बनारसी साड़ी कारोबार तबाह –  बुनकरों की हालत बदतर

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बनारस | मोदी सरकार ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन कर रखा है. इस लॉकडाउन के चलते देश में बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री और मिल रुक गईं हैं. ऐसे में लघु-कुटीर उद्योगों का क्या हाल हो रहा है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

देश के बड़े हस्तकला लघु-कुटीर उद्योगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की ‘बनारसी साड़ी’ बनाने वाले उद्योग भी शामिल हैं. इन पर 6 लाख बुनकर और उनका परिवार आश्रित है. लाखों साड़ी व्यापारी और उनका परिवार भी इसी उद्योग पर निर्भर रहता है, लेकिन लॉकडाउन ने सुस्त पड़े बनारसी साड़ी कारोबार को खत्म कर दिया है. लिहाजा अब बुनकरों की मांग है कि जब सरकार किसानों की आर्थिक मदद कर रही है, तो हमारी भी करे.

लॉकडाउन के दौरान सिर्फ रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर जोर दिया जा रहा है. ऐसे में आखिर वो उद्योग कहां जाएं, जिनकी गिनती भले आवश्यक वस्तुओं में नहीं होती हो, लेकिन उससे लाखों लोगों की रोजी रोटी जुड़ी है. वाराणसी का बनारसी साड़ी उद्योग उन्हीं लघु-कुटीर उद्योगों में से एक है, जिसको लॉकडाउन ने खत्म कर दिया है और आगे आने वाले कई महीनों तक उसके उबर पाने की भी उम्मीद दूर-दूर तक नहीं दिखाई पड़ रही है.

वाराणसी के सिर्फ एक कोने में बसे दर्जनभर बुनकर बाहुल्य इलाके सरैया, जलालीपुरा, अमरपुर बटलोहिया, कोनिया, शक्करतालाब, नक्की घाट, जैतपुरा, अलईपुरा, बड़ी बाजार, पीलीकोठी, छित्तनपुरा, काजीसादुल्लापुरा, जमालुद्दीनपुरा, कटेहर, खोजापुरा, कमलगड़हा, पुरानापुल, बलुआबीर, नाटीईमली में लाखों की संख्या में बुनकर बनारसी बिनकारी का काम हैंडलूम और पावरलूम पर करते हैं. लॉकडाउन में सभी लूम लॉक हो चुके हैं.

‘दो वक्त की रोटी को मोहताज हैं बुनकर’

बुनकर नेता और क्षेत्रीय पार्षद हाजी वकास अंसारी बताते हैं कि देश में 18 करोड़ लोगों को दो वक्त का खाना मिला, लेकिन बुनकर बाहुल्य बनारस होने के बावजूद आखिर वह खाना कहां गया? बनारस के अधिकारी सरकार की कोशिशों को नाकाम कर रहे हैं. बुनकर भूखे सो रहे हैं और खाने तक को नहीं मिलता है. बुनकरों को भेदभाव के साथ देखा जा रहा है.

उन्होंने कहा कि बनारस का बुनकर सालाना करोड़ों रुपये का व्यापार करके देता है और उसका राजस्व सरकार को भी मिलता है, लेकिन आज बुनकरों को कोई पूछने वाला नहीं है. आज बुनकर दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हैं. देश का किसान अगर पेट भरने के लिए अन्न देता है, तो बुनकर भी तन ढकने के लिए कपड़ा देता है. इसलिए बुनकरों के साथ सौतेला व्यवहार बंद होना चाहिए. कई बार बुनकरों की सूची बनाकर तहसीलदार और संबंधित अधिकारियों को दी गई, लेकिन किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है.

बुनकर नेता बोले- पानी पीकर हो रही इफ्तारी

बुनकर नेता ने कहा कि अगर मदद के नाम पर यही स्थिति बनी रही, तो कोरोना से लोग बाद में मरेंगे, बुनकर भूख से पहले मर जाएंगे. रमजान के पाक माह में भी सरकार ने वादा किया था कि कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन इफ्तारी तक पानी पीकर करनी पड़ रही है.

वहीं, एक अन्य बुनकर अब्दुल बासित बताते हैं कि लॉकडाउन के चलते बनारस साड़ी उद्योग और बुनकर 50 साल पीछे हो गए हैं. बनारस में बिनकारी का काम खत्म हो गया है. सरकार जिस तरह से किसानों की मदद कर रही है, उसी तरह बुनकरों की भी मदद करे, क्योंकि किसान अन्न देता है, तो बुनकर तन ढकने के लिए कपड़ा देता है.
 
साड़ी कारोबार के पटरी पर लौटने की उम्मीद कम

बुनकर बाहुल्य इलाके सरैया के बुनकर वकील अहमद बताते हैं कि बुनकरों के पास सिर्फ 4-6 दिन के खाने का सामान था. फिर बुनकर औंधे मुंह आ गए. पावर लूम बंद हो जाने के चलते कारीगर भी जा चुके हैं. बुनकरों का लॉकडाउन में 100 फीसदी का नुकसान हो चुका है. सरकार कारोबार और खाने पीने के लिए मदद करे.
 
बुनकर इमरान बताते हैं कि लॉकडाउन के पहले उनका बुनकारी का काम ठीक था, लेकिन लॉकडाउन के दौरान सारी मशीनें बंद हो चुकी हैं. मशीनों पर ताला लग चुका है. कच्चे माल के नाम पर साड़ी बनाने का मटेरियल ताना-बाना ही नहीं मिल रहा है. अब उम्मीद नहीं है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी साड़ी कारोबार पटरी पर आ पाएगा.

भुखमरी के शिकार न हो जाएं बनारस के बुनकर

वाराणसी के साड़ी व्यापारी राहुल मेहता बताते हैं कि जब से लॉकडाउन हुआ है, तभी से बनारसी साड़ी उद्योग बैठ गया है. उसके पहले जनवरी-फरवरी माह में चीन से आने वाले रेशम पर रोक लग गई थी, जिसके चलते हालत खराब होने शुरू हो गए थे. बनारस में सवा लाख बुनकर पावर लूम या तो हैंडलूम से जुड़े हुए हैं. मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले वक्त में बनारस के बुनकर भुखमरी तक के शिकार हो सकते हैं. बनारस के ही सवा लाख बुनकरों के परिवार की बात करें, तो कुल मिलाकर बनारसी साड़ी उद्योग में मेहनत करने वाले आश्रित बुनकरों और उनके परिवार की संख्या 6 लाख से ऊपर है. PLC.

 
 

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