परिवार को कलंकित करते यह ‘होनहार’

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Vindu Dara Singh in police custody{निर्मल रानी*}
आईपीएल क्रिकेट मैच फिक्सिंग कांड इन दिनों मीडिया में भरपूर सुर्खियाँ बटोर रहा है। हालांकि क्रिकेट जैसे सबसे अधिक लोकप्रिय समझे जाने वाले खेल में सट्टेबाज़ी व मैच फिक्सिंग की बात कोई नई नहीं है। परंतु आईपीएल के अंतर्गत होने वाले मैच में मैच फिक्सिंग व सट्टेबाज़ी की खबर निश्चित रूप से पहली बार सुनाई दी। इस शर्मनाक ख़बर की दूसरी मुख्य विशेषता क्रिकेट खिलाड़ी श्रीसंत व दो अन्य खिलाडिय़ों का मैच फ़िक्सिंग में शामिल होना तो है ही साथ-साथ इस प्रकरण में रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह के ‘सुपुत्र’ विंदू दारा सिंह रंधावा का नाम आना आम लोगों को सबसे अधिक आश्चर्यचकित कर रहा है। दारा सिंह भारतीय सिनेमा की उन चंद गिनी-चुनी व नामी-गिरामी हस्तियों में एक थे जिनका पूरा फिल्म उद्योग सम्मान करता था। उन्होंने कुश्ती के क्षेत्र में विश्वस्तरीय ख्याति अर्जित कर स्वयं को न केवल एक वास्तविक हीरो के रूप में प्रमाणित किया था बल्कि अभिनय के क्षेत्र में भी फ़िल्मी पर्दे पर अभिनय से लेकर रामानंद सागर के बहुचर्चित सीरियल रामायण में हनुमान का शानदार किरदार अदा करने तक अपने बेहतरीन अभिनय का लोहा मनवाया था। हनुमान की भूमिका के बाद तो गोया दारा सिंह आम भारतवासियों के दिलों पर हनुमान की ही तरह राज भी करने लगे थे। और निश्चित रूप से उनके ‘सुपुत्र’ विंदू दारा सिंह को भी आम लोग दारा सिंह के पुत्र होने के नाते बड़ी ही आत्मीयता से देखा करते थे। अन्यथा चाल-चरित्र व चेहरे के एतबार से विंदू दारा सिंह,अभिनय व प्रतिभा का आपस में कोई संबंध नज़र नहीं आता।

दारा सिंह की गत् वर्ष हुई मृत्यु के बाद जिस प्रकार देश का इलेक्ट्रानिक मीडिया व पत्र-पत्रिकाएं उनके देहावसान की ख़बरों से पटे रहे तथा उनके अंतिम संस्कार में उनके चाहने वालों की जितनी भीड़ उमड़ी उसे देखकर सहज ही इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि दारा सिंह अपने अंतिम दिनों व जीवन की अंतिम सांसों तक कितने लोकप्रिय,सम्मानित तथा कितने प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में अपना जीवन बसर कर रहे थे। परंतु उनके इस ‘होनहार’ सुपुत्र विंदू दारा सिंह ने अपनी काली करतूतों से अपने पिता का नाम पूरी तरह मिट्टी में मिला दिया है। पिछले दिनों विंदू की मैच फिक्सिंग में संलिप्त होने के चलते हुई गिरफ्तारी के बाद उसने अपना जुर्म कुबूल करते हुए यह स्वीकार कर लिया है कि इस वर्ष उसने क्रिकेट की सट्टेबाज़ी से सत्रह लाख रुपये कमाए हैं।

उसने यह भी स्वीकार किया है कि वह गत् चार वर्षों से मैच फिक्सिंग के काले कारोबार से जुड़ा हुआ है। पुलिस ने तलाशी के दौरान उसके घर से जो ज़रूरी साक्ष्य बरामद किए हैं उनसे पता चलता है कि वह जैक के नाम से अपना एक सट्टेबाज़ी का खाता भी चलाता था। इतना ही नहीं बल्कि सट्टेबाज़ों से उसकी इतनी घनिष्टता थी कि अपनी गिरफ्तारी से बचकर भागने की कोशिश करने वाले दो प्रमुख सट्टेबाज़ों पवन व संजय को गत् 17 मई को मुबई से दुबई भेजने में विंदू ने उनकी पूरी सहायता की तथा स्वयं इन दोनों सट्टेबाज़ों को अपनी कार में बिठाकर मुंबई के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे तक छोडक़र भी आया। बहरहाल, इन दिनों दारा सिंह की यह ‘संतान’ क़ानून के शिकंजे में है तथा अपने चंद पैसों व ग्लैमर के चक्कर में पडक़र अपने पिता व परिवार के नाम को कलंकित करने में उसने कोई कसर बाकी नहीं रखी है।

जहां तक क्रिकेट का प्रश्र है तो शुरु से ही इस खेल का शुमार मंहगे व ख़र्चीले खेलों में किया जाता है। यही वजह है कि क्रिकेट अपने आग़ाज़ के दिनों से लेकर आईपीएल की चकाचौंध तक पहुंचने तक के स$फर में प्राय: धनवान,पूंजीपतियों, उद्योगपतियों, राजा-महाराजाओं तथा ज़मींदारों व जागीरदारों का ही खेल समझा जाता रहा। भारत में भी पूर्व में देश के तमाम राजा,महाराजा, नवाब,जागीरदार लोग क्रिकेट के शौक़ीन हुआ करते थे। कई राजघरानों व नवाबों की तो अपनी टीमें होती थीं। उसके पश्चात आईपीएल शुरु होने से पूर्व ही कारपोरेट घरानों ने इस खेल में दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी थी। क्रिकेट के खिलाड़ी का ग्लैमर फिल्म स्टार जैसा होने लगा था। धीरे-धीरे यह क्रिकेट स्टार अपने ग्लैमर व लोकप्रियता की बदौलत मॉडलिंग की दुनिया में प्रवेश करने लगे। और अब उन्हें क्रिकेट के साथ-साथ मॉडलिंग से भी कमाई होनी शुरु हो गई। खेल विशेषकों ने तो इस विषय पर यहां तक कहा कि खिलाडियों का मात्र पैसों के लिए माडलिंग की ओर आकर्षित होना अपने खेल के प्रति अन्याय करना है परन्तु तमाम तर्कों वितर्कों के बावजूद किसी भी बड़े से बड़े खिलाड़ी ने किसी भी आलोचना की परवाह किए बिना मॉडलिंग के माध्यम से धन कमाने के रास्ते को छोडऩा गवारा नहीं किया।

बल्कि इसमें और भी बढ़ोत्तरी होती गई। और धीरे-धीरे यह सिलसिला आईपीएल के उस दौर तक आ पहुंचा जहां अब क्रिकेट का खेल केवल और केवल फ़िल्मी हस्तियों,बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों तथा कारपोरेट जगत का ही खेल बनकर रह गया। उधर आईसीसीए ने भी आईपीएल को रंग-बिरंगा ग्लैमरस तथा धन-दौलत की चकाचौंध से भरपूर बनाने हेतु इसे मान्यता भी प्रदान कर दी। संभवत: आईपीएल भारत में होने वाली अकेली ऐसी क्रिकेट मैच श्रृंखला है जहां खिलाडिय़ों की बोली फ़िल्मी हस्तियों तथा पूंजीपतियों की दख़ल अंदाज़ी के बाद कितना ही आकर्षक क्यों न हो गया हो परंतु जिस प्रकार आए दिन इस खेल में सट्टेबाज़ी व मैच फिक्सिंग की खबरें आ रही हैं उन्हें देखकर यह ज़रूर कहा जा सकता है कि साधारण क्रिकेट प्रेमियों को ऐसी खबरें बुरी तरह आहत कर रही हैं। दर्शक अब यह महसूस करने लगे हैं कि अपने चंद पैसों की खातिर सट्टेबाज़ी का एक बड़ा माफ़िया नेटवर्क उनके व उनकी खेल भावनाओं के साथ छल कर रहा है। दर्शक अब प्रत्येक चौके,छक्के तथा आऊट होने अथवा कैच पकड़े जाने जैसी किसी भी खेल संबंधी घटना को संदेह की नज़रों से देखने लगा है। और खासतौर पर जब दारा सिंह जैसे सम्मानित परिवार के किसी सदस्य का दखल इन खेलों में एक सट्टेबाज़ी के दलाल के रूप में हो जाए तो दर्शकों का क्रिकेट के प्रति संदेह केवल संदेह तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि यह विश्वास में परिवर्तित हो जाता है। विंदू सिंह केवल सट्टे की दलाली या स्वयं सट्टा खेलने व स्पॉट फिक्सिंग में अपनी अकेली ही भूमिका नहीं निभाता था बल्कि फिल्म उद्योग की और भी कई जानी-मानी हस्तियों के नाम पर भी वह सट्टा खेलता था। और सट्टा जीतने पर उसे बाक़ायदा इसमें कमीशन प्राप्त होता था।

विंदू सिंह की गिरफ्तारी के बाद एक कार्टूनिस्ट ने अत्यंत सुंदर कार्टून बनाया जिसमें यह दर्शाया गया है कि स्वर्ग में आराम कर रहे दारा सिंह को जब अपने इस पुत्र की नापाक हरकत का पता चला तो वे कहने लगे-‘मुझे अब पता चला कि हनुमान जी क्यों ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। इसका अर्थ साफ़ है कि परिवार को कलंकित करने वाली औलाद के होने से अच्छा है किसी व्यक्ति का कुंआरा ही रह जाना। कमोबेश यही हालत संजय दत्त के मामले में भी रही है। संजय दत्त अवैध हथियार रखने के मामले में सज़ाया$फ्ता होकर जेल भेजे जा चुके हैं। उनके प्रशंसकों व समर्थकों से लेकर एक साधारण व्यक्ति तक उनके जेल जाने से दु:खी है। इस दु:खी होने का भी प्रमुख कारण यही है कि संजय दत्त, सुनील दत्त तथा नरगिस दत्त जैसे महान सिने कलाकारों के पुत्र हैं। सुनील दत्त ने भी अपने जीवन में जो मान-सम्मान व प्रतिष्टा अर्जित की संजय दत्त ने अपनी नासमझी के चलते उसे मिट्टी में मिला दिया। सुनील दत्त जैसा व्यक्ति जो मुंबई के शैरिफ़ से लेकर मुंबई के सांसद तथा केंद्रीय मंत्री के पद पर सुशोभित रहा हो तथा जिसने देश-विदेश में अमन,प्रेम, शांति व सद्भाव के लिए कई-कई लंबी पद यात्राएं की हों उस महान पिता की संतान अवैध हथियार रखने के जुर्म में जेल की सलाखों के पीछे हो तथा असामाजिक तत्वों से उसके संबंध उजागर हों यह निश्चित रूप से बेहद शर्मसार करने वाली बातें हैं। परंतु संभवत: यह आज के ज़माने की एक कड़वी हक़ीक़त है जो हमें देखने को मिल रही है। केवल उपरोक्त दो ही घराने नहीं बल्कि दुर्भाग्यवश हमारे देश में और भी ऐसे कई प्रतिष्ठा प्राप्त घराने, परिवार तथा मां-बाप हैं जिनके ‘होनहार’ अपने परिवार को कलंकित करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं।

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Nirmal Rani**निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों,
पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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