निर्माण के नाम पर जनता के पैसों की लूट

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strts{ निर्मल रानी }
विकास तथा जनसुविधाओं के नाम पर केंद्र सरकार तथा देश की सभी राज्य सरकारों द्वारा  विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्य कराए जाते हैं। कभी भवन निर्माण,सडक़ों व गलियों,नहरों,नालों,नालियों, पुलों व पुलियों ,सरकारी क्वार्टर आदि के निर्माण तथा इनके रख-रखाव आदि के कार्य पूरे देश में निरंतर चलते ही रहते हैं। यदि हम मैट्रो रेल अथवा मैट्रो स्टेशन,बड़े-बड़े बिजली घर,बांध, बड़े $फ्लाईओवर जैसे कुछ गिने-चुने निर्माण कार्यों को छोड़ दें तो शेष अन्य निर्माणों में हमें भयंकर धांधली देखने को मिलेगी। यहां तक कि कई निर्माण तो ऐसे देखे जा सकते हैं जो पूरा होने के बाद मात्र तीन महीनों के अंतराल में ही क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। जहां तक मैट्रो रेल से संबंधित कियी निर्माण कार्य का प्रश्न है अथवा देश के प्रमुख बड़े $फ्लाईओवर और बड़ी परियोजनाओं के निर्माण का विषय है तो इनमें मज़बूती का कारण यह होता है कि इन्हें प्रतिष्ठित निर्माण कंपनी व ईमानदार अधिकारी की देखरेख में ऐसे अति महत्वपूर्ण व राष्ट्र की प्रतिष्ठा का प्रश्र समझे जाने वाली परियोजनाओं का निर्माण किया जाता है। उन कंपनियों के प्रमुख बेहद जि़म्मेदार,ईमानदार तथा पूरे निर्माण कार्य के प्रत्येक हिस्से पर बहुत बारीकी से नज़र रखने वाले अधिकारी होते हैं। ऐसे जि़म्मेदार अधिकारियों में हम मैट्रो रेल परियोजना के प्रमुख श्रीधरन का नाम ले सकते हैं। या फिर इस प्रकार के निर्माण कार्यों में लगी बड़ी कंपनियां चाहे वह विदेशी कंपनियों हों या स्वदेशी अपनी निर्माण कंपनी की प्रतिष्ठा के कारण किसी प्रकार की कोताही नहीं बरतना चाहतीं। परंतु छोटे व मध्यम स्तर पर होने वाले निर्माण कार्य तथा स्वायत शासन मंत्रालय के अधीन होने वाले स्थानीय निर्माण अथवा रेलवे जैसे केंद्रीय विभागों के अंतर्गत होने वाले निर्माण कार्य ऐसे होते हैं जो निर्माण कार्य के समाप्त होने के अगले ही दिन से अपने क्षतिग्रस्त होने अथवा इसके पुनर्निर्माण की प्रतीक्षा करने लग जाते हैं। और मज़े की बात तो यह है कि ऐसे निर्माण कार्यों में लगा ठेकेदार व निर्माण में हो रही मिलावट$खोरी के नेटवर्क का हिस्सा बने विभागीय अधिकारी जनता की कमाई की लूट के पैसों से अपने घरों के जो निर्माण करते हैं वे निश्चित रूप से बहुत मज़बूत,सुुंदर व टिकाऊ होते हैं।

गत् एक दशक से पूरे देश में सीमेंटेड गलियां व सडक़ें बनाए जाने का सिलसिला चल रहा है। सीमेंटेड गलियों व सडक़ों के निर्माण का अर्थ यह है कि कंकरीट के इस निर्माण को लंबे समय तक चलने के लिए बनाया गया है। परंतु यह गलियां व सडक़ें काम पूरा होने के कुछ ही महीनों के बाद अपनी सतही आभा खो बैठती है। इसके ऊपर पड़ी सीमेंट के घोल की चमकती हुई परत उतर जाती है। और भीतर से बजरी,मिट्टी व मोटी रेत का मिश्रण ऊपर निकल आता है। और बारिश तथा वाहनों के आने-जाने से यह बजरी भी धीरे-धीरेे गड्ढों का रूप धारण कर लेती है। परिणामस्वरूप ठेकेदार, क्षेत्र के निर्वाचित सभासद व विभागीय अधिकारी की सांठगांठ से एक बार फिर यथाशीघ्र उस गली के निर्माण कार्य का ठेका पुन: हो जाता है। और ठेकेदार द्वारा सभी संबद्ध अधिकारियों की जेबें भरने के बाद मिले ठेके को अपनी कमाई का शुभावसर समझते हुए संबद्ध कार्य का निर्माण पूरी मनमानी के साथ किया जाता है।भ्रष्ट,स्वार्थी तथा देश की पूंजी में घुन लगाने वाले लोागों की शरारत के चलते आम जनता इनकी काली करतूतों को खुली आंखों से देखने के लिए मजबूर रहती है। यही हाल सीवरेज संबंधी निर्माण कार्य तथा ड्रेनेज संबंधी नालों व नालियों का भी है। इस प्रकार के निर्माण का सीधा संबंध नागरिकों की सुरक्षा,उनके स्वास्थ तथा उनकी सहूलियतों से है। परंतु इन भ्रष्ट निर्माण मा$िफया को इस बात से कोई सरोकार नहीं कि ड्रेनज व सीवर सिस्टम के जाम होने के परिणामस्वरूप शहर,गलियां,मोहल्ला गंदे पानी में डूब जाएंगे। या सीवरेज जाम होने के चलते कहीं बीमारी भी फैल सकती है। इन्हें तो बस केवल अपनी काली कमाई से वास्ता है।
एक बार एक रेलवे कालोनी के बीच से गुज़रने का अवसर मिला। रेलवे कालोनी के बीच की गलियों का निर्माण कार्य चल रहा था। ठेकेदार द्वारा गली के किनारे-किनारे ईंटें रखी जा रही थी। विश्वास कीजिए कि किसी भी ईंट को आपस में सीमेंट व बालू के मिश्रण से नहीं जोड़ा गया था। ईंटें भी तीसरे दर्जे की थीं जोकि अधपकी थीं। ठेकेदार के मिस्त्री उन ईंटों को लाईन से रखकर उसके ऊपर सीमेंट व रेत के घटिया मसाले से ईंटों के ऊपर प्लास्टर कर रहे थे। मात्र पंद्रह दिन के बाद ही वह ईंटे व प्लास्टर सब उधड़ गए। गली भी पंद्रह-बीस दिन के भीतर ही पुन: क्षतिग्रस्त हो गई। यही सब अक्सर रेलवे प्लेट$फार्म, इनकी चारदीवारी तथा नाले-नालियों के निर्माण के समय भी देखा जा सकता है। पूरे विश्वास के साथ यह कहा जा सकता है कि ऐसे भ्रष्ट नेटवर्क के माध्यम से होने वाले ऐसे निर्माण कार्यों में शायद ही निर्धारित लागत का आधा पैसा भी लगाया जाता हो। नगरपालिकाओं व महानगरपालिकाओं तथा जि़ला परिषद व पीडबल्यूडी विभाग से जुड़े निर्मार्ण कार्यों में तो भ्रष्टाचार और भी चरम पर है। सूत्रों के अनुसार स्वायतशासी विभागों का तो इतना बुरा हाल है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी विभाग द्वारा मासिक नज़राना लेकर $खमोश रहने के लिए मजबूर रहते है। उन्हें इसी बात का मासिक शुल्क उनकी तन$ख्वाह के अतिरिक्त दिया जाता है ताकि वे सबकुछ अपनी आंखें मूद कर देखते रहें।

कल्पना कीजिए कि यदि मैट्रो रेल जैसी देश की नाक समझी जाने वाली परियोजना भी ऐसे ही भ्रष्ट,रिश्वतख़्ाोर तथा निकम्मे अधिकारियों व ठेकेदारों के हाथों में होती तो यह परियोजना भी कब की क्षतिग्रस्त अथवा बंद हो गई होती। जिस समय दिल्ली में मैट्रो रेलवे के निर्माण की शुरुआत हुई थी उसी समय परियोजना के प्रमुख पर कई मंत्रियों व सांसदों द्वारा बार-बार इस बात का दबाव डाला गया कि सीमेंट अमुक कंपनी से $खरीदा जाए, लोहा $फलां कंपनी का प्रयोग किया जाए अथवा रेत-बालू आदि अमुक ठेकेदार से खरीदी जाए। और भ्ी कई ठेकों की बाबत श्रीधरन पर दबाव बनाया गया। परंतु उन्होंने बड़ी ही दृढ़ता व स$ख्ती के साथ तथा बिना अपने पद की परवाह किए ऐसे सभी भ्रष्ट प्रयासों की अनदेखी कर दी। उन्होंने ऐसे सभी सि$फारिश करने वाले राजनेताओं तथा नेताओं को सा$फतौर पर बता दिया कि उनके लिए प्रथम श्रेणी की निर्धारित व आवश्यक सामग्री तथा उसके द्वारा किया जाने वाला उच्चस्तरीय निर्माण सर्वप्रथम व सर्वोपरि है। नतीजतन आज मैट्रो रेल पूरे देश के लिए एक अद्भुत निर्माण का उदाहरण बन चुकी है। ज़रा कल्पना कीजिए कि यदि रेलवे के पुल,बिजली उत्पादन करने वाले बड़े-बड़े बांध आदि का ठेका नगरपालिका या रेलवे जैसे छोटे ठेकेदारों के हाथों में हो तो देश में कितनी बड़ी तबाही इन भ्रष्ट व रिश्वत$खोरों के कारण फैल सकती है।
यदि आप इस विषय पर किसी ठेकेदार से बात करें तो वह बड़ी ही मासूमियत के साथ अपने को सही व सच्चा बताते हुए यह दलील पेश करता है कि ठेके की $फाईलों को पास करने वाले अधिकारी रिश्वत लेने के बाद ही उन्हें ठेके देते हैं। और यदि वह ठेके के समय निर्धारित सामग्री का निर्माण में प्रयोग करे तो उन्हें अपने कार्य में कुछ बचने के सिवाए और घाटा होने की संभावना रहती है। ऐसे में ज़ाहिर है कि वे ठेकेदारी का काम न तो घाटा उठाने के लिए कर रहे हैं न ही देश सेवा या समाज सेवा के उद्देश्य से। बल्कि वे एक पेशेवर ठेकेदार और एक व्यापारी की रूप में अपने परविार के पालन-पोषण की $गरज़ से ठेकेदारी के पेशे को अंजाम दे रहे हैं। लिहाज़ा इस कारोबार में मुना$फा कमाना उनकी पहली प्राथमिकता है। कई ठेकेदार यह कहते हुए भी सुनाई दिए कि यदि अधिकारियों की रिश्वत$खोरी बंद हो जाए तो निर्माण कार्य मज़बूत,टिकाऊ तथा आकर्षक हो सकता है। ठेकेदारों के यह सभी तर्क सुनने में बिल्कुल सही भी प्रतीत होते है। ठेकेदारों की इन बातों से आम जनता का वह संदेह विश्वास में बदल जाता है जिसके अंतर्गत जनता यह सेाचती रहती है कि भ्रष्ट अधिकारियों,निर्वाचित जनप्रतिनिधियों तथा ठेकेदारों की मिलीभगत से भारी लूट की जाती है। और जनता की $खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को इस नेटवर्क द्वारा दोनों हाथों से लूटा जाता है।
सवाल यह है कि आ$िखर भ्रष्टाचार के इस दानव से मुक्ति पाने के उपाय क्या हैं?इस भ्रष्ट व्यवसथा से बचने का उपाय यदि हम यह सोचें कि इन भ्रष्टाचारियों को डरा-धमका कर या इन्हें राष्टप्रेम की थोथी भावनाओं का पाठ पढक़र उन्हें ईमानदारी के रास्ते पर लाया जा सकता है तो यह हमारी बड़ी भूल होगी। इस समस्या से निजात पाने का केवल एक ही उपाय है कि किसी भी ठेकेदार द्वारा किए जाने वाले किसी भी निर्माण कार्य की मज़बूती का एक मापदंड स्थापित किया जाए और वह मापदंड केवल एक ही हो सकता है कि अमुक सामग्री से तैयार होने वाले निर्माण कार्य कितने वर्षों तक मज़बूत तथा बिना किसी मुरम्मत के टिका रह सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई नाली या नाला अपने निर्माण के बाद बीस वर्षों तक टिकाऊ व मज़बूत स्थिति में रहना चाहिए तो उस संबद्ध ठेकेदार व उस योजना से जुड़े अधिकारियों की जि़म्मेदारी है कि वे निर्धारित अवधि तक उस निर्माण की देखरेख करें। अथवा उसे इतना मज़बूत बनाएं कि अपनी निर्धारित अधिकतम अवधि तक उस निर्माण में किसी प्रकार की कमी न आने पाए। और यदि निर्धारित अवधि से पूर्व वह निर्माण क्षतिग्रस्त होता है तो या तो उसकी भरपाई योजना से संबद्ध ठेकेदारों व अधिकारयिों से की जाए या फिर इन्हीं लोगों से उस क्षतिग्रसत योजना की मुरम्मत कराई जाए। यदि सरकारों द्वारा इस प्रकार के उपाय नहीं किए गए तो ग्राम पंचायतों से लेकर केंद्र सरकार तक के अनेक विभागों मेे होने वाली इस प्रकार की लूट देश के लिए दीमक के सामन साबित होगी। और निर्माण के नाम पर जनता के पैसों की लूट का यह सिलसिला देश को खोखला करता रहेगा।

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nirmal raniनिर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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