वर्तमान में विश्व की राजनीतिक और आर्थिक परिस्थिति ऐसी है कि विभिन्न देशों को छोटे-छोटे समूह बनाकर अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास करना होता है। इस प्रकार के समूह उस समय और कारगर सिद्ध होते है, जब उसमें प्रतिस्पर्धा देश सम्मिलित हों। इस दृष्टिकोण से ‘ब्रिक’ देशों अर्थात ब्राजील, रूस, भारत और चीन के शीर्ष नेताओं के शिखर सम्मेलन अत्यन्त सफल रहे हैं। अभी हाल में (14 और 15 अप्रैल 2011) चीन के रमणीय स्थल सान्या में संपन्न सम्मेलन में तो दक्षिण अफ्रीका भी शामिल हो गया है, जिससे इस समूह का नाम अब ‘ब्रिक्स’ हो गया है। ये पाँच देश एशिया, यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अत्यन्त महत्वपूर्ण और रूस को छोड़कर जो पहले से ही उन्नत देश है, शेष सभी देश तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थायें हैं। ये दुनिया के 30 प्रतिशत भू-भाग में फैले हुए हैं और उनमें विश्व की 42 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। दुनिया के आर्थिक विकास में ‘ब्रिक्स’ देशों की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए हाल की शिखर वार्ता का महत्व और भी बढ़ गया है।
इन पांचों देशों-ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के बीच व्यापार में 26 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगले पाँच वर्षों में ये देश विकास में नेतृत्वकारी भूमिका निभाएंगे और पांचों देशों की अर्थव्यवस्था का सकल आकार 2015 तक अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष-आईएमएफ के अनुसार इस समय (2015) तक विश्व बाजार में विकसित देशों की भागीदारी घटकर 58 प्रतिशत रह जाएगी और 2020 तक वैश्विक उत्पादन के मामले में विकसित औरविकासशील देश बराबरी पर आ जाएंगे। इसलिए यह कहा जाने लगा है कि विकसित देशों के जी-8 ग्रुप की तरह ब्रिक्स भी विकासशील देशों का जी-5 जैसा एक प्रभावी समूह बन गया है। स्पष्ट है कि विश्व अर्थव्यवस्था के संचालन और प्रशासन में जी-5 अर्थात ब्रिक्स के विचारों और भावनाओं को नजर अंदाज करना अब आसान नहीं रहेगा। इसलिए यह अस्वाभाविक नहीं है कि ब्रिक्स के उदय को विकसित देशों के खेमे को चुनौती के रूप में देखा जाने लगा है। सान्या में हुए शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स इस दिशा में कुछ कदम और आगे बढ़ गया है। इस समूह के पांचों सदस्य देशों ने ऋण और अनुदान के अलावा आपसी व्यापार के लिए अपनी मुद्रा में लेने-देन करने पर सहमति व्यक्त की है।
यह समझौता आपसी सहयोग बढ़ाने के लिहाज से तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए डॉलर पर निर्भरता कम करने के इरादे की ओर भी संकेत करता है। चीन, भारत, रूस और ब्राजील ने अपनी पिछली साझा बैठकों में भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक जैसी वैश्विक वित्तीय संस्थाओं की निर्णय प्रक्रिया में विकासशील देशों की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया था। सान्या में जारी घोषणा पत्र में इसे एक बार फिर दोहराया गया है।
समझौते के बाद भारत के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह, चीन के राष्ट्रपति हूं जिंताओ, रूस के राष्ट्रपति दिमित्री में मेदवेदेव, ब्राजील की राष्ट्रपति दिलमा रोसेफ और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जेकब जुमा ने संवाददाताओं को संबोधित किया। इन नेताओं ने सान्या घोषणा पत्र की भावना को स्पष्ट करते हुए कहा कि ब्रिक्स देशों ने दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापक आर्थिक नीतियों के मामले में तालमेल बढ़ाने तथा सुदृढ़, सतत और संतुलित विकास के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया है। डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी के बाद पुनरुद्धार प्रक्रिया ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन पर निर्भर करती है। हाल ही में मंदी में जो कुछ सुधार आया है, उसका बहुत कुछ श्रेय इन देशों की अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को भी दिया जाता है।
भारत अरसे से संयुक्त राष्ट्र, विशेषकर सुरक्षा परिषद के स्वरूप में परिवर्तन की मांग करता रहा है। वह सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का दावेदार भी है। सान्या घोषणा पत्र इस मामले में भारत की दावेदारी का और भी जोरदार ढंग से समर्थन करता है। ब्रिक्स में चीन और रूस दो ही ऐसे देश हैं, जो सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं। भारत की दावेदारी को रूस का समर्थन पहले से ही हासिल है। ब्रिक्स के घोषण पत्र में चीन ने स्पष्ट तो नहीं कहा है, फिर भी पहली बार सकारात्मक रूझान दिखाया है। सान्या में भारत के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील की आकांक्षाओं को भी उचित बताया गया है।
ब्रिक्स सम्मेलन की एक बड़ी चिंता पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका की उथल-पुथल भरी घटनाओं को लेकर भी थी। मिस्र और ट्यूनीशिया में हुए परिवर्तन का जहां ब्रिक्स नेताओं ने स्वागत किया, वहीं लीबिया में पश्चिमी देशों की सैन्य कार्रवाई को उचित नहीं ठहराया। लीबिया को उड़ान वर्जित क्षेत्र घोषित करने के प्रस्ताव पर जब सुरक्षा परिषद में मतदान हुआ था तो भारत और चीन ने उसमें भाग नहीं लिया था।
इस तरह के बहुराष्ट्रीय सम्मेलन संबद्ध देशों के नेताओं को अलग से द्विपक्षीय मुद्दे और मसले उठाने का अवसर भी देते हैं और उनका समाधान तलाशने की कोशिश भी करते हैं। सामूहिक हित भी तभी सुरक्षित रहते हैं, जब द्विपक्षीय संबंध भी प्रगाढ़ हों। यदि प्रगाढ़ न भी हों तो कम से कम सामान्य तो जरूर ही होने चाहिए। भारत-चीन संबंधों में नरमी-सख्ती के दौर आते-जाते रहते हैं, लेकिन समझदारी इसी में है कि ये रिश्ते बने रहें और यदि फिर भी कोई कमी इस रिश्ते को बिगाड़ने भी लगे तों उन्हें दुरुस्त करने की कोशिश धीमी नहीं पड़नी चाहिए। इस दृष्टि से सान्या में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति हूं जिंताओं के बीच हुई बैठक महत्वपूर्ण रही। गौरतलब है कि पिछले वर्ष जुलाई में चीन में भारत के उत्तरी क्षेत्र के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बी.एस.जसवाल को वीजा देने से इनकार कर दिया था, सिर्फ इस आधार पर कि वे जम्मू-कश्मीर में तैनात थे। इससे पहले कश्मीर के निवासियों को नत्थी वीजा जारी किए जाने पर भी कई बार विवाद उठ खड़े हुए थे। परंतु जसवाल प्रकरण के बाद भारत ने चीन के साथ रक्षा संबंध स्थगित करने का निर्णय लिया। यह गतिरोध अब टूटा है तो इसलिए कि चीन ने नत्थी वीजा के मामले में अपने रुख में बदलाव का संकेत दिया है। प्रधानमंत्री के साथ गए जम्मू-कश्मीर के कुछ पत्रकारों को चीन ने सामान्य वीजा दिया। यद्यपि चीन ने अभी स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा है कि उसने यह नीति वापस ले ली है, परंतु इस बारे में पुनर्विचार का इरादा अवश्य जताया है। कहा जा सकता है कि इस मुद्दे पर भारत ने आवश्यक दृढ़ता का परिचय दिया और पहली बार द्विपक्षीय वार्ताओं में स्पष्ट कर दिया कि यदि चीन कश्मीर कार्ड खेल रहा है तो भारत भी तिब्बत कार्ड खेलने को तैयार है। इस कूटनीतिक दृढ़ता का परिणाम अब सामने आया है। अब रक्षा संबंध दोबारा शुरू करने पर सहमति बनी है।
ब्रिक्स शिखर बैठक के दौरान घोषित कार्य योजना (ऐक्श्ान प्लान) में अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा मसलों पर वरिष्ठ अधिकारियों की नियमित बैठक करने का निर्णय भी लिया गया। इसके अंतर्गत न केवल पांचों सदस्य देशों के राष्ट्रीय मंत्री नियमित बैठकें करेंगे, बल्कि पांचों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी परस्पर मिल कर विचार-विमर्श करेंगे। इसके अलावा पांचों देशों के वित्त मंत्री भी बैठकै करेंगे और रिजर्व बैंक के गर्वनरों की भी नियमित बैठकै होंगी। इस प्रकार ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की नई अवधारणा रखी गई है। भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका समूह ब्रिक्स के भीतर वैसी राजनीतिक और सांस्कृतिक समानता नहीं है, जैसी जी-8 अथवा आसियान देशों में है, फिर भी ब्रिक्स ने तीन वर्ष से भी कम समय में एक अंतर्राष्ट्रीय मंच के रूप में अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली है।
*स्वतंत्र पत्रकार
डिस्क्लेमर – इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने है,