भारतीय चिकित्सा क्षेत्र को कलंकित करते यह ‘धन लोभी’**

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निर्मल रानी**,,

टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले तमाम टीवी सीरियल व रियलिटी शो किसी न किसी कारणवश लोकप्रियता की अपनी तमाम हदों को पार कर चुके हैं। परंतु आमिर खान द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला सामाजिक समस्याओं से जुड़ा हुआ सत्यमेव जयते संभवतः पहला ऐसा टीवी रियलिटी शो है जो इस समय लोकप्रियता के चरम पर है। चूंकि इसमें भारतीय समाज से सीधे तौर पर जुड़ी तमाम सच्चाईयों को उजागर किया जा रहा है, इसलिए समाज का प्रत्येक नागरिक इस रियलिटी शो को देखने का प्रयास कर रहा है।

इस रियलिटी शो का चौथा एपिसोड भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं की भयावह हकीकत को उजागर करने वाला रहा। पूरे देश ने देखा कि डॉक्टर जैसे पुण्य एवं परोपकारी पेशे से जुड़े तमाम लोग चंद पैसों की खातिर किस प्रकार अपने उन मरीज़ों की जान से खिलवाड़ कर बैठते हैं, जोकि अपने डॉक्टर को भगवान या किसी देवता से कम नहीं समझते। आमिर खान ने बड़े ही तथ्यात्मक ढंग से इस एपिसोड में यह समझा पाने में सफलता हासिल की है कि किस प्रकार एक डॉक्टर अन्य डॉक्टरों से, मेडिकल स्टोर से तथा पैथलिजिस्ट या एक्सरे आदि करने वालों से तथा दवा निर्माता कंपनियों के प्रतिनिधियों से उपहार, रिश्वत अथवा कमीशन लिए जाने की आस लगाए बैठा होता है।

हालांकि सत्यमेव जयते में आमिर खान जैसे फिल्मी सितारे द्वारा इस प्रकार के काले कारोबार से पर्दा हटाए जाने के बाद देश का आम नागरिक विचलित तो ज़रूर हुआ। परंतु हकीकत तो यह है कि आज दुर्भाग्यवश इस प्रकार की चिकित्सा संबंधी काली करतूतें न तो कोई नई बातें रह गई हैं न ही यह किसी एक क्षेत्र, राज्य अथवा वर्ग से जुड़े लोगों की दास्तान है। बल्कि पूरा देश इस समय चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े डॉक्टर व ड्रग माफियाओं के काले कारनामों से बुरी तरह जूझ रहा है। हालत तो ऐसी हो गई है कि यदि मरीज़ अपने-आप में इतना जागरुक नहीं है या उसके परिवार के सदस्य अपने मरीज़ को लेकर कोई सही निर्णय नहीं ले पा रहे हैं तो कोई आश्चर्य नहीं कि धन लोभी डॉक्टर केवल पैसों की लालच में अपने मरीज़ की क्या दुर्गति बना डालें। क्योंकि ऐसे डॉक्टरों के लिए अब मरीज़ का स्वास्थ्य या डॉक्टर के प्रति उसका विश्वास कोई मायने नहीं रखता। बजाए इसके धनार्जन करना ही ऐसे धन लोभी डॉक्टरों की प्राथमिकता रह गई है। अब इसके लिए भले ही मरीज़ को लूला-लंगड़ा या अपाहिज ही क्यों न बनाना पड़ जाए या फिर मरीज़ अपनी जान से हाथ ही क्यों न धो बैठे। आमिर खान के सत्यमेव जयते कार्यक्रम में चिकित्सा जगत से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने सच ही कहा था कि सुनामी से अधिक मौतें भारत में चिकित्सा संबंधी अनियमितताओं के चलते आए दिन होती रहती हैं। परंतु इस ओर गंभीरता से ध्यान देने वाला कोई भी नहीं है।

चिकित्सा जगत से जुड़ी घोर लापरवाही का एक मामला मेरी नज़र से भी गुज़रा। उस मामले की पड़ताल करने से यह पता लगा कि मुख्य मार्गों पर दुर्घटनाग्रस्त होने वाले घायल लोगों को प्राईवेट अस्पतालों में ले जाने के लिए किस प्रकार गश्ती पुलिस व निजी नर्सिंग होम के मालिक डॉक्टरों के बीच बड़े पैमाने पर सांठ-गांठ हो चुकी है। और यह भी कि फटाफट अधिक से अधिक पैसा कमाने की लालच में डॉक्टर किस प्रकार हैवानियत की हदों को पार करने की कोशिश कर जाते हैं।

हुआ यह कि मेरा एक परिचित युवक जिसका घर का नाम बिट्टु है कुछ समय पूर्व एक विवाह समारोह में शामिल होने हेतु जगाधरी से बिलासपुर की ओर जा रहा था। सर्दी का समय, धुंध भरी सडक़ें और देर रात का सफर। बिट्टू अपनी बाईक पर सवार अपने एक और साथी को पीछे बिठाए हुए विवाह स्थल की ओर बढ़ ही रहा था कि अचानक धुंध में उसकी मोटरसाईकल एक ट्रैक्टर-ट्राली से टकरा कर सड़क के किनारे जा पहुंची। बिट्टु व उसका साथी दोनों बेहोश हो गए। कई घंटे तक यह दोनों अचेत अवस्था में सड़क के किनारे गड्ढे में पड़े रहे। काफी देर के बाद इन्हें होश आया तो बिट्टु की टांग की मुख्य हड्डी टूट चुकी थी। कुछ समय बाद घायल अवस्था में उसके साथी ने सड़क पर आकर किसी वाहन को रोकना चाहा। इत्तेफाक से गश्त करती हुई पुलिस की जिप्सी उधर से गुज़री और उसमें मौजूद पुलिसकर्मियों ने घायलों के साथ हमदर्दी दिखाते हुए उन्हें सहयोग करने की कोशिश शुरु की।

पुलिस कर्मियों ने बुरी तरह घायल बिट्टू को जिप्सी पर लादा। बिट्टु ने पुलिस वालों को जगाधरी के सरकारी अस्पताल में ले जाने को कहा। परंतु पुलिसकर्मी किसी हड्डी विशेषज्ञ के निजी अस्पताल में चलने की बात करते रहे। आखिरकार यह पुलिस जिप्सी जगाधरी के एक निजी अस्पताल के द्वार पर जा पहुंची। डॉक्टर आया उसने मरीज़ की हालत देखते ही उसका पैर काटे जाने तथा पचास हज़ार रुपया जमा कराए जाने का फरमान जारी कर दिया। यह खबर सुनकर बिट्टू विचलित हो उठा। वह युवक किसी भी कीमत पर अपना पैर काटे जाने के पक्ष में नहीं था। परंतु उससे हमदर्दी जताने आए पुलिसकर्मी डॉक्टर की बात से अपनी बात मिलाते हुए बिट्टू को डॉक्टर की सलाह मानने का उपदेश देने लगे। परंतु वह डॉक्टर या पुलिस वालों की बातों को अनसुनी कर पुनः सिविल अस्पताल ले जाने की विनती करने लगा।

अब पुलिस जिप्सी उस निजी अस्पताल से निकल कर सरकारी अस्पताल की ओर जाने के बजाए दूसरे हड्डी विशेषज्ञ के निजी अस्पताल में जा पहुंची। कितने आश्चर्य की बात है कि उस नर्सिंग होम में भी बिना डॉक्टर की सलाह लिए हुए ड्यूटी पर मौजूद रिसेप्शनिस्ट ने भी वही कुछ कह डाला जोकि डॉक्टर को कहना चाहिए था। यानी उसने भी मरीज़ की टांग काटने तथा इस शल्य चिकित्सा पर पचास हज़ार रुपये लगने की बात कही। अब पुलिस वालों ने पुनः बिट्टु पर आप्रेशन के लिए राज़ी होने का दबाव बनाना शुरु कर दिया। परंतु अपनी टांग न कटवाए जाने का दृढ़ संकल्प कर चुका वह घायल युवक पुलिस या डॉक्टर किसी के दबाव या झांसे में आने को तैयार नहीं हुआ।

अब एक बार फिर बिट्टु ने पुलिस वालों से उसे सिविल अस्पताल ले जाने को कहा। परंतु इस बार फिर पुलिस की जिप्सी सिविल अस्पताल के बजाए तीसरे निजी नर्सिंग होम में पहुंच गई। कितने आश्चर्य की बात है कि यहां भी हूबहू वही कहानी अस्पताल में मौजूद कर्मियों द्वारा दोहराई गई। अर्थात् डॉक्टर के देखे बिना उपस्थित स्टाफ ने इतना बड़ा निर्णय सुना डाला कि मरीज़ का पैर काटा जाएगा और पचास हज़ार रुपये जमा करने होंगे। यहां भी बिट्टु पहले की ही तरह अड़ गया तथा अब वह पुलिस वालों से सिर्फ और सिर्फ सिविल अस्पताल ले जाने की गुज़ारिश करने लगा।

आखिरकार मायूस गश्ती पुलिस वालों की यह जिप्सी उसे जगाधरी के सिविल अस्पताल लेकर पहुंच गई और यहां उसे उतारकर अपने लूट मिशन से असफल होकर चलती बनी। सिविल अस्पताल में बिट्टू का इलाज शरु हुआ तथा वहां भी यह बताया गया कि चूंकि दुर्घटना हुए कई घंटे बीत चुके हैं और ज़ख्म गंभीर हो गया है अतः इलाज सिर्फ पीजीआई चंडीगढ़ में कराए जाने की आवश्यकता है। यह कहकर सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने उसकी प्राथमिक चिकित्सा स्तर की पट्टी आदि कर उसे पीजीआई रैफर कर दिया।

पीजीआई पहुंचने पर वहां के डॉक्टरों ने भी इस केस को गंभीर दुर्घटना का केस मानते हुए पहली सलाह तो यही दी कि उसका पैर काट दिए जाने में ही उसकी भलाई है। परंतु मरीज़ की दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे डॉक्टर भी उसकी इच्छा के अनुसार इलाज करने को राज़ी हो गए। पीजीआई के सीनियर हड्डी विशेषज्ञ ने मरीज़ के समक्ष एक शर्त यह रखी कि यदि पीजीआई में किए गए बड़े आप्रेशन के बाद किसी अन्य अस्पताल में कोई हड्डी विशेषज्ञ कम से कम 6 महीने तक उसकी व्यक्तिगत रूप से निगरानी कर सके तो संभवतः वह ठीक हो जाएगा और अपने ही पैरों पर पुनः चलने लगेगा। आखिरकार वही हुआ।
पीजीआई के वरिष्ठ हड्डी विशेषज्ञों की टीम ने उसकी टांग का आप्रेशन कर उसकी हड्डियों को जोड़ा। कुछ दिन पीजीआई में रखकर उसका इलाज किया तथा उसके कहने पर चिकित्सक की निगरानी हेतु उसे महर्षि मार्कन्डेय कॉलेज, मुलाना भेज दिया। आखिरकार 6 महीने की मुलाना अस्पताल के होनहार डॉक्टरों की देखरेख में तथा पीजीआई के वरिष्ठ डॉक्टरों के संरक्षण में चलते इलाज के दम पर वह नवयुवक आज अपने प्राकृतिक पैरों पर खड़ा हुआ है।

निश्चित रूप से यह बिट्टु की दृढ़ इच्छा शक्ति थी जिसने उसके पैर को कटने से बचा लिया अन्यथा चिकित्सा व्यवस्था से जुड़े धन लोभियों ने उसे अपाहिज करने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं उठा रखी थी। ऐसे डॉक्टर का रूप धारण किए राक्षस रूपी धन लोभियों को पीजीआई के डॉक्टरों तथा इस सेवा से जुड़े फरिश्तारूपी उन डॉक्टरों से सीख लेनी चाहिए जो इस पेशे के मान-सममान तथा विश्वास को बरकरार रखे हुए हैं। अन्यथा यदि डॉक्टरी जैसे पवित्र पेशे में आने के बावजूद उन्हेें धनार्जन को ही अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य समझना है तो ऐसे डॉक्टर को किसी अन्य व्यापार क्षेत्र में अपना भाग्य आज़माना चाहिए जहां दिन-रात धन वर्षा होती हो। क्योंकि अपने चंद पैसों के लिए किसी की जान अथवा जीवन से खिलवाड़ करने का अधिकार इन्हें हरगिज़ प्राप्त नहीं है।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer)
1622/11 Mahavir Nagar
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Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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