**प्रधानमंत्री पद के दावेदारों के पैरों तले खिसकती ज़मीन

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**तनवीर जाफरी

भारतीय राजनीति में इन दिनों क्वसूत न कपास जुलाहों में ल_म-ल_ां वाली कहावत को हूबहू चरितार्थ होती देखा जा सकता है। हालांकि लोकसभा चुनाव अभी 2014 में होने हैं परंतु क्वकौन बनेगा प्रधानमंत्रीं इस बात को लेकर देश के कुछ प्रमुख नेताओं में काफी होड़ मची हुई है। सक्रिय राजनीति से बैकफुट पर जा चुके लाल कृष्ण अडवाणी,मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की çफलहाल पतली हो रही हालत को देखकर एक बार फिर यह आस लगा बैठे हैं कि हो सकता है उनके राजनैतिक जीवन के  इस अंतिम पड़ाव में ही सही पर शायद इसी बार उनकी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा पूरी हो जाए। उधर गुजरात के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के सामने क्ववाईब्रेंट गुजरातं का ढोल पीटते-पीटते स्वयं को ााजपा का सबसे कद्दावर नेता समझने लगे हैं। और उनकी इसी गलत फहमी ने उन्हें भी यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्ववाईब्रेंट गुजरातं  के बाद क्यों न  क्ववाईब्रेंट भारतं का राग अलापने का सिलसिला   शुरू कर दिया जाए। लिहाज़ा वे भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में एक गंभीर उ मीदवार के रूप में पहली बार शामिल होते दिखाई दे रहे हैं । कमोबेश कुछ ऐसी ही स्थिति बिहार के मु यमंत्री नितीश कुमार की भी है। मीडिया ने उन्हें सुशासन बाबू तथा विकास बाबू जैसी उपाधियां देकर उनका दिमाग ाी चौथे आसमान पर पहुंचा दिया है। लिहाज़ा राजनैतिक समीकरणों के मद्देनज़र तथा अपने पक्ष में मीडिया द्वारा पीट रहे çढंढोरे के मद्देनज़र वे भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ से खुद को बाहर नहीं रखना चाह रहे हैं। ऐसे में एक ज़रूरी सवाल यह उठता है कि देश को नेतृत्व देने का शौक़ पालने वाले इन नेताओं की आçखर अपनी ज़मीनी हकीकत क्या है? party स्तर पर इनके भीतरी हालात जब पूरी तरह इनके पक्ष में नहीं हैं फिर आçखर भारत जैसे विशाल देश के प्रधानमंत्री बनने का सपना यह नेेता कैसे पाल लेते हैं?

दरअसल पंडित जवाहर लाल नेहरू,इंदिरा गांधी,राजीव गांधी,मोरारजी देसाई,और नरसि हा राव आदि भारत के उन प्रधानमंत्रियों के नाम है जो लगभग सभी अपनी party की पूर्ण बहुमत की सरकार के प्रधानमंत्री रह चुके हैं । परंतु देश में चौधरी चरण सिंह,चंद्रशेखर तथा विeनाथ प्रताप सिंह ऐसे प्रधानमंत्रियों में गिने जाते हैं जो जोड़-तोड़ कर तथा इधर-उधर से समर्थन लेकर यहां तक कि अपने वैचारिक विरोधियों तक का समर्थन हासिल कर देश के प्रधानमंत्री जैसे सर्वोच्च पदों तक पहुंचे। इसी प्रकार एच डी देवगौड़ा व इंद्रकुमार गुजराल देश के ऐसे दो प्रधानमंत्री हुए हैं जिन्हें भाग्यवश प्रधानमंत्री पद पर बैठने वाला नेता कहा जा सकता है। यानी प्रधानमंत्री पद के दो दावेदारों की लड़ाई के बीच इन नेताओं की क्वलॉटरीं लग चुकी है। और गठबंधन सरकारों के इन्हीं प्रधानमंत्रियों ने क्षेत्रीय स्तर के नेताओं को भी ऐसी गलतफहमी पालने के लिए मजबूर कर दिया है कि देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए उसके पास 272 सांसदों का समर्थन होना कोई ज़रूरी नहीं बल्कि पांच-दस,पंद्रह-बीस या पच्चीस सांसदों के स्ााथ भी देश का प्रधानमंत्री बना जा सकता है। और इसी सोच ने न सिर्फ नितीश कुमार व नरेंद्र मोदी के मन में प्रधानमंत्री पद की इच्छा जागृत कर दी है बल्कि मायावती,लालू प्रसाद यादव व मुलायम सिंह यादव जैसे क्षेेत्रीय नेता भी स्वयं को प्रधानमंत्री पद का योग्य व मज़बूत उ मीदवार समझने लगे हैं।

ऐसे में प्रश्र्न यह है कि जो नेता देश को प्रधानमंत्री के रूप में नेतृत्व प्रदान करने का सपना पाल रहे हैं आçखर उनकी अपनी दलीय स्तर की ज़मीनी हकीकत क्या है? देश को नेतृत्व देने का दम भरने वाले यह नेता अपने पैरों के नीचे की खिसकती हुई ज़मीन से भी बाखबर हैं अथवा नही? अब लाल कृष्ण अडवाणी को ही ले लीजिए। भ्रष्टाचार विरोधी रथयात्रा निकाल कर अन्ना हज़ारे के आंदोलन के समय सड़कों पर उतरे लोगों को अपने साथ जोड़ने जैसी राजनैतिक चाल ज़रूर चल रहे हैं परंतु भाजपा की रीढ़ की हaी समझे जाने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ साफतौर पर उन्हें इस बात के लिए खबरदार कर रहा है कि वे अपनी रथयात्रा तो भले ही निकालें परंतु स्वयं को प्रधानमंत्री पद के लिए हरगिज़ पेश न करें। party में भी उनके संभावित प्रधानमंत्री बनने को लेकर एक राय नहीं है। ऐसे में क्या यह सवाल उचित नहीं है कि जब आपकी पूरी party ही आपके साथ नहीं है फिर आçखर आप किस बलबूते पर देश को नेतृत्व देने की बात सोच रहे हैं। जब भाजपा शासित राज्यों के सभी मु यमंत्री आपके नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर रहे फिर आçखर वैचारिक मतभेद रखने वाले संभावित गठबंधन दलों से आप यह उ मीद कैसे रख सकते हैं कि वे आपको देश का प्रधानमंत्री स्वीकार करेंगे?

यही स्थिति नरेंद्र मोदी की भी है। हिंदू vote bank की राजनीति कर उन्होंने स्वयं को गुजरात के एक मज़बूत भाजपाई नेता के रूप में स्थापित कर लिया है। और गुजरात के इसी vote bank के बल पर वे अब स्वयं को प्रधानमंत्री पद का एक सफल उ मीदवार समझने लगे हैं। स्वयं को इस स्थिति तक पहुंचाने में मोदी ने भी कोई कम क्वतपस्यां नहीं की है। पूरे देश में क्ववाईब्रंेट गुजरातं का çढंढोरा पीटने के लिए उन्होंने एक अमेरिकी कंपनी को उच्चस्तरीय व हाईटेक विज्ञापन तैयार करने का ठेका दिया था। अमिताभ बच्चन जैसे लोकप्रिय अभिनेता को राज्य का ब्रांड एंबेसडर भी इसी मकसद से नियुक्त किया। बंगाल से हटाए गए टाटा के नैनो कार प्रोजेक्ट को गुजरात में जगह देकर देश क ो यह बताने की कोशिश की कि गुजरात जैसे विकसित राज्य में उद्योगपति किस प्रकार खुशी- ा़शी अपना निवेश कर रहे हैं। और समय-समय पर रतन टाटा, अनिल अंबानी व सुनील मित्तल जैसे उद्योगपतियों के मुंह से अपने बारे में कसीदे सुनकर भी मोदी के भीतर की गुप्त इच्छाएं हिचकोले खाने लगती हैं। इन हालात में मोदी का प्रधानमंत्री बनने के विषय में सोचना ज़ाहिर है कोई ज़्यादा अटपटा नहीं लगता। परंतु फिर वही अडवाणी जैसी समस्या नरेंद्र मोदी के सामने भी आ खड़ी होती है। यानी क्या आपके साथ आपकी पूरी party का समथüन है जो आप देश का प्रधानमंत्री बनने के सपने ले रहे हैं? शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा क ार्यकारिणी की बैठक के दौरान यह कहते दिखाई देते हैं कि party में अडवाणी जी से वरिष्ठ कोई नेता ही नहीं तो party के गुजरात प्रभारी कहते हैं कि यदि मोदी को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला तो वे देश के अब तक के सबसे सफल प्रधानमंत्री साबित हो सकते हैं। इतना ही नहीं बल्कि अडवाणी व नरेंद्र मोदी दोनों की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं भा रही। यही वजह है कि आमतौर पर गुजरात के सोमनाथ से अपनी रथ यात्राएं शुरू करने वाले अडवाणी इस बार बिहार के सिताब दियारा से अपनी यात्रा की शुरुआत कर रहे हैं वह भी समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण के जन्म दिन के अवसर पर बिहार के मु यमंत्री नितीश कुमार से हरी झंडी पाकर। यानी अडवाणी की ओर से नरेंद्र मोदी को भी खुला संदेश दिया जा रहा है कि उन्हें नितीश कुमार से कोई आपçत्त नहीं न ही नीतिश को अडवाणी की यात्रा से कोई आपçत्त है जबकि ठीक इसके विपरीत नितीश कुमार बिहार के अल्पसं यक समुदाय को मोदी से फासला बनाए रखने के ही बार-बार संदेश देते आ रहे हैं।

अब आइए ज़रा नितीश कुमार की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की भी ज़मीनी हकीकत का अंदाज़ा लगाया जाए। अन्य नेताओं की ही तरह नितीश कुमार भी हवा भरे गुब्बारे की तरह प्रधानमंत्री पद की ओर लपकने की जुगत भिड़ा रहे हैं। परंतु हकीकत यह है कि इस समय उन की अपनी party के ाीतर विरोध व विद्रोह के स्वर उठ रहे हैं। विपक्षी दल नहीं बल्कि स्वयं उनकी अपनी party के कई वरिष्ठ नेेता उनकी कार्यशैली तथा विकास के  उनके  दावों को खुले आम चुनौती दे रहे हैं । राज्य के कई जेडीयू विधायक ों व कई सांसदों का यह मानना है कि पिछले विधान सभा चुनावों में जबसे नितीश कुमार पूर्ण बहुमत से पुनज् सत्ता में आए है तब से उनका दिमाग चौथे आसमान पर पहुंच गया है। उनके विरोधी जेडीयू नेतागण ही यह आरोप लगा रहे हैं कि नितीश कुमार का सुशासन व विकास का प्रचार महज़ एक ढोंग, ड्रामा तथा मीडिया व अफसरशाही की मिलीभगत के सिवा और कुछ नहीं है। नितीश कुमार के समकक्ष पूर्व सांसद व राज्य में मंत्री रहे जेडीयू विधायक छेदी पासवान तो खुले तौर पर नितीश कुमार की मुख़ालफत करते हुए यह कहते हैं कि नितीश कुमार जन कल्याण संबंधी योजनाओं पर होने वाले खर्च के बजट को संबंधित योजनाओं पर खर्च करने के बजाए राज्य सरकार का झूठा कसीदा पढ़ने वाले विज्ञापनों पर खर्च कर रहे हैं। पासवान का आरोप है कि 122 करोड़ रुपए का खर्च अब तक केवल राज्य सरकार की तारीफ के पुल बांधने वाले इन्हीं लोक-लुभावने झूठे विज्ञापनों पर खर्च किया जा चुका है।

जेडीयू के यही नेता राज्य में घोर भ्रष्टाचार का भी सरेआम इल्ज़ाम लगा रहे हैं तथा जनकल्याण संबंधी योजनाओं के प्रचार को महज़ एक शोर शराबा व ढोंग बता रहे हैं। नितीश की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर यही नेता उनका मज़ाक उड़ा रहे हैं तथा उनके इस ़याली पुलाव पकाने की कोशिशों को सपने देखने जैसी बातों की संज्ञा दे रहे हैं। जेडीयू के ही इन्हीं नेताओं का यहां तक कहना है कि आगामी लोकसभा चुनावों में राज्य में जेडीयू के निर्वाचित होने वाले सांसदांे की सं या स्वयं यह बता देगी कि नीतिश कुमार बिहार में कितने पानी में हैं ऐसे में प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना उसी समय धराशाही हो जाएगा। प्रधानमंत्री पद के उपरोक्त समस्त दावेदारों के अपने दलों की भीतरी स्थिति çफलहाल तो यही संदेश दे रही है कि यह नेता भले ही देश का प्रधानमंत्री बनने के सपने क्यों न ले रहे हों परंतु दरअसल इनके अपने पैरों के नीचे की ज़मीन स्वयं खिसकती जा रही है। बेेहतर होगा देश के इस सर्वोच्च पद पर नज़रें गड़ाने से पूर्व अपने दलीय हालात को ठीक तरह तथा अपनी आलोचनाओं व विरोध के कारणों को बखूबी समझने का प्रयास करें।

**Tanveer Jafri ( columnist),

(About the Author)
Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com )

Tanveer Jafri ( columnist),
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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