बदहाल पाकिस्तान में जनक्रांति

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Dr. Tahirul Qadriतनवीर जाफरी**
पाकिस्तान इस समय निश्चित रूप से अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बुरी तरह से जूझ रहा है। पाकिस्तान को इस समय जहां भीतरी तौर पर तमाम राजनैतिक चुनौतियों का सामना है वहीं साथ-साथ आतंकवाद तथा आतंकवाद को संरक्षण देने वाली कट्टरपंथी ताकतें भी पाकिस्तान को अपने शिकंजे में पूरी तरह जकडऩे को बेताब हैं। बजाए इसके कि पाकिस्तान अपने भीतरी हालात को सुधारने में अपनी राजनैतिक ऊर्जा का प्रयोग करे उल्टे वह भारत जैसे पड़ोसी देश के साथ विवादों को बढ़ाने में लगा हुआ है। पिछले दिनों जिस प्रकार पाकिस्तान की ओर से दो भारतीय जवानों की नृशंस हत्या की गई उससे साफ ज़ाहिर हो गया कि पाकिस्तान भारत से संबंध सुधारने के बजाए फासला बनाए रखने को संभवत:अपनी एक बड़ी उपलब्धि मानता है। दूसरी ओर पाकिस्तान की सत्ता को लेकर चलने वाली खींचतान जिसमें वहीं की नाममात्र लोकतांत्रिक सरकार, पाक सेना, पाकिस्तान की न्यायपालिका तथा खुिफया एजेंसी आईएसआई और वर्तमान दौर में तेज़ी से उभरती हुई वह कट्टरपंथी शक्तियां जोकि आतंकवाद को संरक्षण दिया करती हैं, की पाकिस्तान में हो रही दखलअंदाज़ी को भी पूरी दुनिया बड़े गौर से देखती रहती है। अब तो पूरी दुनिया पाकिस्तान के प्रति इतना अधिक अविश्वास रखने लगी है कि उसे यही समझ नहीं आ रहा कि आिखर पाकिस्तान में सत्ता का मुख्य केंद्र कौन सी संस्था है।

बहरहाल इन्हीं हालात के बीच पिछले दिनों पाकिस्तान में उदारवादी धर्मगुरु सूफी मौलवी ताहिर-उल-कादरी के रूप में एक और प्रभावशाली आवाज़ ने अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराई। कादरी ने लाहौर से इस्लामाबाद तक निकाले गए अपने चार दिवसीय लाँग मार्च व धरने में पाक शासकों को हिला कर रख दिया। परिणामस्वरूप पाक शासकों को कादरी के समक्ष घुटने टेकने पड़े। कादरी का सभी प्रमुख मांगों को सरकार ने मान भी लिया। हालांकि इससे पहले भी पाकिस्तान में बड़े से बड़े मार्च अथवा रैली निकाली जा चुकी हैं। परंतु पूर्व में निकाली गई ऐसी रैलियों में आमतौर पर पक्ष विशेष या विशेष विचारधारा के लोगों का जनसमूह सडक़ों पर दिखाई देता रहा है। उदाहरण के तौर पर बेनज़ीर भुट्टो ने अपनी हत्या के दिन जिस रैली में शिरकत की थी वह भी बहुत विशाल रैली थी। परंतु यह कहना गलत नहीं होगा कि वह केवल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के समर्थकों का ही हुजूम था। इसके अतिरिक्त तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के मुखिया पूर्व क्रिकेटर इमरान खान भी अपने समर्थकों की भारी भीड़ जुटा चुके हैं। भारत का मोस्ट वंाटेड अपराधी तथा मुंबई हमलों का सबसे बड़ा मास्टरमाईंड हािफज सईद भी अमेरिका व भारत की दुश्मनी के नाम पर तथा कश्मीर मुद्दे को उछालकर व पाकिस्तान की कट्टरपंथी शक्तियों को वरगलाकर कई बार भारी जनसमूह के साथ पाकिस्तान की सडक़ों पर उतर चुका है। परंतु इन सभी रैली प्रदर्शनों से अलग ताहिर-उल-कादरी द्वारा आयोजित लाँग मार्च व इस्लामाबाद असेंबली के समक्ष किया गया प्रदर्शन प्रत्येक दृष्टिकोण से इन सभी से अलग था। इसमें कोई संदेह नहीं कि इतना विशाल जनसमूह पाकिस्तान के इतिहास में अब तक वहां का कोई भी बड़े से बड़ा नेता इक_ा नहीं कर सका। जबकि यह प्रदर्शन व लांग मार्च सीधे तौर पर पाकिस्तान की भ्रष्ट राजनैतिक व्यवस्था के विरुद्ध था। यह धरना कट्टरपंथ, आतंकवाद, रूढ़ीवादी विचारधारा आदि के िखलाफ था। पाकिस्तान का सत्ता या विपक्ष कोई भी राजनैतिक दल ताहिर-उल-कादरी द्वारा बुलाए गए इस मार्च को अपना समर्थन नहीं दे रहा था। इसके बावजूद लाखों की तादाद में इस कड़ाके की ठंड में आम लोगों का इक_ा होना इस बात का सुबूत है कि पाकिस्तान की अवाम वहां फैले भ्रष्टाचार,आतंकवाद, अराजकता, लूटमार,बेरोज़गारी, मंहगाई, सांप्रदायिकता और इन सभी की वजह से पूरी दुनिया में पाकिस्तान की हो रही फज़ीहत से बेहद दु:खी व खफा है।

ताहिर-उल-कादरी पाकिस्तानी मूल के एक ऐसे उच्च शिक्षित उदारवादी सूफी धर्मगुरु हैं जिन्होंने वकालत तथा पीएचडी जैसी डिग्रियां हासिल कर रखी हैं। वे पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी रह चुके हैं। परंतु वे 1981 से तहरीक-ए-मिन्हाजुल कुरान इंटरनेशनल नामक अपनी संस्था के बैनर तले विश्वव्यापी स्तर पर इस्लाम के उदारवादी चेहरे के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य कर रहे हैं। विश्व के दर्जनों देशों में उनकी संस्था की शाखाएं हैं तथा एक उदारवादी मुस्लिम धर्मगुरु के रूप में केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी उन्हें पसंद करते हैं। हालांकि वे इस समय स्थायी रूप से कनाडा में ही रह रहे हैं। परंतु पाकिस्तान के राजनैतिक हालात पर वे न केवल पूरी नज़र रखते हैं बल्कि समय-समय पर पाक शासकों द्वारा उनकी मदद भी ली जाती रही है। कादरी, जनरल परवेज़ मुशर्रफ के शासन काल में पाक असेंबली के सदस्य भी रह चुके हैं। आतंकवाद के शिकंजे में कसते जा रहे पाकिस्तान की पूरी दुनिया में होती फज़ीहत से दु:खी होकर ताहिर-उल-कादरी ने ही 2010 में पहली बार आतंकवाद के विरुद्ध एक विस्तृत फतवा जारी कर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था। िफलहाल उनका पाकिस्तान के किसी भी राजनैतिक दल की तरफ कोई झुकाव नज़र नहीं आता। ऐसे में कादरी के साथ पाकिस्तान के लाखों लोगों का जनसैलाब एकत्रित हो जाना इस बात का सुबूत माना जा सकता है कि भले ही वहाबी विचारधारा के संरक्षण में पल रहे तालिबानों, तहरीक-ए-तालिबान,लश्कर-ए-झांगवी अथवा अन्य कट्टरपंथी आतंकी संगठनों के डर से पाकिस्तानी अवाम उनके आह्वानों पर उनके साथ हो जाती हो या उनकी दहशत की वजह से उनकी ज़ुबान में बातें करने लग जाती हो। परंतु कादरी को मिले जनसमर्थन से तो यही मालूम होता है कि इस ज़हरीली वहाबी विचारधारा के अतिरिक्त संभवत: पाकिस्तान का प्रत्येक धर्म व समुदाय एकजुट होना चाह रहा है। शायद तभी इस्लामबाद के इस आयोजन को उन्होंने दूसरी करबला का नाम दिया तथा इसमें शरीक होने वाले लोगों की तुलना करबला में हज़रत इमाम हुसैन के समर्थकों से की। और तो और उन्होंने पाकिस्तान के शासन की भी तुलना यज़ीदी शासन से कर डाली।

अपने चार दिवसीय लांग मार्च व धरने के दौरान अपनी योग्यता का प्रदर्शन करते हुए जिस प्रकार कादरी ने पाक शासकों को आईना दिखाने की कोशिश की तथा स्वयं को सत्ता के दावेदारोंं की सूची से बाहर रखने का जो प्रयास किया उससे यह ज़ाहिर हो गया कि ताहिर-उल-कादरी के दिल में वास्तव में पाकिस्तान के रूप में उस राष्ट्र के निर्माण की गहन आकंाक्षा है जिसकी कल्पना कर मोहम्मद अली जिन्ना ने इसे अलग राष्ट्र का दर्जा दिलाया था। अर्थात् एक सेक्युलर(धर्मनिरपेक्ष)इस्लामी देश। कादरी ने पाकिस्तान के संविधान के उन सभी पहलुओं का उल्लेख किया जिसमें इस बात का जि़क्र किया गया है कि किस प्रकार के ईमानदार, चरित्रवान, सच्चे, कर्तव्यनिष्ठ, वफादार, धर्मनिरपेक्ष विचारधारा रखने वाले लोग पाक असेंबली के सदस्य बन सकते हैं। कादरी ने पाकिस्तान में शिया, हिंदू-सिख, ईसाई ,यहूदी पारसी आदि सभी धर्मों व समुदाय के लोगों व उनके धर्मसथलों की असुरक्षा पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए पाक हुक्मरानों को यह चेतावनी दी कि ऐसा खतरनाक वातावरण ही पाकिस्तान की विश्वव्यापी बदनामी का मुख्य कारण है। उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि आज पाकिस्तान में किसी भी परिवार का कोई भी व्यक्ति स्कूल, दफ्तर बाज़ार या किसी भी अन्य काम से घर से बाहर निकलता है तो उसके परिवार के लोगों को उसकी सुरक्षित घर वापसी का यकीन नहीं रहता। असुरक्षा के इस वातावरण के लिए उन्होंने भ्रष्ट सरकार तथा सरकार में इच्छाशक्ति की कमी को जि़म्मेदार बताया।

पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा रखने वाले सूफी द्वारा छेड़े गए आंदोलन के पीछे इतने बड़े जनसमूह को एकत्रित होते देखा गया है। इसे देखकर इस बात पर तो यकीन किया जा सकता है कि अभी भी पूरा पाकिस्तान तालिबानी विचारधारा तथा वहाबियत के शिकंजे से बाहर है। परंतु यह कहना भी गलत नहीं होगा कि कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा को संरक्षण देने वाले रूढ़ीवादी मुसलमानों को ईश निंदा के नाम पर पाकिस्तान का जो कानून संजीवनी प्रदान कर रहा है तथा जिस ईश निंदा कानून में सुधार करने की सलाह देने के लिए पंजाब के गर्वनर सलमान तासीर को कत्ल कर दिया गया उस कानून को लागू करने के लिए जनरल जि़या-उल-हक ने अपने शासनकाल में ताहिर-उल-कादरी जैसे विद्वान धर्मगुरु से ही मशविरा किया था। हालांकि स्वयं ताहिर-उल-कादरी अब अपने ऊपर लगने वाले इन आरोपों का खंडन भी करते हैं। परंतु बताया यही जाता है कि आज पाकिस्तान में जिस ईश निंदा कानून की आड़ में जब और जिसे चाहे मौत की सज़ा सुना दी जाती है उस कानून को जनरल जि़या उल हक ने कादरी से सलाह-मशविरे के बाद लागू किया था।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)**Tanveer Jafri ( columnist),
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0171-2535628*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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