बदहाल रेल यात्री, बेसुध रेल प्रशासन *

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Passngers giving money for his illegal services{ निर्मल रानी **} भारत के कई महानगरों में मैट्रो रेल के सफल संचालन के बाद अब भारतीय रेल प्रशासन मोनो रेल तथा तीव्र गति से चलने वाली बुलेट ट्रेन जैसे आधुनिक एवं सुरक्षित समझी जाने वाली रेल प्रणाली पर कार्य करने की तैयारी में जुटा है। गोया भारतीय रेल अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर की रेल प्रणाली का मुकाबला करने को तत्पर है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या भारतीय रेल प्रशासन अपने वर्तमान साधारण एवं सामान्य नेटवर्क पर पूरी तरह सफलता पा चुका है? क्या वर्तमान रेल संचालन पूर्णतया उसके नियंत्रण में है? क्या भारतीय रेल में रेल यात्रियों को मिलने वाली सुख-सुविधाएं तथा सुरक्षा आदि सब कुछ सुचारू एवं नियमित हैं? इस बात का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले दिनों मैंने एक बार पुन: अमृतसर से जयनगर की लगभग 1600 किलोमीटर की यात्रा पर जाने वाली सरयू-यमुना एक्सप्रेस में तथा वापसी की यात्रा शहीद एक्सप्रेस के वातानुकूलित कोच में की तथा यह जानने का प्रयास किया कि वास्तव में स्लीपर क्लास तथा वातानुकूलित कोच के मध्य स्टाफ,टिकट निरीक्षक तथा यात्रियों की सुख-सुविधा, उनकी सुरक्षा तथा कोच की सफाई आदि को लेकर कुछ अंतर है भी या नहीं।

गौरतलब है कि उपरोक्त समूचे रेल रूट के मध्य केवल गोरखपुर जंक्शन ही अकेला रेलवे स्टेशन है जहां स$फाई कर्मचारियों द्वारा एसी कोच के शौचालय तथा उसके बाहर के थोड़े से स्थान को हवा तथा पानी के प्रेशर से मशीन द्वारा सा$फ किया जाता है तथा कोच के शीशों को चमकाने की जि़म्मेदारी भी निभाई जाती है। अन्यथा लगभग 1600 किलोमीटर लंबे इस पूरे रूट पर कोई भी सफाई कर्मचारी शौचालय साफ करना तो दूर पूरे कोच में झाड़ू,सफाई करने तक नहीं आता। परिणामस्वरूप भिखारी व नशेड़ी प्रवृति के लोग जोकि क़ानूनी तौर पर किसी ट्रेन के किसी भी कोच में चढऩे तक के हकदार भी नहीं हैं वे मनमाने तरीके से कोच में प्रवेश कर जाते हैं। और कोच में गैलरी में पड़े कूड़े-करकट की सफाई कर यात्रियों से पैसे वसूलते हैं। मज़े की बात तो यह है कि एसी कोच में चल रहा स्टाफ यह सब कुछ अपनी आंखों से देखता रहता है और मूक दर्शक बना रहता है। इस प्रकार के अवांछित लोगों का एसी कोच में सफाई के बहाने प्रवेश करना यात्रियों के सामानों की सुरक्षा के लिए भी खतरा बना रहता है। परंतु दूसरी ओर यह भी सच है कि यदि यह अवांछित नशेड़ी तथा भिखारी प्रवृति के लोग किसी भी कारणवश ही क्यों न सही यदि कोच में झाडू़-सफाई न करें तो आखर लगभग 36 घंटे की यात्रा करने वाली इस रेलगाड़ी में गंदगी का क्या आलम होगा इस बात का अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता है।Illegal sweeper in AC coach
अब ज़रा इसी वातानुकूलित कोच के टिकटधारी व आरक्षण प्राप्त एवं प्रतीक्षा सूची के रेल यात्रियों व टिकट निरीक्षक रेल कर्मियों की दशा के बारे में ग़ौर फरमाईए। रेल प्रशासन आरक्षण की कन्$फर्म सूची के रेल यात्रियों से लेकर आर एसी तथा वेटिंग लिस्ट के यात्रियों तक से वातानुकूलित टिकट के निर्धारित आरक्षण टिकट दर के हिसाब से पूरे पैसे वसूल लेता है। जबकि जहां उतने ही पैसों में कन्फर्म आरक्षण टिकट धारण करने वाला यात्री अपनी एक पूरी बर्थ पर आराम से यात्रा करने का अधिकारी होता है। वहीं यात्रा की उतनी ही कीमत देने के बाद आरएसी के यात्री को एक बर्थ पर दो व्यक्तियों के साथ कष्टदायक यात्रा करनी होती है। रेलवे का आखर यह कैसा न्याय है कि समान धनराशी देने वाले दो अलग-अलग यात्रियों के साथ अलग-अलग मापदंड अपनाया जाता है? इसके बाद प्रतीक्षा सूची के यात्रियों से भी रेल प्रशासन यात्रा के पूरे पैसे वसूल कर लेता है। जबकि प्रतीक्षा सूची के यात्रियों को आरएसी की भांति आधी बर्थ प्राप्त करने की सुविधा तक उपलब्ध नहीं होती। अब नियम के अनुसार यदि किसी यात्री द्वारा अचानक अपनी यात्रा स्थगित करने के कारण कोई बर्थ खाली मिलती है तो उस पर पहला अधिकार आरएसी के यात्रियों को बर्थ हासिल करने का है। और जब आर एसी के यात्रियों की सूची समाप्त हो जाए उसके बाद प्रतीक्षा सूची के क्रमवार यात्रियों को आरक्षण व बर्थ उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है।
परंतु हकीकत ऐसी है कि गोया रेलवे का न कोई कायदा हो न कानून। टिकट निरीक्षक द्वारा धड़ल्ले से अपनी मनमानी की जाती है। और वह अपनी मर्ज़ी से मुंह मांगे पैसे लेकर जिसे भी चाहता है उसे खाली बर्थ आबंटित कर देता है। हद तो यह है कि वह यात्री वातानुकूलित श्रेणी की आरएसी व प्रतीक्षारत सूची का टिकट धारण करने के बजाए भले ही साधारण अथवा स्लीपर क्लास का टिकटधारी ही क्यों न हो। टिकट निरीक्षक उसे भी साधारण व वातानुकूलित टिकट दर के अंतर की कीमत लेकर तथा साथ में ऊपर का ‘नज़राना’ वसूल कर उसे कोई भी खाली बर्थ आबंटित कर देता है जबकि आरएसी तथा प्रतीक्षा सूची के वातानूकूलित टिकटधारक यात्री मुंह ताकते रह जाते हैं। रेल नियम के अनुसार प्रतीक्षा सूची का वातानुकूलित यात्री कोच में प्रवेश करने का भी अधिकारी नहीं होता। यह रेल नियम भी यात्रियों के हित में कतई नहीं है। यदि प्रतीक्षारत यात्री को कोच में प्रवेश नहीं देना है फिर उसे प्रतीक्षा सूची का टिकट भी नहीं दिया जाना चाहिए। इस नियम के बावजूद अनेक प्रतीक्षा सूची के रेल यात्री एसी कोच में अनाधिकृत रूप से यात्रा करते देखे जा सकते हैं। और स्लीपर व साधारण श्रेणी की ही तरह वातानुकूलित श्रेणी में भी रास्ते के रूप में प्रयोग होने वाली गैलरी के बीचोबीच लेटे देखे जा सकते हैं। ज़ाहिर है यह स्थिति दूसरे रेल यात्रियों के लिए भी घोर असुविधा का कारण तो बनती ही है साथ-साथ आरक्षण प्राप्त यात्रियों के सामान की सुरक्षा के लिए भी खतरा साबित हो सकती है। यही नहीं बल्कि वातानुकूलित कोच के शौचालय वाले गैर वातानुकूलित भाग में भी गैर कानूनी तरीके से कब्ज़ा जमाए हुए तथा बीच रास्ते में अपना सामान रखकर यात्रा करते यात्रियों को देखा जा सकता है।
उपरोक्त पूरे प्रकरण में मुख्य भूमिका व सहमति वातानुकूलित कोच में चल रहे उन टिकट निरीक्षकों की होती है जो यात्रियों से रिश्वत लेकर उन्हें बेखौफ होकर कहीं भी लेटने-बैठने, सामान रखने या पड़े रहने की मूक सहमति दे देते हैं। मैं स्वयं अपनी वापसी की यात्रा के दौरान इस प्रकार की परेशानी उठाने की भुक्तभोगी रही। मेरे दो टिकट आरएसी कन्फर्म हुए। परंतु मेरे सामने टीटी महोदय कभी प्रतीक्षा सूची वालों को तो कभी साधारण टिकट धारकों को खाली बर्थ आबंटित करते रहे और मुझे केवल आश्वासन देते रहे कि अमुक स्टेशन के बाद यदि कोई यात्री नहीं चढ़ा तो आपको भी पूरी बर्थ आबंटित कर दी जाएगी। परंतु यात्रा समाप्त होने तक वह नौबत ही नहीं आई। इस प्रकार की धांधलीबाज़ी का खेल लगभग पूरे देश की रेल सेवा में रात के समय तब धड़ल्ले से खेला जाता है जब कि यात्री थककर नींद की आगोश में जाना चाहता है तथा इसके बदले में कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार रहता है। और ट्रेन के साथ चलने वाले टिकट निरीक्षक यात्रियों की इसी कमज़ोरी का फायदा उठाकर मजबूर यात्रियों की जेब झाडऩे में मसरूफ हो जाते हैं। इस दौरान उन्हें न तो अन्य रेल यात्रियों की सुख-सुविधा व उनकी सुरक्षा की कोई परवाह होती है न ही भारतीय रेल के कायदे-कानून व नियमों की पालना करने की कोई फ़िक्र।
यह हालात इस नतीजे पर पहुंचने के लिए काफी हैं कि भारतीय रेल भले ही मैट्रो,मोनो रेल अथवा तीव्रगति वाली बुलेट ट्रेन चलाने की योजना पर काम क्यों न कर रही हो परंतु पारंपरिक भारतीय रेल व्यवस्था का भीतरी व बुनियादी चेहरा अभी भी चुस्त-दुरुस्त तथा भरोसेमंद नहीं है। जब,जहां और जिस कोच में भी कोई भी यात्री नाजायज़ तरीके से पैसे ख़र्च कर यात्रा करना चाहे वह कर सकता है। और वह भी रेल विभाग के ‘रक्षक’ रूपी कर्मचारियों की कृपा दृष्टि से। ज़ाहिर है दूसरे देशों में तो मैट्रो रेल सेवा की तरह दूसरी आधुनिक व तीव्रगति रेल सेवाओं में उपरोक्त मनमानी जैसे हालात चलने की कोई गुंजाईश नहीं होती। परंतु हमारे देश में क्या रिश्वतखोर व भ्रष्ट रेल कर्मचारी तथा सुविधा शुल्क देकर अपनी यात्रा सुखद व सुनिश्चित करने के आदी हो चुके रेल यात्री अपनी इस ओछी प्रवृति से बाज़ आए बिना अन्य आधुनिक रेल सेवाओं को उनके निर्धारित अन्य मापदंडों के अनुसार रेल यात्रा संचालित करने देंगे भी या नहीं इस बात को लेकर हमारे देश में संशय ज़रूर बरकऱार रहेगा।
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Nirmal Rani**निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों,
पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana
phone-09729229728

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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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