पानी की बर्बादी के ये जि़म्मेदार

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{ निर्मल रानी**}  हमारा देश एक बार फिर भीषण जल संकट से जूझ रहा है। देश के कई राज्यों से सूखा पडऩे तथा पीने के पानी की भारी िकल्लत के समाचार आ रहे हैं। भूगर्भीय जलस्तर लगभग पूरे देश में तेज़ी से घटता जा रहा है। उधर नदियों के पानी में प्रदूषण की मात्रा भी बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। ऐसे में जहां खेती के लिए पानी की भारी िकल्लत का सामना विभिन्न राज्यों को करना पड़ रहा है वहीं पीने का मीठा पानी भी अब पहले से कम और मुश्किल से उपलब्ध हो पा रहा है। परिणामस्वरूप कृषि उद्योग प्रभावित हो रहा है। किसान कजऱ्दार हो रहे है। देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। तो उधर शहरों में पानी बेचने में लगा जल मािफया इस िकल्लत का फायदा उठाकर पानी के टैंकर दूर-दराज़ से लाकर अपने मुंह मांगे दामों में बेच रहा है। शहरों में दो नंबर के प्यूरीफाईड जल उद्योग का बोलबाला है। घरों से लेकर रेलवे स्टेशन तक की जलापूर्ति देश के तमाम क्षेत्रों में बुरी तरह प्रभावित है। ऐसे में जब पानी के लिए जनता हाहाकार मचाती है तो सीधेतौर पर सरकार को ही निशाना  बनाने की कोशिश की जाती है। सवाल यह है कि आए दिन इस प्रकार के बढ़ते जा रहे जल संकट की समस्या का वास्तव में जि़म्मेदार कौन है? क्या सिर्फ सरकार को जल संकट का दोषी ठहराकर हम अपनी जि़म्मेदारियों से बच सकते हैं?

यदि हम खेती की बात करें तो हम यह पाएंगे कि आज से महज़ पांच से दस साल पहले देश के तमाम कृषि प्रधान राज्यों में जहां टयूबवेल के माध्यम से सिंचाई की जाती है वहां भूगर्भीय जल स्तर 60-70 और 100 फीट से लेकर 150 और 200 फीट तक हुआ करता था। आज उन्हीं क्षेत्रों में तीन सौ से चार सौ फीट से लेकर 600,700-800 फीट तक की गहराई तक बोरिंग करने पर भूगर्भीय जल प्राप्त होता है। ज़ाहिर है सिंचाई हेतु टयूबवेल द्वारा बेतहाशा जल दोहन करने के परिणामस्वरूप ही भूतल का जलस्तर गिरने के ऐसे नतीजे सामने आ रहे हैं। दरअसल हमारे देश का किसान आमतौर पर टयूबवेल की मोटी धार चलाकर अपने खेतों में लबालब पानी लगाकर खेती करने का आदी हो चुका है। हमारे देश में जहां-जहां भू जलस्तर तेज़ी से नीचे गिर रहा है लगभग उन सभी क्षेत्रों के किसान फ्लड इरिगेशन की तजऱ् पर पानी का इस्तेमाल करते हैं। इन किसानों को इस प्रकार पानी का दुरुपयोग करने से परहेज़ करना चाहिए। फ्लड इरिगेशन के बजाए फ़ाऊंटेन इरिगेशन जैसी सिंचाई की तकनीक अपना कर अथवा वॉटर इंजेक्शन सिस्टम जैसी तकनीकी नीति का इस्तेमाल कर भू जलस्तर को और अधिक गिरने से रोकना चाहिए। हां यहां सरकार की जि़म्मेदारी यह ज़रूर है कि वह इज़राईल जैसे पानी की स्थायी िकल्लत से जूझने वाले देशों से खेती में सिंचाई के आधुनिक तरीकों की जानकारी ले तथा अपने देश के किसानों को ग्रामपंचायत स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक समझाने व उन्हें प्रशिक्षित करने का कार्य करे। साथ-साथ हमारे देश के किसानों में भी आधुनिक सिंचाई साधनों की जानकारी लेने तथा उस पर विश्वास व अमल करने की इच्छाशक्ति का होना भी बहुत ज़रूरी है।

इसी प्रकार शहरों में पानी का दिन-प्रतिदिन संकट बढ़ता जा रहा है। कई जगह निर्माण कार्य अथवा मुरम्मत आदि के चलते ज़मीन के नीच से गुज़रने वाली वॉटर सप्लाई लाईन क्षतिग्रस्त पड़ी दिखाई देती है जिसमें से कीमती पानी का रिसाव होता रहता है। तमाम जगहों पर पानी की टोंटियां नदारद होने के चलते पानी बेमकसद बहा करता है। यह टोंटियां प्राय:चोर-उचक्के प्रवृति के लोग निकाल ले जाते हैं। कई जगह अपने गमलों को पानी देने के लिए लोग रबड़ की पाईप का प्रयोग करते हैं जबकि एक जग पानी से दो गमलों को बड़ी आसानी से सींचा जा सकता है। परंतु माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम की कहावत को चरितार्थ करते हुए तमाम लोग अपने घर-आंगन,कार व नाली आदि की धुलाई आए दिन खुली धार से बहने वाले पानी से किया करते हैं। शहरों में सरकारी वॉटर सप्लाई की पाईप लाईन में मोटर लगाकर अपने घरों की छत पर लगी टंकी में पानी चढ़ाए जाने का चलन है। ऐसे में अक्सर देखा यह जाता है कि लोगों की पानी की टंकी भर जाने के बाद भी पानी टंकी से ओवर फ्लो होता रहता है तथा बेवजह पानी की बरबादी होती रहती है। इस लापरवाही के परिणामस्वरूप पानी तो बर्बाद होता ही है साथ-साथ बिजली भी अकारण ही खर्च होती रहती है। तमाम लोग गर्मियों में कई-कई बार नहाते हैं तथा अपने जानवरों को खासकर कुत्तों को भी नहलाते हैं। तमाम अस्पताल व रेलवे जैसे सरकारी संस्थान ऐसे देखे जा सकते हैं जहां बाथरूम, शौचालय अथवा प्लेटफार्म पर बड़ी ही बेदर्दी से पानी बहता रहता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि केवल किसान ही नहीं बल्कि साधारण से लेकर मध्यम व अभिजात्य वर्ग का व्यक्ति भी अपनी गैरजि़म्मेदारी व लापरवाही के कारण देश में बढ़ते जा रहे जल संकट का बराबर का जि़म्मेदार है।

देश में चमड़ा,मांस, कपड़ा,डाई तथा कागज़ जैसे अन्य कई उद्योग ऐसे भी हैं जहां पानी का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। ऐसे उद्योग जल का प्रयोग कर उसे प्रदूषित कर नालों के माध्यम से नदियों की ओर प्रवाहित कर देते हैं। और इस प्रदूषित जल के संपर्क में आने से ऐसे औद्योगिक क्षेत्रों से होकर गुज़रने वाली देश की तमाम नदियों का जल भी प्रदूषित हो जाता है। यानी ऐसे उद्योग पानी की बर्बादी तो करते ही हैं साथ-साथ नदियों के पानी को ज़हरीला बनाने में भी इनकी अहम भूमिका होती है। यही नहीं बल्कि जिन रास्तों से होकर औद्योगिक कचरा भरा यह रासायनिक व प्रदूषित जल बहकर गुज़रता है उस पूरे रास्ते में भयंकर दुर्गंध तथा गैस प्रदूषण भी होता है। यहां सरकार को चाहिए कि आधुनिक औद्योगिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ऐसे उद्योगों में इस प्रकार के वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट अनिवार्य रूप से लगाए जाएं जो इन उद्योगों द्वारा प्रयोग में लाए गए जल को पुन: साफ कर सकें और इस जल को बार-बार इस्तेमाल में लाया जा सके। ऐसे में न केवल जल दोहन में कमी आएगी बल्कि नदियों को भी प्रदूषित होने से बचाया जा सकेगा। पूरे देश में वाहनों के सर्विस स्टेशन पर भी ऐसे ही प्लांट अनिवार्य रूप से तत्काल लगाए जाने की सख्त ज़रूरत है। परंतु अफसोस तो यह है कि ऐसे उद्योगों के स्वामियों को केवल अपने अधिक से अधिक मुनाफे की तो परवाह है परंतु इन उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषित जल तथा इनके द्वारा किये जाने वाले असीमित जल दोहन का इन्हें कोई ध्यान नहीं। ऐसे उद्योगपतियों से समय-समय पर लाभ उठाने वाली तथा इन के हाथों का खिलौना बनी बैठी सरकार को भी संभवत: इस विषय पर सोचने या इधर ध्यान देने की भी कोई फुर्सत नहीं है।

हमारे देश में किसान अथवा जलसंकट के भविष्य के दुष्परिणामों से अनभिज्ञ वर्ग यदि पानी की बर्बादी में शामिल है तो इसकी अज्ञानता के चलते तो एक बार फिर भी उसे माफ किया जा सकता है अथवा कुछ समय के लिए उसकी अनदेखी भी की जा सकती है। परंतु दुर्भाग्यवश हमारे देश में नेता हो या अभिनेता, उद्योगपति,व्यापारी,किसान साधारण नागरिक, यात्रीगण लगभग सभी वर्गों के लोग कभी न कभी कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में पानी की बर्बादी के बराबर के जि़म्मेदार हैं। और तो और समाज को उपदेश देने वाले बड़े से बड़़े धर्मोपदेशकों के आश्रमों,इनके आयोजनों तथा लंगर-भंडारों में तथा त्यौहारों आदि के अवसर पर इनके द्वारा किए जाने वाले पानी के दुरुपयोग को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता। अभी पिछले ही दिनों महाराष्ट्र  से यह खबर आई थी कि देश के तथाकथित प्रसिद्ध संत तथा भारी संख्या में देश में अपने अनुयायी रखने वाले आसाराम बापू ने अपने समर्थकों व भक्तों के साथ पानी की खुली धार से घंटों तक होली खेली जबकि राज्य भीषण जल संकट का सामना कर रहा है। आसाराम के इस कृत्य के लिए उनकी व्यापक आलोचना भी हुई। परंतु उन्होंने अपना शौक व मस्ती की खातिर लाखों गैलन पानी अपने भक्तों पर उंडेलने में बर्बाद कर दिया। सोचने का विषय है कि जो धर्मोपदेशक स्वयं पानी की बर्बादी का इतना बड़ा जि़म्मेदार हो वह व्यक्ति अपने शिष्यों अथवा भक्तों से पानी की बचत करने की बात ही कैसे कह सकता है। जबकि होना तो यह चाहिए था  कि ऐसे संत समाज के इस प्रकार के जि़म्मेदार लोग जल संरक्षण तथा जल की बचत के आदर्श प्रस्तुत कर अपने अनुयाईयों  को भी इस बात के लिए जागृत करें कि वह भी पानी का दुरुपयोग न करें। और जितना अधिक से अधिक हो सके जल संरक्षण की ओर ध्यान दें। परंतु िफलहाल देश में जल की बर्बादी के जो हालात नज़र आ रहे हैं और जिस प्रकार की अज्ञानता जल संकट जैसे अत्यंत गंभीर विषय को लेकर आम लोगों में देखी जा रही है उन्हें देखकर बड़ी आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि पानी की बर्बादी के लिए देश का लगभग सभी वर्ग बराबर का जि़म्मेदार है। लिहाज़ा जल की बचत के लिए सभी का समान रूप से जागरूक होना बेहद ज़रूरी है।

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Nirmal Rani, nirmal rani writer**निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों,
पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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