बीमा पॉलिसी और दावा प्रक्रिया

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{ विग्नेश शहाणे }  जीवन बीमा अपने करीबियों के प्रति प्यार एवं देखभाल की अभिव्यक्ति है। भले ही जीवन बीमा मृतक की जगह नहीं ले सकता लेकिन मृत्यु लाभ के माध्यम से यह मृतक के परिवार को वित्तीय सुरक्षा उपलब्ध कराने में मददगार होता है।
बीमा कंपनी की दावा प्रबंधन योग्यता ग्राहकों द्वारा जीवन बीमा पॉलिसी लेने के लिए उनकी निर्णय प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए बीमा कंपनी का प्रदर्शन मापने के लिए उसकी दावा पूर्ति की प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण मानदंड है।
दावों का सुचारू रूप से शीघ्र भुगतान करने के लिए लाभार्थी को निम्नलिखित बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिये ताकि दावा प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए जीवन बीमा कंपनी की मदद की जा सके:

जीवन बीमा कंपनी को सूचित करना

दावा प्रक्रिया के पहले चरण के अंतर्गत सबसे पहले बीमा कंपनी को जीवन बीमित की मृत्यु के विषय में सूचित करना पड़ता है। इसे क्लेम इंटीमेशन के रूप में जाना जाता है। इसकी जानकारी जीवन बीमा कंपनी के शाखा/कार्यालय जाकर दी जा सकती है अथवा कंपनी को इस सिलसिले में ईमेल भी भेजा जा सकता है। क्लेम इंटीमेशन में पॉलिसी संख्या, बीमित का नाम, मृत्यु की तिथि, मृत्यु का कारण, मृत्यु का स्थान, दावेदार का नाम, दावेदार का बीमित से संबंध इत्यादि मूलभूत जानकारी शामिल होती हैं। यह सिर्फ दावा प्रक्रिया की शुरूआत है न कि स्वयं में संपूर्ण दावा प्रक्रिया।

दावा भरने के समय जरूरी चीजें
दावेदार के द्वारा नगर निगम/ग्राम पंचायत द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र जमा कराना अनिवार्य है। इसके अलावा कुछ अन्य आवश्यकतायें भी होती हैं जो दावा करने के दौरान जरूरी हैं। इसमें उचित ढंग से भरा गया दावा फॉर्म जोकि जीवन बीमा कंपनी द्वारा दिया जाता है। जीवन बीमा कंपनी द्वारा दावा प्रोसेस करने के लिए के वास्तविक बीमा पॉलिसी के दस्तावेज जमा कराना अनिवार्य है। दावेदार को अपनी तस्वीरें, एड्रेस प्रूफ, फोटो पहचान पत्र भी उपलब्ध कराना चाहिये। प्रमाण पत्र के अलावा बीमा कंपनियां दावेदार से बैंक खाता स्टेटमेंट जैसे अन्य सहायक दस्तावेज  उपलब्ध कराने की उम्मीद करती हैं जिससे दावे की राशि का भुगतान सही लाभार्थी को किया जा सके।
ऊपर दी गईं आवश्यकताओं के अलावा, कुछ बीमा कंपनियां दावा के प्रकार और मौत की परिस्थितियों के आधार पर विशिष्ट मामलों में अतिरिक्त दस्तावेज भी मांग सकती हैं। सभी जरूरतें आंतरिक एवं उद्योग के दिशानिर्देशों के अनुरूप होंगी।
सभी आवश्यक दस्तावेज ओरिजनल होने चाहिये अथवा प्रासंगिक अथॉरिटी उदाहरण के लिए एसईएम, मजिस्ट्रेट, राजपत्रित अधिकारी अथवा पुलिस सब-इंस्पेक्टर जैसा कोई भी स्थानीय प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति अथवा बीमा कंपनी के अधिकृत सदस्य द्वारा प्रमाणित फोटोकॉपी उपलब्ध करानी चाहिये।

दावा जमा कराने की सीमा

दावा जमा करने की कोई विशिष्ट समयसीमा नहीं होती लेकिन विभिन्न समस्याओं एवं अनचाहे विलंब से बचने के लिए प्रक्रिया की शुरूआत जल्द से जल्द करनी चाहिये। दावा प्रक्रिया में मुख्य रूप से बीमा कंपनी द्वारा बताये गये सभी आवश्यक दस्तावेज जमा कराना अनिवार्य होता है। यदि दस्तावेजीकरण क्रमानुसार है तो दावा बिना किसी देरी के प्रोसेस कर दिया जाता है।
दावेदार पॉलिसी संख्या अथवा क्लेम जमा कराने के समय दी गई दावा संख्या के आधार पर बीमा कंपनी से दावे की जानकारी ले सकता है। लाभार्थी संबंधित बीमा कंपनी की वेबसाइट पर ऑनलाइन माध्यम से दावे की स्थिति पता कर सकते हैं।
दावा प्रोसेसिंग के लिए समयसीमा
आइआरडीए दिशानिर्देशों के मुताबिक, बीमा कंपनियों द्वारा सभी आवश्यक दस्तावेज मिलने पर 30 दिनों के भीतर क्लेम प्रोसेस करना अनिवार्य है। इन दस्तावेजों के आधार पर ही क्लेम का फैसला किया जाता है। हालांकि, कुछ कंपनियां अंदरूनी दिशानिर्देशों के आधार पर इसे जल्दी प्रोसेस करती हैं ताकि उद्योग में नये मानदंड स्थापित किये जा सकें। वर्तमान में कुछ कंपनियां 7 से 8 दिनों की कम अवधि में दावा  सेटलमेंट करने का वादा करती हैं। बहरहाल, यह गारंटी सभी आवश्यक दस्तावेज मिलने की तिथि से शुरू होती है। यदि तय समयसीमा में दावे का सेटलमेंट नहीं हो पाता है तो ग्राहकों को कंपनी की पॉलिसी में किये गये उल्लेख के मुताबिक ब्याज दिया जाता है।
कई बार ऐसा होता है जब दावे की परिस्थितियों में बीमा कंपनी द्वारा जांच कराई जाती है। इन मामलों में बीमा कंपनी द्वारा जल्द से जल्द जांच शुरू करके खत्म करने की संभावना रहती है। किसी भी मामले में दावा दर्ज कराने के 6 महीनों के भीतर यह जांच कराई जाती है।

शिकायत सुधार प्रणाली

पॉलिसीधारकों की शिकायतों के समाधान के लिए औपचारिक प्रणाली है- प्राथमिक स्तर पर पॉलिसीधारक संबंधित बीमा कंपनियों के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं। यदि पॉलिसीधारक कंपनी के निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं तो वह आइआरडीए के इंटीग्रेटेड ग्रीवियंस मैनेजमेंट सिस्टम (आइजीएमएस) से संपर्क कर सकता है। आइजीएमएस एक टूल है जो बीमा कंपनियों के ग्राहकों की शिकायत पर निगरानी रखता है और व्यवस्था एवं पॉलिसी से संबंधित मामलों को चिन्हित करने के लिए उसकी जड़ तक जाकर विश्लेषण करता है। यदि ऊपर दिये गये विकल्प काम नहीं आते तो पॉलिसीधारक उपभोक्ता अदालत और इंश्योरेंस ओम्बुड्समैन (शिकायत जांच अधिकारी) के पास भी जा सकता है।

दावा हैंडलिंग प्रक्रिया में पर्याप्त विनामकीय संचालन हैं। साथ ही बीमा कंपनियों के लिए तय दिशानिर्देश भी है जिनका उन्हें अनुसरण करना होता है। जीवन बीमा कंपनियों द्वारा भी उनकी ओर से दावा प्रक्रियाओं को सरलीकृत करने एवं उनके शीघ्र निपटान के लिए परिचालन दक्षताओं का समावेश किया जाता है। इससे ग्राहकों के लिए इस सूचना तक पहुंच बनाना आसान होता है और वे सुविज्ञ फैसले कर सकते हैं। ग्राहकों के लिए भी यह महत्वपूर्ण है कि प्रस्ताव फॉर्म में सही खुलासे करें ताकि लाभार्थियों को दावा करने के समय किसी असुविधा का सामना न करना पड़ें।

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invcविग्नेश शहाणे

सीईओ एवं पूर्ण कालिक निदेशक

आईडीबीआई फेडरल लाइफ इंश्योरेंस

 

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