फतवेबाज़ों के विवादित फतवे

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–  तनवीर जाफरी –

भारतीय समाज की आर्थिक सुरक्षा,संपन्नता तथा ज़रूरत पडऩे पर उसकी आर्थिक सहायता किए जाने जैसे बुलंद हौसले के साथ जिस समय खान बहादुर हाजी अब्दुल्ला हाजी कासिम साहब बहादुर ने आज से लगभग 112 वर्ष पूर्व 12 मार्च 1906 ईसवी को उडुपी में जब भारत के एक प्रतिष्ठित ‘कारपोरेशन बैंक’ की बुनियाद रखने जैसा जन व राष्ट्रहितकारी फैसला लिया था उस समय शायद उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि भविष्य में उन्हें अपने इस आर्थिक प्रतिष्ठान को चुनौती देने वाले फतवों का भी सामना करना पड़ेगा। इसी प्रकार 1939 में एक और महान दूरदर्शी शेख मोहम्मद अली अल्ला बख्श तथा पद्मश्री ज़ेन जी रंगूनवाला ने न केवल भारत बल्कि एशिया के लगभग सबसे विशाल कोआपरेटिव बैंक बांबे मर्केनटाईल बैंक(बीएमसी) की आधारशिला रखी होगी तो शायद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि भविष्य में फतवेबाज़ों की क़हर भरी निगाह उन पर भी पडऩे वाली है। आज भारत सहित कई एशियाई देशों में इस सहकारी बैंक के भी एक मिलियन से अधिक संरक्षक हैं तथा लगभग एक लाख 90 हज़ार शेयर होल्डर्स के विश्वास के साथ इस बैंक का सफलतापूर्वक संचालन हो रहा है। तो क्या इन प्रतिष्ठानों में काम करने वाले लोग नाकारा हैं,मुफ्तखोरे हैं,सूद और ब्याज के पैसों से उनकी व उनके परिवार के लोगों की परवरिश हो रही है? क्या बैंकिग व्यवसाय से जुड़े लोगों के साथ मुस्लिम परिवार के लोगों को शादी-विवाह नहीं करना चाहिए?

जी हां दारूल-उलूम देवबंद के फतवा विभाग से पिछले दिनों जारी किया गया इसी प्रकार का विवादित फतवा तो कम से कम हमें यही निर्देश देता है। किसी व्यक्ति द्वारा बैंक कर्मचारी से रिश्ता करने या न करने के संबंध में अपनी शंका समाधान को लेकर यह सवाल पूछा गया था कि चूंकि बैंकिंग तंत्र पूरी तरह से सूद-ब्याज पर आधारित है जो इस्लाम में हराम है। क्या ऐसे परिवार में शादी की जा सकती है? इस प्रश्र के उत्तर में एक फतवे के माध्यम से मुसलमानों को निर्देश देते हुए कहा गया कि वे ऐसे परिवारों से दूर रहें जो बैंकिंग सेक्टर में नौकरी कर रुपये कमा रहे हों। फतवे के अनुसार ऐसे रुपये हराम हैं। इस तरह के परिवार में शादी नहीं करनी चाहिए जो हराम की कमाई कर रहे हों। उसके विपरीत किसी नेक घर में रिश्ता तलाशना चाहिए। यदि इन फतवेबाज़ों की मानें तो गीत-संगीत,िफल्म उद्योग,नशीली वस्तुओं व दवाईयों के कारोबार,दूसरे धर्मों व समुदायों से जुड़े या दूसरे धर्मस्थलों से जुड़े व्यवसाय यहां तक कि विभिन्न फतवेबाज़ों की निजी आस्थाओं तथा विश्वास के विरुद्ध मुसलमानों ही द्वारा अमल में लाए जाने वाली अनेक गतिविधियां ऐसी हैं जो इन फतवेबाज़ों को नहीं भातीं। फतवेबाज़ों को तो शायर भी जहन्नुमी नज़र आते हैं। ले-देकर इन्हें अपनी जमात के लोगों में कोई ऐब नज़र नहीं आता। जबकि दरअसल धार्मिेक गतिविधियों या सेवाओं को अंजाम देकर उसे अपने जीविकोपार्जन का सहारा बनाना ही गैर इस्लामी है।

यदि इन फतवेबाज़ों की बातों को माना जाए फिर आिखर पहले से ही बेरोज़गारी,अशिक्षा और गरीबी व मुफलिसी का सामना कर रहे मुस्लिम समाज के पास मौलवी,मुफ्ती,पेश इमाम या हािफज़ बनने के सिवा और चारा ही क्या रह जाएगा? प्राय: मैं सोचता रहता हूं कि खान बहादुर हाजी अब्दुल्ला हाजी कासिम साहब बहादुर और शेख मोहम्मद अली अल्ला बख्श व पद्मश्री ज़ेन जी रंगूनवाला जैसे दूरदृष्टि रखने वाले वह भारतीय मुसलमान जिनपर भारतीय बैंकिंग सेक्टर गर्व करता है,जिन महानुभावों के चित्र इनके द्वारा स्थापित बैंकों की हज़ारों शाखाओं में लगे हुए हैं जो इनके कर्मचारियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं आिखर वे लोग ज़्यादा बुद्धिमान थे,दूरदृष्टि रखते थे या आजके दौर के यह छद्म फतवेबाज़? क्या इन फतवेबाज़ों ने पाकिस्तान व सऊदी अरब जैसे तथाकथित इस्लामी देशों के राजनेताओं व सत्ता से जुड़े धनाढ्य शेख़ों की वास्तविकता देखने की कभी कोशिश की है? अभी कुछ ही दिन पहले नवाज़ शरीफ व उनके परिवार के सदस्यों को नाजायज़ तौर पर विदेशों में पैसे रखने के इल्ज़ाम में अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। यही हालात सऊदी अरब के कई शहज़ादों के भी हैं। दुनिया भर के तथाकथित इस्लामी प्रतीकों,शिक्षाओं तथा इतिहास के बावजूद इन दोनों ही देशों में इस्लाम के बताए हुए रास्तों पर चलने की क्या हकीकत है यह पूरी दुनिया जानती है। ऐसे में ले-देकर भारतीय मुसलमान संभवत: वर्तमान संकटकालीन दौर में भी भारत में जिस सुख और शांति तथा भाईचारे के साथ अपना जीवन बसर कर रहे हैं और अपनी धार्मिक मान्यताओं पर ही अमल कर रहे हैं उतना शायद अरब व पाकिस्तान जैसे देशों में भी नहीं करते हैं।

मैं स्वयं ऐसे दर्जनों मुस्लिम लोगों को जानता हूं जो भारतीय बैंकों में अपनी सेवाएं देते हैं। इनमें कई महिलाएं भी हैं। इनमें अनेक ऐसे भी हैं जो पांचो वक्त की नमाज़ नियमित रूप से अदा करते हैं और कई ऐसे भी हैं जो हज जैसे पुनीत कार्य को भी अंजाम दे चुके हैं। ऐसे परिवारों के बच्चे निहायत शालीन,शिक्षित,अनुशासित तथा धर्म व समाज के मध्य तालमेल बिठाते हुए अपना जीवन यापन करने की पूरी सलाहियत रखते हैं। परंतु अफसोसकी बात यह है कि एक पेशेवर फतवेबाज़ की नज़र में ऐसे परिवार शादी करने के लायक ही नहीं हैं? मुझे लिखना तो नहीं चाहिए परंतु यहां लिखे बिना रहा भी नहीं जाता। मेरे ख्याल से यदि किसी शिक्षित मुस्लिम परिवार के समक्ष बैंक कर्मचारी व किसी फतवेबाज़ के बच्चे से शादी करने हेतु किसी एक विकल्प को चुनने के लिए कहा जाए तो निश्चित रूप से वह बैंक कर्मचारी के बच्चे से ही शादी करना चाहेगा किसी फतवेबाज़ के बच्चे से नहीं। अभी कुछ ही समय पहले की तो बात है जब ऐसे ही बेतुके फतवों की बरसात तथा इनके कारण उपजे विवादों के मध्य देश के एक प्रमुख टीवी चैनल द्वारा उत्तर प्रदेश तथा बिहार के कई मौलवियों से फतवा जारी करवाने का स्टिंग आप्रेशन किया गया था। इस आप्रेशन में साफतौर पर देखा गया था कि किस प्रकार एक फतवेबाज़ मौलवी ने पहले तो फतवा देने से मना किया फिर उसी ने पैसों की लालच में वही मनमुआिफक फतवा दे भी दिया जिसे बिना पैसा लिए देने से वह मना कर रहा था।

वैसे भी फतवा,फतवेबाज़ तथा मुसलमानों को लेकर एक बात बड़ी ही दिलचस्प है कि जब कभी किसी इस्लामिक प्रतिष्ठान से जुड़े किसी फतवे की बात होती है तो पूरा का पूरा गैर मुस्लिम समाज इसे समस्त मुसलमानों के लिए जारी इस्लामिक दिशा निर्देश के रूप में देखता है। ठीक उसी तरह जैसे पिछले दिनों तीन तलाक के विषय को समस्त भारतीय मुसलमानों मे पाए जाने वाली समस्या के रूप में प्रचारित किया गया जबकि तीन तलाक का विषय संपूर्ण भारतीय मुस्लिम समाज से जुड़ा विषय था ही नहीं। ठीक इसी प्रकार किसी इस्लामिक केंद्र द्वारा जारी किया गया कोई भी फतवा समग्र मुस्लिम समाज पर लागू होने वाला फतवा हो ऐसा भी ज़रूरी नहीं हैं। परंतु यह ज़रूर है कि इस्लामी संस्थानों से जुड़ा किसी भी प्रकार का फतवा गैर मुस्लिमों की नज़रों में समूचे मुसलमानों से जुड़ा विषय ज़रूर प्रतीत होने लगता है। इसलिए फतवेबाज़ों को भी इस बात पर एहतियात बरतनी चाहिए कि वे ऐसे कोई भी धार्मिक दिशा निर्देश जारी करने से बाज़ आएं जो तथ्यों तथा वास्तविकताओं से दूर हों,जिनसे समाज में फतवेबाज़ों की स्थिति हास्यास्पद हो और जो मुस्लिम समाज को प्रगति के बजाए दुर्गति की राह पर लगाते हैं।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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