प्राकृतिक सौन्दर्य व मनुष्यों के जीवन में खुशियों से आनंदित करने ऋतुओं का राजा बसंत आया

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– विनीता कुमारी – 

ऋतुओं का राजा वसंत का आगमन चातुर्दिक दिशाओं में बादशाहियत का मकरंद हवाओं में फैलाना किसी राजसी ठाट से कम नहीं है। वासंतिक बयार में प्रकृति तो सराबोर है ही इसके साथ मानवों में भी गजब की उल्लास छाई है।तभी तो प्रकृति के साथ-साथ विकृत समाज भी ऋतुराज के आगमन का स्वागत करने के लिए आतुर दिखाई पड़ती है। प्रकृति अपने सौंदर्य का रसास्वादन सबको कराती है।भारत मे फरवरी और मार्च मे इस ऋतु का आगमन होता है। बहुत सुहावनी ऋतु है यह। इस ऋतु में सम जलवायु रहती है अर्थात् सर्दी और गर्मी की अधिकता नहीं होती है। इस ऋतु में प्रकृति में कई प्रकार से सुखद बदलाव दृष्टिगोचर होते हैं। इसलिए इसे ऋतुओं का राजा या ऋतुराज भी कहा जाता है।

बसंत के आते ही नौजवानों में एक नए जीवन का संचार होता है साथ ही साथ बच्चे और बूढ़े भी इस ऋतु का छककर आनंद लेते हैं। पूरी प्रकृति फल-फूलों से लद जाते हैं,पीली सरसों की बालियां अठखेलियां करते हुए ऐसे झूमते हैं जैसे एक-दूसरे से लिपट कर अपनी खुशी का उद्दगार व्यक्त कर रही हो। अपनी पीली फूल रूपी साड़ी के आंचल से पूरी पृथ्वी को ढकने का अथक प्रयास कर रही हो, ऐसा कहा जाता है कि इस ऋतु में पत्थर दिल इंसान के अंदर भी प्रेम की अंकुर का प्रस्फुटन होने लगती है।

कामदेव को वसंत का दूत माना जाता है। क्योंकि कामदेव ही मानव जीवन में उमंग भरते हैं और जीवन के सभी क्रियाकलाप दुगने उत्साह से संचालित होते हैं। जीवन में नीरसता को वसंत ऋतु के बहाने खुशहाली भरा जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने भी वसंत ऋतु के बारे में भी गीता में कहा है- “रितुओं में वसंत मैं ही हूँ ।”

प्रकृति कासमशीतोष्ण होते ही लोग अपने आप को गर्म कपड़ों के लपटों से मुक्त होने लगते हैं।गर्मी और ठंड दोनों का असर समान होने से दोनों मौसमों का आनंद लेते हैं।इस ऋतु में अमराइयों में कोयल की कूक से ग्रीष्म ऋतु के कदमों की आहट सुनाई देती है।वसंत ऋतु अपने साथ कई पर्व-त्योहारों को भी आम जीवन में रस-रंग घोलने के लिए साथ लाती है।बसंत पंचमी, शिवरात्रि तथा होली इसी हर्षोल्लास एवं भाईचारे का प्रतीक है।

कवि लेखक और विद्वान वृंद भी अपनी लेखनी का प्रयोग इस ऋतु की महिमा मंडन करने में अपने आप को रोक नहीं पाते कुछ दशक पहले कवियों के समूह में उनका नाम अग्रणी है, जिन्होंने इस प्राकृतिक बदलाव का बखान अपनी कविताओं में किया।जैसे-निराला जी का ‘सखि वसंत आया’,सुभद्रा कुमारी चौहान का- ‘वीरों का कैसा हो वसंत’, इत्यादि।

देखा जाए तो आज की शहरी संस्कृति में वसंत ऋतु का उत्साह कुछ तो कम है एक ओर प्रकृति का प्रदूषित होना दूसरी ओर प्रकृति का अंधाधुंध दोहन होना। जितनी मात्रा में वनस्पति की कटाई होती है, उतनी मात्रा में उनका रोपण नहीं होना।शहरीकरण के तेज रफ्तार में वृक्षों का कटाव जिसके कारण ऑक्सीजन की कमी से लोग दो-चार होते रहते हैं।नए रोगों का जन्म होना सुनिश्चित हो जाता है।ऊपर से दौड़ती-भागती जिंदगी में वसंत की सौंदर्य का अवलोकन करने का  भी समय नहीं होता।पेड़ों ने कब अपने पुराने पत्ते गिराकर नई कोपले धारण किए?कब नए फूल हवा मेंअपनीखुशबू बिखेरे?कबतितलियां इन कारसास्वादन किया?कुछ भी मालूम नहीं..। मनुष्य अपनी सभ्यता और संस्कृति से अनजान होता जा रहा है।अपनी मातृभूमि की सोंधी महक को भी पहचान नहीं पाता है।किंतु वसंत ऋतु किसी की परवाह किए बगैर अपने सौंदर्य की छटा दिखाता ही है।वसंत ऋतु बहुत ही प्रभावशाली होती है; जब यह आती है, तो प्रकृति में सबकुछ जाग्रत कर देती हैं; जैसे- पेड़, पौधे, घास, फूल, फसलें, पशु, पक्षी,मनुष्य और अन्य जीवित वस्तुओं को सर्दी के मौसम की लम्बी नींद से जगाती है। मनुष्य नए और हल्के कपड़े पहनने लगते हैं, पेड़ों पर नई पत्तियाँ और शाखाएं आती है और फूल खेत-खलिहानों, जंगलो, पहाड़ों एवं बागों  में तरोताजा और रंगीन हो जाते हैं। सभी जगह मैदान घासों से भर जाते हैं और इस प्रकार पूरी प्रकृति हरी-भरी और ताजी लगने लगती है।वसंत ऋतु का मौसम सभी मौसमों का राजा माना जाता है। वसंत ऋतु के दौरान प्रकृति अपने सबसे सुन्दर रुप में इस पवित्र-धरा पर प्रकट होती है और हमारे हृदय को आनंद से भर देती है।सचमुच ‘वसंत’ ऐश्वर्या,सौंदर्यता और उन्नतशीलता का ही दूसरा नाम है।

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परिचय -:

विनीता कुमारी

समाजसेवी एवं लेखिका

स्वामी विवेकानन्द मिशन गढ़गांव, राँची, झारखण्ड में कार्यरत

संपर्क -:  E: svmission12@gmail.com

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