भर्ती में भ्रष्टाचार करने का ढंग हुआ उजागर

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आई एन वी सी न्यूज़

चंडीगढ़ ,

पीयू कुलपति ने बिना यूजीसी-नेट/पीएचडी के असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति को दे दी मंजूरी

पंजाब विश्वविद्यालय के डिप्टी रजिस्ट्रार (कॉलेज) ने अब सीएमजे विश्वविद्यालय (शिलांग, मेघालय) के रजिस्ट्रार तथा  डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ के प्रिंसिपल को अनुरोध किया है कि वह  मंदीप जोसन की नियुक्ति से जुड़े अन्य दस्तावेजों के अलावा उसकायूजीसी-नेट का परिणाम व् पीएचडी अधिसूचना और डिग्री मुहैया करवाए । उल्लेखनिय है कि मनदीप को जून 2013 में डीएवी कॉलेज में कंप्यूटर विज्ञान के सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था। जाहिर है, पीयू के कुलपति प्रोफेसर अरुण कुमार ग्रोवर द्वारा इस नियुक्ति को अक्टूबर, 2015 में दी गयी मंजूरी यूजीसी-नेट/पीएचडी की अनिवार्य आवश्यकता को दरकिनार करते हुए दी गयी थी ।सार्वजनिक पोस्ट के लिए दिए गए आवेदन तथा संग्लन किये आवश्यक योग्यता और अनुभव के दस्तावेज सार्वजनिक रिकॉर्डहैं, लेकिन पंजाब विश्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी विभिन्न बहाने बनाते हुए इन दस्तावेजों को छुपाते चले आ रहे थे । “राजिंदर सिंगला वनाम पंजाब विश्वविद्यालय” के सन्दर्भ में २४ अक्टूबर को दिए अपने निर्णय में केंद्रीय सूचना आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह दस्तावेज यक़ीनन आरटीआई के दायरे में आते हैं, और इन्हें  देने से इंकार नहीं किया जा सकता ।

सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू के निर्देशों के तहत पंजाब विश्वविद्यालय के डिप्टी रजिस्ट्रार (कॉलेज) सुभाष चंदर तिवारी को २० दिन के भीतर यह दस्तावेज अपीलार्थी राजिंदर सिंगला को देने थे, जिनमे मनदीप के आवेदन की प्रमाणित प्रतिलिपि, यूजीसी नेट, पीएचडी डिग्री और परिणाम अधिसूचना, पीएचडी थीसिस के पहले 10 पृष्ठ, उसके शोध पत्र/ प्रकाशित लेख, शिक्षण अनुभव की प्रतियां इतियादी शामिल हैं. अब पीयू  ने अपना पल्ला झाडते हुए सीएमजे विश्वविद्यालय तथा सम्बंधित कालेज को इसे देने के लिए कहा है । अगर यूजीसी द्वारा निर्धारित न्यूनतम आवश्यक योग्यता से सम्बंधित दस्तावेज जैसे कि यूजीसी-नेट/पीएचडी ही इस विश्वविद्यालय के पास नहीं है तो स्पष्ट है कि इन्हें नज़रअंदाज करते हुए कुलपति द्वारा इस नियुक्ति को मंजूरी दे दी गयी है. उल्लेखनिय है कि भारतीय कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए यूजीसी-नेट/पीएचडी पास होना अनिवार्य है.

लगभग ६० से ज्यादा योग्य यूजीसी-नेट/पीएचडी धारकों को अनदेखा करते हुए कैसे एक अयोग्य उम्मेद्द्वर को चयनित किया गया तथा कैसे उसका एपीआई स्कोर स्वीकार कर लिया गया, इस विश्वविद्यालय के कामकाज व् भर्तीयों पर एक संदिग्ध उंगली ही नहीं उठाता, कई अनुत्तरित सवाल भी छोड़ रहा है:

पंजाब विश्वविद्यालय के संबद्ध कॉलेजों में रिक्ति के लिए दिए आवेदन की एक प्रति डीन कॉलेज डेवलपमेंट काउंसिल को अपेक्षित की जाती है। मंदीप का आवेदन व् दस्तावेज डीन, सीडीसी के कार्यालय से कैसे गायब हो गये ? पीयू के विषय विशेषज्ञों तथा कुलपति के नॉमिनी ने सिलेक्शन के दौरान मंदीप की यूजीसी-नेट/पीएचडी को कैसे दरकिनार किया ? ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि चयन समिति को साक्षात्कार में आये यूजीसी-नेट/पीएचडी पास योग्य मेधावी उम्मीदवारों को नजरंदाज कर एक अयोग्य उम्मीदवार का चयन करना पड़ा ? वर्ष 2013 में डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ में नियुक्त सभी 25 स्थायी सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति तुरंत कुलपति प्रोफेसर ग्रोवर द्वारा अनुमोदित कर दी गयी थी, फिर मनदीप के मामले को ही दो साल के लिए ठंडे बस्ते में रखा गया, क्यों? डिप्टी रजिस्ट्रार (कॉलेज) सुभाष चंदर तिवारी तीन साल से मंदीप की नियुक्ति के दस्तावेज देने से क्यों भाग रहे थे अगर यह दस्तावेज उनके कब्जे में थे ही नहीं ? बिना रिकॉर्ड कैसे विश्वविद्यालय द्वारा मनदीप के एपीआई स्कोर की पुष्टि की गयी? पीयू कैलेंडर के जनादेश के अनुसार केवल अनुमोदित शिक्षक ही छात्रों को पढ़ा सकते हैं, फिर क्यों बिना अनोमोदन दो वर्षों तक पढ़ाने के लिए मनदीप को अनुमति दी गयी?

युवाओं को प्रकाश से अंधेरे की तरफ ले जाते हुए इस पंजाब विश्वविद्यालय को अपने लोगो से ‘तमसो माँ ज्योतिर्गमय’ हटा देना चाहिए ।

 

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541 CIC order 24-10-2016 P-1 541 CIC order 24-10-2016 P-2 541 PU 17-11-2016

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