बल्लारी से जेडीएस उम्मीदवार मुन्ना बाशा के साथ गुजारा हुआ एक दिन

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मुन्ना बाशा{ वसीम अकरम त्यागी की बल्लारी से  ख़ास रिपोर्ट } रेड्डी बंधुओं के अवैध खनन की बदौलत बल्लारी कर्नाटका का सबसे चर्चित जिला है। आंध्र प्रदेश की सीमा से लगे इस जिले में नौ विधान सभा सीटें हैं जिनमें से एक है बल्लारी शहर जो जनरल सीट है। इस सीट पर जहां कांग्रेस ने पुराने हारे हुऐ उम्मीदवार और वर्तमान में राज्य सभा सांसद अनिल लाड को उम्मीदवार उतारा है। वहीं भाजपा से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले बी. श्री रामुलो ने मौजूदा विधायक सोमशेखर रेड्डी को टिकट न देकर नया चेहरा मैदान में उतारा है तो भाजपा ने भी पुराने भाजपाई नेता वीरपक्ष गौडा को उम्मीदवार उतारा है। पूर्व मुख्यमंत्री येद्दीरप्पा ने भी इस सीट पर मोर्चा खोलते हुऐ पुराने साथी का ध्यान रखा है।

वैसे यह सीट कांग्रेस की पारंपरिक सीट रही है यहां से सोनिया गांधी भी लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं। खैर शुरु करते हैं इस सीट से जेडीएस उम्मीदवार मुन्ना बाशा के साथ गुजारे हुऐ एक दिन से। मुन्ना बाशा की यह खासियत है उन्होंने पहले कभी किसी भी तरह का चुनाव नहीं लड़ा है वह पहली बार राजनीति में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं अब इस पहली पारी में वे कितने सफल होते हैं ये तो जनता ही बतायेगी। मुन्ना बाशा पेशे से प्रॉपर्टी डीलर हैं और शिक्षा के नाम पर वे शून्य हैं पिछले चार साल से वे क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय हैं। सुबह फज्र की नमाज पढ़ने के बाद से ही उन्होंने अपना चुनाव प्रचार शुरु किया और घर – घर जाकर लोगों को अपन चुनाव चिन्ह बताते हुऐ कहते हैं कि आपके बीच का हूं आपके घर का हूं इस बार मौका है आप इसे गंवाईये मत। मुन्ना बाशा से हर वहां के हर आदमी को मिलने के बाद अपने पन का ऐहसास होता है. 70 साल के बूढ़े से लेकर 10 -12 साल का बच्चा भी उन्हें मुन्ना भाई, मुन्ना भाई कहकर बुलाता है वह भी इस तरह कि जैसे वह उम्मीदवार ना होकर उनके परीवार का सद्सय हो. और महिलाओं ने तो हद ही कर दी उनके सामने अपनी समस्याऐं इस तरह रखीं जैसे ये मौजूदा विधायक हों.बुजुर्ग महिला को अपना चुनाव चिन्ह बताते मुन्ना बाशा.

इस विधानसभा का ये इतिहास रहा है कि इस सीट से कोई मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव जीत कर विधानसभा नहीं पहुंचा है जबकि इस सीट पर 35000 के करीब मुस्लिम वोट हैं जो दूसरे समुदायों कुरुगोड, लिंगयात,मराठा, बंट्स, में सबसे अधिक हैं। इस बार यहां जेडीएस ने मुन्ना बाशा को टिकट देकर दूसरे खेमों में खलबली मचा दी है क्योंकि वे अकेले मुस्लिम उम्मीदवार हैं जो इस सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उनका मिलनसार रवैय्या लोगों को अपनी जानिब आकर्षित करता है. घर घर जाकर उनका कन्नड़ में बोलना , अन्ना, तम्मा, ( बड़े भाई, छोटे भाई, कहना उन्हें दूसरे उम्मीदवारों से अलग बना रहा है। लेकिन मुन्ना बाशा आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं और शिक्षा के नाम पर तो शून्य हैं। कर्नाटक की ये सबसे चर्चित सीट है जिस पर पिछले चुनाव में नोट के बदले वोट की कीमत 10000 तक पहुंच गई थी। लेकिन इस बार चुनाव आयोग की सख्ती के कारण यहां पर पहले ही भारी मात्रा में सीआरपीएफ आचुकी है जो हर आने जाने वाली गाड़ियों की तलाशी करती हैं ताकी इसमें पैसा ना हो। खैर मुन्ना भाई नाश्ता और दोपहर का लंच भी इसी जनसंपर्क के दौरान करते हैं। कहीं भी खड़े होकर चाय पीना और भागते भागते यहां का बहुचर्चित डोसा खाना.

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वसीम अकरम त्यागी मुस्लिम टूडे के पत्रकार हैं जो आजकल कर्नाटक चुनाव कवर करने के लिये कर्नाटका आये हुऐ हैं।

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