बुन्देली का दो दिवसीय राश्ट्रीय सम्मेलन, ओरछा में सम्पन्न `नीके बोल बुन्देली के´ ग्रन्थ का भव्य लोकार्पण

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री ,
आ.एन.वी.सी.,,
ओरछा,
अखिल भारतीय, बुन्देलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिशद भोपाल के तत्वाधान में देश के प्रसिद्ध ऐतिहासिक पर्यटन स्थल ओरछा में, बुन्देली भाशा का दो दिवसीय राश्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ। नवसंवत्सर पर सम्पन्न लोक भाशा के इस आन्दोलन में जाने माने साहित्यकार श्री कैलाश मड़बैया द्वारा सृजित बुन्देल गद्य के तीसरे तार सप्तक ग्रन्थ नीके बोल बुन्देली के को अभूतपूर्व उपलब्धि उिल्लखित किया गया। जिसका लोकार्पण झॉसी के पूर्व सांसद एवं सांस्कृतिक चिन्तक पं0 विश्वनाथ शर्मा, आंरछेस राजा मधुकरशाह एवं उ0प्र0 के पूर्व मन्त्री श्री ओम रिछारिया की संयुक्त अतिथि त्रिवेणी ने किया। समीक्षा झॉसी विश्वविद्यालय के प्रो. जवाहरलाल, कंचन ने प्रस्तुत की। उद्घाटन गीत-`हमारी माटी बुन्देली´ म.प्र. एवं उ.प्र. की संगीत विद्यालयों की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किया गया। विशय प्रवर्तन कवि कैलाश मडबैया ने एवं बुन्देलखण्ड परिशद का प्रतिवेदन संगठन मन्त्री श्री देवेन्द्र कुमार जैन ने प्रस्तुत किया। आठ सत्रों में बुन्देली के प्रत्येक पक्ष पर चालीस जिलों के, 60 बुन्देली विद्वानों ने अपने शोध आलेखों से संगोिश्ठयों को समृद्ध बनाया। इस अवसर पर बुन्देली भाशा का अखिल भारती कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ जिसमें 45 प्रतििश्ठत कवियों ने िशरकत की। अध्यक्षता वरिश्ठ कवि श्री कैलाश मड़बैया भोपाल ने की और संचालन ग्वालियर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. कामिनी सेंवढ़ा ने किया। प्रमुख कवियों में प्रो. स्नेही लखनऊ, महेश कटारे विदिशा, मड़बैया भोपाल, प्रभुदयाल छिन्दवाड़ा, साकेत सुमन व मेघराज झॉसी, मित्र कोंच, मधुर हटा, वासुदेव चिरंगॉव, विमला तिवारी दमोह, सन्तोश खजुराहों, रामजी छतरपुर, प्रो. जवाहर द्विवेदी गुना, अपेक्षित िशवपुरी, जीपी शुक्ला टीकमगढ़, स्वदेश ललितपुर, देवदत्त मलहरा, राधाकृश्ण बॉदा आदि।
आयोजन में, जबलपुर, सागर, भोपाल, ग्वालियर एवं लखनऊ विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि विद्वानों ने भी भागीदारी की दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रो. लखनलाल खरे िशवपुरी ने की जिसमेें बुन्देली के 25 ललित निबन्धों का पाठ किया गया, तीसरे सत्र की अध्यक्षता डॉ. राधाकृश्ण बुदेंली बॉदा ने की जिसमें  बुन्देली बोल बुन्देली के `से´ नीके बोल बुन्देली के´ तक की डेढ़ हजार वशZ की गद्य यात्रा पर देवेन्द्र जैन चिरगॉव और बुन्देली काव्य यात्रा `जय वीर बुन्देले ज्वानन की´ तक पर जवाहर कंचन व राजेन्द्र चतुर्वेदी भोपाल की समीझायें प्रस्तुत की गई।
बुन्देली मानकी करण सत्र की अध्यक्षता डॉ. कामिनी जीवाजी विश्वविद्यालय ने की और इसमें मानकीकरण पर शोध आलेख उमाशंकर खरे, लोकेन्द्र सिंह नागर, आनन्द जबलपुर, पी.दयाल श्रीवास्तव छिन्दवाड़ा आदि ने प्रस्तुत किये। अनुवाद किसी भाशा की सामथ्र्य बढ़ाता है। इसलिये प्रथक से एक सत्र आयोजित किया गया। जिसमें एक हिन्दी निबन्ध का अनुवाद सभी बुन्देली के रूपों में प्रथक प्रथक विशेशज्ञों द्वारा प्रस्तुत किये गये।
अन्तिम सत्र में सभी विद्वानों द्वारा अपने क्षेत्र से 200-200 शब्द लाये गये थे उन पर विशद् व्याख्या की गई। इसकी अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. कालीचरण ने की और शब्द बेंक बनाकर उन्होंने चारजोन बनाकर शब्दों के मानकीकरण करने का संकल्प तय किया। समारोह के समापन्न पर भारत सरकार से बुन्देली भाशा को सविधान की आठवी अनुसूची में सामिल करने की मांग की गई।

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