प्रेमचंद के साहित्य में पूरी मानवता दिखती है : उदय प्रताप सिंह

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लखनऊ,
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में कथाकार प्रेमचंद जयन्ती समारोह का आयोजन मा0 श्री उदय प्रताप सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में प्रेमचंद सभागार, हिन्दी भवन, लखनऊ में किया गया। दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा एवं प्रेमचंद जी के चित्र पर पुष्पांजलि के अनन्तर प्रारम्भ हुई संगोष्ठी में वाणी वन्दना की संगीतमय प्रस्तुति सुश्री मीतू मिश्रा द्वारा की गयी। मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत डॉ0 सुधाकर अदीब, निदेशक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया। रोह के अवसर पर संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका साहित्य भारती के प्रेमचंद विशेषांक का लोकार्पण मा0 कार्यकारी अध्यक्ष एवं मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।
अभ्यागतों का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ0 सुधाकर अदीब, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने कहा – ऐसा बताते हैं कि बांग्ला कथा साहित्य के महान उपन्यासकार शरत्चंद्र चटर्जी ने किसी प्रकाशक के यहॉं ‘गोदान’ की पाण्डुलिपि देखी और उत्सुक्तावश वह उसे पूरी पढ़ गये। उन्होंने ही प्रेमचंद जी के नाम के आगे ‘उपन्यास सम्राट‘ लिख दिया। यह एक साहित्य जगत की ऐसी ऐतिहासिक घटना है जब एक महान लेखक ने किसी दूसरे महान लेखक को ऐसी मान्यता अैर ऐसा दुर्लभ सम्मान प्रदान किया। बांग्ला और हिन्दी कथा साहित्य जगत में शरत्चन्द्र अैर प्रेंमचंद दोनों ही शिखर पुरुष हैं। साहित्यिक अवदान के धरातल पर प्रायः दोनों को ही समकक्ष आँका जाता है।
प्रेमचंद जी ने गोदान में भारतीय किसानों के दुख दर्द को जितनी गहराई के साथ देखा, भोगा और अभिव्यक्त किया है, वैसा कोई दूसरा कथाकार उस तरह से शायद ही कर सका हो। क्योंकि -‘गोदान‘ में प्रेमचंद एक जगह होरी के पुत्र गोबर के माध्यम से कहते हैं- ‘‘अपना भाग्य खुद बनाना होगा। अपनी बुद्धि और साहस से इन आफतों पर विजय पाना होगा। कोई देवता, कोई गुप्त शक्ति तुम्हारी मदद करने न आयेगी।’’ किसानों, भूमिहीन किसानों और श्रमिकों का ग्रामों से पलायन, विस्थापन और आत्महत्याएं तक किस रूप में आज विद्यमान हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।
हिन्दी कथा साहित्य में कृषक जीवन और ‘गोदान‘ विषय पर व्याख्यान देतेे हुए श्री षिवमूर्ति जी ने कहा – प्रेमचंद ने गोवर्धन को गोबर की संज्ञा प्रदान कर जो कृषक जीवन का चित्रण किया है वह पूर्ण रूप से ग्रामीण जीवन का चित्रण है। ‘आधा गाँव‘, ‘जिन्दगीनामा‘ उपन्यासों में ग्राम्य जीवन तो मिलता है लेकिन किसान के जीवन का दुःख दर्द नहीं मिलता वृतान्तों को बताते हुए कहा – होरी का आलू चोरों ने रात में खोद लिया। होरी गाय खरीद कर लाता है धनिया से पूँछता है कहाँ बाँधी जाय उनके भोलेपन का वर्णन करते हुए लिखते हैं वह कहता है कि दरवाजे के सामने बाँधी जाय जिससे गाँव के लोग देख सकें। किसान पहले भी उपेक्षित था और आज भी उपेक्षित है। उनका शोषण होता  ही  चला आ रहा है। क्या किसान का दुःख दर्द आज दूर हो चुका है गाँव के लोग ही गाँव को लूट रहे हैं। किसानों को उठाने के नये-नये तरीके आज निकल आये हैं। प्रेमचंद के बाद हिन्दी लेखकों में किसानों के दुःख को वर्णन करने मंे
असमर्थता सी दिखती है। वर्तमान में किसान की स्थिति भयावह है। अब कोई प्रेमचंद फिर आयेगा तभी किसानों की दशा सुधरेगी। गोदान में किसानों की दुर्दशा का वर्णन आसाधाण है।
हिन्दी कथा साहित्य में कृषक जीवन और ‘गोदान‘ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए गोरखपुर से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0 रामदेव शुक्ल जी ने कहा – वर्तमान में लेखकांे, साहित्यकारों, बुद्धजीवियों को जगाने वाला नहीं मिलता है। गाँव की चर्चा शहरों में बैठ कर होगी तो उसका विदू्रप चेहरा ही निकल कर सामने आयेगा। प्रेमचंद विजन के कथाकार हैं वे केवल एक विषय नहीं लेकर लिखते हैं बल्कि उनका दृष्टिकोण व्यापक है। प्रेमचंद ने सेवासदन में पुरुष की क्रूरता का वर्णन किया है। प्रेमचंद की लेखनी में किसान हमेशा छाया रहता है। श्री शुक्ल ने मानसरोवर, प्रेमाश्रम, कर्मभूमि आदि में किये गये समाज के चित्रण को भी सुनाया। प्रेमचंद अपने उपन्यासांे में किसानों की समस्यायों का वीभत्स वर्णन करते हैं। उस समय किसान कर्ज, लगान से त्रस्त था। गोदान में होरी वास्तविक नायक के रूप में उभर कर सामने आता है। प्रेमचंद कलम के जादूगर थे। अद्भुत कथाशिल्पी थे।
अध्यक्षीय सम्बोधन देते हुए संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष, मा0 उदय प्रताप सिंह ने कहा – वर्तमान में प्रेमचंद जैसा लेखक, साहित्यकार क्यों नहीं मिलता है जो समाज, किसान की समस्यायों को दृढता से उजागर कर सके। उन्होंने एक शेर के माध्यम से – हर देवता की आँखें हैं, पुतली भी हैं, लेकिन दृष्टि है की नहीं। अपनी बात कही। प्रेमचंद की दृष्टि व्यापक थी जबकि उस समय के अधिकतर साहित्यकारों ने मनोरंजनात्मकता को प्रमुखता प्रदान की। प्रेमचंद के साहित्य में पूरी मानवता दिखती है। उनके साहित्य में पूरा समाज समाया हुआ है। उनका दृष्टिकोण व्यापक था। वे जन-जन के कथाकार हैं।
कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 अमिता दुबे, प्रकाशन अधिकारी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।

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