बीसवीं कहानी – : रोशनी

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 लेखक  म्रदुल कपिल  कि कृति ” चीनी कितने चम्मच  ”  पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l

-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की बीसवीं कहानी –

___ रोशनी ____

mradul-kapil-story-by-mradul-kapil-articles-by-mradul-kapilmradul-kapil1उसकी आँखे अंदर तक धँस चुकी थीं, कम रोशनी में देख ले तो बच्चे डर जायें, बालों में कब तेल लगाया था याद भी नहीं, सर धोये हफ्तों गु़ज़र गये, Zoology, Botany, Physics, Chemistry, Organic, Physical, Inorganic सारी किताबों में जगह-जगह हल्दी के निशान लगे हुऐ थे, दाल , चावल, लहसुन मसालों की महक रह रह कर किताबों से आती.

प्रतियोगिता भयानक कठिन थी, उसकी ही तरह हज़ारों और लङकियाँ डॉक्टर बनना चाहती थीं, छोटे शहर में लङकियों को आठवीं से स्कूटी नहीं मिलती, लेडी बर्ड की सायकल मिल गयी तो माता-पिता को संपन्न समझ लीजिये.

बेङियाँ तोङने का, सपने देखने का, अपना अस्तित्व बनाने का एक ही ज़रिया है, डॉक्टरनी बन जाओ, बहुत परिश्रम लगेगा, कामयाब न हो सकीं तो B.A. , MA. BsC. BEd कराकर शादी करा दी जायेगी, फिर बच्चे सँभालो, बहुत प्रोग्रेसिव हो गये तो स्कूल की टीचर बन जाने देंगे, लेकिन रोटियाँ तब भी बेलनी होंगी, बच्चे फिर भी पैदा करने होंगे और लङका ही पैदा करना होगा,

डॉक्टरी का सपना लङकियों के लिये पिंजरे का वो छोटा सा गेट है जिससे निकल गये तो ज़िंदगी शायद थोङी बेहतर बन जाये।

बारहवीं के साथ उसने डॉक्टरी की प्रवेश परीक्षा दी , सफलता नहीं मिली, पिंजरा बंद हो गया, माँ ने बहुत ज़ोर दिया, पिताजी से लङ गयीं, शायद मार भी खाई, लेकिन सवाल उस आखिरी मौके का था, बहुत जद्दोजहद और हीला-हवाली के बाद एक साल की मोहलत और मिली, बिटिया ने जान लगा दी, आखिरी मौका था, माँ की आँखों में आँसू के साथ उम्मीदें भी छलछला रहीं थीं, बेटी को असफल होने पर माँ जैसी ज़िंदगी मिलने का डर था…

साल भर की कङी मेहनत के बाद पेपर अच्छे गये, इस बार सलेक्शन की पूरी उम्मीद थी, आज रिजल्ट आ रहा था , सुबह से ही एक अजीब सी बैचेनी ने उसे घेर रखा था।

आशा , निराशा , सपने , डर , घुटन , आजादी इन सब के बीच में उसने अपना रोल नंबर डाला और एंटर। …………

वो अवाक् थी , निशब्द थी , आँखों के में आंसू थे और चेहरे पर जीत की ख़ुशी , बिना कुछ कहे उसने माँ को गले लगा लिया , उसने टॉप किया था , पुरे प्रदेश में वो दूसरे स्थान पर थी ….

घुटन का कुहरा छट चूका था , और खुशियो की धूप दस्तक दे रही थी , अब वो लोगो को ज़िंदगी बाटने चल पड़ी थी नई राहो पर …

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mradul-kapilwriter-mradul-kapilmradul-kapil-writer-author-mradul-kapilmradul-kapil-invc-news-mradul-kapil-story1परिचय – :

म्रदुल कपिल

लेखक व् विचारक

18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब  दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां  देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया .  ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी  हाऊसिंग  कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और  अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l

पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया  है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक  के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची  ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का  सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो ,  वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक  आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार  भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको  अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका  हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी  डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती  जिंदगी का .

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