भारतीय हैंडलूम : त्‍योहारों का मुख्‍य आकर्षण

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{ नीरेन्‍द्र देव }  नई दिल्‍ली के जनपथ में केन्‍द्रीय कपड़ा मंत्रालय के अंतर्गत हाल में शुरू किया गया हैंडलूम मार्केटिंग परिसर इन दिनों जीवंत हो उठा है। यहां एक पखवाड़े तक चलने वाली प्रदर्शनी लगी है। प्रदर्शनी में हैंडलूम के उत्कृष्ट वस्त्र प्रदर्शित किये जा रहे हैं। ‘हैंडलूम ऑफ इंडिया’ नामक इस प्रदर्शनी में पूरे देश से मनमोहक हैंडलूम कपड़े आए हैं। 09 अक्टूबर से 22 अक्टूबर, 2014 तक चलने वाली इस प्रदर्शनी के आकर्षण हैं- सूती एवं सिल्‍क साड़ियां, परिधान, फर्निशिंग्स, दुपट्टा एवं सलवार-सूट।

महाराष्‍ट्र के भंडारा के अपने चाचा के साथ स्‍टॉल लगाने वाले राहुल वरपात्रे कहते हैं- ‘‘यह अनूठा स्‍थान है और आदर्श जगह है क्‍योंकि यहां से थोड़ी ही दूरी पर राष्‍ट्रीय राजधानी का हृदय जनपथ है।’’

वास्‍तव में इस परिसर का निर्माण हथकरघा विकास आयुक्‍त के कार्यालय ने 42 करोड़ रुपए की लागत से किया है। मार्केटिंग परिसर बनाने के लिए भारत सरकार के शहरी विकास एवं गरीबी उपशमन मंत्रालय ने कपड़ा मंत्रालय को 1.779 एकड़ जमीन आवंटित की थी। यहां स्‍थाई दुकानों के अतिरिक्‍त दिल्‍ली हाट की तरह माहौल होता है जहां देश के विभिन्‍न भागों से बुनकरों को आमंत्रित कर उन्‍हें हैंडलूम उत्‍पाद बेचने के लिए कहा जाता है।

प्रदर्शनी में गुजरात के सुरेन्‍द्रनगर के संस्‍कृति सिल्‍क काउंटर पर दो लाख रुपए मूल्‍य की पटोला साड़ी का विशेष आकर्षण है। काउंटर के सहायक कहते हैं ‘‘इसको अंतिम रूप देने में दो बुनाई कारीगरों को कम से कम एक साल लगता है। यह ऊंची कीमत की हमारी साड़ियों में से एक है।’’

पटोला साड़ियां दोहरी बुनाई की साड़ियां होती हैं। यह साड़ी सामान्‍यत: गुजरात के पाटन जिले की विरासत समझे जाने वाले सिल्‍क के कपड़े से बनाई जाती हैं। काउंटर के सहायक कहते हैं ‘‘पटोला शब्‍द बहुवचन रूप में है, यह पतालू के नाम से भी जाना जाता है।’’ पटोला साड़ी की बुनाई वास्‍तव में पारिवारिक परंपरा में ही की जाती है। पटोला साड़ी बनाने के लिए धागे को इस तरह रखा जाता है कि धागों पर डाई का प्रतिकूल प्रभाव न हो। काउंटर सहायक बताते हैं ‘‘अनूठी विशेषता यह है कि धागे के बंडलों को डाई करने से पहले करीने से बांधा जाता है।’’ दो लाख रुपए की इस विशेष साड़ी (कृपया चित्र देखें) के अतिरिक्‍त काउंटर पर 14 हजार रुपए से लेकर 18 हजार रुपए मूल्‍य के उत्‍पाद भी हैं।

प्रदर्शनी में वाराणसी तथा आजमगढ़ जैसे स्‍थानों के बुनकरों की तैयार की हुई बनारसी साड़ियां भी हैं। आजमगढ़ के मुबारकपुर हैंडलूम के तनवीर अहमद कहते हैं ‘‘हमारे यहां 1500 रुपए से लेकर 18 हजार रुपए तक की साड़ियां हैं। इनकी काफी अच्‍छी मांग है। पुरस्‍कृत बुनकर जालिस अहमद की टीम द्वारा चलाए जा रहे एक अन्‍य काउंटर पर 35 हजार रुपए तक की बनारसी साड़ियां हैं।’’ काउंटर पर पी. शर्मा बताते हैं ‘‘बनारसी साड़ियों का जामवार संग्रह हमारा पुरस्‍कृत संग्रह है। ये साड़ियां दो महीने में बुनकर अंतिम रूप से तैयार हो जाती हैं।’’

वह कहते हैं ‘‘जालिस अहमद का बुनाई डिजाइन काफी मशहूर है। उन्‍हें 1990 में राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिला था। हमारे अनूठे संग्रहों में से एक है बुनाई मिश्रण की सामग्री। इसमें असम के मूगा और बनारस के कतन का सम्‍मिश्रण है। इसकी कीमत दस हजार रुपए से अधिक है।’’

बुनाई सम्‍मिश्रण के पीछे क्‍या सोच है?

वह बताते हैं ‘‘यह केवल एक खोज है। बनारस का सिल्‍क हथकरघा उद्योग काफी तेजी से और सस्‍ती लागत पर मशीनों से तैयार की जाने वाली बनारसी सिल्‍क साड़ियों से स्‍पर्धा के कारण घाटे में है। स्‍पर्धा का दूसरा कारण यह है कि साड़ियां सस्‍ते सिंथेटिक से बनाई जा रही हैं। हम इन समस्‍याओं का हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं।’’

प्रदर्शनी स्‍थल की पहली मंजिल पर जमदानी एवं उप्‍पदा साड़ियों का संग्रह है।

राजस्‍थान, कर्नाटक, छत्‍तीसगढ़, झारखंड, मध्‍य प्रदेश, बिहार, पश्‍चिम बंगाल तथा महाराष्‍ट्र जैसे राज्‍यों के कारीगरों द्वारा लगाए गए काउंटरों पर भी अच्‍छी भीड़ हो रही है।

पश्‍चिम बंगाल के बीरभूम जिले से आए मंगाराम रेशम काउंटर के गोविन्‍द बताते हैं कि हमारे काउंटर पर सबसे कम कीमत की साड़ी 550 रुपए की है। गोविन्‍द स्‍वयं बुनकर हैं, वह कहते हैं ‘‘बिक्री के लिहाज से जमदानी तथा मटका श्रेणी के उत्‍पाद काफी हैं।’’ वह कीमतों के बारे में ज्‍यादा बातचीत नहीं करना चाहते। वह चतुराई के साथ कहते हैं कि बंगाल के मटका और जमदानी में समय और मेहनत अधिक लगती है। लेकिन असल बात गुणवत्‍ता की है। वह कहते हैं ‘‘कपास और स्‍वर्ण धागों का मिश्रण है। यह बेहतरीन मलमल का कपड़ा होता है और इसे विचित्र तरीके से मटमैले और सफेद रंग के धागों से सुसज्‍जित किया जाता है।’’

पश्‍चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक अन्‍य काउंटर नबापल्‍ली के वाई. हुसैन बताते हैं कि ‘‘सात हजार रुपए मूल्‍य श्रेणी के नक्‍सी खाटा उत्‍पाद को लागों ने काफी पसंद किया है। इस वर्ष विश्‍व प्रसिद्ध बाउल गायकों की जीवन शैली पर आधारित साड़ियों का बाउल संग्रह काफी अच्‍छा कारोबार कर रहा है। इस श्रेणी में 12 हजार रुपए से लेकर 25 हजार रुपए तक की साड़ियां हैं।’’

राजस्‍थान में बनी साड़ियों तथा महाराष्‍ट्र की छपाई वाली साड़ियों और सलवार सूटों की बिक्री भी काफी हो रही है।

प्रदर्शनी सफल रही है और त्‍योहारी सीजन का लाभ उठाते हुए ग्राहक आ रहे हैं। कपड़ा मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि हैंडलूम हाउस स्‍थाई मार्केटिंग दुकानों के लिए बनाया गया है और इससे हैंडलूम एजेंसियां अपनी बिक्री के साथ-साथ उपभोक्‍ताओं के लिए अच्‍छी गुणवत्‍ता वाले हैंडलूम उत्‍पाद प्रस्‍तुत कर सकती हैं। एक अधिकारी ने बताया ‘‘हमारे प्रयासों के अच्‍छे परिणाम हुए हैं।’’

ऐसी प्रदर्शनी के आयोजन और बिक्री केन्‍द्र खोलने से देश में कपड़ा क्षेत्र को बढ़ावा देने की सरकार की गंभीरता दिखती है। इस साल की प्रदर्शनी में रांची का ‘बेरोजगार महिला कल्‍याण केन्‍द्र’ भी झारखंड के उत्‍पाद बेच रहा है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में सरकार नई कपड़ा नीति बनाने का काम कर रही है। देश में 23.77 लाख हथकरघों में 43.31 लाख लोग काम कर रहे हैं। हथकरघा क्षेत्र 11 प्रतिशत कपड़ा उत्‍पादन करता है और निर्यात आय में भी महत्‍वपूर्ण योगदान दे रहा है। डिजाइन के ख्‍याल से, कम मात्रा में उत्‍पाद तैयार करने तथा पर्यावरण संगत होने के कारण घरेलू और अंतर्राष्‍ट्रीय बाजार में हथकरघा क्षेत्र के उत्‍पादों की काफी मांग है। अधिकारी बताते है ‘‘घरेलू बाजार में हैंडलूम उत्‍पादों की काफी मांग है न केवल उपभोक्‍ता बल्‍कि खुदरा व्‍यापारी भी नियमित रूप से सही हैंडलूम उत्‍पादों की निरंतर सप्‍लाई पर भरोसा करते हैं।’’

हथकरघा तथा हस्‍तशिल्‍प के संवर्द्धन के लिए मोदी सरकार की बहुपक्षीय रणनीतियां इस प्रकार हैं:-

1.      सरकार उत्‍पादों को समकालीन फैशन के साथ जोड़ने पर जोर देते हुए हथकरघा तथा हस्‍तशिल्‍प को बढ़ावा देने की दिशा में नए खोजों के पक्ष में है। ई-मार्केटिंग प्रोत्‍साहन पर भी जोर दिया जा रहा है। इससे बिचौलियों की भूमिका खत्‍म होगी और बुनकरों का पारिश्रमिक बढ़ेगा।

2.     नई पीढ़ी के लोगों को हैंडलूम के प्रति आकर्षित करने के कदम उठाए जाएंगे। हस्‍तशिल्‍प और हैंडलूम ग्रामों, परंपरागत हैंडलूम बुनाई/हस्‍तकला कारीगर ग्राम को पर्यटन से जोड़कर प्रोत्‍साहन दिया जाएगा।

3.     टेक्‍सटाइल पार्क तथा इनक्‍यूबेशन केन्‍द्र स्‍थापित करना :

एकीकृत टेक्‍सटाइल पार्क तथा इनक्‍यूबेशन केन्‍द्रों के लिए योजना की समीक्षा की जा रही है और जरूरतों के अनुसार इसमें संशोधन किया जाएगा।

भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय ने घरेलू बिक्री संबंधी आयोजन कर, अंतर्राष्‍ट्रीय मेलों में भाग लेकर तथा क्रेता-विक्रेता सम्‍मेलन के जरिए हैंडलूम बुनाई के लिए बाजार उपलब्‍ध कराने के कदम समय-समय पर उठाए हैं।

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(Nirendra Dev is the Special Representative with The StatesmanNirendra Dev

Author and Senior Journalist

Author of ‘Modi to Moditva: An Uncensored Truth’ and other books, ‘Ayodhya: Battle for Peace’ (2011) ‘Godhra – A Journey To Mayhem’ (2004) and ‘The Talking Guns: North East India’ (2008).

Nirendra Dev is the Special Representative with The Statesman in New Delhi

www.bestofindiarestofindia.blogspot.com

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