भारत में शुद्ध दूध: ढूंढते रह जाओगे

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duplicate milk{ निर्मल रानी ** }  किसी ज़माने में भारत में शुद्ध दूध की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे दूध-दही की नदियां बहने वाला देश कहा जाता था। दूध का कारोबार करने वाले लोग दूध में मिलावटखोरी अर्थात् केवल पानी की मिलावट करने तक को पाप की श्रेणी में गिनते थे। परंतु लगता है शायद हमारे देश में दूध व दही की इस प्रचुर मात्रा में उपलब्धता को किसी की नज़र लग गई है। या फिर लालची होते जा रहे दूध व्यापारियों अथवा मिलावटखोरों की सरकार द्वारा की जा रही अनदेखी,खाद्य सुरक्षा से जुड़े विभाग के लोगों की रिश्वतखोरी, दूध की अत्यधिक बढ़ती मांग व इसकी आपूर्ति के मध्य आने वाले विशाल अंतर तथा बेतहाशा बढ़ती जा रही मंहगाई आदि की वजह से दूध जैसा सबसे पवित्र,पौष्टिक एवं महत्वपूर्ण समझा जाने वाला खाद्य एवं पेय पदार्थ मिलावटखोरी की भेंट चढ़ गया है। भैंसों की निजी डेयरी तथा खुला दूध बेचने वालों द्वारा की जाने वाली मिलावटखोरी की तो बात ही क्या देश में चलने वाली कई सहकारी डेयरियां व मिल्क प्लांट तक के जो नमूने जांचे गए हैं उनमें भी शुद्ध दूध अथवा रासायनिक या सिंथेटिक पाए गए हैं।
गौरतलब है कि दूध में मिलावटखोरी का सबसे सीधा,सस्ता व आसान उपाय तो इसमें पानी की मिलावट करने का है। ऐसा नहीं है कि पानी की मिलावट करने से दूध केवल पतला मात्र हो जाता है बल्कि इससे दूध की पौष्टिकता तथा इनमें पाए जाने वाले विटामिन,प्रोटीन आदि में भी भारी कमी आ जाती है। इसके अतिरिक्त दूध में मिलाया जाने वाला जल कितना शुद्ध,स्वच्छ तथा कीटाणु रहित है यह भी मिलावट किए जाने वाले पानी पर निर्भर करता है। ज़ाहिर है मिलावटख़ोर व्यक्ति दूध में मिलावट करने हेतु स्वच्छ पानी की तलाश क़तई नहीं करता।
इसके अतिरिक्त नकली दूध बनाने के लिए यूरिया,कास्टिक सोडा, रिफाईंड तेल, डिटर्जेंट पाऊउर तथा सफेद रंग के पेंट का प्रयोग कर नकली,रासायनिक अथवा सिंथेटिक दूध तैयार किया जाता है। ऐसा दूध स्वास्थय के लिए बेहद नुक़सानदेह होता है। यहां तक कि इस प्रकार के दूध का सेवन करने से कैंसर जैसी बीमारी तक हो सकती है। दूध में मिलावटखोरी अथवा ज़हरीला दूध बनाए जाने का सिलसिला गत् कई वर्षों से लगभग पूरे देश में जारी है। ऐसा मिलावटी व ज़हरीला दूध न केवल घर-घर सप्लाई किया जा रहा है बल्कि दुकानों,डेयरी,मिल्क प्लांट,चाय की दुकानों व रेस्टोरेंट तथा लगभग पूरे देश में रेलवे स्टेशन के चायखानों में धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। और सरकार व इस पर नज़र रखने वाले विभागों के कर्मचारी व अधिकारी हैं कि अपनी आंखें मूंदे बैठे हैं। गत् वर्ष केंद्र सरकार द्वारा दूध के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को अपनी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट सौंपी गई थी। इसमें 33 राज्यों से 1791 नमूने इकट्ठे  किए गए थे।आश्चर्य का विषय है कि इनमें लगभग 70 प्रतिशत दूध मिलावटी अथवा नक़ली या रासायनिक पाया गया। इसमें 68 प्रतिशत मिलावटी दूध जहां शहरी क्षेत्रों में खुले दूध के रूप में पाया गया वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में मानक के अनुरूप न पाया जाने वाला नक़ ली दूध 83 प्रतिशत था। उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार को मई 2012 को दिए गए नोटिस के जवाब में केंद्र द्वारा उपरोक्त स्थिति स्पष्ट की गई थी। जिसमें केंद्र सरकार ने सा$फतौर पर अदालत को यह बता दिया था कि देश में बिकने वाला अधिकांश दूध भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है।
गत् 2 जुलाई को एक बार फिर माननीय उच्चतम न्यायलय की जस्टिस के एस राधाकृष्णन एवं जस्टिस पिनाकी चंद्र बोस की दो सदस्यीय पीठ ने मिलावटी व रासायनिक दूध की देश मे धड़ल्ले से हो रही पैदावार व बिक्री पर अपनी गहन चिंता जताई है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध विशेष रूप से दिल्ली,हरियाणा,राजस्थान,उत्तरप्रदेश व उत्तराखंड की राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे बताएं कि उनकी सरकारें मिलावटी दूध पर रोक लगाने के लिए क्या कर रही हैं।गौरतलब है कि केंद्र सरकार ऐसे मिलावटी व ज़हरीले दूध के उत्पादन व बिक्री पर रोक लगाने हेतु अपनी जि़म्मेदारी से पल्ला झाड़ चुकी है तथा अदालत को यह बता चुकी है कि इसपर रोक लगाने की जि़म्मेदारी राज्य सरकारों की ही है। अदालत ने अपनी ताज़ा-तरीन दूध संबंधी चिंताओं में यह भी स्वीकार किया है कि दूध में हो रही इस मिलावट का कारण मांग और आपूर्ति का अंतर भी है। लिहाज़ा उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकारों को इस मिलावटखोरी के धंधे पर रोक लगाने हेतु आवश्यक कार्रवाई किए जाने पर ज़ोर दिया है। हालांकि त्यौहारों के समय जब देश में दूध तथा दूध से निर्मित होने वाली खाद्य सामग्री विशेषकर पनीर,खोया तथा इससे निर्मित मिठाईयों की मांग ज़ोर पकड़ती है उस समय देश के कोने-कोने से मिलावटी, रासायनिक व ज़हरीले दूध पकड़े जाने की ख़बरें सुनाई देती हैं। कहीं पूरे का पूरा दूध का टैंकर मिलावटी पाया जाता है और उसे फेंक कर सरकार व अधिकारी अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। कहीं नक़ली खोए व पनीर के भंडार पकड़े जाते हैं तो कहीं ज़हरीली व दुर्गंध फैलाती मिठाईयां । परंतु इस प्रकार की कार्रवाई प्राय:केवल त्यौहारों विशेषकर दशहरा-दीवाली के आसपास के दिनों तक ही सीमित रहती है। जबकि दूध के माध्यम से आम जनता को मौत की आग़ोश तक पहुंचाने का लालची मिलावटखोर व्यापारियों का यह सिलसिला पूरे वर्ष अनवरत जारी रहता है। और राज्य सरकारें व खाद्य संरक्षा विभाग के अधिकारी यह सबकुछ आंखें मूंदे देखते रहते हैं।
दरअसल हमारे देश में मिलावटखोरी तथा रासायनिक अथवा सिंथेटिक दूध या फिर अन्य मिलावटी या नक़ली खाद्य सामग्री बेचने या बनाने के विरुद्ध किसी विशेष सज़ा का प्रावधान नहीं है। यह स्थिति भी मिलावटख़ोर  व्यापारियों के हौसले बढ़ाती है। जबकि हक़ीक़त में यह धंधा सुनियोजित ढंग से तथा लालचवश पैसा कमाने हेतु किया वाला एक ऐसा अपराध है जिससे कि आम आदमी अपनी जान से हाथ भी धो बैठता है। परंतु हमारे देश में इस प्रकार के अपराधी पहले तो पकड़े ही नहीं जाते और यदि पकड़े भी गए तो संबंधित विभाग के अधिकारियों व पुलिस वालों को ‘ले-देकर’ छूट जाते हैं। और यदि मामला मीडिया के माध्यम से कुछ ज़्यादा ही चर्चा में आ जाए तो भी आरोपी के विरुद्ध ऐसे हल्के-फुल्के आरोप पत्र तैयार कर अदालत में पेश किए जाते है ताकि अपराधियों की जल्द ज़मानत भी हो जाए। और उनके विरुद्ध चलने वाला मुकद्दमा ज़्यादा दिनों तक ज़्यादा मज़बूती से न चल सके। परिणामस्वरूप साक्ष्य व गवाहों के अभाव में अदालत ऐसे अपराधियों को जल्द ही रिहा कर देती है और ऐसे अपराधी जेल से छूटने के बाद बेखौफ होकर पुन: इसी धंधे को आगे बढ़ाने में लग जाते हैं। जबकि चीन जैसे देश में ऐसे अपराधों के लिए स्थिति कुछ और ही है। कुछ वर्ष पूर्व चीन में दो ऐसे व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था जो मिलावटी दूध बनाने का धंधा करते थे। मात्र 6 महीने तक चले इस कारोबार में उन्हें गिरफ़तार कर लिया गया। और जुर्म साबित होते ही उन दोनों को फांसी पर लटका दिया गया। परिणामस्वरूप ऐसी सज़ा होने के बाद वहां दूध में मिलावटखोरी के समाचार दोबारा अब तक प्राप्त नहीं हुए।
भारत में भी ऐसे ही सख्त कानून बनाए जाने की तत्काल ज़रूरत है। हमारे देश की सरकारों का यह दायित्व है कि जनहित व जनस्वास्थय के मद्देनज़र वह सुनिश्चित करे कि आम लोगों तक पहुंचने वाला दूध शुद्ध,गुणकारी, स्वच्छ व प्राकृतिक है अथवा नहीं। इसके लिए बा$कायदा सरकार को दूध संबंधी एक नीति निर्धारित किए जाने की ज़रूरत है। कितना दु:खद विषय है कि दूध व दही की नदियां बहने का दावा करने वाले इसी देश में जहां कभी एक गिलास दूध पीकर आदमी स्वयं को संतुष्ट व हृष्ट-पुष्ट महसूस करने लगता था वहीं अब वही व्यक्ति दूध का गिलास हाथ में आते ही उसी दूध के विषय में केवल अविश्वास व भय के चलते न जाने कैसी-कैसी बातें सोचने लगता है। यदि दूध में मिलावटखोरी व नकली व रासायनिक दूध के अत्पादन का सिलसिला शीघ्र बंद न हुआ तो कोई आश्चर्य नहीं कि देश की जनता खासतौर पर युवा वर्ग दूध की ओर से अपना मोह भंग कर बैठे। और साथ-साथ यह ख़ तरा भी बर$करार रहेगा कि ऐसे दूध का सेवन करने वाले छोटे बच्चे अपनी युवावस्था में पहुंचने तक कैसी-कैसी जानलेवा बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। लिहाज़ा ज़रूरत है समय रहते इस दुर्भाग्यपूर्ण मिलावटखोर व्यवस्था पर सख्त  अंकुश लगाने की।

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Nirmal Rani**निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों,
पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana
phone-09729229728

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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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