बदलाव की राह पर भारतीय रेल

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5निर्मल रानी**,,
रेलमंत्री पवन बंसल ने पिछले दिनों रेल बजट 2013-2014 पर संसद में हुई चर्चा के दौरान कई महत्वपूर्ण बातें की हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि रेल मंत्रालय, कार्पाेरेट व सामाजिक जि़म्मेदारी के अंतर्गत् रेलवे स्टेशन पर यात्री सुविधाओं को विकसित करने के लिए कंपनियों को आमंत्रित करेगा। रेल मंत्री के अनुसार इस वर्ष रेल मंत्रालय अपने सीमित संसाधनों का इस्तेमाल सुरक्षा और बेहतर यात्री सुविधाओं के लिए करेगा। रेल मंत्री ने संसद में 19 नई रेलगाडिय़ां चलाए जाने के साथ-साथ रेल व्यवस्था व संचालन की दिशा में कुछ क्रांतिकारी फैसले लिए जाने की जो बात की है उसे देखकर तो लगता है कि भारतीय रेल शायद अब एक बड़े बदलाव की राह पर है। जहां तक पिछले दिनों रेल किराए में हुई बढ़ोतरी का प्रश्र है तो हालांकि विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ती मंहगाई को लेकर देश में आए दिन हंगामा मचा रहता है परंतु देशवासियों ने रेलमंत्री द्वारा रेल किराया बढ़ाए जाने पर न तो उस तरह कोई विशेष नाराज़गी जताई न ही कहीं से विरोध के स्वर उठते दिखाई दिए। कारण सिर्फ यही था कि जनता समझ रही थी कि आठ वर्षों तक किराया न बढ़ाने वाले सभी पूर्व रेलमंत्रियों ने रेल मंत्रालय या भारतीय रेल का कल्याण व उसके उज्जवल भविष्य के बारे में सोचने के बजाए अपने क्षेत्रीय वोट बैंक की चिंता करते हुए एक तो रेल के किराए में बढ़ोत्तरी नहीं की और दूसरा यह कि इन सभी पूर्व रेलमंत्रियों ने रेल मंत्रालय का क्षेत्रीय स्तर पर भरपूर उपयोग किया। गोया इनके द्वारा रेल मंत्रालय को अपनी राजनीति चमकाने का बेहतरीन माध्यम बनाकर रखा गया। यकीनन जिस समय चंडीगढ़ जैसे छोटे केंद्र प्रशासित प्रदेश के सांसद पवन बंसल को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रेल मंत्रालय की बागडोर सौंपी थी उसी वक्त राजनैतिक विश£ेषकों ने इस बात का अंदाज़ा लगा लिया था कि भारतीय रेल के अब न सिर्फ किराए मंहगे होंगे बल्कि इसकी चाल-ढाल, रखरखाव, सुरक्षा व तकनीक जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी कुछ न कुछ अहम बदलाव ज़रूर दिखाई देंगे।

4जहां तक रेल यात्रियों को रेलवे स्टेशन व रेलगाडिय़ों में अधिक सुविधाएं देने का प्रश्र है तो सबसे पहले इस बात पर नज़र डालनी होगी कि रेलवे स्टेशन व रेलगाडिय़ों पर यात्रियों को आिखर किन कारणों से किन-किन असुविधाओं का सामना आमतौर पर करना पड़ता है। इन असुविधाओं में तमाम असुविधाएं तो ऐसी हैं जिसके लिए रेल प्रशासन,स्टेशन अधिकारी, स्टेशन पर तैनात राज्य पुलिस व आरपीएफ सभी संयुक्त रूप से जि़म्मेदार हैं। और यह इतना बड़ा नेटवर्क है जिसे समाप्त कर पाना भले ही कठिन कार्य ज़रूर हो परंतु असंभव बिल्कुल नहीं है। उदाहरण के तौर पर प्रत्येक रेलवे स्टेशन पर पीने के पानी की हर समय ज़रूरत होती है। खासतौर पर गर्मियों में शीतल जल के लिए यात्रियों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। देश के तमाम रेलवे स्टेशन ऐसे हैं जहां स्टेशन प्रशासन के साथ वेंडर्स की मिलीभगत होती है। और जैसे ही ट्रेन के आने का समय होता है उसी समय प्लेटफार्म पर जलापूर्ति जानबूझ कर बंद करा दी जाती है। ऐसा सिर्फ इसलिए किया जाता है ताकि यात्रीगण अपनी प्यास बुझाने के लिए मजबूरीवश कोल्ड ड्रिंक, अथवा शीतल पेय पदार्थ की बोतलें खरीदने के लिए मजबूर हों। दूसरी ओर यही वेंडर इसी रेल प्रशासनिक नेटवर्क से सांठगांठ कर स्टेशन पर नकली पेय पदार्थ भी धड़ल्ले से बेचते हैं। इस समस्या से निपटना निश्चित रूप से एक बड़ी चुनौती है। रेलमंत्री को इस ओर गंभीरतापूर्वक ध्यान देना चाहिए तथा पानी जैसी अति आवश्यक सुविधा सभी रेल यात्रियों को प्रत्येक स्टेशन पर उपलब्ध कराए जाने का समुचित प्रबंध किया जाना चाहिए।

2दूसरी ओर रेलवे स्टेशन के आसपास के रिहाईशी इलाके के लोग प्लेटफार्म पर होने वाली जलापूर्ति के समय अपने घरेलू जलभंडारण के कारण कई-कई बर्तन लेकर स्टेशन पर लाईन लगा लेते हैं। इसके अलावा तमाम भिखारी जोकि रेलवे के प्लेटफार्म को अपना पुश्तैनी घर समझ बैठे हैं वे इन जलस्रोतों पर कब्ज़ा जमाए रहते हैं। यहां तक कि पानी पीने की जगह पर और खासतौर पर जहां यह लिखा होता है कि यहां नहाना व कपड़े धोना मना है उसी जगह पर बैठकर यह भगवा वस्त्रधारी भिखारी व अवांछित लोग कपड़े भी धोते हैं तथा नहाते भी हैं। इससे यात्रियों को परेशानी तो होती ही है साथ-साथ पानी की टोंटी भी अक्सर खराब हो जाती है और पानी वजह बहता रहता है। उस स्थान पर गंदगी व कीचड़ भी बहुत फैलता है। और इन लापरवाहियों के परिणामस्वरूप जलापूर्ति बाधित या बंद हो जाती है। जिसका नतीजा उन रेलयात्रियों को भुगतना पड़ता है जिनके लिए जलापूर्ति का प्रबंध रेल विभाग द्वारा तो किया जाता है। और पानी बंद होने पर उन्हें प्यासा रहना पड़ता है। यह भिखारी केवल स्टेशन के जलस्त्रोत को ही गंदा,ध्वस्त तथा प्रभावित नहीं करते बल्कि स्टेशन पर चलने वाले पंखों के नीचे यह सबसे पहले अपनी गठरी लेकर डेरा जमाए रहते हैं। स्टेशन पर रेलगाड़ी की प्रतीक्षा करने वाले यात्रियों के बैठने हेतु जो बैंच लगाई जाती हैं वह भी आमतौर पर इन्हीं भगवाधारी भिखारियों के कब्ज़े में रहा करती है। तमाम भिखारी स्टेशन पर व इसके आसपास की रेल भूमि पर ही चूल्हा जलाते हैं, खाना बनाते हैं तथा उसी जगह पर ढेरों गंदगी फैलाते हैं। इसके अलावा स्टेशन के शौचालय व स्नानगृह तक पर इनका कब्ज़ा बना रनहता है। और स्टेशन के आसपास के क्षेत्र भी यह भगवाधारी गंदा करते रहते हैं। स्टेशन के करीब पडऩे वाले शराब के ठेके पर जाकर शराब पीना और शराब पीकर वापस प्लेटफार्म पर गंदगी फैलाना, अश£ील हरकतें करना तथा आने-जाने वाले रेल यात्रियों को परेशान करना इनकी िफतरत में शामिल है। निश्चित रूप से यह सब बातें न केवल रेलयात्रियों के लिए असुविधा का कारण बनती हैं बल्कि इससे रेल विभाग को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इतना ही नहीं बल्कि इन बातों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय रेल की छवि भी धूमिल होती है।

1इसी प्रकार यह भगवाधारी भिखारी भारतीय रेल को अपनी घर की रेल समझते हैं। एक बार मैंने स्वयं एक भिखारी के मुंह से यह वाक्य सुना कि ‘रेल हमारी मां है और प्लेटफार्म हमारा बाप’। यह भिखारी ट्रेन में बेटिकट यात्रा कर केवल रेल राजस्व को ही नुकसान नहीं पहुंचाते बल्कि चलती ट्रेन में टिकटधारी यात्रियों के लिए भी परेशानी का एक बड़ा कारण बनते हैं। बिना टिकट होने के बावजूद यह सीटों पर बैठते हैं जबकि टिकटधारी यात्रियों को कई बार खड़े होकर ही यात्रा करनी पड़ती है। यदि इन्हें बैठने की सीट न मिले तो यह डिब्बों के प्रवेशद्वार पर या शौचालय के पास स्वयं भी फर्श पर बैठ जाते हैं तथा वहीं अपनी गठरी, थैला, बिस्तर आदि भी रख लेते हैं जिससे यात्रियों को आगे-पीछे निकलने व चढऩे-उतरने में काफी दिक्कत होती है। यह बेशर्म िकस्म के लोग बिना किसी कायदे-कानून या यात्रियों का लिहाज़ किए हुए बेखौफ होकर ट्रेन में बीडी़-सिगरेट भी पीते हैं जिससे तमाम यात्री असुविधा महसूस करते हैं। अपने नशे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कई जगह इनकी चोरों के साथ भी सांठगांठ है जो रेलवे के इधर-उधर पड़े कीमती सामान उठाकर ले जाते हैं। अब तो ट्रेन के शौचालयों में लगे लोहे के वाशबेसिन,मोटे पाईप,हैंडल तथा टोंटी आदि पर भी हाथ साफ किया जाने लगा है। ऐसा लगता है कि यदि इनका वश चले तो यह लोग रेल के डिब्बों को भी ढकेलकर कबाडिय़ों को बेच आएं।

निश्चित रूप से रेल मंत्रालय ने रेल सुरक्षा व बेहतर यात्री सुविधाओं के विषय में कुछ नया व करगर किए जाने के बारे में सराहनीय कदम उठाए जाने पर विचार किया है। परंतु मंत्रालय की पूरी कोशिश होनी चाहिए कि यह कदम केवल रंग-रोगऩ,सुर्खी-बिंदी तथा चमक-दमक व दिखावे तक ही सीमित न रहें बल्कि धरातल पर भी नज़र आएं। और रेल यात्रियों को इसका एहसास भी हो। इसके लिए ज़रूरी है कि भारतीय रेल मंत्रालय का एक विशेष दल चीन की यात्रा पर केवल इन्हीं बातों का अघ्ययन करने के लिए जाए और देखे कि वहां के स्टेशन व प्लेटफार्म किस प्रकार अवांछित तत्वों से अछूते हैं। किस प्रकार वहां कोई भी व्यक्ति बिना टिकट के ट्रेन व प्लेटफार्म पर प्रवेश नहीं कर पाता। चीन में स्टेशन, प्लेटफार्म व ट्रेनों का रखरखाव कैसे किया जाता है तथा बेटिकट यात्रियों पर रोक लगाने के सटीक व कारगर उपाय क्या-क्या हैं। और अवाछित तत्वों को रेल परिसर से किस तरह दूर रखा जा सकता है। भारतीय रेल को जहां सुरक्षा व यात्री सुविधाओं के लिए काफी कुछ करने की ज़रूरत है वहीं सफाई खासतौर पर स्टेशन, रेललाईन व प्लेटफार्म पर होने वाली गंदगी से भी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर उनसे निपटने की ज़रूरत है।

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Nirmal Rani*निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.Nirmal Rani (Writer)
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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