पुष्पेन्द्र फाल्गुन की तीन कविताएँ
१. प्रेम
मुझे तटस्थ नहीं रहने देता।
मैं पानी से
गन्ध से
अहसास से, उजास से
अदल से, अमल से
और
समय की अनंतता से बेहद प्रेम करता हूँ।
प्रेम, मुझे तटस्थ नहीं रहने देता।
२. शब्द
मेरे पास तुम्हें देने के लिए बस शब्द हैं
इन शब्दों के मायने बहुत है
और पंख
और सपने
और हौसले
इन शब्दों से ही जैसे बने हैं
मैं जानता हूँ
तुम्हारे लिए मेरे ये शब्द व्यर्थ हैं
क्योंकि
इनमें
तुम्हारे दुःख, आंसू, उदासी को
दुःख, आंसू, उदासी कहने का साहस नहीं है।
३. कविता
जैसे दूध पकता है धीरे-धीरे
तो उसकी मलाई दिखाई देने लगती है
वैसे ही पकती हुई कविता भी
धीरे-धीरे
दिखाने लगती है विचार
पर कविता को आंच पर नहीं पकाया जा सकता है
कविता आंच पर पकती ही नहीं
किसी भी आंच पर नहीं
कविता बूढ़े बरगद की कुम्हलाती छाँह में पकती है
कविता पकती है झुर्रियों की सलवटों में
कविता पकती है उदास आँखों की निरापद दूरी से
कविता पकती है बेसाख़्ता चिपचिपाहटों में लथपथ भरोसे की हत्या से
जब कविता पकती है
तो परिदृश्य में हरे, नीले और लाल रंग की बहुतायत होने लगती है
जब कविता पकती है
तो भेड़िये उसे सूंघते हुए आ जाते हैं
और विचार को नोच-नोच कर खा जाते हैं
कविता कहीं रास्ते में पड़ी छटपटाती है
लेकिन उसके प्राण नहीं निकलते
क्योंकि उसके प्राण लेकर कवि कहीं भाग गया है
ज़िन्दगी के मौसम में
बसंत सबसे छोटी ऋतु है और पतझड़ सबसे बड़ी
हमें थोड़ा सा खिलकर बहुत सारा झड़ जाना होता है।
प्रस्तुति :
नित्यानन्द गायेन
Assitant Editor
International News and Views Corporation
परिचय :
पुष्पेन्द्र फाल्गुन
पूर्णकालिक मसिजीवी, कवि-लेखक, पत्रकार, अनुवादक
पिछले २० वर्षों में नागपुर, दिल्ली, इलाहबाद, आदि शहरों के प्रमुख हिंदी दैनिक अख़बारों एवं साप्ताहिक समाचार-पत्रों के लिए विविध स्वरूपों में कार्य।
२००९ में ‘फाल्गुन विश्व’ नामक साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रिका का प्रकाशन संपादन। २०१२ में पत्रिका का प्रकाशन स्थगित। पुनश्च पत्रिका ‘फाल्गुन विश्व’ शुरू करने की तैयारी।
२००७ में पहला कविता संग्रह ‘सो जाओ रात’ प्रकाशित।
‘कंडोम में मछलियाँ’ तथा ‘मरने से पहले का कवि’ नामक दो कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य।
निबंध संग्रह – उबली हुई पकौड़ियां भी प्रकाश्य।
इसके साथ ही ‘उपनिषद और तत्त्व’ तथा ‘रावण का अर्थशास्त्र’ नामक शोध-परक पुस्तकें भी प्रकाशन को तैयार।
मराठी कवि प्रफुल्ल शिलेदार, प्रसेनजीत गायकवाड़, सुनीता झाड़े तथा केतन पिम्पलपुरे के कविताओं का हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद।
अपने बारे में बस इतना और कहना चाहता हूँ
किसने कहा कि मैं तुम्हारे लिए रोज उजाले लाता हूँ
मैं तो बस अँधेरे की माचिस से अपने सपने जलाता हूँ
___________#अपुनबोला_______________
ज़िन्दगी के मौसम में बसंत सबसे छोटी ऋतु है और पतझड़ सबसे बड़ी हमें थोड़ा सा खिलकर बहुत सारा झड़ जाना होता है———adbhut
शुक्रिया प्रतिभा जी …
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मुझे इनके कहने का लहजा बहुत पसंद आया | तीनों ही कवितायें अच्छी है | बधाई !
तीनो ही बेहतरीन कवितायेँ ….बधाई सर
आप सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।
शानदार …कविता लाजबाब हैं !
शानदार कविताए पर पुष्पेन्द्र फाल्गुन जी आपके अपुनबोला का जबाब नहीं !
मैं भी डॉ मनीषा सिंह जी ,निहारिका रस्तोगी जी
व् डॉ मंजरी चतुर्वेदी जी से सहमत हूँ !
आदत बन गया हैं अब ये न्यूज़ पोर्टल … सुबह की चाय तरहा !
पुष्पेन्द्र फाल्गुन जी ….शब्द में आपने निशब्द कर दिया …बहुत देर तक …पढ़ने के बाद भी …इस कविता की तारीफ़ में सभी शब्द कमतर लेगे !
मैं भी डॉ मनीषा सिंह जी और निहारिका रस्तोगी जी सहमत हूँ ….सुबह सुबह कुछ अच्छी कविताए पढ़ने का मन हुआ तो मैंने कुछ किताबे खोली …सब कुछ पुराना सा था ,एक मित्र को फोन किया तो उसने …इस पोर्टल का नाम लिया ….अच्युतानंद मिश्र की कविताएँ मैंने पहले भी पढ़ी हैं पर इस अंदाज़ में नहीं …
डॉ मनीषा सिंह जी आपसे सहमत हूँ , साफ़ सुथरा सा ,परिवार के साथ पढ़ने योग्य ,बहुत ही आसानी से उपलब्ध ….
पुष्पेन्द्र फाल्गुन जी …आपने कविता में जो कविता पिरोही हैं उसका जबाब नहीं ….शानदार
शानदार कविताए ….कविता …जब भी कुछ अच्छा सा या फिर बहुत अच्छा सा पढ़ने का मन हो तो इस न्यूज़ पोर्टल पर चले आओ !