**भ्रष्टाचारी सीख लें, डॉ0 बी0आर0 अंबेडकर के जीवन मूल्यों से।

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**आर0एल0 कैन
यह निर्विवाद सत्य है कि भारत में भ्रष्टाचार जीवन के हर क्षेत्रा में अपनी चरम सीमा पर व्याप्त है। संविधन निर्माता बाबा साहब डॉ0 बी0आर0 अंबेडकर ने संविधन निर्माण के दौरान यह कभी सोचा भी न होगा कि एक दिन देश के रक्षक ही भक्षक बन जाएंगे। हर छोट कर्मचारी से लेकर मंत्राी तक पफाईल में निर्णय लेने के लिए करोड़ों की रिश्वत मांगेगे। नीतिगत पफैसले लेते समय कोई भी केिंद्रय मंत्राी, मंत्राीमंडल की उपेक्षा नहीं कर सकता परंतु आज मंत्रिायों द्वारा अपने स्तर पर स्वतंत्रा रूप से पफैसले स्वयं ले रहे हैं और प्रधनमंत्राी को औपचारिकता के नाम पर एक `नोट´ भेजकर सूचित कर देते हैं जैसा कि अभी ए0 राजा ने 2-जी  लाईसेंस वितरण मामले के घोटाले में पफैसला लिया है। इस प्रकरण में श्रीमती कनीमोझी, सांसद, द्वारा बिचौलिए के रूप में सैकड़ों करोड़ रफपयों की रिश्वत ली। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार के राजस्व को हज़ारों करोड़ रूपए का चूना लगाया गया है। इस मामले में ए0 राजा केिंद्रय मंत्राी ने बिना केिंद्रय मंत्राीमंडल की स्वीकृति के स्वयं निर्णय लिया जो भारत-सरकार (ट्रॉंजैक्सन ऑपफ visionेसद्ध रूल्स 1961 की धरा-4 (1द्ध का खुलेआम उलंघन हुआ है। जब यह नियम प्रथम राष्ट्रपति डॉ0 राजेंद्र प्रसाद द्वारा 14 जनवरी 1961 को अपनी स्वीकृति प्रदान की, उसी दिन से उन्हें अप्रकाशित और गुप्त रखने की स्वीकृति भी राष्ट्रपति से पारदर्शिता एवं जवाब देही के दुश्मन अिध्कारियों ने चालाकी से राष्ट्रपति की स्वीकृति अलग से एक पफाईल में ले ली। आज इसी नियम के अनुसार भारत-सरकार का काम-काज अिध्कारियों के माध्यम से चल रहा है। संविधन की धरा-77 (3द्धके अंतर्गत भारत-सरकार के सभी मंत्राी एवं सचिव कर रहे हैं व सब गैर-क़ानूनी है क्योंकि यह नियम राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद उनका सार्वजनिक रूप से अिध्सूचित आज तक नहीं किया है बल्कि गुप्त रखा गया है ताकि मंत्रिायों व अपफसरों की काली-करतूतों का खुलासा न हो सके। यह सब अंग्रेजी हुकूमत की परंपरा को जारी रख़ते हुए सामंती व्यवस्था को बनाए रखने के लिए किया गया। जब मैंने सरकार की इस गैर-क़ानूनी कारगुजारी को ख़त्म करने के लिए सूचना के अिध्कार का सहारा लिया तब 18 जनवरी 2010 से केिंद्रय सचिवालय ने अपनी वेबसाइट पर जनता के लिए सूचनार्थ उपरोक्त नियमों को डलवा दिया है, जब इस गैर-क़ानूनी कार्य की ओर राष्ट्रपति, प्रधनमंत्राी व सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाध्ीश का ध्यान दिलाया तो सभी ने मौन धरण कर लिया। किसी ने आज तक इस विषय पर संज्ञान नहीं लिया है। देश कब तक इस नियम की अिध्सूचना जारी किए बगैर चलता रहेगा? ऐसा लगता है कि जब तक गैर जिम्मेदार लोग संवैधनिक पदों पर बने रहेंगे तब तक ए0 राजा व पी0 चिदंबरम जैसे मंत्राी देश की अिस्मता से खिलवाड़ करते रहेंगे। ऐसा लगता है कि प्रधनमंत्राी डॉ0 मनमोहन सिंह की नियति सापफ नहीं है क्योंकि वह काले ध्न को वापस लाने में गोपनीय संिध् का हवाला देते हुए अपनी मजबूरी बताते हैं। ऐसी संिध् को किया ही क्यों जो देश की अखंडता से खिलवाड़ करें?
डॉ0 बी0आर0 अंबेडकर का जीवन एक खुली किताब है। उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलू ऐेसे हैं जो आज तक प्रकाश में नहीं आए और सरकार भी नहीं चाहती कि डॉ॰अंबेडकर के संविधन संबंध्ी विचार राष्ट्र के सम्मुख आएं जो राष्ट्र के लिए ध्रोहर का काम करेंगे। संविधन सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर संविधन सभा की सारी कार्यवाही  एवं रिकार्ड को संसदीय सचिवालय जो बाद में चलकर लोकसभा सचिवालय में परिवर्तित कर दिया गया है के पास स्थानांतरण करने का निर्णय लिया। जब इस विषय पर सूचना के अिध्कार के अंतर्गत संविधन सभा की पफाईलों को देखने की मैंने अनुमति मांगी तो लोकसभा सचिवालय, राष्ट्रीय अभिलेखागार व गृह-मंत्राालय ने यह उत्तर दिया कि इस रिकार्ड के बारे में उन्हें किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं है। प्रश्न यह उठता है कि यह ऐतिहासिक दस्तावेज कहां चले गए? क्या उसे जान-बूझकर नष्ट तो नहीं कर दिया गया है? मुझे आशंका है कि यह ऐतिहासिक पफाईलें तीन मूर्ति-स्थित नेहरू संग्रहालय एवं पुस्तकालय में गुप्त स्थान पर रखी गई हैं। सरकार इस विषय पर जनता को सार्वजनिक रूप से जानकारी दे कि यह बहुमूल्य दस्तावेज कहां हैं?  राष्ट्रीय अभिलेखागार की एक पफाईल पहली बार मेरे जैसे किसी शोध्कर्ता को अध्ययन करने के लिए मिली जिसे पढ़कर आश्चर्य हुआ कि नेहरू मंत्राीमंडल में डॉ0 बी0आर0 अंबेडकर को क़ानून मंत्राी बनाया पर उन्हें स्topफ कार उपलब्ध् नहीं करायी। पफलस्वरूप उन्होंने अपनी कार ख़रीदने के लिए नौ हज़ार रूपए एडवांस के लिए अपने मंत्राालय के सचिव को 13 अक्टूबर 1947 को एक पफाईल में `नोट´ भेजकर एडवांस लेने के लिए एक-दो दिन में मोहैया कराने के लिए आदेश दिए। सचिव ने इस नोट को गृहमंत्राालय के पास वित्त मंत्राालय की स्वीकृति लेने के लिए भिजवाया। वित्त मंत्राालय ने टिप्पण़ी करते हुए यह बताया कि सिविल एकाउंट कोड की धरा-156 के अंतर्गत मंत्राी कार एडवांस की परििध् में नहीं आते परंतु विगत में आवास मंत्राी वी0एन0 गाडगिल को कार एडवांस दिया जा चुका है। इस आधर पर वित्त मंत्राालय ने 29 अक्टूबर 1947 को डॉ0 बी0 आर0 अंबेडकर को नौ हज़ार रूपए का कार एडवांस 24 मासिक किश्तों में कर्ज को लौटाने की स्वीकृति प्रदान की। मंत्राी होते हुए नौ हज़ार रूपए का कार एडवांस एक स्वस्थ परंपरा का उन्होंने निर्माण किया जो आज के राज-नेताओं, मंत्रिायों व असरों के लिए अनुकरणीय है।     राष्ट्रीय अभिलेखागार के समुद्र में बहुमूल्य मोती बिखरे पड़े हैं पर जरूरत है तो उनके पारखियों की है जो उनका सुचारू रूप से संकलन कर सकें। एक पफाईल में डॉ0 बी0 आर0 अंबेडकर के हस्तलिखित व टाईप-पत्राों का संकलन किया हुआ था इस पफाईल में मुझे एक ऐसी रसीद देखने को मिली जिसमें उन्होने संभवत: उच्च शिक्षा या पुस्तक प्रकाशन के लिए अपने एक पारसी मित्रा श्री एन0एम0 बाथने से 1 जुलाई 1920 को 5,000 रूपए साढ़े सात प्रतिशत व्याज की दर से कर्ज लिया जिस पर एक रसीदी टिकट लगाकर कर्ज लेने के लिए अपने हस्ताक्षर किए।
संंभवत: यह कर्ज समय पर न लौटाने की स्थिति में डॉ0 बी0 आर0 अंबेडकर ने पुन: उसी कर्ज के लिए 1 जुलाई 1923 को दोबारा रसीदी टिकट पर अपने हस्ताक्षर किए। नि:ष्कर्ष यह निकलता है कि जो भी व्यवसायिक गतिवििध् करों व लिखित रूप में पूरी शर्तों के अनुसार होनी चाहिए।
पारदर्शिता और सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का एक और उल्लेखनीय प्रकरण आता है। वरिष्ठ पत्राकार खुशवंत सिंह के पिता सरदार शोभा सिंह 30 जून 1944 को 22 पृथ्वीराज रोड, नई दिल्ली स्थित डॉ0 बी0 आर0 अंबेडकर के निवास स्थान पर मिलने आए। दोपहर का समय था डॉ0 बी0 आर0 अंबेडकर तो घर पर नहीं मिले, पर उस दिन डॉ0 बी0 आर0 अंबेडकर के पुत्रा यशवंत राव अंबेडकर व शंकरानंद शास्त्राी घर पर बैठे थे उन्हें अपना परिचय देते हुए शोभा सिंह ने कहा कि यदि डॉ0 बी0 आर0 अंबेडकर मान जायं तो वे यशवंत राव अंबेडकर को सरकारी ठेकों में अपना भागीदार बना लेंगे। 25 से 50 प्रतिशत की कमीशन देंगे। इस प्रलोभन के पीछे सरदार शोभा सिंह की नज़र पंजाब में बनने वाले भांंखड़ा नांगल जैसी परियोजना का ठेका प्राप्त करने की रही होगी। शंकरानंद शास्त्राी ने रात्रिा के भोजन के बाद डरते हुए शोभा सिंह के आने का संदेश बाबा साहब अंबेडकर को दिया तो उनका चेहरा लाल हो गया। उन्होंने कहा “मैंने स्वतंत्रा रूप से वकालत करते हुए इतना पैसा कमाया है कि मेरी आने वाली संतानों को बिना हाथ-पैर हिलाए और बिना कुछ कमाए जीवन-भर खाने-पीने और जीवन-यापन करने में कापफी होगा। यशवंत को इस प्रकार की आमदनी से पेट भरने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं यहां पर केवल अपने सारे अछूत समाज के उ(ार के ध्येय से लेकर आया हूं। अपनी संतान को पालने के लिए नहीं। ऐसे लोभ-लालच मेरे ध्येय से नहीं डिगा सकते´´। उसी दिन अपने निजी सचिव मोदी से कहा कि आज की railगाडी से यशवंत को बॉंबे वापिस भिजवा दीजिए। यह था उनका समाज व देश  के प्रति प्रेम और उत्तरदायित्व।  आज के भ्रष्टाचारी नेता, मंत्राी, अिध्कारी, ठेकेदार व व्यापारी वर्ग बाबा साहब बी0 आर0 अंबेडकर के जीवन मूल्यों से प्रेरणा लें और ऐसी सीख लेते हुए प्रण करें कि राष्ट्र-प्रेम ही सर्वोपरि रहे। प्रधनमंत्राी सार्वजनिक रूप से बताएं कि संविधन सभा की सभी कमेटियों की पफाईलें कब तक उपलब्ध् कराएंगे जिससे डॉ0 अंबेडकर के जीवन संबंध्ी तथा संविधन के विभिन्न पहलूओं पर शोध्कर्ताओं तथा संविधनविदों को अनुसंधन करने में सहायक सि( हो सकें। इसके अतिरिक्त वह यह भी बताएं कि ट्रांजैक्सन ऑपफ visionेस रूल 1961 संविधन की किस धरा के अंतर्गत आज तक गोपनीय रखा गया है और वर्तमान में इसके अंतर्गत की जा रही गैर-क़ानूनी कार्यवाही पर संसद में एक श्वेत पत्रा लाएंगे?

आर0एल0 कैन
भूतपूर्व दानics अिध्कारी, मानव अिध्कार व सामाजिक कार्यकर्ता, आर0टी0आई0 कार्यकर्ता एवं प्रशिक्षणार्थी एवं राष्ट्रीय अभिलेखागार व नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय में शोध्कर्ता, डॉ0 अंबेडकर पुरस्कार विजेता, दिल्ली-सरकार महामंत्राी-डॉ0 बी0 आर0 अंबेडकर विचार मंच (रजिस्टर्डद्ध दिलशाद गार्डन-दिल्ली-110095  कृपया उपरोक्त लेख को अपने अमूल्य समाचार-पत्रा/पत्रिाका में प्रकाशि कर कृतार्थ करें। प्रकाशित लेख की दो प्रतिलिपियां अपने मानदश्डों के आधर पर मानदेय राशि का चेक भेजवाने का कष्ट करें। मेरे पास अनेक विषयों पर शोध् की गई ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध् है जिसके प्रकाशन से आपके समाचार-पत्रा/पत्रिाका की पाठकों में पैठ बनेगी। मेरे लेख प्रतििष्ठत पत्रा-पत्रिाकाओं में प्रकाशित होते रहे हैंं।

आर०एल० कैन०
66 बी, पॉकेट-आई
दिलशाद गार्डन
दिल्ली-110095
मो0 नं0 22572566-9716859259
E-mail: rlkaindgarden@gmail.com

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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