पांच कविताएँ : कवि संजय सरोज ” राज “

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पांच कविताएँ

1. उनके तस्वीर को अपने सीनेसे लगाये बैठे है

उनके आने की ख़ुशी में एक आस लगाये बैठे है
उनके तस्वीर को अपने सीने  से लगाये बैठे  है
ना वो आये न उनकी कोई भनक लगी
मिलने की चाहत एक कसक सी लगी
अपने जज्बात को यूँ हीसीनेमें दबाये बैठे है
उनके तस्वीर को अपनेसीनेसे लगाये बैठे  है
अब तो आलम ये है कि नींद भी नहीं आती है
क्या करे अपनी फूटी तक़दीर नजर आती है
गिला औरों से क्या जब अपनों से ही खता खाए बैठे है
उनके तस्वीर को अपनेसीनेसे लगाये बैठे  है
खता हमारी थी जो हमने उनसे प्यार किया
बुरा किया जो हसीनाओं पे ऐतबार किया
बेवफा दुनियां में अपना सब कुछ लुटा बैठे है
उनके तस्वीर को अपनेसीनेसे लगाये बैठे  है

 2. याद जब तेरी आती है तो आँखे नम हो जाती है

याद जब तेरी आती है तो आँखे नम हो जाती है
ढूढती है हर तरफ मगर दीदार नहीं कर पाती है
यादों के सहारे तो जिंदगी का सफ़र कटता नहीं
क्या करे ये दिल में जो दर्द है वो मिटता नहीं
चकाचौंध भरी दुनिया में रूह शुकून नहीं पाती हैं
याद जब तेरी आती है तो आँखे नम हो जाती है
वक्त के मरहम ने हर जख्म को भर दिया है
एक आम को बनाकर एक खास कर दिया है
सोना है गहरी नींद में पर रात कम हो जाती है
याद जब तेरी आती है तो आँखे नम हो जाती है
अब तो फ़साना बन गया है बस यादें ही बाकी है
डूबती हुई नैया को तिनके का सहारा काफी है
उजड़े हुए चमन में सावन का आना बाकी है
याद जब तेरी आती है तो आँखे नम हो जाती है

3.वो दिन आप को याद कैसे दिलाये

वो दिन आप को याद कैसे दिलाये
घर से निकलना और कुछ दूर जाना
तेरा फिर चुपके से पीछे से आना
पेड़ों के झुरमुट में बैठते थे हम तुम
सारे के सारे दुःख अपने हो जाते थे गुम
यही वो जगह है जहाँ हम मिले थे
यही वो जगह हैं, यही वो फिजायें
तुमने कहा था गले से मुझको लगाकर
सदा के लिए हम एक हो गए है
कहा था मेरा हाथ हाथों में लेकर
जुदा हम हुए तो करेंगे क्या जीकर
इन्हें हम भला, किस तरह भूल जाए
यही वो जगह हैं, यही वो फिजायें

 4. दिल के आँगन में कोई आया है

आज फिर से अपने आप को पुरानी राहों में पाया है
ऐसा लगता है फिर दिल के आँगन में कोई आया है
सपनों की दुनियां में जहाँ दो परवाने बसते थे
खिलते थे फूल वहां पर और कलियाँ चहकते थे
साथ में अपने वो बहारें आज फिर से लाया है
ऐसा लगता है फिर दिल के आँगन में कोई आया है
उसके आने से खिल गयी जीवन की हर कली
सांसों में ऐसी खुशबू जैसे मुझे थी पहले मिली
भीगी जुल्फों में से जैसे आज सावन आया है
ऐसा लगता है फिर दिल के आँगन में कोई आया है
नशा उसकी आँखों का था ऐसा आज तक उतरा नहीं
सारे मयखाने में उस नशे का एक बूंद का कतरा नहीं
उसे पाकर मैंने दुनियाँ की जैसे सारी जन्नत पाया है
ऐसा लगता है फिर दिल के आँगन में कोई आया है

 5.सब कही न कही साथ छोड़ जाते है

किसी केदास्ताँ को लफ़्ज़ों में बयां करते है,
न जाने उन पर अब क्या सितम गुज़रते  है !
ख़ुशी के आंसू  भी एक ग़म की तरह होते है,
हर दिल में इक दर्द काजो कारण बनते है,
इक शायर की कलम दर्द की जुबान होती है,
हर लफ्ज़ को पिरोकर ग़ज़ल का रूप करते है,
न जाने हम क्यों लिखने पे मजबूर हो जाते है,
जब यही दर्द हद से गुज़र जाया करते है
ये मंजिल सबको किसी न किसी का दर्द सुनाती है,
ये आंसू ही तो है जो अनायास ही आँखों से छलक जाते है,
मानो ये कहानी अब हम सब पे लागू होती है,
मंजिल के सफ़र में सब कही न कही साथ छोड़ जाते है,

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संजय सरोजपरिचय -:

संजय सरोज

लेखक व् कवि

संजय सरोज  मुंबई में अपनी पूरी फैमिली के साथ रहते हैं ,, हिंदी से स्नातक मैंने यहीं मुंबई से ही किया है. नेटिव प्लेस जौनपुर उत्तरप्रदेश है
फ़िलहाल मै एक प्राइवेट कंपनी में ८ वर्षों  से कार्यरत हैं ,  कविताएं और रचनाएँ लिखते !

सम्पर्क -:
मोबाइल  :- ९९२०३३६६६० /९९६७३४४५८८
ईमेल : sanjaynsaroj@gmail.com ,  sanjaynsaroj@yahoo.com

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