प्रोफ़े. राम स्वरुप ‘सिंदूर’ की गजलें

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कुछ दूर से देखें, कि बहुत ही क़रीब से !
मैं आपको मिलूँगा लटकता सलीब से !!

दुनिया को बहुत प्यार रहा है अदीब से !
यानी नसीब – वाले, किसी बदनसीब से !!

मेरी नजर इलाज के काबिल नहीं रही !
दिखते हैं बादशाह भी मुझको ग़रीब से !!

मैं ख़ुशबुओ के साथ कहाँ से कहाँ गया !
नापो न मेरे दायरे, यारो ! जरीब से !!

‘सिंदूर’ क्यों नसीब पे ख़्वाबों को छोड़ दें !
क़ुव्वत है बाजुओं मैं अभी तो नसीब से !!

मैं बिल्कुल अनजाने में
आ बैठा मैंखाने में

साकी तो है एक मगर ,
दिखता हर पैमाने में !

जीना मुश्किल होता है ,
क्या लगता मर जाने में !

जुर्म न वो बतलाये है,
दिल मांगे हर्जाने में !

देखा तुझ को दो पल ही,

तुझ सा नहीं ज़माने में !

फ़र्क बहुत कम होता है,
दीवाने, दीवाने में !

मुझे महारत हासिल है,
अब ख़ुद को समझाने में !

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अब जाकर-के यारों ने ये जाना है !

दुनिया मैं मुझ-जैसा भी दीवाना है !!

 

बहुत-बहुत जल्दी है, पर मैं संभल चलूँ,

मुझे न फिर लौट, यहाँ पर आना है!

 

ये दुनिया रोने की आदी, रोतीं है,

मेरे होठों पर अलमस्त तराना है!

 

दुनिया अपने मतलब की ही बात करे

मुझको, अपने को ही समझाना है !

 

जर्रे-जर्रे मैं ढूंढा ‘सिन्दूर’ तुझे,

नया ठिकाना, क्या कोई तहख़ाना है !

हूक उठी तो गाने दे !

बेकल दिल बहलाने दे !!

 

धोका देने वाले को दे ,

जीवन भर पछताने !!

 

कर तो लिया होम तूने ,

हाथ जले जल जाने दे !!

 

अब हो गया साथ उसका ,

रोम-रोम लहराने दे !!

 

ग़ायब है ‘सिन्दूर’ कहाँ ,

उसको पता लगाने दे !!

सूरज की ये करामत है !

मेरे हिस्से सिर्फ़ रात है !!

 

ख़ुद से जीत न पाता है जो !

उसकी तो हर जगह मत है !!

 

दुनिया उसकी वो दुनिया का !

हाथ कि उसका जगन्नाथ है !!

 

अब ‘सिंदूर’ वहां रहता है !

जहाँ न दिन है ‘औ’ न रात है !!

जहाँ न दिन है ‘औ’ न रात है !!

 

sndoor 14.09.2010. 4प्रोफे. राम स्वरुप ‘सिन्दूर’

उपनाम           :     सिंदूर
जन्म              :    २७ सितम्बर, १९३०
देहावसान        :    २५ जनवरी, २०१३
जन्म               :    ग्राम  : दहगवां , जिला  : जालौन
पिता                :    स्व. राम प्रसाद गुप्त
माता                :    स्व. सरजू देवी
शिक्षा                :    एम.ए. ( हिन्दी साहित्य )
सम्प्रति            :    हिन्दी विभाग , डी.ए.वी (पी. जी.) कालेज कानपूर से सेवा निवृत
काव्य संग्रह      :    हँसते लोचन रोते.प्राण / तिरंगा जिंदाबाद / अभियान बेला / आत्म-रति    तेरे लिये / शव्द के संचरण मैं / मैं सफ़र में हूँ
सम्मान               :    साहित्य भूषण सम्मान ( उ.प्र. हिन्दी संस्थान) २००२ / रस वल्लरी सम्मान / सारस्वत सम्मान ( भारतीय साहित्य सम्मलेन , प्रयाग ) / सागरिका  विशिष्ट सम्मान / प्रथम मनीन्द्र सम्मान २००५ / नटराज सम्मान – १९८४ ( कानपूर )/ राष्ट्रीय काव्य – सम्मान १९६२ लखनऊ / चेतना गौरव सर्वोच्च सम्मान २००१

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