भारत रतन चयन , भारत हार गया – इंडिया जीत गया ! ध्यानचंद की गरिमा के सवाल पर सरकार के फैसले के खिलाफ पी.आई एल. कि तय्यारी शुरू !

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Dhyan_Chand_closeupआई एन वी सी ,
दिल्ली ,

कांग्रेस एंड पार्टी कि सरकार का ये कार्यकाल घोटालो के लियें मशहूर रहा है इस सरकार ने हद तो तब कर दी जब हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद  को  नज़र अंदाज़ कर देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न सचिन तेंदुलकर को देनी की घोषणा कर दी गयी  ये बात हैरान कम करती है इससे ज़्यादा हैरानी इस बात की हुई की अब की बार विपक्ष मौन है ! परन्तु पूरे देश बुद्धिजीवी वर्ग के साथ साथ देश के सोशल मीडिया ने इस चयन पर सवाल उठने शुरू कर दियें है -ठीक सचिन महान उन्हें सम्मान मिलना चाहिय पर किसी महान खिलाड़ी की गरीमा को कमतर आंक कर नहीं !

हलको से मिली सूचना पता चला है की हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद  की गरिमा के सवाल पर सरकार के इस फैसले के खिलाफ पी.आई एल. दाखिल करने की तय्यारी शुरू हो गयी है ,उनका कहना है की देश की भावनाओं का फैसाला चंद सरकारी नुमाइंदे कैसे कर सकते है , हम सचिन का सम्मान करते है पर इस समान में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद  का अपमान बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेंगे !

कांग्रेस एंड पार्टी सरकार को घोटालो का काफी अनुभव है इसलियें अब की बार सी.ए.जी. और सी.बी.आई.से बचने के लियें देश की भावनाओं से साथ ही घोटाला कर दिया है ताकि न कोई ऑडिट का झन्झट रहे न किसी इन्क्वारी का डर  न ही विपक्ष के बोलवचन का ख़तरा !

कांग्रेस एंड पार्टी के साथ साथ विपक्ष को भी वोट बैंक के खिसकने का खतरा सताने लगा है इसिलियं किसी भी पार्टी का कोई भी नेता अपनी राय देने से बच रहा है !

पूरे देश के साथ साथ ख़ासकर उत्तर भारत में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद  की हुई देखी के लियें  रोष Sudhanshu Dwivediकी लहर है इलहाबाद के साथ पूरा बुन्देखंड सकते में है बुन्देलखण्ड की लड़ाई लड़ने वाले कांग्रेसी नेता सुधांशु भूषण दवेदी कहा की ठीक है सचिन महान खिलाड़ी है पर सवाल ये उठता है क्या मेजर ध्यानचंद  और मिल्खा सिंह सचिन तेंदुलकर से कम है या फिर देश की गरीमा बढाने में कम योगदान दिया है अगर एसा नहीं है तो फिर देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न पर सबसे पहला हक़ मेजर ध्यानचंद  का बनता है , उन्होंने आगे कहा की  मेजर ध्यानचंद  को भारत रतन देने के लियें खाफी लम्बे वक़त से बुन्देलखंड के निवासी आवाज़ उठाते रहे है पर बुन्देलखण्ड को हर स्तर पर नज़र अंदाज़ किया जाता रहा है  तो इस स्तर पर भी नज़र अंदाज़ कर बुंदेलखंड की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है , जिस महान खिलाड़ी ने हिटलर जैसी हस्ती को अपने खेल के द्वारा नतमस्तक करवा लिया था वोह देश के चंद सरकारी नुमाइंदो से हार गया  उन्होंने ये भी कहा की इस भारत रतन की लड़ाई में भारत हार गया और इंडिया जीत गया !

जहां एक ओर सचिन तेंदुलकर वानखेड़े स्टेडियम में आपना आख़री मैच खेल रहे थे वहीँ दूसरी ओर प्रधानमंत्री कार्यालय खेल मंत्रालय की शिफारिशों को अनदेखा कर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की गरीमा से अपना खेल खेलने में जुटा था ! सूत्रों के हवाले मिली खबर से पता चला है की भारत रत्न को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में मराठी लोबी इतनी ज्यादा हाबी रही की हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को दर-किनार कर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने की घोषणा करवा दी !

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद  की  देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के लियें हुयी अनदेखी से पूरे देश में रोष है की लहर दौड़ गयी है पूरा खेल जगत सकते में है कभी देश को अंतराष्टीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले खेल हाकी के सभी खिलाड़ियों के साथ साथ पूरे देश को देश के ज़्यादा तर  नागरिकों  को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के चयन में हुयें खेल का खेल सबको साफ़ साफ़ समझ में आ रहा है जहां एक ओर सरकार इसे अपनी उपलब्धि समझ रही है वहीँ दूसरी ओर विपक्ष ने भी हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद  की गरीमा के सवाल पर मौन धारण कर लिया है ! कोई भी नेता कुछ भी बोलने से कतरा रहां है !

सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने के सरकारी फैसले के साथ ही बहुत से ओर खिलाड़ियों को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

सरकार  सचिन तेंदुलकर को सम्मानित करने की इतनी इच्छुक थी की सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने के लिए इस पुरस्कार के नियम में संशोधन कर सचिन तेंदुलकर का रास्ता साफ़ कर दिया जबकि आज़ादी के इतने लम्बे वक़त तक सरकार सोती रहीं !

1 COMMENT

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    अगर ध्यानचंद को भारत रत्न देना ही नहीं था तो फिर इसका भरोसा क्यों दिया गया। क्यों पिछले छह महीनों से प्रधानमंत्री कार्यालय इस बात का भरोसा दिला रहा था कि जल्द ही दद्दा ध्यानचंद को भारत रत्न से सम्मानित कर दिया जाएगा। अचानक से सचिन तेंदुलकर का नाम आया और उन्हें सम्मानित करने की घोषणा भी कर दी गई। आखिर लोकतंत्र में व्यवस्थाओं के भी कुछ मायने होने चाहिए या नहीं। जब दद्दा को सम्मान दिए जाने की फाइल पहले से चल रही है तो फिर उनसे पहले किसी और को सम्मान देने के मायने क्या हैं, यह अपमान नहीं तो क्या है? – दद्दा ध्यानचंद के बेटे अशोक ध्यानचंद
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