों के प्रमुख श्महारथियों्य को जेल की सला खों के पीछे देखकर वास्तव में लगता भी यही है कि देश में अब शायद ही कोई राजनैतिक दल ऐसा बचा हो जिसे पूरी तरह सदाचारी कहा जा सके। इन हालात में सवाल यह उठता है कि क्या आरोपों व प्रत्यारोपों में जनता को उलझा कर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की हर बार इसी प्रकार हवा निकाली जाती रहेगी? देश की करोड़ों की तादाद वाली वह आम जनता जो देश से भ्रष्टाचार खत्म होने के सपने देखने लगी थी उस जनता के सपने इन्हीं आरोपों व प्रत्यारोपों के मध्य यूं ही चकनाचूर हो जाएंगे और यदि खुदा न ख्वास्ता ऐसा हुआ तो गरीबी, भुखमरी व बेरोज़गारी जैसे दंश झेल रही इस देश की जनता का भविष्य आ िखरकार क्या होगा? देश से भ्रष्टाचार मिटाने की बाट जोह रहे उन लाखों आंदोलनकारियों की उम्मीदों का क्या होगा जो अन्ना हज़ारे को भ्रष्टाचार विरोधी प्रतीक मानकर उनके साथ पूरे देश में खड़े दिखाई दे रहे थे?

ऐसा भी नहीं है कि केवल सरकार ही या टीम अन्ना के विरोधी ही टीम अन्ना को कमज़ोर या बदनाम करने में लगे हों। स्वयं टीम अन्ना भी शुरु से ही आपसी मतभेदों में उलझी दिखाई दे रही है। जंतर-मंतर पर अन्ना के दाहिने हाथ के रूप में नज़र आने वाले स्वामी अग्रिवेश स्वयं को न केवल टीम अन्ना से अलग कर चुके हैं बल्कि अब वे करीब- करीब उनके सामने ही खड़े हो चुके हैं। अन्ना के आंदोलन से पूर्व देश में स्वामी अग्निवेश की पहचान भी भ्रष्टाचार, गरीबी,भुखमरी, बालमज़दूरी तथा अन्याय के विरुद्ध संघर्षरत रहनेवाले एक निरूस्वार्थ नेता के रूप में बनी हुई थी। परंतु अन्ना के इस आंदोलन की शुरुआत में आगे-आगे चलने वाले स्वामी अग्रिवेश इस मुहिम से किन परिस्थितियों में अलग हुए अथवा अलग कर दिए गए या फिर उन्हें अलग करने की सोची-समझी साज़िश रची गई, जो भी हो परंतु यह घटना निश्चिम रूप से टीम अन्ना के संगठन के लिए एक बड़ा झटका थी।

टीम अन्ना में मतभेद का यह सिलसिला यहां से शुरु हो कर आज तक आगे ही बढ़ता हुआ ही दिखाई दे रहा है। कभी रामलीला मैदान पर अन्ना के अनशन पर बैठने से उनके खास सहयोगी संतोष हेगड़े अपनी असहमति जताते दिखाई देते हैं। तो कभी हिसार उनचुनाव में टीम अन्ना के कांग्रेस का विरोध करने के फैसले का उनकी कोर कमेटी के कई सदस्यों ने विरोध कर डाला। यहां तक कि कुछ प्रमुख एवं विशिष्ट सदस्यों ने कोर ग्रुप से त्यागपत्र तक दे दिया। और अब कुछ सदस्य कोर कमेटी को भंग करने की सलाह भी अन्ना हज़ारे को दे रहे हैं जबकि अन्ना के खास सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने गाज़ियाबाद में गत्दिवस हुई कोर ग्रुप की बैठक में सा फतौर पर यह घोषणा की है कि कोर कमेटी कतई भंग नहीं की जाएगी। उन्होंने हिसार उपचुनाव में टीम अन्ना की भूमिका को न सिर्फ सही ठहराया बल्कि आवश्यकता पडऩे पर पांच राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में भी टीम अन्ना का हिसार जैसा ही रुख रहने का संकेत दिया।

इन हालात के मध्य अन्ना हज़ारे ने कथित तौर पर अपने स्वास्थय सुधार के कारण मौन व्रत धारण कर लिया है। परंतु शरीर विज्ञान अन्ना की इस श्स्वास्थय सुधार थ्यौरी्य को पूरी तरह स्वीकार नहीं करती। ठीक इसके विपरीत कुछ लोगों का तो यही मत है कि वर्तमान उठापटक व विरोधाभासी परिस्थितियों से दुरूखी होकर ही अन्ना हज़ारे ने शांत रहने का मन बनाया है ताकि उन्हें मीडिया के तीखे प्रश्रों का उत्तर न देना पड़े। चाहे वह प्रशांत भूषण पर हुए हमले का मामला हो या उन हमलों के पीछे छुपे कारणों का मुद्दा या फिर हिसार उपचुनाव में टीम अन्ना की भूमिका पर उनकी ही टीम के सदस्यों द्वारा सवाल खड़े किए जाने एवं इसका विरोध किए जाने का प्रश्र हो या फिर अब किरण बेदी व अरविंद केजरीवाल पर लगने वाले तरह-तरह के आरोप हों। उपरोक्त सभी हालात इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए का फी हैं कि देश के इतिहास की पहली व सबसे बड़ी व कारगर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा है। और यह स्थिति निश्चित रूप से चिंताजनक है। इन हालात में देश से भ्रष्टाचार के खात्मे की आस लगाने वाली आम जनता का यह सोचना भी लाज़िमी है कि आखिर अन्ना हज़ारे द्वारा जलाई गई भ्रष्टाचार विरोधी इस मशाल का क्या हश्र होगा।

**निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer)
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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