नोट परिवर्तन के साथ सोशल मीडिया पर मजाक, आखिर हम किधर जारहे हैं ?

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– प्रो.(डॉ.) डी. पी. शर्मा “ धौलपुरी“ – 

DPSharma,आज भ्र्ष्टाचार  पर नकेल एवं काले धन की निकासी अथवा सियासी मौद्रिक खेल तो सिर्फ सरकार अथवा अर्थशास्त्री ही समझ सकते हैं कि इसके दूरगामी परिणाम क्या और कैसे होंगे लेकिन सोशल मीडिया को ” गैर-सोशल “अफवाई औजार आज जरूर मिल गया है / हर कोई गलत या सही अथवा जायज या  गैर जायज का भेद किये बिना न्यूज़ की कतरन अथवा तोड़े मरोड़े तथ्यों को बिना सोचे, समझे  इधर उधर भेजने और अफवाह फ़ैलाने में अपना एवं सोशल मीडिया पर अपनी अति सक्रियता एवं राष्ट्रीय मौद्रिक नीति का जानकार होने का दम  भर रहा है / ये सही है कि हर भारतीय को वैचारिक स्वतंत्रता का अधिकार संविधान प्रदत्त है परंतु कहीं हम इस नासमझी एवं अतिउत्साह के जूनून में देश को अथवा देश की अर्थ नीति को जो कि किसी तानाशाह  ने नहीं वल्कि चुनी हुई लोकतान्त्रिक सरकार के प्रतिनिधियों ने बहुमत एवं लोककल्याण की भावना के साथ  बनाई एवं लागू  की है, को नुक्सान तो नहीं पहुंचा रहे?

इतनी भी क्या जल्दवाजी है कि एक राष्ट्रीय महत्व के सरकारी निर्णय को हम बिना सोचे समझे मजाक एवं गैर जरुरी करार देकर कुछ भी हिंदी अथवा अंग्रेजी में, अखबारी भाषा के हूबहू फर्जी खबर बनाकर अथवा सरकारी आदेश के रूप में कंप्यूटरीकृत क्लिप बना उस पर भारतीय गणराज्य चिन्हों को चिपकाकर सोशल  मीडिया अथवा  इन्टरनेट के माध्यम से वायरल  कर दें / जरा  सोचिये कहीं आप जाने अथवा अनजाने में कोई राष्ट्रीय अपराध तो नहीं कर रहे ? ज्ञात रहे कि आपके वैचारिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ साथ कुछ कर्त्तव्य भी जुड़े हुए हैं/  सन २०१५ में सुप्रीम कोर्ट ने “आई टी एक्ट २०००” की धारा  ६६ A  के पुलिस द्वारा दुरुपयोग को ध्यान में रखते हुए यद्यपि वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्र के खिलाफ असंवैधानिक करा देते हुए इस पर रोक लगा दी थी/ आज उसके दुष्परिणाम सुप्रीम कोर्ट के फैसले एवं संविधान के विपरीत  पुनः  देखने को मिल रहे हैं / लोग सभ्य एवं संवैधानिक भावनाओं के विपरीत कुछ भी अनर्गल , असामाजिक, भाषायी अशिष्टता का प्रदर्शन करते हुए समय एवं ऊर्जा के साथ साथ धार्मिक एवं सामाजिक वैमनस्य फैला रहे हैं  जो कि पुनः एक सवालिया मुद्दा खड़ा करता है कि  कहीं ये साइड इफेक्ट्स हमारे एक और संवैधानिक ताने वाने  अर्थात धार्मिक सहिष्णुता एवं सामाजिक विविधिता को छतिग्रस्त तो नहीं कर रहे ?  कभी कभी तो सोशल मीडिया एवं इन्टरनेट पर राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ से ये भावना मजबूत हो चली है कि आई टी एक्ट २००० की धारा ६६ A का पुनरावलोकन किया जाये / अव चाहे ये  सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर हो अथवा सरकार एवं संसद के स्तर पर /  भारतीय साइबर कानून की धारा ६७ के तहत दोषी पाए जाने पर ५ साल की सजा अथवा १० लाख रूपया का जुरमाना  करने का प्रावधान है / ये कानून भी नैतिक मानदंडों एवं उनके दुरूपयोग के खिलाफ है / साइबर कानून. के तहत राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों, किसी के जीवन अथवा पद की गरिमा के विपरीत अफवाह फैलाना अथवा किसी खबर न्यूज़ अथवा तथ्य को तोड़ मरोड़कर पेश करना अथवा उसे इरादतन एवं गैर इरादतन तरीके से फैलाना इत्यादि विभिन्न धाराओं के तहत कानूनन जुर्म है/ आज कोई भी कितना भी आईटी  का विशेषज्ञ अथवा  जानकर क्यों न हो/ आप तकनीकी गोपनीयता वाले कितने भी मापदंड ( एन्क्रिप्शन टेक्नोलॉजी यथा ६४ बिट या १२८ बिट विद एन्ड टू एन्ड एन्क्रिप्शन) क्यों न अपना रहे हों लेकिन कानून कानून होता है और अपराध की दुनिया कुछ न कुछ कहीं न कहीं सबूत जरूर छोड़ती है/  और यही सोशल मीडिया पर सबूत किसी के लिए दण्ड का सबब न बन जाएँ उससे पहले हमें संयमित ब्यवहार करने की आवश्यक्ता है/

आज नोट बदली से देश की राजनैतिक फिजां में एक भूचाल सा आ गया है/ जरुरी भी है क्योंकि एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र मैं विचारधाराओं की विविधताओं का होना स्वाभाविक है /  परंतु विपक्ष का मतलब ये कतई नहीं होता कि ” सरकार द्वारा घोषित किसी भी योजना स्वरूपी पेड़ जैसे नीम के पेड़ को तर्कों, कुतकों अथवा वितर्कों  के माध्यम से बबूल का पेड़ घोषित करने की हर संभव चेस्टा की जाये/ अच्छी योजनाओं की प्रशंसा कर मतभेद भुलाकर सकारात्मक विपक्ष का परिचय देना चाहिए/ बिपक्ष का मतलब ये भी नहीं होना चाहिए कि ( अभी हाल हैं व्हाट्सएप्प पर वायरल एक  विडियो के सन्दर्भ में) पहले नोट को हलके रंगीन पानी में डालो, फिर सुखाकर मीडिया को बुलाकर तौलिये पर नोट के रंग छूटने का झूठा सबूत देकर मीडिया में अफवाह फैला दो/ अतीव सर्वदा वर्जयेत – विशेष रूप से राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों के साथ ऐसा न हो तभी सोशल मीडिया के सदुपयोग की सार्थकता है/

आज राजनैतिक आरोप प्रत्यारोपों के दौर में एक अहम् बात सोचने की  ये है कि बैंक से नोट  बदली के लिए लाइन में गरीब एवं मध्यम  वर्गीय लोग परेशान हैं/ सत्य भी है एवं तथ्य भी / ये भी अफवाह है कि कोई भी अमीर व्यक्ति लाइन में नहीं लगा, शायद सरकार ने उनको लाभ देने का इंतजाम पहले से कर दिया / चलो ये तथ्य भी सत्य मालूम होता है थोड़ी देर के लिए  / परंतु यहाँ सबसे अहम् बात सोचने की ये है कि देश में कितने लोग अमीर हैं जिनको हम लाइन में देखना चाहते हैं/ क्या वे करोड़ों में हैं जो लाइन में सिर्फ वे ही दिखेंगे सूट बूट में/ क्या उनके चेहरे पर अमीरी का सरकारी अथवा गैर सरकारी स्टाम्प अथवा मुख़ौटा होगा जिससे हम उनको पहचान कर अपनी वैचारिक विश्लेषण की भाषा एवं तथ्यों को बदल लेंगे /  ये भी तो हो सकता है कि काले धन वाले अभी वक्त की फिजां का अध्ययन कर रहे हों और अपनी व्यूह रचना गढ़ने एवं लागू करने के बहुआयामी तरीकों पर विचार मंथन कर रहे हों? वो कोई आम सोच वाले नॉसिखिये इंसान तो नहीं वल्कि काली मौद्रिक दुनिया के वो मजे हुए खिलाड़ी भी तो हो सकते हैं जो अपने कर्मचारियों, कारिंदों, मित्रों, रिश्तेदारों एवं भोले भाले गरीब एवं मजदूर लोगों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए ” हिस्सा आधारित” फॉर्मूले पर करने के गोपनीय तरीके पर विचार मंथन में लगे हों/  कहते हैं कि ” दौलत जब दुनियां में आती है तो उसके चेहरे से पैदाइशी खून टपकता है परंतु दौलत से जब पूँजी का जन्म होता है तो उसके जिस्म के हर हिस्से से लहू टपकता है” / ये भी तो आज एक मंजर ए हकीकत है / शायद गरीब एवं मजदूर के हाथ / थाली से छीनीं हुयी दौलत /रोटी हो सकता है कल अपने क़ातिलाना स्वरुप को त्याग कर गरीब एवं मज़दूर के हाथ में स्वेच्छा अथवा मजबूरी में ही सही बाहर आकर बाजार में निकले और कल्याण एवं अपराध बोध की स्वीकारोक्ति के साथ गरीब मज़दूर के आँसूं पोंछते हुए ईमानदारी एवं लोक कल्याण का नवीन इतिहास लिखदे/ सरकारों को भी चाहिए कि  अपराध बोध से बाहर निकलने वालों को सकारात्मक एवं सुधारात्मक सोच के साथ उचित परंतु कल्याणकारी भावना के स्वरुप काम कर उन्हें प्रायश्चित्त करने मौका दे /

आज सोशल मीडिया पर कभी नकली नोटों की अफवाह तो कभी गोपनीयता को  भंग करने की साजिश/ जनता सब जानती है / ये सार्वभौमिक सत्य कथन है कि कोई भी नवीन योजना कुछ तो तकलीफ देगी यदि उसके दूरगामी परिणाम अच्छे हुए तो ” अंत भला तो सब भला” वर्ना सरकार को उखाड़ फैंकने के लोकतान्त्रिक हथियार यानी वोट आपके हाथ आपके साथ / कीजिये उपयोग और दिखाईये वोट की ताकत / निःसंदेह कुछ तो अच्छा सोचा होगा आम आदमी के लिए/ वर्ना आम गरीब एवं मजदूर मध्यम वर्गीय तबका तो आज भी  वर्ल्ड बैंक को सर्वे सपोर्ट देने वाली एजेंसी ” लूँइज्ज़र मॉन्स्टर बोर्ड वेज इंडेक्स ” की रिपोर्ट के अनुसार भारत में व्हाइट कॉलर नौकर पेशा  लोगों की स्तिथि एशिया मैं  चीन एवं पाकिस्तान की तुलना में सर्वोत्तम है यानी १७२ रूपया प्रति घंटे है जो की चीन की ९६ एवं पाकिस्तान की ८१ रूपया की तुलना में काफी अधिक है/ ज्ञात रहे की इसी तबके का एक हिस्सा आज सातवें वेतन आयोग के फल खाते हुये शायद ये बात क्यों भूल रहा है की गरीब एवं मजदूर के लिए कोई वेतन आयोग नहीं और सातवें वेतन आयोग के साइड इफेक्ट्स सर्वाधिक उसी के जेब  एवं पेट पर चोट कर रहे हैं/  कुछ तो सब्र रखें / एक बार इसको भी देख लें/  अभी हाल में यूनाइटेड नेशन्स एवं  इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार मजदूरों के लिए ७२ देशों की सूची में भारत का स्थान ६९ वाँ यानी सिर्फ तीन देश पाकिस्तान, फिलीपीन्स एवं ताजकिस्तान के मजदूर ही हमारे मजदूर समुदाय से ज्यादा गरीब हैं/  ये तबका आज भी इस आस में जी रहा है की कालाधन शायद सफ़ेद बनकर उसकी थाली को एक दिन आबाद करदे/ उसके पास अनर्गल बातों एवं स्मार्ट फ़ोन पर बवंडर फैलने का वक्त  नहीं/ आज सरकार उसके तंत्र एवं देश के जन समुदाय को संयम से काम लेने की जरुरत है / ताकि योजना को लोकहित से परे मजाक न बनना पड़े/ लोकतान्त्रिक देश के नागरिकों के लिए भी कुछ मर्यादाएं होनी चाहिए और उनका पालन  भी/

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DPSharma,About the Author

Prof.(Dr.) DP Sharma

International consultant/adviser (IT), ILO (United Nations)-Geneva

प्रोफेसर  डी पी शर्मा  एक स्वतंत्र स्तंभकार एवं अंतर्राष्ट्रीय कंसल्टेंट /सलाहकार, आई.एल.ओ. ( यूनाइटेड नेशन्स एजेंसी )  के साथ महर्षि अरविन्द इंस्टिट्यूट रिसर्च सेण्टर अंडर राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय जयपुर से  जुड़े हुए हैं / डॉ शर्मा को सूचना तकनीकी एवं पुनर्वास योजनाओं के क्षेत्र में किये उल्लेखनीय  कार्यों के लिए तकरीबन 46 अवार्ड्स एवं प्रशंसा पत्रों से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है जिनमें “गॉड फ़्रे फिलिप्स नेशनल गैलेंट्री अवार्ड, प्रेसिडेंसियल अवार्ड  एवं सरदार रत्न इंटरनेशनल अवार्ड  फॉर टाइम अचीवमेंट्स प्रमुख हैंl

Contact – : Email: dp.shiv08@gmail.com ,  WhatsApp:   +917339700809

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

7 COMMENTS

  1. Really this is great. India please go towards such type of idialogy. Achhe din are not in government’s pocket. There are some prossece. Please support them to implement.

  2. बहुत खूब सर आपकी लेखन शैली सच में काबिले तारीफ है ……

    • RDear DP,Really good,carry on it is needed. but is India m jab log dusron me sthan par kudh ko sudhar Lange to say sahi ho jayega.

  3. बहुत ही सही मुद्दा उठाया और जिस गहराई के साथ आपने लिखा बहुत ही काबिले तारीफ है ……ये बदलाव जरूरी था और आ भी रहा है सोचने की बात ये है की जिस देश में लोगो को विज्ञापन दे कर बताना पड़े की टॉयलेट यह जाना है वह की ८५% जनता नोट बन्दी के समर्थन में है ये एक बहुत बड़ा बदलाव है और मजाक बनाने वाले कुछ मुठीभर लोग है जिन्हें अपनी धरती को माँ कहने में भी शर्म आती है और सम्प्रदायिकता दिखती है

  4. Dr. Sharma, wel said. People should not criticize Without understan the subject. Making jokes on any matter is easy job.people should not do it.such people should be educated.The quote ” There is a crack in everything.That’s how the light gets in”suits the current situation.
    Instead of spreading negativity, let’s support the change. It cannot happen without our support. Instead of criticising for the sake of it , let’s engage in constructive criticism and offer our hand to make things better. No great change ever came without great inconvenience. After it’s all set and done, it will be worth it.

  5. Well said, sir!!! Social Media has its pros and cons. The strange group of writers has mushroomed. They need to be made aware about do’s and dont’s of being on social media.

  6. प्रोफेसर डॉ डी पी शर्मा ने बहुत ही संतुलित विश्लेषण किया है ।यह बिलकुल सही बात है कि सोशल मीडिया पर कुछ भी अनर्गल लिखने वाले लेखकों को इस बात का अहसास नहीं है कि समाज के सीधे सादे लोग उनके तथ्यहीन लेखन से भ्रमित हो सकते हैं ।

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