बुंदेलखंड : आओ लौट चलें तालाबों की ओर

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अनिल सिन्दूर
आई एन वी सी न्यूज़
बुंदेलखंड,

# पानी संचयन का 8वीं शताब्दी से चला आ रहा परम्परागत तरीका आज भी कारगर

# चंदेल शासकों ने बनवाये थे 4000 तालाब, कुछ आज भी मौजूद

anil sindoor storyबुंदेलखंड में स्थायी सिंचाई संसाधनों के लिए किसानों को एक बार फिर इस क्षेत्र के परम्परागत साधन तालाबों की ओर लौटना होगा क्योंकि बुंदेलखंड उ.प्र. का ऐसा क्षेत्र है जहाँ औसत वार्षिक वर्षा मात्र 760 मि.मी. रही है यही कारण है कि इस क्षेत्र में सतही जल एवं भूगर्भ जल की हमेशा से कमी रहती रही है इसीलिए पीने के पानी तथा सिंचाई के लिए जल के भण्डारण  का काम तालाबों एवं जलाशयों में किया जाता रहा है !

बुंदेलखंड प्रदेश का एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हमेशा से पानी का अभाव रहा है फिर चाहे वो पीने का पानी हो या फिर सिंचाई के संसाधन यही वजह है कि पानी बुंदेलखंड के लिए हमेशा से  महत्वपूर्ण रहा है ! यहाँ की कहावतें “खसम मर जाय पर गागर न फूटे” जैसी कहावतें चिरतार्थ हैं ! पानी की कमी को देखते हुए बुंदेलखंड क्षेत्र के चंदेल शासकों ने 8वीं एवं 12वीं शताब्दी के मध्य 4000 तालाबों तथा जलाशयों का निर्माण करवाया था इन तालाबों तथा जलाशयों में से सेंकडों तालाब तथा जलाशय आज भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में मौजूद हैं !

ब्रिटिश शासनकाल में इस क्षेत्र में बांधों का निर्माण करवाया गया जिनसे नहरों को निकल कर सिंचाई के साधन उपलब्ध करवाए गए लेकिन नहरों का लाभ उन्हीं किसानों को मिल सका जिनके खेत नहरों के आस-पास आते हैं ! नहरों से सिंचाई का पानी लघु एवं सीमांत किसानों को न के बराबर मिला उन्हें हमेशा से ही वर्षा के पानी पर ही अपने खेतों का पोषण करना पड़ा !

वर्ष 1879 में प्रदेश में जब भयंकर सूखा पड़ा इस सूखे से बुंदेलखंड क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में जनहानि हुई ! इस भयंकर सूखे से निपटने को पदेश के संसाधन उपयुक्त नहीं पाए गए जिसको दृष्टिगत रख वर्ष 1880 में सूखा आयोग का गठन किया गया इस आयोगने सबल संस्तुति की कि 40 प्रतिशत कृषि योग्य खेती को सिंचित करने के लिए संसाधन जुटाए जाएँ ! इस निर्णय को वर्ष
1885 में में मूर्तरूप दिया गया और जालौन एवं हमीरपुर जिलें के क्षेत्र को सिंचित करने के लिए बेतवा केनाल का निर्माण करवाया गया ! वर्ष 1903 में द्वितीय सूखा आयोग की संस्तुति पर ने दक्षिण क्षेत्र बाँदा जिले में 1907 में केन कैनाल तथा हमीरपुर में धसान कैनाल का वर्ष 1910 में निर्माण करवाया गया ! लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि ये तमाम प्रयास भी कारगर साबित नहीं हो सके ! आज़ादी के बाद आयी विभिन्न सरकारें भी उसी लीग पर चलती रहीं जिन पर ब्रिटिश हुकूमत चलती थी ! उसके गुण-दोष पर कभी ध्यान नहीं दिया गया !

परम्परागत सिंचाई के संसाधनों पर बिटिश हुकूमत ने तो ध्यान दिया ही नहीं आज़ादी के बाद आयीं देश की प्रजातांत्रिक सरकारों ने भी ध्यान नहीं दिया ! गाँव की मूलभूत सुबिधा को संजोये रखने वाले तालाबों पर लगतार अतिक्रमण होता रहा लेकिन उसपर गौर ही नहीं किया ! गाँव में पानी की कमी को सरकारों ने तमाम धनराशि दी जिससे समस्या दूर की जा सके लेकिन ये समस्या खड़ी ही क्यों हुई इस पर न तो सरकारों ने न ही गाँव में रहने वाले नागरिकों ने ध्यान दिया ! कम से कम एक गाँव में दो तालाब हुआ करते थे जिसमें से एक तालाब में वर्षा के पानी का संचयन किया जाता था और दूसरे तालाब में नालिओं का गन्दा पानी संचय किया जाता था लेकिन अब वो तालाब गाँवों से गायब हैं ! दुःख की बात ये है कि आज भी सरकारें चेती नहीं हैं उच्चतम न्यायालय के आदेश के कड़े निर्देशों के बाद भी सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रहीं हैं !

मालूम हो कि सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के तहत वर्ष 2013 में उ.प्र  सरकार ने तालाबों, पोखरों, झीलों, कुओं एवं रिजर्वयार्स से अतिक्रमण हटाये गए अवैद्य अतिक्रमण की जो सूचना दी है वह बेहद चौकाने वाली है ! बाँदा मण्डल के चित्रकूट जनपद में आधार खतौनी में 3843, वर्तमान खतौनी में 3692 दर्ज हैं अवैद्य कब्जे 1730 पर थे जिसमें 1579 को मुक्त करवा लिया गया है ! 151 पर अतिक्रमण है जिसे मुक्त करना वाकी है ! बाँदा जनपद में आधार खतौनी में 15467, वर्तमान खतौनी में 14598 दर्ज हैं, 332 पर अवैद्य अतिक्रमण पाये गए 128 को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया 204 को अतिक्रमण से मुक्त कराने को अवशेष हैं जब कि अवशेष 409 होने चाहिए ! महोबा जनपद में आधार खतौनी में 6997, वर्तमान खतौनी में 8399 दर्ज हैं, 1495 पर अवैद्य अतिक्रमण पाया गया, 1495 अतिक्रमण से मुक्त कराये गए ! कमाल की बात ये है कि महोबा में 1402 की संख्या कैसे बढ़ गयी ! जनपद हमीरपुर में आधार खतौनी में 3620, वर्तमान में 3079 दर्ज हैं ! 655 पर अवैद्य अतिक्रमण था, 545 को अतिक्रमण से मुक्त करवा लिया गया ! 110 अभी भी अवशेष हैं !

झाँसी मण्डल के जालौन जनपद में आधार खतौनी में 9376, वर्तमान खतौनी में 9376, 51 पर अतिक्रमण था, 51 को मुक्त करवा लिया गया है ! अब एक भी तालाब, पोखर, झील, तथा रिजर्ववायर्स पर अतिक्रमण नहीं है ! जबकि जालौन नगर में ही 36 तालाब हैं जिसमें से सभी तालाबों पर 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक अतिक्रमण है ! जिसमें 70 अतिक्रमण कर्ताओं को 6 अप्रैल 2010 को चिन्हित किया जा चूका है तथा सभी को बेदखली का नोटिस भी दिया जा चुका है ! जनपद झाँसी में आधार खतौनी में 14357, वर्तमान खतौनी में 11898 दर्ज हैं, 132 पर अवैद्य अतिक्रमण है, 25 को अतिक्रमण से मुक्त करवा लिया गया है ! 107 अवशेष दिखाए गए हैं, 2352 तालाब, पोखर, झील अथवा रिजर्ववायर्स का कहीं अता-पता नहीं है ! जनपद ललितपुर में आधार खतौनी में 2348 तथा वर्तमान खतौनी में भी 2348 दर्ज हैं 29 पर अतिक्रमण था जिसे अतिक्रमण से मुक्त करवा लिया गया है !

उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 8,75,345 तालाब, झील, जलाशय एवं कुयें हैं इनमें से 1,12,043 पर कब्ज़ा किया जा चुका है राजस्व विभाग का दावा है कि वर्ष 2012-13 में 65,536 को अतिक्रमण से मुक्त करवा लिया गया है ! भूगर्भ जलस्तर में गिरावट ने खतरे की घंटी बजा दी है भूगर्भ जलस्तर को भी यदि हमें गिरने से बचाना है तो भी हमें तालाबों की ओर ही देखना होगा ! पानी की घटती स्थिति को देखते हुए वर्ष 2013 में उ.प्र. सरकार ने भूगर्भ जल नीति बनायीं जिसकी ज़िम्मेदारी नये विभाग ‘भूगर्भ जल विभाग’ बना कर डाली गयी ! बनाये गए कानून पर भी अमल नहीं किया गया जिसके परिणाम स्वरुप स्थिति बद से बदतर होती गयी !

तमाम गहन बैठकों के बाद बुंदेलखंड में पानी समस्या के निज़ात को वर्ष 2009-10 में वर्षा आधारित खेती के रकबे को कम करने के लिए म.प्र. तथा उ.प्र. के 13 जिले को 7266 करोड़ रुपए दिए गए ! इस धनराशि को खर्च करने को एक कार्य योजना दोनों सरकारों को दी गयी ! इस कार्य योजना में अधिकतर काम तालाबों और कुओं पर किया जाना था ! लेकिन इस धनराशि को भी
पूर्व की तरह ही कागजों में खर्च कर लिया गया !

आज़ादी के बाद आयी सरकारों के कृत्यों तथा बिगड़े मौषम से अनुभव लेते हुए किसानों को जल का संचयन का काम खुद ही करना होगा ! जिन किसानों ने भी तालाबों की ओर रुख किया है और तालाबों को वर्षा जल से संचयन किया है उनके चेहरे खिलने लगे हैं !

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