भाजपा: एक कदम आगे तो दो कदम पीछे

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lkjs{ निर्मल रानी ** }
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की वर्तमान केंद्र सरकार के शासन के दौरान बढ़ी बेतहाशा मंहगाई तथा कई अभूतपूर्व घोटालों से त्रस्त जनता की नाराज़गी से अत्यधिक उत्साहित भारतीय जनता पार्टी बिल्ली के भाग से छीका टूटने की प्रतीक्षा में है। भाजपा को विश्वास हो चला है कि देश के दूसरे नंबर के सबसे बड़े राजनैतिक दल होने के नाते देश के मतदाताओं के समक्ष परिवर्तन के नाम पर उसे या उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगियों को चुनने के सिवाए और कोई दूसरा चारा नहीं है। यह बात और है कि देश में अब की बार लोकसभा चुनाव लडऩे जा रही आम आदमी पार्टी ने देश के जागरूक मतदाताओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उन्हें गत् 6 दशकों से होता आ रहा सत्ता परिवर्तन ही चाहिए अथवा मतदाता सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ व्यवस्था परिवर्तन भी चाहते हैं? अपने अत्यधिक आत्मविश्वास एवं अहंकार मेें चकनाचूर भारतीय जनता पार्टी के नेता हालांकि आप के विषय में कुछ कहने अथवा प्रतिक्रिया दने से कतराते रहते हैं। परंतु सच पूछिए तो इसी आम आदमी पार्टी ने नरेंद्र मोदी सहित पार्टी के आला नेताओं की नीदें हराम कर दी हैं। उधर आत्मविश्वास की शिकार भाजपा जल्दबाज़ी व हड़बड़ाहट में कई ऐसे $फैसले लेती देखी जा रही है जिसे देखकर ऐसा लगता है कि पार्टी यदि इसी दिशा में एक $कदम आगे बढ़ाती है तो उसी समय उसी विषय अथवा मुद्दे पर अपने दो $कदम पीछे भी खींच लेती है। पार्टी के ऐसे $फैसलों से सा$फतौर पर जनता में यह संदेश जा रहा है कि पार्टी व इसके नीतिनिर्धारक नेतागण भ्रमित तथा व्याकुल हैं। इतना ही नहीं बल्कि ऐसे विरोधाभासी $कदमों से मतदाताओं में पार्टी के $फैसले लेने की क्षमता को लेकर भी संदेह पैदा हो रहा है।
उदाहरण के तौर पर पिदले दिनों नरेंद्र मोदी के वाराणसी दौरे के समय वहां मौजूद मोदी समर्थकों द्वारा हर-हर मोदी के नारे लगाए गए। इस नारे से युक्त पोस्टर व बैनर बनारस की गलियों में चिपका दिए गए। नरेंद्र मोदी व उनके समर्थक नेता संभवत: इस नारे को सुनकर प्रसन्न व गद्गद् नज़र आ रहे थे। परंतु ह$की$कत तो यही है कि इस हर हर शब्द का प्रयोग $खासतौर पर भगवान शंकर की स्तुति में लगने वाले जयघोष ‘हर हर महादेव’ के रूप में किया जाता है। गोया उत्साही मोदी समर्थकों द्वारा हर-हर महादेव के स्थान पर ही हर हर मोदी का नारा लगाया जाने लगा। आ$िखरकार शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को इस नारे पर नाराज़गी जतानी पड़ी। बात शंकराचार्य के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयं संघ के प्रमुख मोहन भागवत तक पहुंची। संघ प्रमुख व शंकराचार्य के हस्तक्षेप व उनकी आपत्ति के बाद कहीं जाकर नरेंद्र मोदी व उनके समर्थकों की नींदें टूटीं। और मोदी ने टवीट् कर अपने समथर््ाकों को हर हर मोदी का नारा लगाने से परहेज़ करने की सलाह दी। परंतु नरेंद्र मोदी की सलाह के बावजूद भाजपा के सुशील मोदी व विजयवर्गीय जैसे नेताओं ने शंकराचार्य को ही अपमानित करते हुए उनसे यह कहने का साहस ज़रूर जुटा लिया कि हरहर महादेव आप (शंकराचार्य)का पेटेंट नहीं है। इन नेताओं के कहने का सीधा सा तात्पर्य यही है कि हर हर मोदी का नारा लगाया जा सकता है।
इसी प्रकार नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी के संगठनात्मक ढांचे पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय नारों में भी अपने नाम को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। पूरे देश में मुख्य मार्गों पर जो बोर्ड लगाए गए हैं उनमें लिखा गया नारा इस प्रकार है। बहुत हो चुका भ्रष्टाचार अब की बार मोदी सरकार। चुनाव अभियान शुरू होने से पहले ही इस प्रकार के बोर्ड पूरे देश में लगाए जा चुके हैं। पिछले दिनों जब पार्टी के शीर्ष नेताओं की इस नारे के संबंध में आंखें खुली तो उन्हें यह महसूस हुआ कि इस नारे का अर्थ तो यह है कि नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व पार्टी से भी ऊंचा नज़र आने लगेगा। गोया कांग्रेस पार्टी की ही तरह व्यक्ति का रुतबा संगठन से भी ऊपर हो जाएगा। इसी पसोपेश में पडक़र राजनाथ सिहं ने कई वरिष्ठ नेताओं के कहने पर अचानक इस नारे को बदलने की घोषणा कर दी। $खबर है कि राजनाथ की इस घोषणा के बाद मोदी समर्थक आब की बार मोदी सरकार के नारे पर ही अड़े हुए हैं। जबकि पार्टी अध्यक्ष इस नारे को वापस लिए जाने की घोषणा कर चुके हैें। कुछ ऐसा ही दृश्य लाल कृष्ण अडवाणी की गांधीनगर लोकसभा सीट को लेकर देखा गया। पार्टी द्वारा पहले गांधी नगर से लाल कृष्ण अडवाणी का नाम ही गुजरात राज्य भाजपा इकाई द्वारा पार्टी के केंद्रीय कार्यालय को नहीं भेजा गया।  इस बात से आहत अडवाणी ने जब भोपाल से चुनाव लडऩे का मन बनाया तब पार्टी ने उन्हें गांधी नगर से ही चुनाव लडऩे हेतु बाध्य किया। यही नहीं बल्कि अडवाणी समर्थकों द्वारा भोपाल में उनके समर्थन में जो पोस्टर,बैनर लगाए गए थे वे भी संघ कार्यकर्ताओं द्वारा उतार दिए गए। गोया अडवाणी को बड़े ही अपमानजनक तरी$के से गांधी नगर से चुनाव लडऩे की पार्टी द्वारा अनुमति दी गई।
कर्नाटक में श्रीराम सेना का विवादित नेता प्रमोद मुतालिक जिस पर 45 अपराधिक मु$कद्दमे कर्नाटक व अन्य स्थानों पर दर्ज हैं, को भाजपा ने बड़े ही उत्साह के साथ अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। पार्टी का सदस्य बनने के चंद घंटों के भीतर ही पूरे देश में इस अपराधी व्यक्ति को पार्टी में शामिल करने के $फैसले की घोर निंदा की जाने लगी। $गौरतलब है कि प्रमोद मुतालिक व इसके उग्र संगठन के सदस्यों पर महिलाओं के साथ मारपीट व दुव्र्यवहार करने के कई आरोप हैं। कुछ वर्ष पूर्व एक पब में बैठी महिलाओं के साथ मारपीट करते हुए इसके संगठन के कार्यकर्ता का$फी चर्चित हुए थे। इस घटना को लेकर पूरे देश में मुतालिक व उसके संगठन श्री राम सेना के विरुद्ध का$फी आक्रोश फैल गया था। जब प्रमोद मुतालिक को भाजपा में शामिल करते ही राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के इस $फैसले की आलोचना होने लगी तो उस आलोचना से घबरा कर पार्टी ने मुतालिक को मात्र 4-5 घंटे के भीतर ही पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया। उधर बड़बोले व बदतमीज़ स्वभाव के मुतालिक ने भाजपा में शामिल होने के कुछ ही घंटोंं के बाद अपने निष्कासन की $खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए यहां तक कह डाला कि मैंने पब में लड़कियों की पिटाई ही तो की थी उनका बलात्कार तो नहीं किया था। उसके इस बयान से भी समझा जा सकता है कि भाजपा महज़ अपने न$फे-नु$कसान के लिए कैसे-कैसे $फैसले ले रही है और किस प्रकार अपने आगे बढ़े $कदमों को वापस पीछे खींच रही है।
टिकट बंटवारे को लेकर भी राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में बड़े पैमाने पर विघटन होते देखा जा रहा है। लाल कृष्ण अडवाणी के साथ जो बर्ताव पार्टी द्वारा संघ के निर्देश पर किया जा रहा है वह तो देश देख ही रहा है साथ-साथ जसवंत सिंह,हरेन पाठक,लालमुनि चौबे,नवजोत सिंह सिद्धू जैसे और कई नेताओं का हश्र भी मतदाता देख रहे हैं। सपष्ट तौर पर नज़र आ रहा है कि भाजपा अब नेताओं अथवा पार्टी कार्यकर्ताओं की नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उसके गुजरात प्रयोगशाला के सफल नायक नरेंद्र मोदी के हाथों का खिलौना बन चुकी है। जसवंत सिंह जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेता को आज मीडिया के समक्ष अपनी दुर्दशा के लिए न सि$र्फ आंसू बहाना पड़ रहा है बल्कि वे सा$फतौर पर पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह व राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को बाड़मेर से अपना टिकट कटवाने के लिए साजि़शकर्ता ठहरा रहे हैें। उधर राजनाथ सिंह जसवंत सिंह के इस आरोप के जवाब में इस पूरे घटनाक्रम को राजनैतिक मजबूरी का नाम दे रहे हैं। सवाल यह है कि पार्टी के ऐसे वरिष्ठ नेताओं जिन्हें भाजपा का मज़बूत स्तंभ माना जाता रहा है तथा पार्टी को आज देश की दूसरे नंबर की पार्टी बनाने में जिन वरिष्ठ नेताओं का पूरा योगदान रहा हो ऐसे नेताओं को दरकिनार करने की साजि़श आ$िखर कौन सी राजनैतिक मजबूरी हो सकती है? सिवाए इसके कि भारतीय जनता पार्टी में धीरे-धीरे अपनी पैठ बनाने वाली राष्ट्रीय स्वयं संघ वर्तमान राजनैतिक हालात में पूरी तरह से पार्टी पर अपना शिकंजा कसने के लिए तैयार हो चुकी है। देश के मतदाताओं ने यह भी बड़े $गौर से देखा कि किस प्रकार बड़े ही सुनियोजित तरी$के से नरेंद्र मोदी की शान में गढ़ा गया विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे का हस्ताक्षयुक्त प्रमाण पत्र वाराणसी सहित देश के कई अन्य भागों में लगाया गया। और कुछ ही दिनों में जब असांजे ने इस $फजऱ्ी सर्टि$िफकेट का खंडन किया तथा नरेंद्र मोदी को आईना दिखाने वाला वास्तविक प्रमाणपत्र जारी किया उसी समय पार्टी के लोगों ने उन पोस्टर्स व बोर्ड को उतारने में ही अपनी इज़्ज़त व भलाई समझी। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद तथा नैतिकता व सिद्धांतों का झूठा पाठ पढ़ाने वाले संगठन व पार्टी के लोग मतदाताओं को गुमराह करने के लिए क्या-क्या गुल खिला रहे हैं तथा अपने $फैसलों पर किस प्रकार यूटर्न लेते दिखाई दे रहे हैं। यह सब देश की जनता देख रही है। ऐसा नहीं लगता कि अभिनय व आडंबर पूर्ण भाषणों अथवा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से प्रभावित होकर देश का मतदाता कोई निर्णय लेने वाला है।

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Nirmal Rani** निर्मल रानी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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