प्रतिस्पर्धा, चाटुकारिता की

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–  तनवीर जाफरी –

संत कबीर जी फरमाते हैं-‘निंदक नियरे राखिए,आंगन कुटी छवाए। बिन पानी,साबुन बिना, निर्मल करे सुखाए।। अर्थात् जो हमारी निंदा करता है उसे अधिक से अधिक अपने पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को स्वच्छ करता है। क्या वर्तमान सत्ताधारी कबीरदास की इस वाणी को चरितार्थ कर रहे हैं? यदि हम अपने राजनैतिक व सामाजिक वातावरण में गंभीरता से नज़र डालें तो हम यही देखेंगे कि आज के दौर में आलोचकों या सवाल करने वालों की नहीं बल्कि खुशामदपरस्तों व चाटुकारों की पौ बारह हुई पड़ी है। ऐसे चाटुकारों व खुशामदपरस्तों के समाज में जिन्हें प्रचलित भाषा में ‘चमचा’ भी कहा जाता है,लगता है चाटुकारिता की प्रतिस्पर्धा सी छिड़ गई है।

चाटुकारिता की इस प्रतिस्पर्धा में अपने आकाओं को खुश करने के लिए यह खुशामदपरस्त प्रवृति के लोग कभी-कभी चमचागीरी की हदों को इतना पार कर जाते हैं कि उनके आका बजाए खुश होने के या उन्हें उसका राजनैतिक व सामाजिक लाभ मिलने के बजाए उलटे संकट का सामना करना पड़ता है। इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में ही कई नेताओं के बीच चाटुकारिता की ऐसी प्रतिस्पर्धा मची है कि वे समझ ही नहीं पा रहे कि आिखर अपने आकाओं को किन शब्दों में,अपनी किन कारगुज़ारियों से या अपने किस प्रकार के बयानों से खुश रखा जाए। ज़ाहिर है खशामदपरस्ती की इस पराकाष्ठा का एकमात्र कारण उनका उज्जवल राजनैतिक भविष्य बनाए रखना ही होता है। यानी वे जिस कुर्सी पर किसी खुशामदपरस्ती के माध्यम से या धर्म-जाति के समीकरणों के सदके में पहुंचे हैं वह बरकरार रहे। और यदि इसमें भी तरक्की हो जाए या और मलाईदार  विभाग मिल जाए फिर तो सोने में सुहागा अन्यथा कम से कम खुशामदपरस्ती के बल पर पीछे खिसकने या अपनी कुर्सी गंवाने की नौबत तो न ही आने पाए। इस प्रतिस्पर्धा में इस समय वैसे तो कई लोग बराबर के प्रतिस्पर्धी बने हुए हैं परंतु यहां इनमें से कुछ नेताओं के नाम काबिल-ए-जि़क्र हैं।

प्राय:भगवा रंग का लिबास धारण करने वाले केंद्रीय मंत्री मुख्तार अबास नकवी नेहरू-गांधी परिवार को तो अभद्र भाषा में कोसते ही रहते हैं। परंतु पिछले दिनों उन्होंने मोदी जी को खुश करने के लिए उनकी तुलना पंडित नेहरू से ऐसे शब्दों में की कि उन्होंने मोदी को नेहरू से बड़ा नेता बता डाला। नकवी ने फरमाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता तथा उनकी स्वीकार्यता पंडित नेहरू से भी अधिक है। परंतु नकवी साहब को नरेंद्र मोदी व पंडित नेहरू के प्रशंसकों की श्रेणी पर भी गौर करना चाहिए। उन्हें नेहरू की प्रत्येक धर्म-जाति,क्षेत्र व समाज में उनकी स्वीकार्यता को भी महसूस करना चाहिए। नरेंद्र मोदी बेशक देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं। परंतु यह भी सच है कि वे एक हिंदूवादी सोच रखने वाले तथा हिंदुत्ववाद के समर्थकों के स्वीकार्य व आदर्श नेता हैं जबकि पंडित नेहरू धर्मनिरपेक्ष भारतवर्ष में धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले समग्र भारतवासियों के सर्वस्वीकार्य नेता थे। परंतु ऐसा वक्तव्य देकर नकवी ने नेहरू की शान तो कम नहीं की हां खुशामदपरस्ती की अपनी पराकाष्ठा से ज़रूर अवगत करा दिया।

इसी प्रकार पिछले दिनों एक खबर यह आई कि उत्तर प्रदेश में मदरसों के बच्चे अब कुर्ता-पायजामा नहीं बल्कि पैंट शर्ट पहनेंगे। वास्तव में इस प्रकार के निर्देश न तो दिल्ली से जारी किए गए थे न ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ऐसी कोई मंशा थी। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक विभाग के राज्यमंत्री मोहसिन रज़ा के हवाले से इस आशय के समाचार प्रकाशित हुए। मंत्री महोदय के मुताबिक ‘मदरसों में आमतौर पर बच्चे कुर्ता-पयजामा और खासतौर पर ऊंचे पायजामे पहनकर आते हैं जिससे उनकी पहचान एक धर्म विशेष से होती है। लिहाज़ा छात्रों के मध्य इसे समाप्त किया जाना ज़रूरी है।’ इसके पूर्व प्रदेश के मदरसों में लागू सिलेबस में बदलाव करते हुए एनसीईआरटी की पुस्तकों को भी अनिवार्य किया गया था। मोहसिन रज़ा के ड्रेस संबंधी इस विवादित बयान के बाद न केवल उत्तर प्रदेश के तमाम मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा मोहसिन रज़ा की इस मंशा के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया गया बल्कि अल्पसंख्यक कल्याण एवं हज विभाग के कैबिनेट मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण ने मोहसिन रज़ा के बयान का खंडन करते हुए यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों में ड्रेस संबंधी कोई नया कोड लागू करने का कोई इरादा नहीं है। बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि ड्रेस संबंधी बयान उनके जूनियर मंत्री मोहसिन रज़ा की व्यक्तिगत् राय पर आधारित हो सकता है। खबरों के मुताबिक मंत्री लक्ष्मी नारायण द्वारा मोहसिन रज़ा के बयान का खंडन प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद आया। इतना ही नहीं बाद में मदरसा बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी किसी प्रकार के ड्रेस कोड परिवर्तन की योजना को खा़रिज किया।

ऐसे में यह सवाल उठना ज़रूरी है कि अपने कार्यालय को सबसे पहले भगवा रंग से रंगवाने का प्रदर्शन करने वाले,मीडिया के समक्ष भगवा रंग का गुणगान करने और योगी व मोदी की खुशामदपरस्ती का कोई भी अवसर अपने हाथ से न गंवाने की कोशिश में लगे रहने वाले मंत्री महोदय यह क्यों नहीं सोचते कि वे कभी-कभी खुशामदपरस्ती की प्रतिस्पर्धा में इतना आगे क्यों बढ़ जाते हैं कि उनके सरबराहों,वरिष्ठ नेताओं व उनके आकाओं तक को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है? चाटुकारिता की इसी प्रतिस्पर्धा में कभी-कभी चमचों द्वारा अपने आकाओं को भगवान व देवी-देवताओं का रूप भी दे दिया जाता है। चुनावों के समय कभी नरेंद्र मोदी तो कभी सोनिया गांधी कभी अमितशाह,राहुल गांधी तो कभी वसुंधरा राजे सिंधिया कभी महाराष्ट्र के ठाकरे परिवार के नेतागण इन सबको देवी-देवताओं के रूप में बड़े-बड़े बैनर्स पर सुशोभित देखा जा सकता है। कोई अपने आराध्य आकाओं को पांडव बताता है तो विपक्ष को कौरव की संज्ञा देता है। उत्तर प्रदेश के सुरेंद्र सिंह नामक एक विधायक पिछले दिनों अपने उद्गार इन शब्दों में व्यक्त करते सुने गए कि-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भगवान ने राम के अवतार में पृथ्वी पर भेजा है तथा ईश्वर ने भगवान के भाई लक्ष्मण को अमित शाह के रूप में अवतरित किया है जबकि योगी आदित्यनाथ को उन्होंने हनुमान का अवतार बताया। विधायक महोदय इन तीनों अर्थात् राम-लक्ष्मण व हनुमान के नेतृत्व में रामराज्य की कल्पना भी कर रहे हैं। इन्हीं विधायक महोदय ने ममता बैनर्जी की तुलना शुर्पणखा से की थी। और इन्होंने ही यह भविष्यवाणी भी की है कि 2019 का चुनाव ‘इस्लाम व भगवान राम’ और ‘भारत व पाकिस्तान’ के मध्य होने जा रहा है।

निश्चित रूप से चाटुकारिता भारतीय समाज के रग-रग में बसी हुई है। खुशामदपरस्ती देश के बहुसंख्य लोगों का मिज़ाज बन चुका है। परंतु चाटुकारिता का स्तर ऐसा भी नहीं होना चाहिए जिससे समाज में नफरत फैले,किसी दूसरे समुदाय के लोग आहत हों और चमचागीरी की बदौलत अपने ही लोग संकट में पड़ जाएं। भाजपा ही नहीं समस्त राजनैतिक दलों तथा देश की जनता को ऐसे खुशामदपरस्त व चाटुकार नेताओं से दूर रहना चाहिए।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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