भारतीय डाक: 160 वर्षों का सफरनामा

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{  कृष्ण कुमार यादव  } संचार सेवायें सदैव से मानवीय जीवन का अभिन्न अंग रही हैं और इनमें डाक सेवाओं का प्रमुख स्थान है। यथापि संचार क्रान्ति के चलते तमाम नवीन तकनीकों का आविष्कार हुआ, पर डाक विभाग ने  समय के साथ नव तकनीक के प्रवर्तन एवं अपनी सेवाओं में विविधता व उन्नयन द्वारा अपनी निरन्तरता कायम रखी है। भारतीय डाक विश्व का सर्वाधिक वृहद डाक नेटवर्क है। समाज के सभी पक्षों को एकीकृत करते हुये लगातार 160 वर्षों से कायम अपनी विश्वसनीयता के साथ भारतीय डाक एकमात्र ऐसा संगठन है जो प्रतिदिन समाज के हर व्यक्ति के दरवाजे पर दस्तक लगाता है। आज इसी नेटवर्क व साख के चलते तमाम अन्य संगठन भी अपने उत्पादों और सेवाओं के प्रचार-प्रसार व बिक्री हेतु डाक विभाग के साथ हाथ मिला रहे हैं।

भारतीय डाक विभाग वर्ष 2014 में अपनी सेवाओं के 160 गौरवशावली वर्ष पूरा कर चुका है। 1 अक्टूबर 1854 को लार्ड डलहौजी के काल में विभाग के रूप में स्थापित डाक विभाग समय के विभिन्न पगचिन्हों का गवाह रहा है। आधुनिक डाक विभाग की कार्यप्रणाली से पूर्व भारत में प्राचीन काल से ही समय-समय पर विभिन्न डाक प्रणालियाँ प्रचलित थीं। वैदिक व उत्तर वैदिक काल में किसी न किसी रूप में दूतों का संदेशवाहक के रूप में जिक्र मिलता है। महाकवि कालिदास ने अपने काव्य मेघदूत में संदेशवाहक के रूप में मेघों की कल्पना की थी। भारतीय राज व्यवस्था में मौर्य काल के उद्गम के साथ ही ‘कबूतर-डाक‘ का आरम्भ मिलता है, जो कि कुषाण काल के बाद तक प्रभावी रहा। भारत में व्यवस्थित डाक का प्रथम लिखित इतिहास जियाउद्दीन बरनी द्वारा अलाउद्दीन खिलजी (1296) के समय का प्राप्त होता है, जिसने सैन्य सम्बन्धी नियमित जानकारी हेतु ‘पैदल डाक‘ और ‘घुड़सवार डाक‘ व्यवस्था कायम की। मु0 बिन तुगलक के शासन काल (1325-51) में भी इस व्यवस्था के कायम रहने का जिक्र उत्तर अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता ने किया है। दिल्ली से दौलतगिरी राजधानी स्थानांतरित होने पर मु0 बिन तुगलक हेतु नियमित गंगा का जल पैदल और घुड़सवार डाक द्वारा ही ले जाया जाता था। शेरशाह सूरी (1541-45) ने अपने काल में डाक व्यवस्था को तीव्रता देने हेतु बंगाल से सिंध तक निर्मित सड़क किनारे एक निश्चित दूरी पर सरायों की व्यवस्था की, जहाँ पर दो घुड़सवार डाक को आगे ले जाने हेतु सदैव मुस्तैद रहते थे। मुगल सम्राट अकबर         (1556-1603) ने घुड़सवार डाक के साथ-साथ ‘ऊँट-डाक‘ का भी आरम्भ किया। पर ये सारी ‘शाही डाक‘ सेवा केवल सम्राट, उसके प्रमुख दरबारियों, पुलिस और सेना हेतु ही थी।  आम जनता से इनका कोई सरोकार नहीं था। शाही डाक सेवा के अलावा विभिन्न वर्गों की अपनी अलग-अलग डाक-सेवायें थीं। सम्पन्न सेठ-साहूकारों की अपनी ‘महजनी डाक सेवा‘ थी तो मारवाड़ (जोधपुर) में मिर्धा जाति के कतिपय लोगों द्वारा ‘मिर्धा डाक‘, चिल्का डाक एवं मेवाड़, मालवा आदि में ब्राह्मणों द्वारा चलायी गयी ‘ब्राह्मणी डाक‘ सेवा थी।

अंग्रेजों के भारत आगमन के साथ ही ईस्ट इंडिया कम्पनी ने सन् 1688 में मुंबई में एक डाकघर खोलकर अपनी पृथक डाक सेवा का श्रीगणेश कर डाला। इस कंपनी डाक सेवा के वाहक भी डाक धावक या घुड़सवार ही थे। सन् 1766 में राबर्ट क्लाइव ने भी इस संबंध में कुछ प्रयास किए और 27 मार्च 1776 को बंगाल में सर्वप्रथम नियमित डाक सेवा का आरम्भ किया।  इस हेतु जमींदारों को ‘डाक धावक‘ उपलब्ध कराने हेतु कहा गया और इस प्रकार ‘जमींदारी डाक‘ का आरम्भ हुआ।  पर सही अर्थों में आधुनिक डाक सेवा का आरम्भ वारेन हेस्टिंग्ज ने किया। 31 मार्च 1774 को कलकत्ता जीपीओ के गठन और पोस्टमास्टर जनरल की नियुक्ति पश्चात प्रथम बार प्रति सौ मील की दूरी हेतु दो आने के मूल्य वाले तांबे के टिकट सिक्के शुल्क के रूप में निर्धारित किये गये।  इसी दौरान प्रथम डाकिया की भी नियुक्ति हुई। वारेन हेस्टिंगस द्वारा संचालित व्यवस्था मात्र देश के मुख्य नगरों तक ही सीमित थी, अतः एक समानांतर ‘जिला डाक सेवा‘ का आविर्भाव हुआ।  इसका उद्देश्य जिले के मुख्यालय को जिले के शेष नगरों से जोड़ना था।  इसके व्यय का प्रबंध जमीदारों पर और नियंत्रण जिले के अधिकारियों द्वारा होता था।  इस व्यवस्था में पत्रों का वितरण सिपाही व चौकीदारों द्वारा होता जो अपनी मर्जी से पत्र शुल्क वसूलते।

वर्ष 1837 में लागू ‘प्रथम डाकघर अधिनियम‘ ने डाक सेवाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाये। इसने सभी प्राइवेट डाक सेवाओं को समाप्त कर सरकार को डाक व्यवस्था पर अनन्य एकाधिकार दे दिया। आधुनिक डाक सेवाओं के इतिहास में पहली बार नियमित पोस्टमास्टर की नियुक्ति आरम्भ हुयी। इससे पूर्व जिले के अन्य वरिष्ठ अधिकारी ही अपने कर्तव्यों के साथ-साथ पोस्टमास्टर का भी दायित्व निर्वाह करते थे। इस अधिनियम के तहत ही प्रथमतः जनता हेतु डाक सेवायें खोली गईं और 1 अक्टूबर 1837 को प्रथम ‘जनता डाकघर‘ खोला गया।
वर्ष 1854 कई कारणों से भारतीय डाक के इतिहास में अविस्मरणीय रहेगा। प्रथमतः, लार्ड डलहौजी द्वारा 1 अक्टूबर 1854 को डाक विभाग को एक महानिदेशक श्री एल0पी0ए0बी0रिडेल के अधीन लाना। द्वितीयतः, राष्ट्रीय स्तर पर प्रथमतः 1 अक्टूबर 1854 को डाक-टिकट जारी करना। यद्यपि इससे पूर्व 1852 में डाक टिकट जारी करके भारत एशिया में डाक टिकट जारी करने वाला प्रथम राष्ट्र बना था, पर वह मात्र सिंध प्रांत हेतु ही था। तृतीयतः, डाक टिकट के परिचय के साथ ही बिना दूरी का ध्यान रखे ‘एक समान डाक दर‘ को लागू करना। चतुर्थतः, ‘अखिल भारतीय डाक सेवा‘ का गठन। पंचम, सर्वप्रथम ‘लेटर बाक्स’ की स्थापना। षष्टम, पोस्टमास्टर जनरल को जीपीओ के कार्यक्षेत्र से मुक्त कर जीपीओ हेतु स्वतंत्र स्थापना की गयी।

सन् 1854 के बाद डाक विभाग द्वारा विभिन्न सेवाओं का आरम्भ हुआ- फील्ड पोस्ट आफिस (1856), लिफाफा (1856), अन्तर्देशीय पत्र (1857), रेलवे छँटाई सेवा (1863), शाखा डाकघर (1866), पंजीकृत लिफाफा (1866), पोस्ट बैग (1866), चलित डाकघर (1867), आर.एल.ओ. (1872), मुद्रित लिफाफा (1873), पंजीकृत पत्र पावती (1877), मूल्यदेय पार्सल सेवा (1877), बीमा पत्र (1878), पोस्टकार्ड (1879), मनीऑर्डर (1880), डाकघर बचत बैंक (1882), टेलीग्राम संदेश (1883), डाक जीवन बीमा (1884), टेलीग्राम मनीअॅार्डर (1880), सैन्य पेंशन का वितरण (1890), सर्टिफिकेट आफ पोस्ंिटग (1897), एयर मेल सेवा (1911), नकद प्रमाण पत्र (1917), व्यापारिक जवाबी पत्र (1932), राजस्व टिकट बिक्री  (1934), इंडियन पोस्टल आर्डर (1935) इत्यादि। आजादी पश्चात तो भारतीय डाक ने तमाम नये आयाम छुये। भारतीय डाक को यह गौरव प्राप्त है कि अगर 1852 में तत्कालीन भारत के एक प्रांत सिंध ने एशिया का प्रथम डाक टिकट जारी कर इतिहास दर्ज कराया तो 21 फरवरी 1911 को इलाहाबाद से नैनी के मध्य विश्व की प्रथम एयर मेल सेवा आरम्भ करने का श्रेय भी भारत के ही खाते में दर्ज है। राष्ट्रमण्डल देशों मंे भारत पहला देश है जिसने सन् 1929 में हवाई डाक टिकट का विशेष सेट जारी किया।

भारत एक कृषि प्रधान एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला देश है, जहाँ सेवाओं को अन्तिम व्यक्ति तक पहुंचाना ही सरकार की प्राथमिकता है। डाक विभाग ने प्रत्येक नागरिक के जीवन को प्रभावित किया है, चाहे वह डाक, बैंकिंग, जीवन बीमा और धनांतरण के माध्यम से हो अथवा रिटेल सेवाओं के माध्यम से। 31 मार्च 2012 की स्थिति के अनुसार देश में इसका 1,54,822 डाकघरों का नेटवर्क है जो कि विश्व का सबसे बड़ा नेटवर्क है। इनमंे से 1,39,086 डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित है। विभाग का प्रमुख कार्यकलाप डाक की प्रोसेसिंग, पारेषण और इसका वितरण करना है। 5.62 लाख से अधिक पत्र-पेटिकाओं से डाक एकत्र की जाती है जिसे डाक कार्यालयों के नेटवर्क द्वारा प्रोसेस किया जाता है तथा इसे रेल, सड़क और वायु मार्ग से देश भर में प्रेषिती तक पहुँचाया जाता है। इसी प्रकार ई-एमओ, घर-घर धन प्रेषण सेवा, आईएमओ तत्काल मनीआर्डर जिसके जरिए धन तत्काल पहुँच जाता है तथा मोबाइल से मोबाइल मनीआर्डर के माध्यम से प्रेषण से पाने वाले के पास धन प्रेषित किया जाता है। इस प्रकार डाकघर एक देशव्यापी सेवा प्रदाता के रूप में कार्यरत है।

भारतीय डाक ने समाज में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए लोगों के कारोबार और वित्तीय आवश्यकताओं के अनुरूप अनेक व्यावसायिक एवं वित्तीय कार्यकालापों को प्रारंभ किया। विभाग ने नए अवसरों का पता लगाने तथा नई सेवाओं को विकसित करने में अपने को संलग्न किया। व्यवसायिक प्रक्रियाओं को पुनः व्यवस्थित करने तथा प्रचालनात्मक कार्यकुशलता पर विशेष ध्यान दिया गया है। आर्थिक उदारीकरण के इस युग में डाकघर सामाजिक लाभ भुगतान, मनरेगा भुगतान, आदि जैसे अपने सामाजिक दायित्वों तथा वाणिज्यिक और प्रतिस्पर्धी वातावरण की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार है। नेटवर्क और आईटी से युक्त डाकघर अपने देशव्यापी नेटवर्क के माध्यम से देश के कोने-कोने को कवर करते हुए एक प्रत्यक्ष लाभ अंतरण प्रदाता के रूप में स्थापित हो रहा है। जहाँ डाक विभाग एक ऐसा विशालतम नेटवर्क बना रहा जिसने अपने सेवाओं के साथ बहुत से लोगों के जीवन को प्रभावित किया, वहीं विश्वसनीयता और गति सेवा की महत्वपूर्ण विशेषताएं बन गईं। वैल्यू फार मनी, बहुविध वितरण चैनल, घर-घर तक सेवा की पहुँंच, ग्राहक का आराम महत्वपूर्ण हो गए। भारतीय डाक आईटी आधुनिकीकरण परियोजना-2012 डाक सेवाओं को प्रौद्योगिकी सम्पन्न, स्वावलम्बी, मार्केट लीडर में तब्दील करने हेतु उभर कर सामने आई। इसके द्वारा जहाँ डाकघरांे में कोर बैंकिंग लागू की जा रही है, वहीं आईटी परियोजना द्वारा देश के दूरस्थ और अंतिम छोर तक प्रौद्योगिकी के लाभ पहुँचा कर शहरी व ग्रामीण के बीच अंतर को कम किए जाने की भी आशा है।

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krishna kumar yadavपरिचय : 

कृष्ण कुमार यादव
निदेशक डाक सेवाएं

इलाहाबाद परिक्षेत्र, इलाहाबाद (उ.प्र.)-211001
मो. 8004928599

kkyadav.y@rediffmail.com
http://dakbabu.blogspot.in/
https://www.facebook.com/krishnakumaryadav1977

*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his  own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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22 COMMENTS

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