फोर्ट विलियम और पूर्वी कमान

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Tarun Kumar Singha Group Captainतरूण कुमार सिंगा*

कोलकाता में हुगली नदी के पास हावड़ा ब्रिज और विद्यासागर सेतु के बीच ऐतिहासिक किला फोर्ट विलियम स्थित है। 18वीं शताब्‍दी के उत्‍तरार्ध में बना यह किला ब्रिटिश इंडिया का सैन्‍य मुख्‍यालय था।

यह एक आश्‍चर्य है कि पुराने समय के अन्‍य किलों की तरह फोर्ट विलियम को शत्रु कभी घेर नहीं पाया। इसके प्राचीर पर तैनात तोपों को कभी भी गोले उगलने की आवश्‍यकता नहीं पड़ी।  आज यह ऐतिहासिक महत्‍व का किला भारत की सशस्‍त्र सेना के पूर्वी कमान का मुख्‍यालय है।1911 में ब्रिटिश इंडिया की राजधानी कलकता से दिल्‍ली चले जाने के बाद भी ब्रिटिश सेना के प्रतीक फोर्ट विलियम का महत्‍व कम नहीं हुआ। देश के स्‍वतंत्रता से पहले और बाद में भारतीय सेना के विकास में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाली मई 1942 में स्‍थापित 4 कोर जैसी कई प्रतिष्ठित टुकडि़यों ने बर्मा अभियान में जीत हासिल की। यह क्षेत्र अभी भी पूर्वी कमान में शामिल है, जबकि 15 कोर जैसी अन्‍य टुकडि़यां देश के अन्‍य भागों में चली गई हैं।


पहले विश्‍व युद्ध के बाद 1 नवंबर, 1920 को लखनऊ में पूर्वी कमान की स्‍थापना हुई (नैनीताल इसका ग्रीष्‍म कालीन मुख्‍यालय था) इसका प्रादेशिक अधिकार क्षेत्र दिल्‍ली, उत्‍तर प्रदेश और ओडिशा, बिहार, बंगाल और असम के अगले इलाके शामिल थे।
लगभग दो दशकों के बाद दूसरे विश्‍वयुद्ध के उपरांत अप्रैल 1942 में पूर्वी कमान को पूर्वी सेना का नाम दिया गया और इसे बर्मा मोर्चे की अतिरिक्‍त जिम्‍मेदारी भी सौंपी गई । अक्‍तूबर 1943 में 14वीं सेना के गठन और संचालन क्षेत्र की जिम्‍मेदारी मेघना नदी तक होने के बाद इसे फिर से पूर्वी कमान का नाम दिया गया, जो अभी तक कायम है।

स्‍वतंत्रता प्राप्ति के समय पूर्वी कमान का मुख्‍यालय रांची में था, जो बाद में लखनऊ बना और 8 वर्षों के बाद यह फिर अपने वा‍स्‍तविक मुकाम यानि कोलकाता में फोर्ट विलियम में  पहुंच गया।

पूर्वी कमान के संघर्ष और उपलब्धियांस्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद उत्‍तरपूर्वी फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) की गतिविधियों के दौरान राजनीतिक और सैन्‍य स्‍तर पर बहुत सारी बातें सामने आईं। दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद 4 कोर के मुख्‍यालय को हटा दिया गया था और उसे फिर से 4 अक्‍तूबर, 1962 में असम में तेजपुर में स्‍थापित किया गया।

1971 में पूर्वी कमान के तत्‍कालीन जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने दूसरे विश्‍व युद्ध की समाप्ति के बाद इतिहास के सबसे बड़े सैन्‍य समर्पण को अंजाम दिया। वास्‍तव में वह दिन भारतीय सेना के इतिहास में अति महत्‍वूपर्ण दिन था। भारतीय सशस्‍त्र सेनाओं ने आश्‍चर्य चकित करने वाली एक बहुत बड़ी यादगार जीत हासिल की थी, जिसके परिणास्‍वरूप बांगला देश आजाद हुआ। सेना के साहसपूर्ण और तेज रफ्तार संचालन ने  दुश्‍मनो के हौसले पस्‍त कर दिये थे।
पाकिस्‍तानी सेना के 93 हजार से अधिक सैनिकों को युद्ध बंदी बना लिया गया। यह जीत भारतीय सशस्‍त्र सेनाओं के लिए गौरव का क्षण था। जिस दिन 16 दिसंबर को पाकिस्‍तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने समर्पण के दस्‍तावेज पर हस्‍ताक्षर किये, उस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।पूर्वी कमान विजय दिवस को फोर्ट विलियम में बड़े पैमाने पर मनाती है। हर साल इस अवसर पर मुक्ति योद्धाओं और भारत के जांबाज सैन्‍य अधिकारियों और जवानों का पूर्वी कमान द्वारा स्‍वागत किया जाता है। पिछले वर्ष दिसंबर में विजय दिवस के समारोह में शहीद लान्‍स नायक अलबर्ट एक्‍का, जो इस युद्ध के एकमात्र परवीर चक्र विजेता थे, की पत्‍नी वीर नारी श्रीमती बालमदीना और बेटे विन्‍सेंट एक्‍का ने भी समारोह में शामिल होकर इसकी गरिमा बढ़ाई।

शांति के  प्रयास

स्‍वतंत्रता प्राप्ति  के बाद से पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में बाहरी शत्रुओं की बजाय अंदर के विद्रोहियों ने संकट की स्थिति पैदा की। सबसे पहले नागालैंड के विद्रोहियों ने सिर उठाया। 1963 में नागालैंड राज्‍य का गठन हुआ। राज्‍य में विद्रोहियों का मुकाबला करने के लिए उसी वर्ष 8 माउंटेन डिवीजन का गठन किया गया।

नई टुकडि़यों के जवानों को भर्ती से पहले प्रशिक्षण देने के लिए मिजोरम में वैरांगते में विद्रोह – रोधी और जंगल युद्ध का स्‍कूल खोला गया। आज यह स्‍कूल उत्‍कृ‍ष्‍टता का केंद्र बन चुका है, जहां विदेशी सैनिक भी प्रशिक्षण या संयुक्‍त अभ्‍यास के लिए आते है, ताकि जहां कहीं विद्रोह की स्थिति हो, वहां शांति की स्‍थापना के लिए कार्रवाई की जाए।

नेशनल सोशलिस्‍ट कौंसिल ऑफ नागालैंड जैसे शक्तिशाली भूमिगत संगठन का मुकाबला करने के लिए फरवरी 1985 में मुख्‍यालय में 3 कोर की स्‍थापना की गई, ताकि विद्रोह का मुकाबला करने में सभी सैनिकों के बीच तालमेल रखा जा सके।

मिजोरम और त्रिपुरा में भी इसी तरह की विद्रोहियां गतिविधियां पैदा हुईं। भारतीय सेना ने लगातार कार्रवाई करके मिजो नेशनल फ्रंट की गतिविधियों को दबाया। इसी बीच मणिपुर में पीपल्‍स लिब्रेशन आर्मी ने सर उठाया और पूर्वी कमान की सशस्‍त्र टुकडि़यों ने इस क्षेत्र में शांति के लिए इसका मुकाबला किया।
असम की मूल जनसंख्‍या द्वारा बाहरी लोगों की मौजूदगी के खिलाफ पहले आंदोलन हुए और फिर एक अलगाववादी संगठन बना। 1985 में हुए असम समझौते से विद्रोही गतिविधियों पर काबू पाने में खास सफलता नहीं मिली। सेना द्वारा किये गए प्रयासों से ही इस राज्‍य में शांति स्‍थापना में मदद मिली।

पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में विद्रोहियों गतिविधियों पर काबू पाने के अलावा पूर्वी कमान और इसकी टुकडि़यों ने आंतरिक सुरक्षा की विषम परिस्थितियों में भी दृढ़ता के साथ काम किया। और कम से कम ताकत के इस्‍तेमाल से स्थिति को संभालने में प्रशासन की सहायता की।

स्‍वर्णिम उपलब्धियां

स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद से पूर्वी  कमान ने सक्रिय भूमिका निभाई है। उनकी कुर्बानी ने उन्‍हें विशिष्‍ट सम्‍मान और पुरस्कार दिलवाये है। जनरल के करियप्‍पा, जो 15 जनवरी, 1949 को भारतीय सेना के पहले कमांडर -इन -चीफ बने, आजादी के बाद कुछ समय तक पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ भी रहे। उन्‍हें 1996 में फील्‍ड मार्शल की उपाधि दी गई। इसी प्रकार फील्‍ड मार्शल एसएचएफजे मानेकशा, जिन्‍होंने 1971 के युद्ध में भारतीय सेना को विजय दिलाई थी और जो 1975 के बाद भारत के पहले फील्‍ड मार्शल बने थे, वे भी पूर्वी कमान के प्रतिष्ठित सेना कमांडर थे।

वर्तमान सेनाध्‍यक्ष जनरल विक्रम सिंह भी पूर्वी सेना के कमांडर रहे। उनसे पहले जनरल पीपी कुमार मंगलम, एएस वैद्य, वीएन शर्मा और वीके सिंह भी पूर्वी सेना के कमांडर रह चुके हैं।

राष्‍ट्रीय सुरक्षा और पांच पड़ोसी देशों के साथ लगती भू-सीमाओं तथा कई पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में चुनौतियों का मुकाबला करने वाली पूर्वी कमान आगे आने वर्षों में भी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।

*ग्रुप कैप्‍टन सीपीआरओ, रक्षा मंत्रालय कोलकाता

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