भारत में अल्पसंख्यकवाद और वाममार्गी बुद्धिजीवी

0
44

 

– डॉ अजय खेमरिया – 

 
रामचन्द्र गुहा और अन्य लेखकों को विरोध प्रदर्शन करते समय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया इसे लेकर वामपंथी विचारक और समर्थक सरकार को गरिया रहे है।इस बीच सोशल मिडिया पर ऐसे तमाम वीडियो जारी हुए है जिनमें नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने हिंसक रुख अख्तियार करते हुए पुलिसकर्मियों पर खूनी हमले किये है ।सरकारी सम्पति को नुकसान पहुचाया है।लेकिन किसी वामपंथी और जनवादी लेखक ने इस तरह के हिंसक कृत्यों की कोई निंदा नही की है।सवाल उठता है कि क्या देश का वाममार्गी बौद्धिक वर्ग आज सत्ताच्युत होते ही भारत के विरुद्ध खड़ा हो गया है ।जनवाद की आड़ में  आज भारत के राष्ट्रीय विचार से हद दर्जे तक खिलवाड़ किया जा रहा है। नागरिकता संशोधन कानून से भारत के 20 करोड़ से ज्यादा मुसलमान में से किसी एक को भी किसी प्रकार का कानूनी संकट नही आने वाला है यह वैधानिक रुप से तथ्य है और देश के प्रधानमंत्री ,गृह मंत्री संसद से लेकर हर लोकमंच पर स्पष्ट कर चुके है। इसके बाबजूद भारत की जनता खासकर मुस्लिम भाइयों को लगातार गुमराह किया जा रहा है।उन्हें उसी क्षद्म बौद्धिक नजरिये से भयादोहित किया जा रहा है जिसके जरिये 70 सालों से अल्पसंख्यकवाद की राजनीतिक दुकान को चलाया गया है।
 
हिटलर और नाजिज्म के उदय की डरावनी दलीले खड़ी की जा रही है लेकिन वास्तविकता यह है कि बौद्धिक रूप से असली नाजिज्म का अबलंबन तो भारत के वाममार्गी कर रहे है एक कपोल काल्पनिक झूठ को लोकजीवन में न्यस्त राजनीतिक स्वार्थों के लिये खड़ा कर दिया गया है।जो एनआरसी अभी प्रस्तावित ही नही है उसका पूरा खाका बनाकर पेश कर दिया गया है।इतिहास की भारत विरोधी ऋचाएँ गढ़ने वाले ये बुद्धिजीवी असल में अपनी असली औकात पर आ गए है उनकी अपनी नाजिज्म मानसकिता आज सबके सामने आ गई है जो किसी भी सूरत में दक्षिणपंथी या अन्य विचार को स्वीकार नहीं करती है।इसके लिये वह झूठ,हिंसा सबको जायज मानती है।बहुलतावाद के यह वकील सच मायनों में नाजिज्म के अलमबरदार है इन्हें भारत की संसदीय व्यवस्था  तक में भरोसा नही है वे इस बात को आज भी स्वीकार नही कर पा रहे है कि भारत की जनता ने एक विहित संवैधानिक प्रक्रिया के तहत नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री चुना है।वह आज भी मानने को तैयार नही है कि उनकी भारत विरोधी और अल्पसंख्यकवादी राजनीतिक दलीलों को नया भारत खारिज कर चुका है।वरन क्या कारण है कि रामचन्द्र गुहा, मुन्नवर राणा,हर्ष मन्दर, अरुणा राय,भाषा सिंह,जैसे लोग एक नकली नैरेटिव देश मे सेट करने की कोशिशें कर रहे है।क्यों भारत के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की बातों को सुना नही जा रहा है क्यों देश की सर्वोच्च  अदालत के रुख को समझने के लिये यह वर्ग तैयार नही है?हकीकत की इबारत असल में कुछ और  ही है -नए भारत का विचार  इस बड़े सत्ता पोषित तबके को उनके अस्तित्व पर चोट कर रहा है।
 
 
जिस भारतीय शासन और राजनीति का केंद्रीय तत्व ही अल्पसंख्यकवाद रहा हो आज वह तत्व तिरोहित हो चुका है।इसके साथ ही हिंदुत्व की बात और इसके संपुष्टि के कार्य जब देश के शीर्ष शासन में अब नियमित हो गए है तब इस डराने और दबाने की सियासत का पिंडदान तय है।इसी डर ने देश भर के वाममार्ग को आज खुद अंदर से भयादोहित कर रखा है अपनी दुकानों को बचाने की कवायद में यह बुद्धिजीवी भारत के मुसलमानों को एक उपकरणों की तरह प्रयोग कर रहे है।भारत में 70 साल बाद भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की राजनीति असल में एक सुनियोजित राजनीति ही है।2014 के बाद इस राजनीति का अंत असल में नए भारत का अभ्युदय ही है जिसमें सबका साथ सबका विश्वास अगर आकार लेगा तो कुछ लोग बौद्धिक विमर्श में बेरोजगार ही हो रहे है इस षडयंत्र को आज भारत के मुसलमानों को गहराई से समझने की जरूरत है।याद कीजिये यूपीए के कार्यकाल में एक बिल लाया गया था”साम्प्रदयिक लक्षित हिंसा निरोधक कानून”इसे हर्ष मन्दर जैसे जनवादी बुद्धिजीवियों ने सोनिया गांधी की सरपरस्ती में बनाया था।इस बिल का मसौदा हिंदुओ को घोषित रूप से साम्प्रदायिक रूप से हिंसक साबित करता था।इसके प्रावधान अंग्रेजी राज से भी कठोर होकर हिंदुओ औऱ मुसलमान को स्थाई रूप से प्रतिक्रियावादी बनाने वाले थे।तब भारत की बहुलता इसलिये खतरे में नही दिखी क्योंकि इसे बनाने वाले हर्ष मन्दर जैसे चेहरे थे।आज यही हर्ष मन्दर नागरिकता बिल पर खुद को मुसलमान घोषित करना क्यों चाहते थे इसे आसानी से समझा जा सकता है।पूरे देश में सिर्फ मुस्लिम बहुल इलाकों और शैक्षणिक संस्थानों में नफरत की राजनीति क्यों की जा रही है?सिर्फ इसलिये ताकि भारत की 20 करोड़ से ज्यादा की आबादी को सरकार के विरुद्ध हिंसक विरोध के लिये उकसाया जाए क्योंकि तीन तलाक ,राममंदिर और 370 पर इस मुल्क में जो भाईचारा और अमन चैन नए भारत ने दिखाया है उसने सत्ता पोषित विभाजनकारी ब्रिगेड को बेचैन कर रखा था।सरकार के स्तर पर भी इस मामले में संचार और सँवाद पर कुछ कमी रह गई है यह भी एक तथ्य है।गृह मंत्री के रूप में 370 और राममंदिर निर्णय पर अमित शाह ने जिस सख्ती और सतत निगरानी से देश मे अमन चैन बनाये रखा उसकी निरन्तरता इस मामले में चूक गई है।यह सुगठित और सुनियोजित विरोध असल में इन्ही सब मामलों में भारतीय लोकजीवन में दिखे अमन चैन का ही चकित कर देने वाला रुख था वामपंथ और  उसके साथी राजनीतिक दलों के लिये।इसलिये सरकार को अपना सँवाद कौशल फिर से दोहराए जाने की जरूरत है।
 
इस पूरे मामले में गांधी और संविधान की दुहाई दी जा रही है विरोध प्रदर्शन को तार्किक साबित करने के लिये लेकिन गांधी विचार में राष्ट्रीय सम्पति को नुकसान पहुँचाने की अनुमति किसने दी है यह भी विचार करने योग्य है।आज राजनीतिक रूप से भले केंद्र सरकार के विरुद्ध एक मोर्चा हमें नजर आ रहा है लेकिन इस मोर्चाबंदी का एक अदृश्य पहलू शायद अभी भी लोग देख नही पा रहे है वह नया भारत है।इस नए भारत को कांग्रेस नेता ए के एंटोनी 2014 में हुई पार्टी की पराजय पर पकड़ कर 10 जनपथ को बता चुके थे।एंटोनी कमेटी ने कांग्रेस की हार के लिये अल्पसंख्यकवाद को सबसे बड़ा फैक्टर बताया था, 2019 में भी जेएनयू जाकर राहुल गांधी ने इसी गलती को दोहराया था और अब उनकी बहन इंडिया गेट पर धरना देकर जामिया को समर्थन नही कर रही है बल्कि नए भारत से आंखे फेर रही है।इस तथ्य को अनदेखा कर की एक समावेशी कांग्रेस भारत के संसदीय लोकतंत्र के लिये बेहद अनिवार्यता है।कांग्रेस और वामपंथी मिलकर भारत के मुसलमानों को लोकजीवन से दरकिनार करने के पाप में जुटे है।यह उनका नकली बहुलतावाद है।बेहतर होगा भारत के मुस्लिम इसे जल्द से जल्द समझ लें।
 
_________________
 

परिचय –:

डॉ अजय खेमरिया

लेखक व् विचारक

मप्र के लगभग सभी प्रमुख अखबारों के संपादकीय विभाग में काम का अनुभव।

भोपाल के माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविधायल से पीजी डिग्री,राजनीति विज्ञान में पीएचडी।शासकीय महाविद्यालय में अध्यापन का अनुभव।

संपर्क – :  ajaikhemariya@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.
संपर्क न.: 9407135000

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here